राजस्थान के प्रमुख क्रांतिकारी

क्रांतिकारी

मुख्य क्रांतिकारी व मुख्य व्यक्तित्व

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कारण
धर्म व समाज सुधारकों का योगदानः-
ईसाई, भाषा, धर्म व साहित्य को श्रेष्ठ माना जाता था। शिक्षित भारतीय अपनी सभ्यता व संस्कृति को अपनाने में अपना विश्वास खोते जा रहे थे।
ईसाई मिशनरियों ने भी भारतीय जागरण को दो तरह से प्रभावित किया मिशनरियों के प्रयत्नों से अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार हुआ। भारतीयों में चिन्तन की एक नई धारा फुटने लगी।
पादरियों ने ईसाई करण की नीति को अपनाया, जिससे भारतीय संस्कृति के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग गया। इससे भारतीय सामाजिक विश्लेषण किया तो बहुत सी कमजोरियाँ हमारे समाज में उजागर हुई।
ऐसी परिस्थितियों में जब हिन्दू धर्म पतन की ओर जाने लगा तब अनेक बुद्धिजीवी व समाज सुधारक पैदा हुए। यह पुनर्जागरण प्रारम्भ में बौद्धिक, फिर धार्मिक व सामाजिक तथा अन्त में राजनैतिक जीवन से सम्बंधित था।
1877 ई. से पूर्व यह आंदोलन व्यक्तिगत था, जिससे केशवचन्द्र सेन के प्रयासों से 1872 ई. का ब्रहम में रिजेज एक्ट बना जिससे अन्तर्जातीय व विधवा विवाह को अनुमति मिली तथा बाल विवाह को रोकने के लिए लडकी की उम्र 14 वर्ष लड़के की 18 वर्ष तय की गई किन्तु यह अधिनियम पूर्णतः लागू नहीं हो सका क्योंकि इसके अनुसार घोषणा करनी पड़ती थी कि वे हिन्दू नहीं है।

नोट
1877 ई. से 1919 ई. के बीच सुधार के संगठित प्रयास किए गए क्योंकि इस दौर में अंग्रेज भी चाहते थे कि भारतीयों का ध्यान अपने समाज व धर्म के सुधार में रहे ताकि वे राजनैतिक गुलामी की ओर न रहे। ध्यान नहीं दे सके।
इस समय तिलक जैसे विचारकों का ध्यान इस नीति की ओर गया तथा उन्होंने कहा राजनैतिक स्वतंत्रता के बिना समाज सुधार सम्भव नही है। 1919 ई. के बाद समाज सुधार आंदोलन पूर्णतया राजनीतिक बन गए थे।

स्वामी दयानन्द सरस्वती (1824-83)

राजस्थान के जन-जागरण में धर्म व समाज सुधारकों की श्रेणी में दयानन्द सरस्वती का नाम सबसे पहले लिया जाता है। स्वामी व उनके आर्य समाज का राजस्थान में सबसे अधिक योगदान रहा है।
जन्म स्थान -1824 ई. शिवपुरा, टंकारा गाँव, जिला मोरबी (गुजरात) मूलशंकर तिवारी (दयानंद सरस्वती नाम पूर्णानंद बचपन का नाम ने दिया था।)
  • पिता - कृष्ण लाल जी तिवारी,
  • माता - यशोदा बाई
  • इनके प्रसिद्ध नारे - "वेदों की ओर लौटों" "स्वराज्य, स्वदेशी स्वभाषा व स्वधर्म"
1845 ई. में 21 वर्ष की उम्र में गृहत्याग किया। 1860 ई. में मथुरा के दण्डी स्वामी बृजानंद महाराज से ज्ञान प्राप्त किया। बृजानंद महाराज ने वैदिक संस्कृति की पुनः स्थापना के आदेश दिए। केशवचंद के कहने पर इन्होंने हिंदी भाषा में प्रचार किया।

नोट
स्वराज्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सरस्वती जी ने किया। इन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया।

मूल शंकर जी 21 वर्ष की उम्र में (1845) में घर से निकल गए। इन्हें दयानंद सरस्वती नाम 1848 ई. में स्वामी पूर्णानंद जी ने दिया।
1861 ई. में सरस्वती जी की मुलाकात मथुरा में अन्धे स्वामी बृजानंद दण्डीश जी से हुई, सरस्वती जी बृजानंद जी के शिष्य बन गए।
सरस्वती जी ने कहा मैं पूरे भारत में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति को प्रतिष्ठित करूँगा। 1863 ई. में धर्म के प्रचार के लिए आगरा में 'पाखण्ड-खण्डिनी पताका' (हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर) फहराई।

आर्य समाज

10 अप्रैल, 1875 को बम्बई में 'आर्य समाज' की स्थापना की। आर्य समाज की स्थापना स्वामी विरजानंद की प्रेरणा से की।
आर्य समाज ने स्त्रियों व शूद्रों को यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया। सत्यार्थ प्रकाश आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है।
आर्य समाज का आदर्श वाक्य - "कृण्वनतो विश्वमार्यम्" (विश्व को आर्य बनाते चलो) था।
आर्य का अर्थ होता है- श्रेष्ठ। आर्य समाज का अर्थ हुआ श्रेष्ठ व प्रगतिशीलों का समाज। राजस्थान में आर्य समाज की स्थापना 1881 ई. अजमेर में हुई।
1883 ई. में उदयपुर में परोपकारिणी सभा की स्थापना की जिसे बाद में अजमेर स्थानान्तरित कर दिया। 1877 ई. में मुख्यालय लाहौर में बनाया।
वैदिक मंत्र प्रेस भी आर्य समाज के प्रयासों से अजमेर में स्थापित की गई। अजमेर राजस्थान में आर्य समाज का प्रमुख केन्द्र रहा है।
इसाईकरण की नीति के विरोध में सरस्वती ने 'शुद्धि आंदोलन' चलाया था। जिसमें याज्ञिक अनुष्ठान करके पुनः धर्म परिवर्तन को हिन्दू धर्म में शामिल किया जाता था, जो इसाई बने उन्हें हिन्दू धर्म में वापस ले आए। इसका उदघाटन पण्डित लेखराम आर्य ने जोबनेर (जयपुर) से किया था। हिन्दू धर्म प्रतिष्ठित करने के लिए स्वामी जी 10 नियम बताए-
  1. बाल विवाह, बहुविवाह विरोध
  2. हिंदी, संस्कृत भाषा प्रचार किया।
  3. सत्य वेदों में है, वेदों का अध्ययन आवश्यक है।
  4. मूर्तिपूजा का विरोध किया।
  5. हवन वेद मंत्रों आधार होना चाहिए।
  6. अवतारवाद व धार्मिक यात्राओं का विरोध किया।
  7. कर्म व आवागमन सिद्धान्त समर्थन किया।
  8. स्त्री शिक्षा का समर्थन किया।
  9. विशेष परिस्थिति विधवा विवाह का सर्मथन किया।
  10. निराकार ईश्वर एकता में विश्वास।
प्रारम्भ में अग्रेजों ने ब्रह्म समाज व आर्य समाज को प्रोत्साहित किया। सरस्वती जी की नार्थक्रुक से मुलाकात के बाद अंग्रेजों का दृष्टिकोण बदल गया क्योंकि नार्थक्रुक ने सरस्वती जी को विक्टोरिया का गुणगान करने को कहा, जिसे सरस्वती जी ने मना कर दिया। आर्य समाज को 'सैनिक हिन्दुत्व' कहा।
स्वराज्य शब्द का प्रयोग करने वाले सरस्वती जी प्रथम व्यक्ति है। सरस्वती जी ही प्रथम व्यक्ति है जिन्होंने राष्ट्रभाषा को स्वीकार किया। सरस्वती जी ने 'वेद भाष्य व वेद भाष्य भूमिका' पुस्तक लिखी। 1882 ई. दयानंद जी ने 'गोरक्षा समिति' बनाई।
दयानंद जी की मृत्यु के बाद आर्य समाज में शिक्षा को अंग्रेजी व हिन्दी भाषा के अपनाएँ जाने के प्रश्न पर मतभेद हुआ। लाला हंसराज अंग्रेजी शिक्षा के पक्षधर थे, लाला हंसराज ने 1886 ई. में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज, (D.A.V.) लाहौर की स्थापना की।
स्वामी श्रद्धानंद/मुंशीराम ने 1902 ई. में गुरूकुल विश्वविद्यालय (कांगड़ी, हरिद्वार) की स्थापना की।

नोट
लंदन टाइम्स की और से 1907 ई. में भारत के उथल पुथल की जाँच करने के लिए 'वेलेन्टाइन सेरोल' ने आर्य समाज को "भारतीय अशान्ति का जनक" कहा।

स्वामी दयानन्द सरस्वती व राजस्थान

सरस्वती राजस्थान में सर्वप्रथम करौली शासक मदनपाल के यहाँ आये थे। जयपुर में सरस्वती जी रामसिंह-II के यहाँ तीन बार आये थे। 1881 ई. में उदयपुर के बनेडा के जागीरदार गोविंद सिंह के यहाँ आये थे।
यहाँ सरस्वती जी मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह के यहाँ आये यहाँ उदयपुर में 1881 ई. में परोपकारिणी सभा की स्थापना की जिस का अध्यक्ष सज्जनसिंह को बनाया, सज्जनसिंह को मनुस्मृति व राजधर्म की शिक्षा दी।
सरस्वती जी की मृत्यु दीपावली के दिन हुई थी, दयानंद जी जोधपुर के जसवंत सिंह द्वितीय के यहाँ आए हुए थे, दयानंद जी यहाँ प्रवचन देते थे। जसवंत सिह जी उनके चरणों में बैठकर प्रवचन सुनते थे, एक बार दयानंद जी जोधपुर राज्य के महलों में गए वहाँ नन्ही जान वेश्या का अनावश्यक हस्तक्षेप देखा व महाराजा पर उसका प्रभाव देखा, स्वामी जी ने महाराजा को समझाया जिसे महाराजा ने स्वीकार किया व नन्ही से सम्बन्ध तोड़ लिया। परन्तु नन्ही स्वामी जी के विरुद्ध हो गयी, उसने रसोईए कलिया/जगन्नाथ के साथ मिलकर स्वामी जी को काँच पिला दिया, जोधपुर अस्पताल में उन्हें भर्ती करवाया गया, जोधपुर के बाद आबू लाया गया, उसके बाद उन्हें अजमेर लाया गया, जहाँ 30 अक्टूबर, 1883 ई. स्वामी जी की मृत्यु हुई। स्वामीजी के अन्तिम दिन राजस्थान में ही गुजरे।
स्वराज के बारे में उन्होने बताया था कि बुरे से बुरे स्वदेशी राज्य की तुलना में अच्छे से अच्छा विदेशी राज्य भी बुरा है।
जहाँ राजाराम मोहन राय उपनिषदों में उल्लेखित अध्यात्मिक चिन्तन धार्मिक विचार तथा सामाजिक परम्परा का समर्थन कर रहे थे, वही सरस्वती कर्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था वाले समाज जिसका संबंध वेदों से था, का समर्थन करते थे।
सरस्वती जी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य, संन्यास का अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया।
सरस्वती जी ने कहा था- आर्यावर्त, आर्यावर्तियों (भारत, भारतीयों) के लिए। सरस्वती जी आबू पर्वत से हरिद्वार तक पैदल यात्रा की।

स्वामी जी की पुस्तक
  • सत्यार्थ प्रकाश
  • ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका
  • ऋग्वेद भाष्य
  • यजुर्वेद भाष्य
  • चतुर्वेद विषय सूची

दयानन्द जी सरस्वती के बारे में विद्वानों के विचार
  • एनी बेसेन्ट- "स्वामी जी प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने कहा भारत-भारतीयों के लिए है"
  • सरदार वल्लभ भाई पटेल- "भारत की स्वतंत्रता की नींव वास्तव में सरस्वती जी ने डाली है।"
  • पट्टाभी सीतारमैया- "गाँधीजी राष्ट्रपिता है स्वामी जी राष्ट्र पितामह है।"
  • सुभाष चन्द्र बोस- "आधुनिक भारत के आद्यनिर्माता।"
  • वीर सावरकर- "दयानंद जी स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम योद्धा"

स्वामी विवेकानन्द (1863-1902 ई.)

