जनपद काल में राजस्थान
आर्यों के निरंतर आगमन और उनके बसने की प्रक्रिया से समय के साथ जन, फिर जनपद, और अंत में महाजनपद जैसे राजनीतिक संगठनों का विकास हुआ। प्रारंभिक जनपद दरअसल अलग-अलग कबीलों पर आधारित थे, जो बाद में बड़े और संगठित रूप में महाजनपदों में बदल गए।
बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय और जैन ग्रंथ भगवतीसूत्र में जिन 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है, उनमें से मत्स्य, शूरसेन और अवन्ति महाजनपदों के अधीन राजस्थान के कई भाग शामिल थे।
महाजनपद काल को सामान्यतः 600 ईसा पूर्व से 325 ईसा पूर्व के बीच का समय माना जाता है। इस अवधि में भारत में कुल सोलह प्रमुख महाजनपद विद्यमान थे।
| जनपद | राजधानी |
|---|---|
| अंग | चम्पा |
| मगध | पाटलिपुत्र |
| काशी | वाराणसी |
| कोसल | श्रावस्ती |
| वज्जि | वैशाली |
| मल्ल | कुशीनारा, पावा |
| चेदि | शक्तिमती |
| वत्स | कौशाम्बी |
| कुरू | इन्द्रप्रस्थ |
| पांचाल | अहिच्छत्र |
| मत्स्य | विराटनगर |
| शूरसेन | मथुरा |
| अश्मक | पोतन |
| अवन्ति | उज्जयिनी, महिषमती |
| कम्बोज | राजपुर |
| गान्धार | तक्षशिला |
राजस्थान के प्रमुख जनपद
- सिकन्दर के आक्रमण (लगभग 327 ई.पू.) के परिणामतः उत्तर-पश्चिमी भारत की मालव, शिवि और अर्जुनायन जातियाँ राजस्थान में क्रमशः अजमेर-टोंक, चित्तौड़ और अलवर-भरतपुर क्षेत्र में बस गई।
- सिकन्दर मकदूनिया का शासक था।
- इसका गुरु अरस्तु था। 326 ई. पूर्व सिकन्दर भारत विजय के लिए निकला था।
- सिकन्दर ने खेबर दर्रे से भारत में प्रवेश किया।
- सिकन्दर की सेना ने व्यास नदी पार करने से मना कर दिया।
- सिकन्दर भारत में 19 माह रुका।
- वापस लौटते समय 33 वर्ष की उम्र में बेबिलोन में सिकन्दर की मृत्यु हो गयी थी।
मत्स्य जनपद
राजस्थान का सर्वप्रमुख मत्स्य जनपद वर्तमान कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल तिजारा, बैराठ, भरतपुर, डीग और दौसा क्षेत्र में विस्तृत था।
मत्स्य जनपद का उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद से मिलता है, जिसमें इसे भरतवंशी राजा सुदास का शत्रु बताया है।
महाभारत काल में मत्स्य जनपद पर विराट नामक राजा शासन कर रहा था। इसी विराट ने विराटनगर (कोटपूतली बहरोड़) की स्थापना की और इसे राजधानी बनाया।
अपने उत्कर्ष काल में ही मत्स्य जनपद को मगध जनपद में मिला लिया गया था।
शूरसेन जनपद
शूरसेन जनपद मुख्यतः उत्तरप्रदेश में स्थित था जिसकी राजधानी मथुरा थी। सीमावर्ती अलवर, बहरोड़, खैरथल, तिजारा, भरतपुर, डीग के क्षेत्र इसमें शामिल थे। इसमें आधुनिक ब्रज क्षेत्र शामिल था।
महाभारत के समय यहाँ यदु वंश का शासन था। भगवान श्रीकृष्ण का सम्बन्ध इसी जनपद से है।
अवन्ति जनपद
मूलतः मध्यप्रदेश में स्थित अवन्ति जनपद की राजधानी उज्जयिनी (उज्जैन) थी।
