राजस्थान में स्वतंत्रता आन्दोलन व प्रजामण्डल

राजस्थान में स्वतंत्रता आन्दोलन व प्रजामण्डल

प्रथम चरण (1927 से पूर्व)

1857 ई. की क्रांति के बाद राजस्थान में क्रांतिकारी आन्दोलन आरम्भ हुए, जिसमें समाज सुधारक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1883 ई. में उदयपुर में परोपकारिणी सभा की स्थापना की जिसे बाद में अजमेर स्थानान्तरित कर दिया गया।
1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसने राजस्थान में भी जनजागृति पैदा की। 1887 ई. में अजमेर के कुछ छात्रों ने मिलकर कांग्रेस कमेटी की स्थापना की।
इस कमेटी के सदस्य गोपीनाथ माथुर व कृष्णलाल ने कांग्रेस के इलाहाबाद (1888 ई.) अधिवेशन में भाग लिया। अजमेर से अनेक पत्रिकाएँ निकलनी प्रारम्भ हुई, जिन्होंने जागृति का काम किया।
1905 ई. में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर दिया, जिसके विरोध में भारत में स्वदेशी आन्दोलन चला। राजस्थान में मेवाड़, डूंगरपुर, सिरोही, बाँसवाड़ा ने स्वदेशी आन्दोलन में भाग लिया। स्वामी गोविन्दगिरी ने सम्प सभा के माध्यम से सिरोही में स्वदेशी आन्दोलन चलाया। 1908 ई. में अंग्रेजो ने सम्प सभा गैर कानूनी घोषित कर दी। 1925 ई. में हरिभाऊ उपाध्याय ने हटुण्डी में गाँधी आश्रम की स्थापना की। आर्य समाज ने वनिता आश्रम की स्थापना की।

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नरेन्द्र मण्डल/राजकुमार मण्डल (1921)
उद्देश्यः- ब्रिटिश भारत रियासतों के शासक ब्रिटिश सरकार से अपनी आशाओं व आकांक्षाओं को प्रस्तुत कर सके।
इसे चेम्बर ऑफ प्रिंसेज भी कहते हैं क्योंकि यह राजाओं का संगठन था, जिसकी स्थापना जार्ज पंचम के आदेश पर मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार के तहत 1921 ई. में दिल्ली में की गई।
इसका अध्यक्ष वायसराय होता था। इसका प्रथम अध्यक्ष बीकानेर का शासक गंगासिंह को बनाया तथा अन्तिम अध्यक्ष भोपाल नवाब हम्मीदुल्ला खां थे। नरेन्द्र मण्डल नाम अलवर महाराजा जयसिंह ने दिया। फरवरी माह में इसका अधिवेशन दिल्ली में होता था।

राजस्थान सेवा संघ
राजस्थान सेवा संघ की स्थापना 1919 ई. में वर्धा (महाराष्ट्र) में विजय सिंह पथिक द्वारा की गई। हरि भाई शंकर व अर्जुन लाल सेठी इसके अन्य सदस्य थे।
1920 ई. में राजस्थान सेवा संघ का अजमेर स्थानान्तरण किया गया तथा जोधपुर, जयपुर, कोटा, बूँदी में इसकी शाखाएँ खोली गई। 1920 ई. में राजस्थान सेवा संघ ने राजस्थान केसरी पत्रिका निकाली। 1922 ई. में नवीन राजस्थान पत्रिका निकाली गई।

असहयोग आन्दोलन
राजस्थान में असहयोग आन्दोलन अजमेर से प्रारम्भ हुआ। 15 मार्च, 1921 ई. को अजमेर में राजस्थान पॉलिटिकल कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जिसके अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू थे।
इस आन्दोलन में जमना लाल बजाज ने अपनी रायबहादुर की उपाधि लौटा दी तथा 1 लाख तिलक स्वराज्य कोष में दिये।
1921 ई. में बीकानेर के मुक्ताप्रसाद वकील ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई तथा स्वदेशी अपनाया। बीकानेर के शासक गंगासिंह ने आनन्दवर्मा, सम्पूर्णानन्द व शिवमूर्ति सिंह को नौकरी से निकाल दिया क्योंकि ये स्वदेशी वस्त्र पहनते थे।

नोट
राजस्थान में सविनय अवज्ञा आन्दोलन अजमेर से व भारत छोड़ो आन्दोलन जोधपुर से प्रारम्भ हुआ।