जन्म- कलकता के कायस्थ परिवार में 12 जनवरी, 1863 12 जनवरी, को भारत सरकार 'कैरियर डे' के रूप में मनाती है। (युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।)
  • पिता- विश्वेन्द्रनाथ दत्त
  • माता- भुवनेश्वरी देवी
  • बचपन का नाम- नरेन्द्र नाथ दत्त
नरेन्द्र के गुरु के रूप में दक्षिण भारत के कालीदेवी मंदिर के भक्त रामकृष्ण परमहंस मिले थे, जिन्होंने नरेन्द्र को दिव्य ज्ञान दिया। रामकृष्ण परमहंस के बचपन का नाम गदाधर चटोपाध्याय था। इन्हें 'दक्षिणेश्वर सन्त' कहा जाता है।
नरेन्द्र को विवेकानन्द नाम खेतड़ी (नीमकाथाना) शासक अजीतसिंह ने दिया था, 1893 ई. के शिकांगों धर्म सम्मेलन (अमेरिका) में अजीतसिंह ने ही भेजा था। यहाँ विवेकानन्द ने शून्य पर विचार व्यक्त किए श्रोताओं ने इन्हें 'तूफानी हिन्दू' की उपाधि दी।
विवेकानन्द जी सभी धर्मो की एकता के बारे में कहा "जिस प्रकार सभी धाराएँ अपने जल को सागर में मिलाती है उसी प्रकार मनुष्य को सभी धर्म ईश्वर की ओर ले जाते हैं।"
विवेकानंद जी ने भविष्यवाणी की थी कि आने वाले समय में सम्पूर्ण विश्व पर सर्वहारा वर्ग दलितों का शासन होगा, इसकी शुरूआत रूस व चीन से होगी।
अमेरिका के समाचार पत्र 'न्यूयार्क हैराल्ड' नें छापा था कि जिस देश में विवेकानन्द जैसे ज्ञानी पुरुष है उसमें धर्मसुधारक भेजना मूर्खतापूर्ण कार्य है। इस तरह विदेशों में विवेकानन्द ने भारतीय धर्म व समाज की प्रतिष्ठा को स्थापित किया था। 1896 ई. में इन्होंने न्यूयार्क में 'वेदान्त सोसायटी' की स्थापना की भारतीय धर्म दर्शन प्रचार हेतु।
1 मई, 1897 ई. को वैल्लूर (कर्नाटक) में 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना की। रविन्द्रनाथ टैगोर ने विवेकानन्द को 'सर्जन की प्रतिमा' कहा है।
1899 ई. में विवेकानन्द जी ने अल्मोड़ा के मायावती स्थान पर मठ स्थापित किया।
1900 ई. में पेरिस में द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया।
विवेकानंद जी ने मूर्तिपूजा, बहुदेववाद का समर्थन किया, इनका मानना है कि ईश्वर साकार व निराकार दोनों है व इनकी अनुभूति विभिन्न प्रतीकों से की जा सकती है। इसी कारण विवेकानन्द जी को "नव हिन्दू जागरण" का संस्थापक कहा जाता है।

सुभाष चन्द्र बोस ने
"विवेकानन्द जी आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन के आध्यात्मिक पिता हैं।"
सिस्टर निवेदिता /माग्रेट नोबल जो कि एक आयरिश महिला थी इसने विवेकानंद जी का प्रचार प्रसार किया।

राजस्थान के क्रान्तिकारी

अमरचन्द बांठिया
बांठिया जी का जन्म - 1791 ई. में बीकानेर में हुआ था।
इन्हें ग्वालियर नगर सेठ कहा जाता है।
1857 ई. की क्रांति में इन्होंने लक्ष्मीबाई व तांत्याटोपे का सहयोग किया। इस कारण इन्हें भामाशाह द्वितीय या 1857 ई. की क्रांति के भामाशाह कहा जाता है।
अंग्रेजों ने इन्हें जून, 1857 ई. ग्वालियर पेड़ के नीचे फाँसी दे दी।
1857 ई. की क्रान्ति में राजस्थान से शहीद होने वाले में प्रथम व्यक्ति थे, इसलिए इन्हें राजस्थान का मंगल पांडे कहा जाता है।

अर्जुन लाल सेठी
जन्म 9 सितम्बर, 1880 ई. को जयपुर के जैन परिवार में हुआ।
इन्होंने इलाहाबाद कॉलेज से बी.ए. किया।
इन्हें चौमू (जयपुर) के जिलाधीश का पद मिला।
सेठी जी ने जयपुर के शासक माधोसिंह द्वितीय के दरबार में नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा कर कहा कि "सेठी नौकरी करेगा तो अंग्रेजों को बाहर कौन निकालेगा।"
सेठी जी को जयपुर में जनजागृति के जनक, राजस्थान का दधीची, राजस्थान का लोकमान्य तिलक (राम नारायण चौधरी ने कहा) कहा जाता है।
सेठी जी चौमू के देवी सिंह के यहाँ शिक्षक भी रहे थे।
1905 ई. में जयपुर में सेठी जी ने जैन शिक्षा प्रचारक समिति की स्थापना की। सोसायटी नाम से अजमेर स्थानान्तरित किया।
1907 ई. में वापस जैन वर्धमान पाठ्शाला नाम से जयपुर में स्थानान्तरित किया इस संस्था का मुख्य उद्देश्य क्रान्तिकारी युवक तैयार करना था। जौरावर सिंह व प्रताप सिंह बारहठ भी इस विद्यालय के विद्यार्थी रहे। इसमें अध्यापक विष्णुदत्त थे।
23 दिसम्बर, 1912 ई. के हार्डिंग बम काण्ड में अमीरचन्द नामक मुखबीर ने बताया कि ये सेठी जी के दिमाग की उपज है।
1915 ई. में सहशस्त्र क्रान्ति हुई, राजस्थान में जिम्मेवारी सेठी जी को सौंपी गयी।

निमाज हत्याकांड (20 मार्च, 1913)
बिहार में स्थित मुगलसराय के एक सेठ महन्त को लुटने की योजना बनाई।
सेठी जी ने मोतीचन्द व चार विद्यार्थियों को "आरा" बिहार मुगलसराय जैन सन्त को लूटने के लिए भेजा।
इसमें मोतीचन्द को फांसी, विष्णुदत को आजीवन कारावास, सेठी जी को 5 साल की सजा हुई व 'वेल्लूर जेल' (तमिलनाडू) भेजा गया।
वेल्लूर जेल से वापस आते समय महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक ने
सेठी जी का जबरदस्त स्वागत किया।
बारदौली (गुजरात) में सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सेठी जी का स्वागत हुआ
यहाँ सेठी जी को बग्गी में घोड़ों के स्थान पर छात्रों ने स्वयं बग्गी खींचकर पूरे शहर में घुमाया।
सेठी जी का इन्दौर में भी स्वागत हुआ।
वैल्लूर जेल में सेठी जी ने 70 दिन तक भूख हड़ताल भी की थी।
इसके बाद सेठी जी अजमेर आ गए व अपना नाम करीम खान रख लिया।
यहाँ अजमेर दरगाह में मुस्लिम बच्चों को अरबी फारसी पढ़ाते थे।
1920 ई. में असहयोग आंदोलन में अर्जुन लाल सेठी के द्वारा भाग लेने पर इन्हें मौरासागर जेल (सवाई माधोपुर) भेजा गया।
कांकौरी ट्रेन डकैती (अगस्त, 1925 ई.) से भागे हुए अशफाक उल्ला खाँ को सेठी जी ने शरण दी थी।
मेरठ षड्यन्त्र केस से भागे शौकत अली को सेठी जी ने शरण दी।
सेठी जी पुस्तकें - शुद्र मुक्ति, स्त्री मुक्ति, पार्श्व यज्ञ, मदन पराजय

नोट
इनका नाटक महेन्द्र कुमार था।
  • सेठी जी हिन्दू मुस्लिम समन्वयकारी क्रान्तिकारी है।
  • सुन्दरलाल बहुगुणा ने कहा है कि - सेठी जी भारत माँ के सच्चे सपूत थे। तथा अर्जुनलाल सेठी दधीची जैसा त्याग व दृढ़ता के साथ जन्में थे और उसी दृढ़ता के साथ मृत्यु हो गई।
  • 23 दिसम्बर, 1941 ई. को सेठी जी की मृत्यु अजमेर में हुई और इनकी इच्छानुसार इन्हें दफनाया गया।

हरिभाऊ उपाध्याय
जन्म- 9 मार्च, 1893 ई. भौंरासा ग्वालियर (मध्यप्रदेश)
वास्तविक नाम- बद्रीनाथ
उपनाम- दा साहब, गाँधीवादी नेता, सर्वोदयी नेता।
1922 ई. में अर्जुन लाल सेठी को चुनाव में हराया तथा बिजोलिया किसान आंदोलन से भी जुड़े थे।
3 अक्टूबर, 1945 ई. को अजमेर में हटण्डी नामक स्थान पर महिला शिक्षा सदन तथा गाँधी आश्रम (1927) की स्थापना की। अप्रैल, 1930 ई. को नमक कानून का उल्लंघन करने पर इन्हें 2 वर्ष की सजा सुनाई गई।
अजमेर मेरवाड़ा (C श्रेणी का राज्य) केन्द्रशासित प्रदेश के एकमात्र मुख्यमंत्री बने। अजमेर, मेरवाड़ा की विधानसभा में कुल 30 सदस्य थे, जिसे धारा सभा के नाम से जानते हैं।
मोहन लाल सुखाड़िया की सरकार में शिक्षामंत्री व वित्तमंत्री रहे।
मंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद प्रकाशित रचनाएँ-
1. बापू कथा 2. मेरे हृदय देव 3. गाँधी युग के संस्मरण
4. भागवत धर्म 5. बदलते संदर्भ और साहित्यकार
अजमेर से त्याग भूमि (1927 ई.), कर्म भूमि, सरस्वती, हिन्दी नवजीवन तथा बनारस से प्रकाशित मालव मयूर पत्र व काशी से प्रकाशित औदुम्बर नामक पत्रिकाओं का संपादन किया।

प्रमुख रचनाएँ
स्वतंत्रता की ओर, साधना के पथ पर, युग धर्म, सर्वोदय की बुनियाद, विश्व की विभूतियाँ बापू के आश्रम में, दुर्वादल।
  • राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर द्वारा 1964 ई. में 'मनीषी' उपाधि से सम्मानित किया गया तथा 1966 ई. में पद्म भूषण सम्मान मिला।
  • 25 अगस्त, 1972 ई. को इनका निधन हो गया।

हीरालाल शास्त्री
जन्म 1899 ई. जोबनेर (जयपुर) में हुआ।
शास्त्री जी ने 'प्रलय प्रतिक्षा नमोः नमः' नामक गीत लिखा व 'प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र' नाम से आत्मकथा लिखी।
इन्होंने 'शान्ता बाई जीवन कूटीर संस्था (निवाई, टोंक)' की स्थापना (1935 ई.) की, जिसे वर्तमान में वनस्थली विद्यापीठ कहा जाता है।
1936 ई. में जयपुर प्रजामंडल की पुनः स्थापना जमनालाल बजाज व हीरालाल शास्त्री ने की थी।
जेन्टलमैन्स एग्रीमेन्ट 1942 ई.
भारत छोड़ो आंदोलन के समय जयपुर सरकार के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल व शास्त्री जी के मध्य "जेन्टलमेन एग्रीमेन्ट" हुआ। इस समझौते के अनुसार, जयपुर प्रजामण्डल भारत छोड़ों आन्दोलन में भाग नहीं लेगा व शीघ्र ही उत्तरदायी शासन स्थापना का वादा किया।
30 मार्च, 1949 ई. को हीरालाल शास्त्री ने संभागीय व्यवस्था प्रारम्भ की।
एकीकरण के चौथे चरण में प्रधानमंत्री बनाया गया।
शास्त्री जी राजस्थान के प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री थे। इनको शपथ राजप्रमुख मानसिंह द्वितीय ने दिलायी थी।
सवाई माधोपुर से सांसद पद पर चुने गये।

जमनालाल बजाज
जन्म- 1889 ई. में काशी का बास (सीकर)।
उपनाम- राजस्थान के भामाशाह
इन्होंने एक लाख रुपये बाल गंगाधर तिलक को स्वराज कोष के लिए दिये।
सी.वी. रमन को 20 हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की।
11 हजार रुपये मुस्लिम लीग को दिये।
1920 ई. के नागपुर अधिवेशन में गाँधी जी के 5वें पुत्र की उपाधि मिली।
बजाज जी अपने आप को गुलाम-4 कहते थे।
प्रथम गुलाम - भारत
दूसरा गुलाम - देशी राजा
तीसरा गुलाम - सीकर
चौथा गुलाम - स्वयं
बजाज जी ने 1921 ई. में वर्धा में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
बजाज जी ने 1925 ई. में अजमेर में 'चरखा संघ' की स्थापना की। 1927 ई. में इसे जयपुर स्थानान्तरण कर दिया।
अंग्रेजों ने बजाज जी को 'राय बहादुर' की उपाधि दी थी। जिसे बजाज जी ने असहयोग आन्दोलन में वापिस लौटा दी थी।
1936 ई. में गाँधी जी को सेगान गाँव उपहार में दिया जिसे गाँधी जी ने सेवाग्राम नाम दिया।
बजाज जी ने सर्वप्रथम उत्तरदायी शासन की स्थापना की माँग की थी।
जमनालाल बजाज ने हिन्दी भाषा को ईमान की भाषा कहा।
1970 ई. में भारत सरकार द्वारा 20 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया।