सीमावर्ती राजस्थान के कुछ क्षेत्रों पर अवन्ति जनपद का अधिकार था।
शिवि जनपद
शिवि जनपद मुख्यतः माध्यमिका या मज्झिमिका (चित्तौड़) में स्थित था। चित्तौड़ के समीप स्थित नगरी का प्राचीन नाम माध्यमिका था।
शिवि की राजधानी शिवपुर थी।
मालव जनपद
मालवों ने पंजाब से हटने के बाद अजमेर-टोंक मेवाड़ के मध्यवर्ती क्षेत्र में अपनी बस्तियाँ बसाई।
राजस्थान के जनपदों में सर्वाधिक सिक्के मालव जनपद के ही प्राप्त होते हैं।
इन्होंने मालव नगर को राजधानी बनाया जिसकी पहचान टोंक जिले में स्थित आधुनिक नगर या कार्कोट नगर के रूप में की जाती है।
कुरु जनपद - बहरोड़, तिजारा जिले
दिल्ली, मेरठ और थानेश्वर क्षेत्र में विस्तृत कुरु जनपद की राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी।
राजस्थान के बहरोड़, तिजारा का उत्तरी भाग कुरु जनपद का अंग था।
मरु या जांगल
इसमें बीकानेर व जोधपुर का क्षेत्र आता था। इसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर (नागौर) थी।
बीकानेर राजाओं को जांगलधर बादशाह कहा जाता है।
कुछ स्थानों पर इसे कुरु जांगला व भाद्रेय जांगला भी कहा गया है। क्योंकि वह कुरु व भद्र के क्षेत्र में समीप था।
यौद्धेय जनपद
गंगानगर-हनुमानगढ़ क्षेत्र में स्थित।
राजन्य जनपद
भरतपुर क्षेत्र में स्थित।
अर्जुनायन जनपद
अर्जुनायन जनपद अलवर क्षेत्र में स्थित था।
शाल्व जनपद
अलवर क्षेत्र में स्थित।
नोट
अलवर का उत्तरी भाग कुरु जनपद में व अलवर का पूर्वी भाग शूरसेन जनपद में आता था।
मौर्यकाल में राजस्थान
बैराठ से प्राप्त अशोक के अभिलेख- भाब्रू और बैराठ लघु शिलालेख तथा उसके द्वारा बनवाया गया बौद्ध गोल मन्दिर राजस्थान में मौर्य शासन को प्रमाणित करते हैं।
कुमारपाल प्रबंध के अनुसार चित्तौड़ के किले का निर्माण तथा चित्रांग तालाब की स्थापना मौर्य राजा चित्रांगद ने की थी।
चित्तौड़ के समीप मानसरोवर से कर्नल टॉड ने 713 ई. का मानमोरी का शिलालेख प्राप्त किया था, जिसमें माहेश्वर, भीम, भोज और मान नामक मौर्य शासकों का नामोल्लेख है।
माना जाता है कि बप्पा रावल ने 734 ई. में मौर्य शासक मानमौरी से चित्तौड़ का किला जीता था।
कोटा के निकट कणसवा (कंसुआ) के शिवालय में 738 ई. का शिलालेख है, जिसमें मौर्यवंशी राजा धवल का नाम मिलता है। धवल राजस्थान में अंतिम ज्ञात मौर्य शासक है।
मौर्योत्तरकाल : विदेशी आक्रमण
- यूनानी शासक मिनाण्डर ने 150 ई.पू. के लगभग माध्यमिका पर अधिकार कर लिया था। पतंजलि के महाभाष्य से भी इसकी पुष्टि होती है।
- बैराठ से मिनाण्डर की 16 मुद्राएँ मिली हैं। आहड़ से भी एक यूनानी सिक्का प्राप्त हुआ। यूनानी शासन को प्रमाणित करने वाले सिक्के नलियासर और नगरी से भी मिले हैं।