राजपूताना मध्य भारत सभा
संस्थापक:- जमनालाल बजाज, गणेश शंकर विद्यार्थी, विजयसिंह पथिक, गिरधरशर्मा आदि थे। राजपूताना मध्य भारत सभा देशी राज्यों, व प्रजा का प्रथम राजनैतिक संगठन था।
राजपूताना मध्य भारत सभा का मुख्य उद्देश्य राजपूताना की जनता को राष्ट्रीय गतिविधियों से जोड़ना तथा किसानों की समस्याओं को कांग्रेस के सामने रखना था।
इसकी स्थापना 1918 ई. में दिल्ली में चाँदनी चौक स्थित मारवाड़ी पुस्तकालय में हुई, जिसका मुख्यालय कानपुर में रखा गया। राजस्थान में इसका मुख्यालय अजमेर में रखा गया।
29 दिसम्बर, 1918 ई. को दिल्ली स्थित मारवाड़ी पुस्तकालय भवन में राजपूताना मध्य भारत सभा का प्रथम अधिवेशन हुआ। इसके अध्यक्ष महामहोपाध्याय पं. गिरधर शर्मा बने।
1919 ई. में इसका दूसरा अधिवेशन कांग्रेस अधिवेशन के साथ अमृतसर (पंजाब) में हुआ। तीसरा अधिवेशन 1920 ई. में अजमेर में किया गया, जिसके अध्यक्ष जमना लाल बजाज व उपाध्यक्ष गणेश शंकर उपाध्याय थे। दिसम्बर, 1920 ई. में नागपुर में इसका अधिवेशन किया गया।

दूसरा चरण (1927-1938 ई.)

अखिल भारतीय देशी राज्य लोकपरिषद्
इस परिषद् की स्थापना अप्रैल, 1927 ई. में बम्बई में की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था। इस परिषद् का प्रथम अधिवेशन 1927 ई. में बम्बई में हुआ, जिसके अध्यक्ष रामचन्द्रराव व उपाध्यक्ष विजय सिंह पथिक थे।
1927 ई. से 1944 ई. तक इस परिषद् के सभी अधिवेशन ब्रिटिश भारत में ही हुए थे।
1945 ई. में अखिल भारतीय देशी राज्य लोकपरिषद् का प्रथम रियासती अधिवेशन उदयपुर में हुआ, जिसके अध्यक्ष पण्डित जवाहर लाल नेहरू थे।
1948 ई. में इस परिषद् का अन्तिम अधिवेशन जयपुर में हुआ जिसके अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया थे। इस अधिवेशन में अखिल भारतीय देशी राज्य लोकपरिषद् का विलय कांग्रेस में कर दिया गया।

तीसरा चरण (1938-1947 ई.)

प्रजामण्डल
रियासती जनता को राष्ट्रीय गतिविधियों से जोड़ने तथा शासकों व अग्रेंजों के बीच संबंध विच्छेद करने के लिए प्रजामण्डलों की स्थापना की गई।
कांग्रेस के हरिपुरा (गुजरात) अधिवेशन 1938 ई. में सुभाषचन्द्र बोस ने प्रजामण्डल स्थापना की घोषणा की।