नोट
इनकी पत्नी जानकी देवी बजाज को प्रथम पद्म विभूषण पुरस्कार मिला।

डूंगर जी- जवाहर जी
जन्म- बठोद पाटोदा (सीकर) में हुआ था
जाति- राजपूत (शेखावत)
इन्होंने रामगढ़ के सेठ घड़सीराम का बालद लूटा व पुष्कर में गरीबों में बाँट दिया।
अंग्रेजों ने ढूँगर जी को आगरा के किले में कैद किया। जवाहर जी ने करनिया जी मीणा व लोटिया जी जाट के सहयोग से छुड़वाया।
डूंगरजी जवाहर जी ने 1847 ई. में नसीराबाद छावनी (अजमेर) से कुछ घोड़े व ₹52000 लूटे थे।
जवाहर जी बीकानेर शासक की शरण में चले गए।

जयनारायण व्यास
जन्म- 1899 ई. जोधपुर
सामन्तशाही का विरोध करने वाले राजस्थान के प्रथम व्यक्ति।
उपनाम- लक्कर्ड का फक्कड़, धून के धनी, लोकनायक, शेर ए राजस्थान, मास्साब, लकीर का फकीर
1924 ई. में मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना की।
1927 ई. में ब्यावर से इनका तरूण राजस्थान नामक समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। विजयसिंह पथिक भी इसके सम्पादक थे।
1929 ई. में पोपाबाई री पोल व मारवाड़ में अव्यवस्था क्यों नामक पुस्तक तथा सामन्त शाही के खिलाफ आवाज उठाई।

नोट
पोपाबाई आवां (कोटा) की रहने वाली थी।
1931 ई. में मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की।
1932 ई. में आगीबाण (राजस्थानी भाषा का प्रथम दैनिक समाचार पत्र) ब्यावर से प्रकाशित।
1934 ई. में बालिकाओं के लिए जय कन्या विद्यालय की स्थापना की। जोधपुर में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय इन्हीं के नाम पर बना है।
व्यास जी ने 1936 ई. में मुम्बई से अखण्ड भारत पत्रिका निकाली।
1959 ई. में दिल्ली से अंग्रेजी की पाक्षिक पत्रिका 'पीप' का सम्पादन किया।
लोकराज नामक समाचार पत्र का भी प्रकाशन किया।
प्रजामंडल आंदोलन के दौरान सिवाणा दुर्ग बालोतरा में नजरबंद किया गया। 1952 ई. के आम चुनाव में सरदारपुरा (जोधपुर) व आहोर (जालौर) की विधानसभा से चुनाव हार गये।
किशनगढ़ विधानसभा से चाँदमल को सीट खाली करवाकर उप चुनावों में विजय प्राप्त की, उसके बाद टीकाराम पालीवाल के स्थान पर मुख्यमंत्री बने।
व्यास राजस्थान के एकमात्र मनोनित व निर्वाचित मुख्यमंत्री है।
निधन- 1963 ई. में

बालमुकुन्द बिस्सा
जन्म- पीलवा डीडवाना (डीडवाना कुचामन) पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में।
1924 ई. में चरखा एजेन्सी व खादी भण्डार की स्थापना की।
इनकी जवाहर खादी की दुकान राजनैतिक कार्यकर्ताओं का मिलन स्थल बन गयी थी।
1934 ई. में नागौर में खादी भण्डार की स्थापना की।
जोधपुर जेल में 19 जून, 1942 ई. को मारवाड़ प्रजामंडल के दौरान भूख हड़ताल के कारण स्वास्थ्य खराब हुआ तथा बिन्दल अस्पताल में मृत्यु हो गयी।
इन्हें राजस्थान का जतिन दास कहा जाता है। (जतिन दास ने लाहौर जेल में 63 दिन तक भूख हड़ताल की थी।)

सागरमल गोपा
जन्म- 1900 ई. में जैसलमेर
जैसलमेर को अपनी कर्मस्थली बनाया, माहेश्वरी नवयुवक मण्डल तथा 1915 ई. में सर्वहितकारी वाचनालय की स्थापना की।
गोपाजी की पुस्तकें- जैसलमेर में गुण्डाराज, आजादी के दीवाने, रघुनाथ सिंह का मुकदमा। इनके समय जैसलमेर का शासक जवाहर सिंह था व जेलर गुमान सिंह था।
सागरमल गोपा ने जवाहरसिंह के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई तो इन्हें जैसलमेर रियासत में प्रतिबंधित कर दिया। राज्य सरकार ने जनता को भड़काने के आरोप में गोपाजी को गिरफ्तार कर लिया और 6 वर्ष की सजा सुनाई। 4 अप्रैल, 1946 के दिन पुलिस अधीक्षक गुमान सिंह ने जेल में गोपाजी पर मिट्टी का तेल छिड़ककर जिंदा जला दिया। इनकी मृत्यु के बाद खून का बदला खून का नारा दिया गया।
इस घटना की जाँच करने के लिये जवाहर लाल नेहरू ने जयनारायण व्यास की अध्यक्षता में गोपाल स्वरूप पाठक जाँच आयोग को जैसलमेर भेजा। जाँच आयोग ने इस घटना को आत्महत्या माना।
जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि इसे एक आत्महत्या कहना एकदम शरारत है। यह एक ऐसी बात है जो जैसलमेर के लिए ही नहीं सम्पूर्ण राजाओं के लिए शर्म की बात है।
इनके नाम पर जैसलमेर में इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना की सागरमल गोपा शाखा स्थापित की गई।

सेठ दामोदर दास राठी
जन्म- 1884 ई. पोकरण जैसलमेर।
पिता- खींवराज राठी
कर्मस्थली- अजमेर
ये ब्यावर आ गए थे। यहाँ इन्होंने राजस्थान की प्रथम सूती वस्त्र मिल 'द कृष्णा मिल' की स्थापना की।
1915 ई. के सहस्त्र क्रान्ति में इन्होंने गोपालसिंह खरवा की मदद की। इस कारण इन्हें स्वतंत्रता संग्राम का भामाशाह कहा जाता है।
राठी जी ने 1916 ई. में ब्यावर में होमरूल लीग की स्थापना की।
ब्यावर में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की।
ब्यावर में राठी जी ने सनातन धर्म व नवभारत विद्यालय की स्थापना की।
निधन- 1918 ई.

ठक्कर बापा
जन्म- 29 नवम्बर, 1869 ई. भावनगर (गुजरात)
पूरा नाम- 'अमृतलाल विट्ठल दास ठक्कर'
उपनाम- ठक्कर बापा
1905 ई. में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित 'सर्वेन्ट्स ऑफ इण्डिया सोसायटी' के सदस्य बने।
1922 ई. में 'भील सेवा मण्डल' की स्थापना की।
1932 ई. में महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ के महासचिव बने।

तेज कवि- जैसलमेर
इन्होंने स्वतन्त्रता बावनों ग्रन्थ लिखा था।
ये ग्रन्थ इन्होंने गाँधी जी को भेंट किया था।
तेज कवि ने कमिश्नर के घर के आगे जाकर कहा था "कमिश्नर खोल दरवाजा हमें भी जेल जाना है, हिन्द तेरा है न तेरे बाप का, लगाया कैसा बंदीयाना है।"

गोपाल सिंह खरवा
जन्म- खरवा ठिकाना अजमेर
इन्हें 'सहशस्त्र क्रान्ति' का जनक कहा जाता है।
ये विजय सिंह पथिक के साथ टॉडगढ़ जेल में भी रहे थे।
1910 ई. में केसरी सिंह बारहठ के साथ मिलकर वीर भारत सभा की स्थापना की।

नोट
वीर भारत समाज की स्थापना विजय सिंह पथिक ने की थी।

खरवा ठिकाने के राव गोपालसिंह भी क्रान्तिकारियों के सहयोगी थे इनका प्रमुख कार्य क्रान्तिकारियों के लिए अस्त्र शस्त्र की व्यवस्था करना था। इनका रासबिहारी बोस व केसरीसिंह बारहठ से गुप्त सम्पर्क था।
1857 ई. की तरह गदर पार्टी के नेतृत्व में 21 फरवरी, 1915 ई. को सशस्त्र क्रान्ति की योजना जो रास बिहारी बोस व सचिन्द्र सानिहाल ने की थी, राजस्थान में इसका नेतृत्व गोपालसिंह खरवा पथिक व बालमुकुन्द बीसा कर रहे थे।
इसका प्रमुख केन्द्र लाहौर रखा गया। गदर पार्टी ने इसके लिए लेख छापा "आवश्यकता है वीर सिपाहियों की वेतन के रूप में मृत्यु, पुरस्कार के रूप में शहादत, पेंशन के रूप में स्वतंत्रता मिलेगी।
युद्ध का क्षेत्र भारत होगा।" किन्तु मुखबीर कृपालसिंह व मणिलाल ने पुलिस को सूचना दे दी, क्रान्ति असफल हो गई।
विजय सिंह पथिक के साथ इन्हें अजमेर की टॉडगढ़ में रखा गया। यहाँ से ये फरार हो गये और सलेमाबाद अजमेर में शिव मंदिर में आत्मसमर्पण कर दिया था।
अगस्त, 1915 ई. में शाहजहाँपुर बिहार की जेल में भेज दिया गया।
भारत सरकार द्वारा 30 मार्च, 1989 ई. को इन पर 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया।

मोहन सिंह मेहता
जन्म- 20 अप्रैल, 1895 ई. भीलवाड़ा
प्रसिद्ध पुस्तक- 'लार्ड हेस्टिंग्ज एंड इंडियन स्टेट्स'
स्वतंत्रता से पूर्व ये डूंगरपुर राज्य के दीवान, मेवाड़ के राजस्व मंत्री और भारत की संविधान सभा के सदस्य रहे।
1930 ई. में इन्होंने विद्या भवन की स्थापना की।
1969 ई. में इन्हें पद्मविभूषण सम्मान दिया गया।

मथुरादास माथुर
जन्म- 1918 ई. जोधपुर
1945 ई. में जोधपुर प्रजा परिषद् के अध्यक्ष चुने गए।
राजस्थान सरकार में शिक्षा मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री एवं वित्त मंत्री भी रहे।

जोरावर सिंह बारहठ
जन्म-1883 ई., उदयपुर
1912 ई. में दिल्ली के चाँदनी चौक से पीएनबी बैंक या मारवाड़ पुस्तकालय के ऊपर से हार्डिंग पर बम फेंका।
इसकी मृत्यु 1939 ई. में निमोनिया के कारण कोटा के अंतलिया हवेली में हुई थी।
ये अमरदास वैरागी नाम से भूमिगत रहे थे।
जोरावर सिंह बारहठ कभी गिरफ्तार नहीं हुये इसलिए इनको राजस्थान का चन्द्रशेखर आजाद कहा जाता है।
आरा (बिहार) षड्यंत्र केस में इनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुये थे। यह मध्यप्रदेश के करड़िया एकलगढ़ में छिपकर रहे थे।

राजेन्द्र सिंह
जन्म- 6 अगस्त, 1959 ई. को डौला गाँव (बागपत, उत्तरप्रदेश)
उपनाम- वाटरमैन ऑफ इण्डिया
राजस्थान के अलवर जिले को अपनी कर्मस्थली बनाया।
जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए 'तरूण भारत संघ' नामक संस्था की स्थापना की।
2011 में इन्हें रमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला।
2015 में इन्हें 'स्टॉकहोम जल पुरस्कार' मिला।

अचलेश्वर प्रसाद शर्मा
जन्म- 1908 ई. में जोधपुर (पुष्करणा परिवार में)
ब्यावर से प्रकाशित 'तरूण राजस्थान' के लिए व आगरा से प्रकाशित 'सैनिक' अखबार के लिए कार्य किया।
1940 ई. में जोधपुर से 'प्रजा सेवक' नामक साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया।

केसरीसिंह बारहठ
जन्म 21 नवम्बर, 1872 ई. शाहपुरा, देवखेड़ा गाँव, चारण परिवार में
पिता- कृष्ण सिंह
राजनीतिक गुरू- मैजिनी (इटली के राष्ट्रपिता) 1893 में युवावस्था में श्यामजी कृष्ण वर्मा से उदयपुर में सम्पर्क हुआ जिससे क्रान्तिकारी विचारक बन गए। जब श्यामजी 1897 ई. में इंग्लैण्ड चले गए उस समय केसरी सिंह बारहठ कुछ समय के लिए जोधपुर रहे।
1899 ई. में कोटा आ गए। यहाँ क्रान्तिकारियों का एक संगठन बनाया। इसके सदस्य गुरूदत, लक्ष्मीनारायण, हीरालाल, रामकरण आदि थे।