- राजस्थान में कुषाण शासकों के सोने व ताँबे के सिक्के खेतड़ी (सीकर), जमवारामगढ़ (जयपुर) और बीकानेर से प्राप्त हुए हैं। रंगमहल से ताँबे के 105 सिक्के मिले हैं जिनमें से एक सिक्का कनिष्क का है। नलियासर से कनिष्क के उत्तराधिकारी हुविष्क की मुद्रा मिली है।
- मथुरा के शक क्षत्रपों के सिक्के भरतपुर जिले में नोह से प्राप्त हुए हैं।
- शक महाक्षत्रप रुद्रदामन (130-150 ई.) के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि राजस्थान के कुछ क्षेत्रों पर उसका अधिकार था।
गुप्त काल में राजस्थान
समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार राजस्थान के आभीर, अर्जुनायन, मालव, योधेय आदि गणराज्यों ने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार कर ली थी। इस युग में मौखरियों का भी प्रभाव राजस्थान में था। जैसा बड़वा से प्राप्त 238-39 ई. के यूप-स्तम्भ लेखों से ज्ञात होता है।
गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य' ने शक सत्ता का अन्त कर पश्चिमी मालवा सहित राजस्थान के अधिकांश क्षेत्र को गुप्त साम्राज्य में मिला लिया था।
गुप्त शासकों के स्वर्ण सिक्कों का सबसे बड़ा ढ़ेर राजस्थान में बयाना के समीप नगलाछैल नामक स्थान से मिला है जिसमें सर्वाधिक सिक्के चन्द्रगुप्त द्वितीय के हैं।
टोंक जिले में रैढ़ के समीप भेड़ नामक स्थान से भी गुप्तकालीन छः स्वर्ण मुद्राएँ मिली हैं, जिनमें से 4 चन्द्रगुप्त द्वितीय शैली की हैं।
नलियासर (साँभर) से कुमारगुप्त प्रथम की चाँदी की मुद्राएँ मिली हैं, जिन पर मयूर की आकृति बनी हुई है।
चारचौमा का शिव मन्दिर (लगभग 500 ई.) और दर्रा (कोटा) का मन्दिर गुप्तकालीन राजस्थान के प्रसिद्ध वास्तुकला के उदाहरण हैं।
हूण आक्रमण और वर्धन काल में राजस्थान
भारत पर प्रथम हूण आक्रमण गुप्त शासक स्कन्दगुप्त के शासनकाल में हुआ परन्तु स्कन्दगुप्त ने हूणों को पराजित कर खदेड़ दिया था। गुप्तों के पतन के बाद पुनः हूण आक्रमण प्रारम्भ हो गए।
हूण शासक तोरमाण ने बुधगुप्त के समय राजपूताना और गुजरात के अधिकांश भागों पर अधिकार कर लिया था।
तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल ने बाड़ौली (सलूम्बर) के प्रसिद्ध शिव मन्दिर का निर्माण करवाया था।
हूणवास या ऊनवास (राजसमन्द) को हूणों के नाम पर बसा हुआ माना जाता है। मेवाड़ के गुहिल शासक अल्लट ने हूण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया था।
हूण शासकों ने मेवाड़ और मारवाड़ में 'गधिया' सिक्कों का प्रचलन किया था।
हूणों को पराजित कर मालवा के शासक यशोवर्मन ने राजस्थान पर अधिकार कर लिया था। यशोवर्मन के पतन के बाद राजस्थान पर क्रमशः गुर्जर, थानेश्वर के वर्धन वंश और प्रतिहारों का शासन रहा।
प्रभाकरवर्धन से पहले राजस्थान पर गुर्जरों का शासन था। वर्धन वंश के संस्थापक प्रभाकरवर्धन ने राजस्थान से गुर्जरों का प्रभाव समाप्त किया।