जयपुर प्रजामण्डल
जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना 1931 ई. में कर्पूरचंद पाटनी ने की, जिसका सहयोग चिंरजीलाल मिश्र ने किया।
प्रजामण्डल के कार्यकारिणी अध्यक्ष जमनालाल बजाज, उपाध्यक्ष चिरंजीलाल मिश्र, मुख्य सचिव हीरालाल शास्त्री, संयुक्त सचिव कपूरचंद पाटनी बने।
वीरेन्द्र चौहान, कल्याण शर्मा, चन्द्रशेखर भट्ट, हनुमान शर्मा, बद्रीनारायण, धीरेन्द्र सिंह, टीकाराम पालीवाल, रामकरण, लादुराम जयपुर प्रजामण्डल के प्रमुख कार्यकर्ता थे।
1936 ई. में जमनालाल बजाज व मंत्री हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में जयपुर प्रजामण्डल का पुनर्गठन हुआ जिसके अध्यक्ष चिरंजीलाल मिश्र को बनाया गया। इस पुनर्गठन में कस्तूरबा गाँधी ने अतिथि के रूप में भाग लिया। 9 मई, 1938 ई. को जमनालाल बजाज के नेतृत्व में जयपुर प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन हुआ।
10 मई, 1938 ई. को नथमल जी के कटले (जयपुर) कस्तुरबा गाँधी के नेतृत्व में महिलाओं की सभा हुई।
1938 ई. में जमनालाल बजाज का जयपुर में प्रवेश निषेध कर दिया गया। जयपुर सरकार ने प्रजामण्डल को गैरकानूनी घोषित कर दिया, जिस कारण प्रजामण्डल ने 1 फरवरी, 1939 ई. को सत्याग्रह करने का निर्णय लिया।
जयपुर प्रजामण्डल का मुख्यालय 1940 ई. में आगरा में बनाया गया।
दुर्गावती के नेतृत्व में सुमित्रा देवी, इन्द्रादेवी, सुशीला देवी, शारदा देवी, विधा देवी ने आन्दोलन किया। इन महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जेल में राजनितिक बंदियों के साथ उचित व्यवहार नहीं किये जाने के कारण 18 फरवरी 1939 ई. को प्रजामण्डल के कार्यकर्ताओं ने भूख हड़ताल प्रारम्भ कर दी, जिस पर सरकार ने लाठियाँ चलाई।
हीरालाल शास्त्री ने 12 मार्च, 1939 ई. को जयपुर दिवस मनाने की घोषणा की। जयपुर दिवस के दिन दिल्ली में सरोजनी नायडू ने लोगों को संबोधित किया।
गाँधी जी के कहने पर 18 मार्च 1939 ई. को जयपुर सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया तथा जयपुर सरकार ने प्रजामण्डल को मान्यता दे दी व कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया। जयपुर के ब्रिटिश प्रधानमंत्री मि. बिचम के स्थान पर ज्ञाननाथ को प्रधानमंत्री बनाया गया। 2 अप्रैल, 1940 ई. को जयपुर सरकार ने जयपुर प्रजामण्डल को पंजीकृत कर दिया। 15 अगस्त, 1942 ई. को शास्त्री जी ने जयपुर प्रजामण्डल की बैठक बुलाई।

नोट:
जैन्टलमैन एग्रीमेन्ट (अप्रैल, 1942)
  • हीरालाल शास्त्री व जयपुर प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माईल के बीच यह समझौता हुआ जिसमें निम्न शर्तें थी:
  1. जयपुर प्रजामण्डल महाराजा के खिलाफ प्रत्यक्ष कार्यवाही नहीं करेगा।
  2. राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना होगी।
  3. जयपुर राज्य अंग्रेजों को युद्ध के लिए जनधन की सहायता नहीं करेगा।
  4. ब्रिटिश विरोधी आन्दोलनकारी पर राज्य सरकार प्रतिबंध नहीं लगायेगी।
  5. आन्दोलकारियों को प्रभात फेरी का अधिकार होगा।
  6. प्रजामण्डल को कांग्रेस का झण्डा फहराने का अधिकार होगा।
  7. प्रजामण्डल राष्ट्रीय आन्दोलन से नहीं जुड़ेगा।

आजाद मोर्चा (1942 ई.)
जैन्टलमेन एग्रीमेन्ट के विरोध में बाबा हरिशचन्द्र के नेतृत्व में 1942 ई. में 'आजाद मोर्चे' की स्थापना की गई। जिसका उद्देश्य रियासती जनता को राष्ट्रीय गतिविधियों से जोड़ना था। इसमें रामकरण जोशी व दौलतमल भण्डारी व देवीशंकर तिवाड़ी अन्य सदस्य थे।