चेतावनी रा चुंग्टया
1903 ई. में कर्जन ने दिल्ली में दरबार लगाया। महाराजा फतेहसिंह को भी दरबार में बुलाया।
फतेहसिंह जब दरबार में जा रहे थे, उस समय केसरीसिंह बारहठ ने डिंगल भाषा में 13 सोरठे गोपाल सिंह खरवा के हाथों भिजवाए, जिन्हें पढकर महाराजा का स्वाभिमान वापिस जागा और वह दिल्ली तो गये लेकिन दरबार में भाग नहीं लिया। 1911 में विलियम और मैरी के आगमन के समय भी फतेहसिंह दिल्ली नही गए।

साधु प्यारेलाल हत्याकांड (25 जून, 1912 ई.)
केसरीसिंह अभिनव भारत संगठन से जुड़कर 1910 ई. में गोपालसिंह के साथ मिलकर वीर भारत समाज क्रान्तिकारी संगठन बनाया। इस संगठन के लिए धन की आवश्यकता थी।
जोधपुर के महन्त प्यारेलाल को तीर्थयात्रा के बहाने केसरीसिंह के कहने पर रामकरण कोटा लाया हीरालाल लाहिरी, रामकरण, हीरालाल जालौरी आदि ने मिलकर महंत की हत्या कर दी। इसमें केसरी सिंह बारहठ को 20 वर्ष की सजा देकर हजारीबाग जेल झारखंड़ में भेजा।
यहाँ के जेलर कर्नल मीक ने बारहठ को चावल के दानों से भारत का नक्शा बनाकर समझाते देखा तो वे भाव विभोर हो गए। उसकी पत्नी ने बारहठ को अपना गुरु बना लिया।
1919 ई. में सेठी, बारहठ व पथिक लगभग एकसाथ रिहा हुए, तब तीनों ने वर्धा में गाँधीजी से मिलकर राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की। 1919 ई. में कर्नल मीक ने समय से पूर्व केसरी सिंह बारहठ को रिहा कर दिया।
इन्हें पुत्र प्रतापसिंह की शहादत का पता जेल में चला था तब इन्होंने कहा था कि, "भारत माता का पुत्र भारत माता के लिए शहीद हो गया।"
रास बिहारी बोस ने कहा था- एकमात्र बारहठ परिवार है जिसने भारत माँ को आजाद कराने के लिए पूरे परिवार को झोंक दिया।
कोटा में 1941 ई. में केसरी सिंह जी का निधन हो गया था, वर्तमान में बारहठ जी का परिवार माणकमहल कोटा में रहता है।

केसरी सिंह की कृतियाँ
रूठी रानी
अश्वघोष के बुद्ध चरित्र का हिन्दी अनुवाद किया।
रामनारायण चौधरी ने बारहठ को राजस्थान का योगी अरविन्द कहा है।
केसरी सिंह का भाई जोरावर सिंह, पुत्र प्रताप सिंह व दामाद ईश्वरदास भी क्रान्तिकारी थे।
केसरीसिंह बारहठ की पुस्तक-  प्रताप चरित्र, कुसुमांजलि, राजसिंह चरित्र, दुर्गादास चरित्र, रुठी रानी।

नरोतमलाल जोशी
जन्म- 1916 ई. में खेतड़ी, झुंझुनूँ
1939 ई. में शेखावाटी में 'जकात आन्दोलन' चलाया।
राजस्थान में प्रथम विधानसभा चुनाव 4 जनवरी से 24 जनवरी 1952 के मध्य हुए।
160 सदस्यीय प्रथम विधानसभा का गठन 29 फरवरी, 1952 ई. को हुआ।
31 मार्च, 1952 ई. को झुंझुनूं क्षेत्र से निर्वाचित विधायक नरोत्तमलाल जोशी को प्रथम विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया।

विजय सिंह पथिक
जन्म- 1882 ई. बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश)
गाँव- गुठावली गाँव
मूल नाम- भूपसिंह गुर्जर (ब्यावर)
विजयसिंह पथिक को टाँड़गढ जेल में बन्दी बनाया गया।
1919 ई. में इन्होनें विधा प्रचारिणी सभा की स्थापना की जिसका अध्यक्ष हरी भाई कींकर को बनाया।
विजय सिंह पथिक भारत में किसान आन्दोलन के जनक माने जाते हैं।
राजस्थान में किसान आन्दोलन के जनक साधु सीताराम दास माने जाते हैं।
1916 ई. में पथिक जी ने किसान पंच बोर्ड की स्थापना की। जिसका अध्यक्ष साधु सीताराम दास को बनाया।
1917 ई. में वैरीसाल गाँव भीलवाड़ा में हरियाली अमावस्या के दिन ऊपरमाल पंचबोर्ड की स्थापना की। जिसका अध्यक्ष मन्ना पटेल को बनाया।
1918 ई. में कानपुर में राजपुताना मध्य भारत सभा की स्थापना की।
गाँधीजी से मिलने के लिये बम्बई गये, गाँधीजी ने निजी सचिव महादेव देसाई को पथिक जी के साथ बिजौलिया भेजा।
1919 ई. में वर्धा (महाराष्ट्र) राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की जिसे 1920 ई. में अजमेर में स्थानान्तरित कर दिया।
वर्धा से राजस्थान केसरी समाचार पत्र निकाला।
नवीन राजस्थान (अजमेर) पत्रिका निकाली जिसका बाद में नाम तरुण राजस्थान कर दिया।
48 वर्ष की आयु में विधवा अध्यापिका जानकी देवी से विवाह किया।
ऊपरमाल का डंका नामक समाचार पत्र निकाला।
इन्होंने पीड़ितों का पंछीड़ा नामक गीत की रचना की।
पथिक जी ने अजयमेरू नाम से उपन्यास निकाला।
पथिक जी ने What are the Indian State नामक पुस्तक लिखी।
गाँधी जी ने कहा था 'बाकी सब बाते करते हैं, पथिक सिपाही की तरह काम करता है।'
पुस्तकें- पथिक निबन्धावली, प्रहलाद विजय, पथिक विनोद, पथिक प्रमोद, अजयमेरू उपन्यास।

गोकुललाल असावा
जन्म- 2 अक्टूबर, 1901 को देवली (टोंक)
अजमेर में नमक सत्याग्रह किया।
राजस्थान एकीकरण के दूसरे चरण में पूर्व राजस्थान का प्रधानमंत्री बनाया गया।

आनन्द राज सुराणा
जन्म- 28 सितम्बर, 1891, जोधपुर
बीकानेर राज्य में रेलवे की नौकरी की।
स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने के कारण नौकरी से हटा दिया गया। तथा जोधपुर लौटकर अपने पिता चौथमल सुराणा द्वारा स्थापित मारवाड़ी हितकारी सभा का कार्य संभाला।
इन्हें क्रान्तिकारी गतिविधि में भाग लेने के कारण लाहौर जेल में कैद किया गया।

घनश्याम लाल जोशी
जन्म- सूलमगरा गाँव बेगू चित्तौड़गढ़
किशोरावस्था में बिजोलिया किसान आन्दोलन में भाग लिया। बेगूँ के ठाकुर ने गिरफ्तार कर भयंकर यातनाएँ दी।

संत लाडाराम
जन्म- 1902 ई., जोधपुर
1930 ई. में महात्मा गाँधी के साथ दांडी मार्च में भाग लिया।
मारवाड़ में राईका व बावरी जाति के उत्थान के लिए कार्य किया।

नोट
राईका व रैबारी जाति मारवाड़ में मेकमोसन की कब्र की पूजा करती है। यह एक ऊँट पालक जाति है, जो ऊँट के बीमार होने पर पाबूजी की फड़ का वाचन करती है।

स्वामी केशवानन्द
जन्म- 1883 ई. में मंगलूणा गाँव (लक्ष्मणगढ़, सीकर) में जाट परिवार में चौधरी ठाकरसी के घर हुआ।
उपनाम - राजस्थान के शिक्षासंत।
मूल नाम- बीरमा
गुरु- कुशलदास
हीरानन्द ने इनका नाम 'केशवानन्द' रखा।
अबोहर में नागरिक प्रचारिणी सभा की स्थापना की तथा आस-पास के गाँवों में अनेक पाठशालाओं की स्थापना की।
1932 ई. में संगरिया (हनुमानगढ़) में जाट विद्यालय की स्थापना की, जो बाद में ग्रामोत्थान विद्यापीठ कहलाया। बीकानेर क्षेत्र में लगभग 300 पाठशालायें खुलवाई।
निधन- 3 सितम्बर, 1972 ई, दिल्ली
15 अगस्त, 1999 ई. को भारत सरकार ने इन पर 3 रुपये का डाक टिकट जारी किया।

गोविन्द गिरी
जन्म- 1858 ई. डूंगरपुर के बन्जारा परिवार में।
इन्होनें 1883 ई में सिरोही में सम्पसभा ने भगत आन्दोलन चलाया।
सम्पसभा का पहला अधिवेशन 1903 ई. में मानगढ़ बांसवाड़ा में हुआ।
1913 ई. में गोविन्द गिरी की अध्यक्षता में मानगढ़ में सम्मेलन हुआ जिस पर गोलियाँ चलायी गयी। लगभग 1500 भील मारे गये।

सिद्धराज ढड्ढा
जन्म- 12 फरवरी, 1908 ई. जयपुर
विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन सक्रिय रहे।
प्रमुख पत्रिका : 'ग्रामराज' व 'सत्याग्रह मिमांसा'
सन् 2003-04 में सरकारी नीतियाँ गरीबों के हित में नहीं होने के कारण इन्होंने 'पद्मभूषण' सम्मान अस्वीकार कर दिया।

मेजर पीरू सिंह शेखावत
जन्म : 20 मई, 1918 को रामपुरा बेरी गाँव (झुंझुनूँ)
1936 ई. में ये राजपूताना राईफल्स में भर्ती हुए।
आजादी के बाद 1947 ई. में कश्मीर में पाकिस्तान के कबाईलियों ने आक्रमण किया, इनके साथ युद्ध करते हुए मेजर पीरू सिंह शेखावत 18 जुलाई, 1948 ई. को शहीद हो गए।
परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले यह पहले राजस्थानी सैनिक थे।

मोतीलाल तेजावत
जन्म- कोल्यारी गाँव (झाडोल तहसील उदयपुर) ओसवाल परिवार में मोतीलाल तेजावत ने 1921 ई. में मातृकुण्डिया से एकी आन्दोलन चलाया।
एकी आन्दोलन
तेजावत ने 'मेवाड़ पुकार पुस्तक' लिखी जिसमें 21 सूत्री माँगे रखी। मोतीलाल तेजावत को आदिवासियों का मसीहा या बावजी कहा जाता है।
मोतीलाल ने नारा दिया था "ना हाकिम ना हुकुम" श्याम जी कृष्ण वर्मा (1857 से 1930) राजस्थान में "क्रान्तिकारियों के पितामह" 1885 से 1897 ई. तक रतलाम, उदयपुर, व जूनागढ रियासतों में दीवान पद पर रहे। राजस्थान में स्वामी दयानन्द सरस्वती के दौरे के समय उनके सम्पर्क में आकर स्वदेशी विचारधारा के समर्थक हो गए। (पुणे महाराष्ट्र के तीन भाई)
1897 ई. में चापेकर बंधुओं ने प्लेग कमिश्नर रेण्ड व आयर्स्ट की हत्या कर दी। आरोप श्यामजी पर आया।
दामोदर हरिचापेकर, बालकृष्ण हरिचापेकर, वासुदेव हरिचापेकर, श्याम जी इंग्लैण्ड चले गए।
1904 ई. में श्यामजी ने लंदन में इण्डिया हाउस की स्थापना की। इण्डिया हाउस भारतीय क्रान्तिकारियों का इंग्लैण्ड में केन्द्र बन गया था। 1904 ई. में ही इण्डिया हाउस में 'होमरूल सोसायटी' की स्थापना की।