वर्तमान जोधपुर का दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र, जालौर और बाड़मेर गुर्जर सत्ता के प्रभाव में थे। गुर्जरों के शासन के कारण इस क्षेत्र को गुर्जरात्रा या गुर्जरवाड़ा कहा गया। इनकी राजधानी भीनमाल (जालौर) थी।
हर्षवर्धन के समकालीन प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भीनमाल की यात्रा की थी। उसने गुर्जर देश (कुचेलो) की राजधानी भीनमाल (पि लो मो लो) बताई है।
सातवीं शताब्दी के महान् संस्कृत कवि माघ ने शिशुपाल वध नामक ग्रन्थ की रचना भीनमाल में ही की थी।
राजस्थान के प्राचीन भू-भाग और वर्तमान क्षेत्र
| प्राचीन नाम | वर्तमान क्षेत्र | राजधानी | विशेष विवरण |
|---|---|---|---|
| मरु या मरुदेश | जोधपुर (मारवाड़), जोधपुर, फलौदी | — | ऋग्वेद, महाभारत और रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख (150 ई.) में मरुदेश का वर्णन मिलता है। |
| जांगल प्रदेश | बीकानेर, नागौर और फलौदी | अहिच्छत्रपुर (नागौर) | इस क्षेत्र पर शासन करने के कारण सपादलक्ष के चौहान 'जांगलदेश' और बीकानेर के राठौड़ 'जांगलधर' बादशाह कहलाये। |
| मत्स्य क्षेत्र | जयपुर, दौसा, अलवर भरतपुर व कोटपूतली | विराटनगर (बैराठ-कोटपूतली-बहरोड़) | सर्वप्रथम ऋग्वेद में उल्लेख मिलता है। |
| गुर्जरात्रा | जालौर, सांचौर | भीनमाल | चीनी यात्री ह्वेनसांग ने गुर्जर देश की यात्रा की थी। |
| मांड | जैसलमेर | — | मांड राग का उदय इसी क्षेत्र से माना जाता है। |
| शिवि | उदयपुर व चित्तौड़ | माध्यमिका (नगरी) | — |
| शूरसेन | भरतपुर, धौलपुर व करौली, डीग, सवाईमाधोपुर | मथुरा | — |
| मालव | टोंक | नगर (टोंक) | — |
| यौधेय | गंगानगर व हनुमानगढ़ | — | — |
| शाल्व | अलवर, बहरोड़, खैरथल-तिजारा | शाल्वपुर | — |
| ढूँढाड़ | जयपुर, दौसा व जयपुर | दौसा, आमेर | ढूँढ नदी के प्रवाह के कारण ढूँढाड़ कहलाया। |
| भादानक | भरतपुर व बयाना | भादानक (बयाना) | — |
| मेदपाट या प्राग्वाट | मेवाड़ क्षेत्र | चित्तौड़ | मेवाड़ के शासकों को प्राग्वाट् नरेश भी कहा जाता है। |
| गोंडवाड़ | मेवाड़ का मध्यवर्ती भाग | — | — |
| वागड़ | डूंगरपुर व बाँसवाड़ा | — | — |
| सप्तशत प्रदेश | नाडौल क्षेत्र | नाडौल | नाडौल के चौहानों द्वारा शासित क्षेत्र। |
| खींचीवाड़ा | गागरोण क्षेत्र | गागरोण | खींची-चौहानों द्वारा शासित क्षेत्र। |
| मेरवाड़ा | अजमेर क्षेत्र | — | मेर बाहुल्य क्षेत्र। |
| हाड़ौती | बूंदी व कोटा | — | हाड़ा-चौहानों के शासन के कारण हाड़ौती कहलाया। |
| तोरावाटी (तंवरवाटी) | नीमकाथाना व कोटपूतली क्षेत्र | — | तंवर क्षत्रियों का अधिकार क्षेत्र |
| सपादलक्ष | साँभर का समीपवर्ती क्षेत्र | — | अजमेर के चौहानों का उत्कर्ष यहीं से हुआ था। |
| काँठल | प्रतापगढ़ | — | माही नदी के काँठे अर्थात् किनारे पर स्थित। |