नोट
  • मोहनलाल आजाद, गोपाल वैद्य, भंवरलाल सामोदिया, गुलाबचन्द, आनन्दीलाल नाई, कासलीवाल, अल्लाबक्ष चौहान, चन्दशेखर शर्मा, विजयचन्द्र जैन, राधेश्याम शर्मा, ओमदत्त शास्त्री, मुक्तिलाल मोदी, मदन लाल खेतान, चिंरजीलाल मिश्र आदि आजाद मोर्चे के कार्यकर्ता थे। इस मोर्चे में गोपालदत्त वैद्य के नेतृत्व में हड़तालें हुई तथा शिक्षण संस्थाएँ बंद रखी गई। 5 अक्टूबर, 1942 ई. को वनस्थली विद्यापीठ की छात्राओं ने भाग लिया, जिन्हें शान्तिदेवी ने संबोधित किया। पण्डित जवाहर लाल नेहरू की सलाह पर 1945 ई. में आजाद मोर्चे का प्रजामण्डल में विलय हो गया।
  • मार्च, 1946 ई. में प्रजामण्डल के सदस्य टीकाराम पालीवाल ने उत्तरदायी शासन की माँग रखी। 15 मई 1946 ई. को जयपुर प्रजामण्डल के अध्यक्ष देवीशंकर तिवाड़ी को राज्यमंत्री मण्डल में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार जयपुर प्रजामण्डल आन्दोलन समाप्त हो गया।
जयपुर एकमात्र प्रजामण्डल था जिसमें गैरसरकारी सदस्य देवीशंकर तिवाड़ी को चुना गया।
1938 ई. में शेखावाटी किसान सभा का जयपुर प्रजामण्डल में विलय हुआ था।
जयपुर रियासत में मोतीलाल दिवस मनाया गया।
1940 ई. में हीरालाल शास्त्री की प्रेरणा से जयपुर हितकारिणी सभा का गठन किया गया। जिसके अध्यक्ष बालचन्द्र शास्त्री थे।
1 जून, 1944 ई. में जानकी देवी बजाज ने प्रजामण्डल अधिवेशन की अध्यक्षता की।
1949 ई. में जयपुर किसान सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया।
जयपुर प्रजामण्डल प्रथम प्रजामण्डल था, जो गैर मान्यता प्राप्त रूप से गठित था।

जोधपुर प्रजामण्डल
मरूधर मित्र हितकारिणी सभा (1915 ई.) की स्थापना बाद जोधपुर में जन जागृति की शुरूआत हुई। वास्तविक रूप से जन जागृति 1924 ई. में मारवाड़ हितकारिणी सभा प्रारम्भ हुई।
1918 ई. में चांदमल सुराणा ने मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना की।
1920 ई. में जयनारायण व्यास ने मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना की।
1923 ई. में जयनारायण व्यास ने मारवाड़ हितकारिणी सभा का पुनर्गठन किया। चाँदमल सुराणा ने 1924 ई. में मारवाड़ हितकारिणी सभा का गठन किया।
1927 ई. में जयनारायण व्यास अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् के अधिवेशन में भाग लेने बम्बई गये।
1929 ई. में जयनारायण व्यास ने मारवाड़ राज्य लोक परिषद् की स्थापना की। भंवरलाल सर्राफ को 5 मार्च, 1929 ई. को गिरफ्तार करके नागौर किले भेजा।
1932 ई. में मारवाड़ हितकारिणी सभा को गैरकानूनी घोषित कर दिया।
15 अगस्त 1932 ई. को मारवाड़ में प्रथम बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
10 मई, 1931 ई. में जयनारायण व्यास ने मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की।
1934 ई. में भंवरलाल सर्राफ के नेतृत्व में जयनारायण व्यास, आनन्द मल सुराणा, भानमल जैन, छगनलाल चौपासनी ने मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की। मारवाड़ प्रजामण्डल द्वारा 1936 ई. में बम्बई में कृष्णा दिवस मनाया गया।
1931 ई. में काका कालेलकर व कस्तूरबा गाँधी जोधपुर आए थे तथा 1936 ई. में पट्टाभिसीतारमैया भी जोधपुर आए थे।
1936 ई. 1937 ई. में जोधपुर प्रजामण्डल को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
1938 ई. के हरिपुरा अधिवेशन में सुभाषचन्द्र बोस ने प्रजामण्डल स्थापना की घोषणा की थी। जिससे प्रभावित होकर 16 मई, 1938 ई. को मारवाड़ में मारवाड़ लोक परिषद् की स्थापना हुई। रणछोड़दास गट्टानी इस परिषद् के अध्यक्ष थे।
मारवाड़ लोक परिषद् को मान्यता दिलाने के लिए 13 नवम्बर, 1938 ई. को विजयलक्ष्मी पण्डित व 6 दिसम्बर, 1938 ई. को सुभाषचन्द्र बोस जोधपुर आये।
क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण जयनारायण व्यास का जोधपुर में प्रवेश निषेध कर दिया गया। जोधपुर में पुनः प्रवेश दिलाने के लिए 21 फरवरी, 1937 ई. को बीकानेर के शासक गंगासिंह ने जोधपुर के प्रधानमंत्री सर डोनाल्ड फील्ड को पत्र लिखा जिस कारण 1939 ई. में जयनारायण व्यास पर प्रतिबंध हटा दिया गया।
8 मार्च, 1940 ई. को मारवाड़ लोक परिषद् को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। 26 जून, 1940 ई. को मारवाड़ लोक परिषद् व सरकार के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें मारवाड़ लोक परिषद् का पंजीयन किया गया।
अप्रैल, 1940 ई. में पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने द्वारकानाथ काचरू को मारवाड़ की स्थिति का पता लगाने के लिए जोधपुर भेजा।
28 मार्च, 1941 ई. को मारवाड़ में उत्तरदायी शासन दिवस मनाया गया।
जून, 1941 ई. में जोधपुर नगरपालिका के चुनाव हुए, जिसमें जयनारायण व्यास प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष चुने गये।
19 जून, 1942 ई. को भूख हड़ताल के कारण बालमुकुन्द बिस्सा की मृत्यु हो गयी।
जोधपुर में 1942 ई. में मारवाड़ सत्याग्रह दिवस मनाया गया।
गाँधी जी ने हरिजन पत्रिका में मारवाड़ सरकार की आलोचना की।
मारवाड़ लोक परिषद् के महासचिव अभयमल जैन ने मारवाड़ लोक परिषद् क्या है नामक पुस्तक प्रकाशित की जिससे लोगों में जागृती आई।
1944 ई. में जोधपुर में प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष एम.ए. सुधाकर थे। 1945 ई. में जवाहरलाल नेहरू भी जोधपुर आए थे।
मारवाड़ में महिलाओं का नेतृत्व महिमा देवी किंकर ने किया था।
18 अगस्त, 1942 ई. को निकाली गई प्रभातफेरी में रमादेवी, कृष्णाकुमारी व दयावती शामिल थी।
1947 ई. में मारवाड़ लोक परिषद् द्वारा विधानसभा दिवस मनाया गया।
जयनारायण व्यास ने बम्बई से अखण्ड भारत पत्रिका निकाली।
मारवाड़ लोक परिषद् द्वारा पोपा बाई की पोल व मारवाड़ की अवस्था नामक पत्रिकाएँ निकाली गई, जिसके अध्यक्ष जयनारायण व्यास थे।
1936 ई. में जयनारायण व्यास करौली में भारत रियासत लोक परिषद् की स्थापना की।
26 जुलाई, 1942 ई. को पूरे राजस्थान में मारवाड़ सत्याग्रह दिवस मनाया गया।