नोट
होमरूल आंदोलन को भारत में प्रारम्भ करने का श्रेय एनीबेसेन्ट व तिलक को है। एनिबेसेन्ट जो 1893 ई. में आयरलैण्ड से भारत आई थीं। 1916 ई. के लखनऊ समझौते में कांग्रेस के तिलक व मुस्लिम लीग के जिन्ना को एक मंच पर लाकर होमरूल आंदोलन को नई दिशा दी। तिलक ने अप्रैल, 1916 ई. में 'पुणे (महाराष्ट्र) होमरूल लीग' की स्थापना की थी तथा एनीबेसेंट ने सितम्बर, 1916 में 'मद्रास (इण्डिया) होमरूल लीग' बनाकर आन्दोलन चलाया था।
एनीबेसेन्ट अन्तर्राष्ट्रीय संगठन 'थिओसोफिकल सोसायटी' की सदस्य थी। इस सोसायटी की स्थापना 1875 ई. में न्यूयार्क (अमेरिका) में कर्नल एच. हेनरी एल्कॉट (अमेरिकन) तथा मैडम H.P. ब्लोवात्शकी (रूस) ने की थी। भारत में इसकी शाखा 1882 में अडयार (मद्रास) में की गई थी।
एनीबेसेन्ट को 'मैडम टोम-टोम' कहा जाता है। 1917 ई. में एनिबिसेन्ट कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष बनी थी।
श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1905 ई. में इण्डिया हाउस में ही 1857 ई. की क्रान्ति की वर्षगाँठ मनाई तथा इसमें गदर पार्टी के संस्थापक लाला हरदयाल को (1913 अमेरिक) निमत्रण दिया था।
1907 ई. में सावरकर ने इण्डिया हाउस में 1857 ई. की क्रान्ति की अर्द्धशताब्दी मनाई तथा यहीं पर इसे अपने ग्रंथ वार ऑफ इण्डियन इन्डिपेंडस में 'भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम' कहा है।
सावरकर भागूर (महाराष्ट्र) के थे। 1905 के कर्जन के समय के बंग-भंग के विरोध में सावरकर ने 'मित्र मेला संगठन' स्थापित करके विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। सावरकर ने 1904 ई. में 'अभिनव भारत' नामक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की थी, इसकी राजस्थान में दो शाखाएँ स्थापित हुई।
1910 ई. में वीर भारत समाज शाखा की स्थापना केसरी सिंह बारहठ व गोपालसिंह खरवा ने तथा 1912 ई. में 'वीर भारत सभा' शाखा की स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।
1909 ई. में मदनलाल ढींगरा ने जब कर्जन वायली की हत्या की थी तब इण्डिया हाउस में ढींगरा के विरोध में जो सभा हो रही थी उसमें सावरकर एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने ढींगरा का समर्थन किया। सावरकर की पुस्तक, ढींगरा का समर्थन आदि क्रान्तिकारी कार्यों के कारण सरकार ने इन्हें बेरिस्ट्री की डिग्री नहीं दी। 1910 ई. में जब इन्हें गिरफ्तार करके भारत लाया जा रहा था उस समय समुद्र में कूदकर भागने का असफल प्रयास किया। भारत में इन्हें 55 वर्ष की सजा हुई। कहते कि दो जीवन की सजा पाने वाले एकमात्र क्रान्तिकारी थे। इन्हें अंडमान द्वीप की सेल्यूलर जेल में रखा गया था।

बलवंतसिंह मेहता
जन्म- 8 फरवरी, 1900 ई. में उदयपुर
1915 ई. में 'प्रताप सभा' की स्थापना की।
ये 1938 ई. में मेवाड़ प्रजामंडल के प्रथम अध्यक्ष बने।
1943 ई. में उदयपुर में 'वनवासी छात्रावासों' की स्थापना की।
मेहता भारतीय संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य थे।
भारत के मूल संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले ये प्रथम व्यक्ति थे।
इन्होंने हल्दीघाटी में क्रान्तिकारियों को बम बनाने का प्रशिक्षण दिया था।

प्रतापसिंह बारहठ (24 मई, 1893 से 27 मई, 1918)
जन्म- 24 मई, 1893 ई. शाहपुरा
पिता- 'केसरीसिंह बारहठ
गुरु- मास्टर आदित्येन्द्र
इन्होंने क्रांतिकारी मास्टर अमीरचन्द से प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह वर्धमान विद्यालय के विद्यार्थी रहे थे।
इन्होंने अपने चाचा जोरावरसिंह के साथ मिलकर हार्डिंग की हत्या की योजना बनाई थी। हार्डिंग के जुलुस पर बम जोरावरसिंह ने फेंका था।
अंग्रेज अधिकारी 'सर रेगीनाल्ड क्रेडोक' की हत्या करने के लिए प्रताप सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन क्रेडोक समय पर नहीं पहुँचा इस कारण वह बच गया।
प्रताप यहाँ से सिन्ध के क्षेत्र में जाकर कम्पाउडर बन गए। पुनः वापस आने पर आशानाडा रेलवे स्टेशन (जोधपुर) के स्टेशन मास्टर ने जो प्रताप का दोस्त था, प्रताप को गिरफ्तार करवा दिया।
बनारस षड्यंत्र कंस के तहत प्रताप सिंह को 5 साल की सजा सुनाई गई। प्रारम्भ में मेरठ की जेल में रखा गया तत्पश्चात् बरेली की जेल में घोर यातनाएँ देकर मार दिया गया। प्रसिद्ध वाक्य "मेरी माँ रोती है तो रोने दो, जिससे सैकड़ों माताओं को न रोना पड़े" प्रतापसिंह का है।
बरेली जेल के निदेशक चार्ल्स क्लीवलैन्ड ने प्रतापसिंह को घोर यातनाएँ दी। अपने साथियों की जानकारी के बदले रिहा करने का प्रलोभन दिया लेकिन प्रतापसिंह ने कुछ नहीं बताया। क्लीवलैन्ड कहते हैं कि "मैंने प्रतापसिंह जैसा कठोर हृदय का स्वामी भक्त लड़का नहीं देखा।"

मेजर शैतानसिंह भाटी
जन्म :- 1 दिसम्बर, 1924 ई. को बाणासुर गाँव, जोधपुर
उपनाम :- बाणासुर के शहीद
1949 ई. जोधपुर राज्य की सेना में भर्ती हुए।
स्वतंत्रता के बाद इन्हें भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊँ रेजिमेन्ट में भेज दिया गया।
1962 ई. में भारत-चीन युद्ध के दौरान 18 नवम्बर, 1962 ई. को जम्मू-कश्मीर के रेजांग ला पोस्ट पर चीनी सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
भारत सरकार ने 1963 ई. में इन्हें मरणोपरांत 'परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

लादूराम जोशी
जन्म: 1895 ई. मूंडवाड़ा गाँव, सीकर
बिसाऊ के जमींदार के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन किया।

नानाभाई खाँट
डूंगरपुर राज्य के प्रसिद्ध भील नेता नाना भाई खाँट ने अपने घर पर सेवा संघ नाम से विद्यालय चला रखा था। इन्होंने प्रतिज्ञा की "जब तक मेरी जान रहेगी, तब तक मैं अपने गाँव रास्तापाल की पाठशाला बंद नहीं होने दूंगा"।
डूंगरपुर महारावल ने स्कूल को बंद करने के लिए 19 जून, 1947 ई. को मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक को रास्तापाल भेजा।
नानाभाई ने स्कूल बंद करने से मना किया तो पुलिस ने उन्हें डंडो और बन्दूक की कुदों से बुरी तरह पीटा। जिससे इनकी मृत्यु हो गई।

चौधरी रणमल सिंह डोरवाल
जन्म :- 1923 ई. कटराथल गाँव, सीकर
मौल्यासी सीकर में 1945 ई. में प्रजामण्डल आन्दोलन के दौरान सभा को सम्बोधित करते समय इन पर जमीदारों ने प्राणघातक हमला किया। घायल होने के बाद भी सभा को सम्बोधित करते रहे।

गोकुल भाई भट्ट
गोकुल भाई भट्ट को 'राजस्थान का गाँधी' भी कहा जाता है। इनका जन्म 1897 ई. में सिरोही जिले के हाथल गाँव में हुआ था।
'अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद' की प्रान्तीय शाखा राजपूताना प्रान्तीय देशी राज्य परिषद् का प्रथम अध्यक्ष गोकुल भाई भट्ट को बनाया गया था। ये राजस्थान प्रदेश कांग्रेस का प्रथम अध्यक्ष भी रहे थे।
सिरोही प्रजामण्डल स्थापना गोकुल भाई भट्ट के प्रयासों का परिणाम था। 1948-49 ई. में इन्होंने सिरोही राज्य के प्रधानमंत्री का पद सुशोभित किया।
एकीकरण के दौरान आबू व देलवाड़ा तहसीलों को गुजरात में मिला दिया गया तो इस निर्णय के विरुद्ध गोकुल भाई भट्ट ने आंदोलन किया परिणामस्वरूप 1956 ई. में आबू व देलवाड़ा को राजस्थान में शामिल किया गया। विनोबा भावे के 'भूदान आंदोलन' और जयनारायण व्यास के सर्वोदय आंदोलन में इन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया था। 1971 ई. में गोकुल भाई भट्ट को 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया था।

भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी
बम्बई से 'संग्राम' नामक साप्ताहिक पत्र शुरू किया।
1943 ई. में धूलजी भाई व चिमनलाल मलोत के साथ मिलकर बाँसवाड़ा प्रजामंडल की स्थापना की।

डॉ. नरेन्द्र सिंह
जन्म : 18 मार्च, 1914 ई. डूंगरपुर के राज परिवार में।
प्रसिद्ध पुस्तक :- 'द थ्योरी ऑफ फोर्स इन हिन्दू पॉलिटी'
1966 ई. में नगेन्द्र सिंह अन्तर्राष्ट्रीय विधि आयोग के सदस्य रहे।
ये अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (हेग) के मुख्य न्यायाधीश निर्वाचित होने वाले प्रथम भारतीय है।
राजस्थान सरकार ने इन्हें 2013 ई. में 'राजस्थान रत्न' से सम्मानित किया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के साथ मिलकर इन्होंने संविधान निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। संविधान सभा के सदस्य भी रहे।

टीकाराम पालीवाल
जन्म:- 24 अप्रैल, 1907 ई. महुआ (दौसा)
शिक्षक की नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया।
1929 में दिल्ली में विद्यार्थी यूथ लीग की स्थापना की।
प्रथम आम चुनाव में टीकाराम पालीवाल महुआ व मलारना चौड़ नामक 2 विधानसभा क्षेत्रों से विजयी रहे।
3 मार्च, 1952 ई. से लेकर 31 अक्टूबर, 1952 ई. तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। ये राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद ये जयनारायण व्यास के मंत्रीमण्डल में उपमुख्यमत्री रहे।

अब्दुल शेर गफ्फार बख्श
जन्म:- 1912 ई. में रायपुर (पाली)
मारवाड़ रियासत में जागीरदारों के जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाई।

रमेश स्वामी (1904-1947 ई.)
जन्म- 1904 ई. में भूसावर (भरतपुर)
1935 ई. में वैदिक धर्म और हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए बर्मा तथा दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में गए।
भरतपुर प्रजामण्डल के सक्रिय क्रान्तिकारी रमेश स्वामी ने 1947 ई. में बेगार विरोधी आन्दोलन में भाग लिया।
5 फरवरी, 1947 ई. को भुसावर बस स्टैण्ड पर अंग्रेजों ने इन्हें बस के तले कुचलकर मार दिया था।

शहीद बीरबल- रायसिंह नगर (अनूपगढ़)
बीकानेर रियासत के सामंती अत्याचारों का विरोध किया। 1 जुलाई, 1946 ई. को रायसिंहनगर में जुलूस में पुलिस की गोली लगने से शहीद हुए।
प्रतिवर्ष 17 जुलाई, 1946 ई. से बीकानेर में 'शहीद बीरबल दिवस' मनाया जाता हैं।

नारायणसिंह माणकलाव
जन्म:- 17 सितम्बर, 1942 ई. माणकलाव गाँव, जोधपुर
उपनाम : 'अफीम मुक्ति आन्दोलन के प्रणेता'
1986 ई. में 'पद्मश्री' एवं 1991 ई. में 'पद्मभूषण' सम्मान मिला।
सन् 2003 में इन्हें राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया।

ब्रजमोहन लाल शर्मा- ब्यावर
उपनाम:- मजदूरों और दलितों के मसीहा
ब्यावर में राष्ट्रीय मिल मजदूर संघ की स्थापना की।

सूमनेश जोशी
जन्म- 3 सितम्बर, 1916 ई. को जोधपुर में
प्रसिद्ध पुस्तक- 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी'
मारवाड़ लोकपरिषद आंदोलन के दौरान 14 जुलाई, 1942 ई. को जेल गये।
1946 ई. में जोधपुर से 'रियासती' पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
जोधपुर शासक हनुवन्त सिंह के पाकिस्तान में मिलने के षड़यंत्र का पर्दाफाश किया।
1957 ई. से 1962 ई. तक 'आयोजन' नामक साप्ताहिक पत्र का सम्पादन किया।

कपूर्रचन्द्र कुलिश
जन्म- 20 मार्च, 1928 ई. सोडा गाँव (टोंक)
1951 ई. में इन्होंने पत्रकारिता की शुरूआत की।
7 मार्च, 1956 ई. को 'राजस्थान पत्रिका' की शुरुआत की।
ढूँढ़ाड़ी भाषा में 'पोलमपोल' की रचना की।
प्रसिद्ध पुस्तक :- 'मैं देखता चला गया' (ग्रामीण जन-जीवन पर आधारित)