राजस्थान के विभिन्न राज्यों की स्थापना
| वर्ष | वंश | राज्य | संस्थापक |
|---|---|---|---|
| 551 ई. | चौहान | शाकम्भरी/सांभर | वासुदेव |
| 1194 ई. | चौहान | रणथम्भौर | गोविन्दराज |
| 1181 ई. | चौहान | जालौर | कीर्तिपाल |
| 960 ई. | चौहान | नाडोल | लक्ष्मण |
| 1311 ई. | देवड़ा चौहान | सिरोही | राव लुम्बा |
| 1241 ई. | हाड़ा चौहान | बूंदी | देवीसिंह |
| 1631 ई. | हाड़ा चौहान | कोटा | माधोसिंह |
| 566 ई. | गुहिल | मेवाड़ | गुहिल |
| 1178 ई. | गुहिल | बागड़ | समरसिंह |
| 1527 ई. | गुहिल | डूंगरपुर | पृथ्वीसिंह |
| 1527 ई. | गुहिल | बाँसवाड़ा | जगमाल सिंह |
| 1631 ई. | गुहिल | शाहपुरा | सुजान सिंह |
| 1699 ई. | गुहिल | प्रतापगढ़ | प्रताप सिंह |
| 1240 ई. | राठौड़ | मारवाड़ | राव सीहा |
| 1465 ई. | राठौड़ | बीकानेर | राव बीका |
| 1609 ई. | राठौड़ | किशनगढ़ | किशन सिंह |
| 1137 ई. | कच्छवाहा | आमेर | दुल्हेराय |
| 1774 ई. | कच्छवाहा | अलवर | प्रताप सिंह |
| 1155 ई. | भाटी | जैसलमेर | राव जैसल |
| 1040 ई. | यादव | करौली | विजयपाल |
| 1713 ई. | जाट | भरतपुर | चूड़ामन |
| 1817 ई. | पिण्डारी | टोंक | अमीर खाँ |
| 1838 ई. | झाला | झालावाड़ | मदनसिंह |
राजस्थान के प्रमुख राजवंश
| रियासतें | राजवंश |
|---|---|
| मेवाड़, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, शाहपुरा | गुहिल |
| सांभर, अजमेर, रणथम्भौर, नाडौल, जालौर, सिरोही, हाड़ौती | चौहान |
| जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़ | राठौड़ |
| आमेर, जयपुर, अलवर | कच्छवाहा |
| करौली | यादव |
| भटनेर, जैसलमेर | भाटी |
| आबू, मालवा, जालौर | परमार |
| झालावाड़ | झाला |
| भरतपुर, धौलपुर | जाट |
| टोंक | मुस्लिम नवाब |
| गुर्जरात्रा, मारवाड़, भीनमाल | गुर्जर प्रतिहार |
महत्वपूर्ण तथ्य
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भीनमाल की यात्रा की थी।
- भरतपुर, डीग, करौली और धौलपुर क्षेत्र शूरसेन प्राचीन नाम से जाना जाता था।
- राजस्थान के उत्तरी भाग में 'यौधेय' नामक गणतन्त्रीय कबीले का शासन रहा।
- अर्जुनायन जाति के प्रभाव क्षेत्र में सम्मिलित प्रान्त अलवर-भरतपुर प्रांत है।
- मत्स्य महाजनपद राजस्थान में स्थित था।
- महाभारत के अनुसार, मत्स्य महाजनपद में पांडवों ने अज्ञातवास के समय जीवनयापन किया था।
- मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर थी, विराटनगर को बैराठ के नाम से जाना जाता था, चीनी यात्री ह्वेनसांग ने बैराठ को पारयात्र नाम दिया।
निम्न अभिलेखों का सही कालक्रम है?
- (अ) घोसुण्ड़ी अभिलेख (दूसरी शताब्दी ईसा.पूर्व)
- (ब) बुचकला अभिलेख (815 ई.)
- (स) बिजौलिया शिलालेख (1170 ई.)
- (द) नेमिनाथ अभिलेख (1230 ई.)

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