हरिदेव जोशी
जन्म- 17 दिसम्बर, 1921 ई. खांदू गाँव (बाँसवाड़ा)
आदिवासियों और हरिजनों में शिक्षा का प्रसार, अस्पृश्यता निवारण, नशाबंदी व अन्य सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।
जयपुर से प्रकाशित पत्रिकाएँ 'दैनिक नवयुग', 'कांग्रेस संदेश'
ये राजस्थान के तीन बार (1973-77 ई, 1985-88 ई, 1989-90 ई.) मुख्यमंत्री बने।
प्रथम आम चुनाव में 1952 ई. में डूंगरपुर से विधायक बने। प्रथम आम चुनाव से लेकर लगातार 10 बार राजस्थान विधानसभा के सदस्य बने।
26 जून, 1987 ई. को संभागीय प्रणाली को पुनः लागू करने वाले मुख्यमंत्री थे।
असम, मेघालय और पश्चिमी बंगाल के राज्यपाल भी रहे।

शौकत उस्मानी
जन्म- 21 दिसम्बर, 1901 ई. बीकानेर
ये एक अच्छे लेखक, पत्रकार एवं विचारक थे।
'पेशावर से मास्को' नामक एक पुस्तक लिखी।

जीतमल पुरोहित
उपनाम- जीताभा।
जैसलमेर में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तिरंगा झंडा फहराने वाले प्रथम व्यक्ति थे।

स्वामी गोपालदास (1882-1939)

इनकी कर्मभूमि चूरू थी। 1907 ई. में बालिका शिक्षा के लिए चूरू में पुत्री पाठशाला बनवाई। इसी समय हरिजन शिक्षा के लिए कन्हैया लाल ढढ़ के साथ मिलकर 'कबीर पाठशाला की स्थापना की।
जनता को अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए सर्वहित कारिणी सभा बनाई। 26 जनवरी, 1930 ई. को स्वामी गोपालदास व चन्दनमल बहड़ ने चूरू धर्मस्तूप पर तिरंगा लहराया।

नोट
1928 ई. में नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार करने पर काँग्रेस का 1929 ई. में लाहौर का ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ, जिसके अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे, नेहरू ने यहाँ प्रथम बार पूर्ण स्वराज की माँग की तथा रिपोर्ट लागू नही करने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन करने की चेतावनी दी। यही पर तय किया कि अगले वर्ष 26 जनवरी, 1930 ई. से स्वंतत्रता दिवस मनाया जाएगा।

नेहरू ने इसी सम्मेलन में कहा था कि मै समाजवादी व लोकतंत्र वादी हूँ।
1930 ई. से 1932 ई. के मध्य गोलमेल सम्मेलन हुए गोपालदास ने इंग्लैण्ड में गंगासिंह के विरुद्ध बीकानेर एक दिग्दर्शन के नामक पम्पलेट बांटे जिसमें गंगासिंह के राज्य में जनता पर किए जा रहे अत्याचारों का खुलासा किया गया।
गंगासिंह ने बीमारी का बहाना बनाकर बीकानेर में आकर गोपालदास, चन्दनमल बहड़, सत्यनारायण सर्राफ, खूबराम सर्राफ को बन्दी बनाकर 1932 ई. में बीकानेर षड़यंत्र केस चलाया।
इनका जन्म पोकरण में हुआ था। ये उद्योगपति, समाज सुधार व क्रान्तिकारियों के सहयोगी थे।
इन्होंने सरस्वती के आर्यसमाज, एनीबेसेंट के होमरूल आंदोलन तथा सनातन धर्म शिक्षा संस्थान की शाखाएँ ब्यावर में स्थापित की थी। राजस्थान की प्रथम कृष्णा सूती वस्त्र मील (1889) में ब्याबर में दामोदर दास राठी ने स्थापना की थी। इन्हें राजस्थान का 'लौह पुरुष' कहा जाता है।

गोकुलचन्द धाकड़
जन्म- बेगूँ, चित्तौड़
बेगूँ किसान आन्दोलन में अपने गीतों के माध्यम से किसानों को जागरूक किया। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जेल गए।

बाबा नृसिंह दास (नागौर)
ये राजस्थान के स्वाधीन संग्राम के तीन प्रमुख भामाशाहों में से एक थे। (सेठ दामोदर दास राठी, सेठी घीसूलाल जाजोदिया व बाबा नृसिंह दास अग्रवाल)
असहयोग आन्दोलन के दौरान 1921 ई. में अपनी सारी सम्पत्ति महात्मा गाँधी को दे दी।

शोभाराम कुमावत - अलवर
अलवर में वकालत का कार्य किया।
1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया।
18 मार्च, 1948 ई. को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया।

पं. अभिन्न हरि
जन्म:- 27 सितम्बर, 1905 ई. को सिंघानिया ग्राम (मांगरोल, बारां) में
मूल नाम:- बद्रीलाल शर्मा
1927 ई. में कल्पवृक्ष एवं 1930 ई. में कर्मवीर, 'रणधेरी' कोटा से 'लोकसेवक' तथा दिल्ली से 'अग्रसर' नामक समाचार पत्र प्रकाशित किए।
1934 ई. में पं. नयनूराम शर्मा के साथ मिलकर हाडौती प्रजामण्डल की स्थापना की।

आचार्य तुलसी
जन्म:- 20 अक्टूबर, 1914 ई. लाडनूं (डीडवाना-कुचामन)
तेरापंथी सम्प्रदाय के 9वें आचार्य बने।
1949 ई. में अणुव्रत आंदोलन चलाया।
लाडनूं में जैन विश्व भारती संस्थान की स्थापना की।
आचार्य तुलसी का एक प्रसिद्ध कथन- "मैं सबसे पहले मानव हूँ, फिर धार्मिक, फिर जैन धर्माचार्य"।
इन्हें 1993 ई. में 'इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार' तथा 1995 ई. में महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन का 'हाकिम खाँ सूरी' सम्मान दिया गया।
निधन- 23 जून, 1997 ई. गंगाशहर (बीकानेर) में।

छगनराज चौपासनीवाला
जन्म- 26 मई, 1912 ई. को जोधपुर
26 फरवरी, 1932 ई. को जोधपुर की पुरानी धानमण्डी में पहली बार तिरंगा फहराया।
जयनारायण व्यास के साप्ताहिक पत्र 'लोकराज' का सम्पादन भी किया।
जयनारायण व्यास के साथ प्रजामण्डल गतिविधियों में भाग लेने के कारण सिवाणा दुर्ग बालोतरा में जयनारायण व्यास के साथ नजरबंद किया गया।

पं. ताड़केश्वर शर्मा
जन्म- 2 अक्टूबर, 1911 ई. पचेरी बड़ी (झुंझुनूँ)
जयपुर में नमक कानून तोड़ो आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जेल गए।

विजयदान देथा
जोधपुर ग्रामीण के बोरुन्दा कस्बे के निवासी चारण साहित्यकार राजस्थानी लोक कलाओं के संरक्षण एवं उन्नयन हेतु प्रयासरत रुपायन संस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान। पद्मश्री तथा राजस्थान रत्न (2012) से सम्मानित । बाताँ री फुलवारी, हिटलर, तीड़ो राव तथा माँ से बदलो आदि ग्रन्थों की रचना। इनके द्वारा लिखित 'दुविधा' कहानी पर पहेली नामक फिल्म बन चुकी है।

पं. झाबरमल्ल शर्मा
जन्म- 1888 ई. में जसरापुर (खेतड़ी, झुंझुनूँ)
उपनाम- 'पत्रकारिता का भीष्म पितामह'
राजस्थान के प्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासकार थे।
मुख्य समाचार पत्र 1909 ई. में बम्बई से प्रकाशित भारत नामक साप्ताहिक पत्रिका,
कलकत्ता से प्रकाशित 'ज्ञानोदय' पत्र व 'मारवाड़ी बंधु' पत्र
प्रमुख पुस्तकें- 'शेखावाटी का इतिहास', 'सीकर का इतिहास', 'खेतड़ी नरेश और विवेकानन्द', 'तिलक गाथा', 'श्री अरविन्द चरित'।

नृसिंह कच्छवाहा
जन्म- 1911 ई. मारवाड़ रियासत
जागीरदारों की बेगार प्रथा के विरुद्ध संघर्ष किया।
डाबडा किसान आन्दोलन में घायल हुए।

पं. हरिनारायण शर्मा
अलवर राज्य में जन-जागृति का श्रेय पं. हरिनारायण शर्मा को है। इन्होंने पिछड़ी जातियों, हरिजनों तथा अछूत जातियों के उत्थान का कार्य किया।
इन्होंने वाल्मीकि संघ, आदिवासी संघ व अस्पृश्यता संघ की स्थापना की।

जानकी लाल भाण्ड़
बहुरूपिया कला में चित्रण निपुण कलाकार
बन्दर स्वाँग रचकर 'Monkey man' के रूप में ख्याति अर्जित की।

भोगीलाल पांड्या (1904-1981 ई.)

जन्म- 15 मार्च, 1904 ई. सीमलवाड़ा (डूंगरपुर)
उपनाम- वागड़ का गाँधी।
वागड़ सेवा मंदिर की स्थापना की, जिसे अवैद्य घोषित किए जाने पर सेवा संघ संस्था की स्थापना की।
1935 ई. में हरिजन सेवा समिति की स्थापना की।
1944 ई. में डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना की।
स्वतंत्रता के बाद ये सागवाड़ा (डूंगरपुर) से विधायक रहे।
इन्हें 1975 ई. में पद्म विभूषण से नवाजा गया।
मोहनलाल सुखाड़िया के कार्यकाल में दो बार मंत्री (उद्योग मंत्री व चिकित्सा मंत्री) भी रहे।

मुरारी दान
सूर्यमल्ल मिश्रण के दत्तक पुत्र
वंश भास्कर को पूरा करने को श्रेय इन्हीं को जाता है। वंश समुच्चय और डिंगल कोश आदि प्रसिद्ध रचनाएँ।
डिंगल और पिंगल दोनों भाषाओं में रचना।

सेठ घीसूलाल जाजोदिया
जन्म- 1884 ई. लक्ष्मणगढ़, सीकर
1930 ई. में ब्यावर में नमक सत्याग्रह का संचालन किया और ब्यावर को अपनी कर्मस्थली बनाया।

हेमू कालानी
जन्म :- 23 मार्च, 1923 ई. को सुक्कुर (पाकिस्तान)
पिता :- पेसमूल कालानी माता जेठी बाई
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हथियारों से भरी ट्रेन को गिराने के लिए पटरी उखाड़ते पकड़े गये। 19 वर्ष की आयु में इन्हें 21 जनवरी, 1943 ई. को टोंक में फांसी दी गई।
यह राजस्थान के सबसे युवा शहीद क्रान्तिकारी माने जाते हैं।

पं. जुगलकिशोर चतुर्वेदी
जन्म- शौंख कस्बा (मथुरा, उत्तरप्रदेश)
उपनाम- राजस्थान जवाहरलाल नेहरू/भरतपुर का गाँधी।
1930 ई. के दशक में भरतपुर में राजनीतिक जन-जागृति का श्रेय जुगलकिशोर चतुर्वेदी को है।
रेवाड़ी हरियाणा में इन्हीं के घर भरतपुर प्रजामण्डल का उद्घाटन हुआ था।

लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत
1916 ई. में मेवाड़ के देवगढ़ ठिकाने (राजसमन्द) में जन्म।
हुँकारो दो सा, चकवा बात, मांझली रात, टाबरा री बातौँ, अमोलक बाताँ, डूंगजी जवारजी री बात, कैर मूमल आदि ग्रन्थों की रचना।
प्रसिद्ध साहित्यकार तथा पद्मश्री एवं राजस्थान रत्न (2012) से सम्मानित।

मोहनलाल सुखाड़िया
जन्म- 31 जुलाई, 1916 ई. झालरापाटन (झालावाड़)
पिता- पुरुषोत्तम लाल सुखाड़िया था, जो बम्बई और सौराष्ट्र के जाने माने क्रिकेटर थे।
उपनाम आधुनिक राजस्थान के निर्माता।
38 वर्ष की आयु में राजस्थान के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने।
राजस्थान में 17 वर्षों तक सर्वाधिक कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री बने। ये 14 नवम्बर, 1954 ई. से 9 जुलाई, 1971 ई. तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे है।
कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु के राज्यपाल भी रहे।

डॉ. रांगेय राघव
तेरुमल्लई नम्वाक्कम वीर राघव आचार्य वैर (भरतपुर) निवासी
कब तक पुकारूँ, घरौंदा, मुर्दों का टीला आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ है।

मास्टर प्यारेलाल गुप्ता
जन्म- 1896 ई. में पिसाना गाँव, अलीगढ़ उत्तरप्रदेश
अलीगढ़ से 1921 ई. में चिड़ावा आये थे और अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया।
उपनाम : चिड़ावा का गाँधी
चिड़ावा (झुन्झुनूँ) में 'अमर सेवा समिति' की स्थापना 1922 ई. में की।
खेतड़ी (झुंझुनू) के शासक अमरसिंह ने प्यारेलाल गुप्ता को रस्सी से बाँधकर खेतड़ी की सड़कों पर घसीटा और इनके साथियों को गिरफ्तार कर उन पर अत्याचार किए।

मेंहदी हसन
लूणा (झुंझुनूँ) में जन्म।
लाहौर (पाकिस्तान) के निवासी
राजस्थान से पाकिस्तान जा बसे गजल सम्राट् का वर्ष 2012 में निधन।

गोपीकृष्ण भट्ट
जयपुर की परम्परागत लोक नाट्य शैली तमाशा के प्रसिद्ध कलाकार।

रामनारायण मीणा
उनियारा (टोंक) से विधायक
13वीं राजस्थान विधानसभा के 18वें विधानसभा उपाध्यक्ष।

प्रकाश जोशी
भीलवाड़ा के युवा चित्रकार जिसे फड़ पेंटिंग के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।

किसना भील
माणिक्यलाल वर्मा की प्रेरणा से बिजोलिया किसान आन्दोलन में भाग लिया। डाबी किसान आन्दोलन में हुए गोलीकाण्ड में इनके पैर में गोली लगी थी।

हरविलास शारदा
जन्म- 3 जून, 1867 ई. अजमेर
स्वामी दयानन्द सरस्वती व आर्य समाज का हरविलास शारदा पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। राजस्थान में आर्य समाज के विकास में प्रमुख योगदान हरविलास शारदा का है।
1924 ई. में अजमेर-मेरवाड़ा से केन्द्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गये।
1927 ई. में केन्द्रीय विधानसभा में बाल विवाह निरोधक विधेयक प्रस्तुत किया।
हरविलास शारदा के प्रयासों से 28 सितम्बर 1929 ई. को 'बाल विवाह निषेध अधिनियम' पारित हुआ। यह अधिनियम 1 अप्रैल, 1930 ई. से सम्पूर्ण भारत में लागू हुआ। इसे 'शारदा एक्ट' के नाम से जाना जाता है।
इस एक्ट के तहत लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष व लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष तय की गई।
पुस्तकें- महाराणा सांगा, हिन्दू सुपीरियॉरिटी (हिन्दू श्रेष्ठता), महाराणा कुम्भा
निधन- 20 जनवरी, 1955 ई. को अजमेर में

दलवीर भण्डारी
जन्म 1 अक्टूबर, 1947 ई., जोधपुर
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर रहे।
ये बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे।
2012 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश बने।
2014 में पदमभूषण सम्मान से नवाजा गया।
नवम्बर, 2017 ई. में पुनः अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में चुने गये।

पं. नयनूराम शर्मा
हाडौती में जन जागृति के जनक
हाडौती सेवा संघ, हाड़ौती शिक्षा मंडल, हाडौती प्रजामंडल तथा कोटा प्रजामंडल की स्थापना की।

दुलाराम सहारण
चुरु निवासी, इनके प्रथम कहानी संग्रह पीड़ के लिए राजस्थानी भाषा का प्रथम युवा पुरस्कार 2011 मिला।

शगुन चौधरी
जयपुर निवासी, 34वें राष्ट्रीय खेल (रांची) में स्वर्ण पदक जीतने वाली राज्य की पहली महिला निशानेबाज।

चौधरी कुम्भाराम आर्य
यह बीकानेर प्रजापरिषद् के सदस्य थे। इन्होंने बीकानेर में उच्च लाग-बाग के खिलाफ आन्दोलन किए।
इनकी पुस्तक 'किसान यूनियन क्यों' नाम से पुस्तक प्रकाशित हुई।

बी.डी. कल्ला
13 अप्रैल, 2011 ई. को गठित चौथे राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष।

गौरव शर्मा
चुरु निवासी, प्रसिद्ध पर्वतारोही जिन्होंने माउण्ट एवरेस्ट, किलीमंजारो (द. अफ्रीका की सर्वोच्च चोटी) पर हाल ही में विजय प्राप्त की।

रामकरण जोशी
जन्म- 2 अक्टूबर, 1912 ई. दौसा
1942 ई. में बाबा हरीशचन्द्र के साथ आजाद मोर्चे का गठन किया।

सृष्टि टण्डन
जयपुर निवासी, राजस्थान की दूसरी जलपरी के नाम से प्रसिद्ध, सृष्टि टण्डन ने 64वीं राष्ट्रीय सीनियर तैराकी प्रतियोगिता में रजत पदक जीता।

बाबा हरीशचन्द्र शास्त्री
जन्म- 1893 ई., जयपुर
इलाहाबाद से शिक्षा प्राप्त करने के बाद जयपुर में वकालत शुरू की।
जयपुर प्रजामण्डल ने 1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग नहीं लिया तब बाबा हरिशचन्द्र ने आजाद मोर्चे का गठन किया।

उस्ताद सुल्तान खाँ
जोधपुर के मूल निवासी सारंगी वादक, गायक, 'पिया बसंती' प्रसिद्ध एलबम, 2010 ई. के पद्मभूषण विजेता।

पी.एन. चोयल
राजस्थान के फादर ऑफ मॉडर्न आर्ट नाम से प्रसिद्ध चित्रकार का हाल ही में निधन हो गया।

दीपिका राठौड़
नागौर की बेटी दीपिका ने माउण्ट एवरेस्ट पर झण्डा फहराया।

महमूद धौलपुरी
धौलपुरी निवासी देश के प्रथम हारमोनियम संगीतकार और पद्मश्री से सम्मानित धौलपुरी का वर्ष 2011 में निधन।

मास्टर आदित्येन्द्र (1907-1999 ई.)
जन्म- 24 जून, 1907 ई. को थून गाँव (भरतपुर)
छात्रों में राष्ट्र भावना को जागृत करने का प्रयास किया।
1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान इन्हें गिरफ्तार किया गया।

स्नेहा शेखावत
शेखावाटी की इस बेटी ने 26 जनवरी, 2012 ई. को गणतन्त्र दिवस की परेड में वायुसेना के दल का नेतृत्व किया।

ज्वालाप्रसाद शर्मा अजमेर
ज्वाला प्रसाद शर्मा ने 1931 ई. में रेल खजाना लूटने की योजना बनाई। लेकिन सफल नहीं हो पाए।

मुकुट बिहारीलाल भार्गव
जन्म:- 30 जून, 1903 ई. (उदयपुर)
उपनाम- 'राजस्थान का सी.आर. दास'
सी.आर. दास की उपाधि इनको हरिभाऊ उपाध्याय ने दी थी।
1946 ई. में केन्द्रीय असेम्बली और संविधान सभा के सदस्य बने।
स्वतंत्रता के बाद अजमेर लोकसभा से लगातार 3 बार लोकसभा सदस्य चुने गए।
1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जेल गए।

आचार्य महाप्रज्ञ
जन्म- टमकोर (झुंझुनूँ)
मूल नाम- 'नथमल चौरड़िया'
ये तेरापंथ सम्प्रदाय के 10वें आचार्य थे।
5 दिसम्बर, 2001 ई. से 4 जनवरी, 2009 ई. तक 'अहिंसा यात्रा' की।
आत्मकथा : 'यात्रा एक अकिंचन'
इन्होंने 'प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त' का प्रतिपादन किया।
इन्होंने ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ 'फैमिली एण्ड द नेशन' नामक पुस्तक लिखी।

घमण्डाराम
राजस्थान के घमंडाराम ने नेशनल ओपन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 800 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता।

हवलदार शम्भू सिंह
राजस्थान के प्रथम व्यक्ति थे। जिन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।

भवानी सिंह
राजस्थानी साहित्य अकादमी का वर्ष 2012-13 का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार जयपुर के भवानी सिंह को उनकी कृति माणस के लिए दिया गया।

रुक्मा बाई
'थार की लता' के नाम से प्रसिद्ध बीकानेर की जाणकी गाँव की निवासी।
राजस्थानी संगीत व माँड गायकी को दुनियाभर में सम्मान दिलाने वाली प्रसिद्ध माँगणियार माँड गायिका का हाल ही में निधन।

डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा
जन्म- 15 सितम्बर, 1863 ई. को रोहिड़ा गाँव सिरोही में
ये कवि श्यामलदास से सर्वाधिक प्रभावित थे।
भारतीय प्राचीन लिपि माला के लेखक ओझा है।
1911 ई. में इन्हें अंग्रेजों ने 'राय बहादुर' का खिताब दिया तथा महामहोपाध्याय की उपाधि दी।

नेतराम सिंह गौरीर
जन्म- गौरीर गाँव (खेतड़ी झुंझुनूँ)
नेतराम सिंह गौरीर ने 1938 ई. में शेखावाटी के गाँवों में कन्या शिक्षा के लिए तथा किसानों को संगठित करने का प्रयास किया।

नानकजी भील
2 अप्रैल, 1923 ई. को डाबी में बूँदी किसान आन्दोलन का नेतृत्व करते समय मित्रों "प्राण भले ही गवाँना झंडा नहीं झुकाना" गीत गा रहे थे। तभी पुलिस अधीक्ष‌क इकराम हुसैन व हेड कॉस्टेबल कल्याण सिंह के नेतृत्व में पुलिस ने गोलियाँ चलाई, जिससे नानकजी भील व देवीलाल गुर्जर मौके पर ही शहीद हो गए।
नानक जी भील का अंतिम संस्कार देवपुरा गाँव बूँदी में किया गया।
झण्डा गीत- "प्राण मित्रों भले ही गँवाना, पर न झण्डा यह नीचे झुकाना।"
माणिक्यलाल वर्मा ने नानक जी भील की याद में अर्जी गीत लिखा।

बजरंगलाल ताखर
सीकर जिले के मगनपुरा गाँव के निवासी।
अर्जुन अवार्ड से सम्मानित, 2013 में पद्मश्री से सम्मानित।

शाकिर अली
राजस्थान के मिनएचर पेंटिंग के कलाकार।
प‌द्मश्री पुरस्कार से सम्मानित।

सज्जन सिंह कोठारी
अजमेर में जन्मे राजस्थान उच्च्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश।
राजस्थान के नए लोकायुक्त बनने के कारण चर्चित।

गोकुल जी वर्मा
उपनाम शेर ए भरतपुर ।
भरतपुर प्रजामंडल के मुख्य नेता थे।

कैलाश सांखला
जन्म- 30 जनवरी, 1925 ई, जोधपुर
1969 ई. में बाघों के अध्ययन के लिए 'जवाहरलाल नेहरू फैलोशिप पुरस्कार' प्राप्त करने वाले प्रथम सिविल सेवक बने।
उपनाम- 'टाईगर मैन ऑफ इण्डिया'
भारत में बाघ परियोजना के जन्मदाता थे।
पुस्तकें: रिटर्न ऑफ टाईगर (1993), द स्टोरी ऑफ इंडियन टाईगरर (1997), द स्टडी ऑफ इंडियन वाईल्डलाईफ (1973)।
राजस्थान सरकार ने इन्हें 2013 में 'राजस्थान रत्न' पुरस्कार से नवाजा।

कृष्णा पूनिया
अन्तर्राष्ट्रीय डिस्कस थ्रो खिलाड़ी
कॉमनवेल्थ में स्वर्ण पदक विजेता जिन्हें राज्य निर्वाचन आयोग ने मतदान हेतु प्रेरित करने के लिए ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाया।

मुहणोत नैणसी
ओसवाल जाति के मुहणोत वंश में जन्म (1610 ई.)
मारवाड़ के शासक जसवन्त सिंह के दीवान
राजपूताना के अबुल फजल के नाम से प्रसिद्ध
नैणसी री ख्यात तथा 'मारवाड़ रा परगना री विगत' की रचना की

आचार्य महाश्रमण
जन्म- 13 मई, 1962 ई. को सरदारशहर (चूरू) में
उपनाम- मोहन दुग्गड़
दीक्षा के बाद इनका नाम मुदित मुनि रखा गया।
जैन श्वेताम्बर सम्प्रदाय के 11वें आचार्य बने।
प्रमुख पुस्तकें- 'आचार्य महाप्रज्ञ', 'दुःख मुक्ति का मार्ग', 'आओं हम जीना सीखें', 'संवाद भगवान से'।

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन
जन्म- 7 जनवरी, 1851 ई. डबलिन शहर, आयरलैण्ड में
रचनाएँ- बिहारी कृत सतसई का सम्पादन, दि मॉर्डन वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ नॉदर्न इण्डिया, नोट्स ऑन तुलसीदास।
1873 ई. में भारत आए और बंगाल में नियुक्त हुए तथा भारतीय भाषाओं पर सर्वेक्षण कार्य किया।
1912 ई. में 'लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' (भारतीय भाषा विषयक कोष) नामक पुस्तक की रचना की।
राजपूताना की भाषा के लिए' राजस्थानी' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ग्रियर्सन ने ही किया था।

दामोदर लाल व्यास
जन्म- 9 नवम्बर, 1909 ई. को मालपुरा (टोंक)
उपनाम- राजस्थान का लौह पुरुष'
दामोदरलाल व्यास ने 1967 ई. में राजमाता गायत्री देवी को हराया।
यह पेशे से वकील थे।

घासीराम चौधरी
जन्म- 1903 ई. में नवलगढ़ ठिकाने के बासड़ी गाँव में
भारत सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। जेल से रिहा होकर भूमिगत रहकर कार्य किया।

गोपाल सैनी
ब्ल्यू पॉटरी के प्रसिद्ध कलाकार जिन्हें वर्ष 2009 में हस्तशिल्पी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

सुधीर तैलंग
बीकानेर के प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

मोतीलाल तेजावत
1921 ई. में भीलों को अन्याय, अत्याचार, शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए चित्तौड़गढ़ की राशमी तहसील के मातृकुण्डिया नामक स्थान से एकी आन्दोलन प्रारम्भ किया।
भीलों के बीच मसीहा तथा बावजी के नाम से प्रसिद्ध

गोविन्द गिरि
1858 ई. में डूंगरपुर के बासिया गाँव में जन्म
भील जनजाति में सामाजिक जागृति तथा संगठित करने हेतु भगत आन्दोलन चलाया।
1883 ई. में सम्प सभा की स्थापना की।

भैरोसिंह शेखावत
जन्म- 1923 ई. में खाचरियावास गाँव (सीकर) में हुआ था।
उपनाम- बाबोसा।
पुलिस की नौकरी छोड़कर 1952 ई. में प्रथम आम चुनाव में दातारामगढ़ (सीकर) से विधायक बने।
ये राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। प्रथम बार जून, 1977 ई. से फरवरी, 1980 ई. तक, दूसरी बार 1990 से दिसम्बर, 1992 ई. तक तथा तीसरी बार दिसम्बर, 1992 ई. से दिसम्बर, 1998 ई. तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 19 अगस्त, 2002 से 21 जुलाई, 2007 तक भारत के 11वें उपराष्ट्रपति रहे।
22 जून, 1977 ई. को राजस्थान के प्रथम गैर कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री बने।

मेजर दलपत सिंह शेखावत
जन्म- देओली, पाली
उपनाम- हाइफा हीरो
18 वर्ष की उम्र में जोधपुर की सेना में बतौर घुड़सवार भर्ती हुए।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान मेजर दलपत सिंह ने इजरायल के हाइफा शहर को जर्मनी और तुर्की सेनाओं से आजाद करवाया था। इस युद्ध में मेजर दलपतसिंह शहीद हो गए।

हिसामुद्दीन उस्ता
ऊँट की खाल पर स्वर्ण मीनाकारी की कला के लिए प्रसिद्ध
1914 ई. में बीकानेर जिले लूणकरणसर में दुलमेरा में जन्म
1966 ई. में राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने स्वर्ण पदक तथा 1986 में राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने पद्मश्री से सम्मानित किया।

सरदार हरलाल सिंह
जन्म- 1901 ई. में झुंझुनूं के हनुमानपुरा गाँव में
उपाधि- सरदार
शेखावाटी के किसान आन्दोलन में भाग लिया।

कोमल कोठारी
1929 ई. में चित्तौडगढ़ के कपासन कस्बे में जन्म
राजस्थान की लोक कलाओं तथा लोक संस्कृति को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
1983 ई. में पद्मश्री से सम्मानित।

दशरथ शर्मा
जन्म : 1903 ई. चूरू
पुस्तक : 'अर्ली चौहान डायनेस्टी'
अन्य पुस्तकें :- 'राजस्थान थ्रू दी एजेज, लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्ट्री एण्ड कल्चर, सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय और उनका युग।
1945 ई. में बीकानेर में 'सार्दुल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट' की स्थापना की।

कृपाल सिंह शेखावत
1922 ई. में सीकर जिले के मऊ गाँव में जन्म।
जयपुर की ब्ल्यू पॉटरी को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
1974 ई. में पद्मश्री से सम्मानित।

भामाशाह
महाराणा प्रताप के स्वामिभक्त मंत्री थे।
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के पास धन की कमी आने पर भामाशाह ने अपनी सारी सम्पत्ति नई सेना तैयार करने के लिए महाराणा प्रताप को दे दी।

मामा बालेश्वर दयाल
राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के भील जनजाति के लोगों के लिए जागरूकता का कार्य किया।
इन्होंने जल-जंगल और जमीन आन्दोलन चलाया।

कैप्टन दुर्गाप्रसाद चौधरी
जन्म- 18 दिसम्बर, 1905 ई. को नीमकाथाना (सीकर)
उपनाम- कप्तान।
आरम्भिक शिक्षा वर्धमान पाठशाला जयपुर में हुई।
1936 ई. में 'दैनिक नवज्योति' नामक समाचार पत्र का अजमेर से प्रकाशन प्रारम्भ किया।
राजस्थान सेवा संघ में रहकर बिजौलिया किसान आन्दोलन से जुड़े। राष्ट्रीय गतिविधियों में भाग लेने के कारण कई बार जेल गए।

डॉ. पी.के. सेठी
जन्म- 28 नवम्बर, 1927 ई. वाराणसी, उत्तरप्रदेश
1969 ई. में जयपुर के सवाई मानसिंह चिकित्सालय में श्रीरामचन्द्र शर्मा के साथ मिलकर दिव्यांगों के लिए एक सस्ता एवं लचीला कृत्रिम पैर (जयपुर फुट) विकसित किया।

अशोक गहलोत
जन्म- 3 मई, 1951 ई. को जोधपुर
उपनाम- आधुनिक मारवाड़ का गाँधी, जादूगर
ये तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
प्रथम बार 1 दिसम्बर, 1998 से 8 दिसम्बर, 2003 तक
दूसरी बार 13 दिसम्बर, 2008 से 12 दिसम्बर, 2013 तक
तीसरी बार 17 दिसम्बर, 2018 से को इन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ रामनिवास बाग अलबर्ट हॉल से ली।
ये जोधपुर में सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए थे।

जगदीप धनकड़
जन्म:- 18 मई, 1951 ई. किठाना गाँव, झुन्झुनूँ
11 अगस्त, 2022 को श्रीमति मालग्रेट आल्वा को 528 वोटों से हराकर 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
व्यक्तिगत रूप से यह 14वें राष्ट्रपति हैं।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पद पर रहे।
किशनगढ़ विधानसभा के सदस्य रहे।

समाचार पत्रों का योगदान

सज्जन कीर्ति सुधारक (1876 ई.) यह उदयपुर से प्रकाशित होने वाली राजस्थान की प्रथम पाक्षिक पत्रिका थी।
राजस्थान समाचार (1889 ई.) अजमेर से प्रकाशित होने वाला राजस्थान प्रथम हिन्दी दैनिक, इसके प्रकाशक मुंशी समर्थदास थे।
राजस्थान केसरी (1920 ई.) वर्धा से पथिक द्वारा निकाली गयी साप्ताहिक पत्रिका।
नवीन राजस्थान (1922 ई.) अजमेर से यह समाचार पत्र राजस्थान सेवा संघ के तत्वाधान में निकला था। 1923 में इसका नाम "तरूण राजस्थान" कर दिया।
1927 ई. त्याग भूमिः- हरिभाऊ उपाध्याय द्वारा
आगी बाण-1932 ई. - ब्यावर से जयनारायण व्यास द्वारा निकाला गया राजस्थानी भाषा का प्रथम समाचार पत्र।
नव ज्योतिः- (1936 ई.)- रामनारायण चौधरी द्वारा केशरगंज अजमेर से प्रकाशित साप्ताहिक बाद में कप्तान दुर्गादास चौधरी को सौंप दिया था। 1948 ई. में इसे दैनिक नव ज्योति बना दिया। वर्तमान में इसके संपादक दीन बंधु चौधरी हैं।
लोक वाणी (1943 ई.)- जयपुर से देवीशंकर तिवारी द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक

नोट
भारत में प्रथम प्रेस पुर्तगाली लेकर आए थे। भारत में प्रेस द्वारा हिन्दी में प्रकाशित प्रथम पुस्तक कालीदास की अभिज्ञान शकुन्तलम् थी।
  • भारत का प्रथम समाचार पत्र जेम्स ऑगस्टस हिकी का बंगाल गजट था (1780 ई.)
  • भारत का प्रथम हिन्दी समाचार पत्र जुगलकिशोर का उदन्त मार्तण्ड था। (1826 ई.) भारत का प्रथम दैनिक समाचार पत्र सुधा वर्षण (1854 ई.) था।
  • रस गोपत्रा- दादाभाई नौरोजी
  • अमृत बाजारा पत्रिका शिशिर कुमार घोष व मोतीलाल घोष 1868 ई. से बंगाली में छपता रहा। 1878 ई. में लिटन ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट बनाकर जब देशी भाषा के समाचार पत्रों को बन्द किया तब 1878 ई. में यह अंग्रेजी में छपने लगा।
  • उर्दू का प्रथम समाचार पत्र 'दयालसिंह मजिठिया' का ट्रिब्यून था। के.एम. मुंशी के यंग इंडिया समाचार पत्र को 1919 ई. से गाँधीजी ने प्रकाशित किया था।
  • इन्दुलाल याज्ञनिक के नव जीवन समाचार पत्र को 1933 ई. से गाँधीजी ने 'हरिजन' के नाम से प्रकाशित किया था। तिलक का केसरी (मराठी) तथा मराठा (अग्रेंजी) में प्रकाशित होता था।
  • एनीबेसेन्ट के न्यू इण्डिया कॉमन वीक व मद्रास स्टेण्डर्डस अंग्रेजी में प्रकाशित होते थे। (1914 ई.)
  • बंगाली के बंदे मातरम् का प्रकाशन कलकता से अरविन्द घोष ने, उर्दू के वंदेमातरम् का लाला लाजपत राय ने लाहौर से प्रकाशन किया।
  • भारतीय पत्रकारिता का राजकुमार कृष्टोदास पाल
  • राजस्थानी पत्रकारिता का 'भीष्म पीतामह झाबरमल शर्मा थे। इन्होंने जयपुर समाचार का प्रकाशन किया, 1925 ई. में इसे दिल्ली स्थानान्तरित कर हिन्दु संसार नाम दिया।
  • वर्तमान में इनके नाम पर पत्रकारिता का झाबरमल शर्मा स्मृति पुरस्कार दिया जाता है।
  • समाचार पत्रों के अलावा साहित्यकारों की लेखनी ने भी जागृति का काम किया।
  • सूर्यमल मिश्रण का वीर सतसई
  • जयनारायण व्यास की कविताएँ।
  • हीरालाल शास्त्री के जीवन कुटीर के गीत
  • माणिक्यलाल वर्मा का पंछीड़ा लोक गीत
  • केसरी सिंह बारहठ की 'कविताएँ' व 'चेतावनी रा चूंगट्या' ने जागृति का काम किया।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

राजस्थान में बालिकाओं के लिये 1932 ई. में 'जयकन्या विद्यालय' जयनारायण व्यास ने स्थापित किया था।
ब्यावर में सनातन धर्म विद्यालय के संस्थापक स्वतंत्रता सेनानी दामोदरदास राठी थे।
प्रतापसिंह बारहठ को मेरठ षड्यंत्र केस के तहत् बरेली भेजा गया।
शेखावाटी जकात आन्दोलन का नेतृत्व पं. नरोत्तम लाल जोशी ने किया।
शारदा एक्ट के प्रणेता रायबहादुर हरविलास थे।
आदिवासी लोगों में जागृति पैदा करने वाले गोविन्द गुरु डूंगरपुर जिले से संबंधित थे।
जोरावर सिंह बारहठ ने 'अमरदास वैरागी' छद्म नाम रखकर अपना अधिकांश समय मालवा और वागर के क्षेत्र में व्यतीत किया।
दिसंबर, 2019 तक के अनुसार, अशोक गहलोत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बन चुके थे।
राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया के पिता पुरुषोत्तम लाल सुखाड़िया क्रिकेट खेल से संबंधित थे।
राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने भारत के 11वें उपराष्ट्रपति के रूप में भी पदभार संभाला था।
गोविन्द गिरी बंजारा जाति से संबंधित थे।
'सीताराम साधु' राजस्थान के बिजौलिया किसान आन्दोलन से सम्बन्धित है।
"बागड़ प्रदेश के गाँधी" के नाम से विख्यात स्वतंत्रता सेनानी भोगी लाल पाण्ड्या (डूंगरपुर) थे।
महात्मा गाँधी के पुत्र के उपनाम से जमनालाल बजाज प्रसिद्ध है।
राजस्थान के लौह पुरुष दामोदर लाल व्यास माने जाते हैं।
'भारतीय प्राचीन लिपि माला' के लेखक का नाम गौरीशंकर हीराचन्द ओझा है।
स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा को जेल में जिंदा जला दिया गया था।
राजस्थान के क्रांतिकारी प्रतापसिंह बारहठ की बरेली की जेल में अमानुषिक यातनाओं के कारण मृत्यु हुई।
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी गोपीलाल यादव का संबंध भरतपुर से था।

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