डाबड़ी काण्ड (डीडवाना, कुचामन)
मारवाड़ लोक परिषद् का डीडवाना में 13 मार्च, 1947 ई. को सम्मेलन हो रहा था जिस पर सरकार ने गोलियाँ चला दीं, जिसमें अनेक किसान मारे गये। इस काण्ड में चुन्नीलाल व जग्गु जाट सहित 12 किसान शहीद हो गये।
मथुरा दास, रियाजुद्दीन, अचलेश्वर प्रसाद शर्मा, रणछोड़दास गट्टानी, पुरुषोतम प्रसाद नेयर, मीठालाल शर्मा, किशोरी लाल, अभयमल जैन, छगनलाल चौपासनीवाला, इन्द्रमल जैन, जयकिशन मूंदड़ा, अमृतराज टॉटिया, सारंगधर दास आदि जोधपुर प्रजामण्डल से संबंधित थे। जोधपुर के भारत में विलय के बाद ही उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई थी।

यह भी जानें -
मारवाड़ प्रजामण्डल में आए लोग
  1. नेताजी सुभाषचन्द्र बोस (1938 ई.)
  2. जवाहर लाल नेहरू (1945 ई.)
  3. इंदिरा गाँधी
  4. विजयलक्ष्मी पंडित
  5. सत्यदेव
सफलता प्राप्त करने का यही सुनहरा अवसर है इसे जाने नहीं देना चाहिए।

मारवाड़ प्रजामण्डल से सम्वन्धित दिवस-
  1. कृष्णा दिवस - 1936 ई.
  2. रियासती दिवस - 1942 ई.
  3. शिक्षा दिवस - 1936 ई.
  4. सत्याग्रह दिवस - 1942 ई.
मारवाड़ प्रजामण्डल में महिलाओं का नेतृत्व महिमादेवी किंकर ने किया। अन्य- सावित्री देवी, सुरजदेवी, सुशीला देवी, कृष्णा कुमारी।

बीकानेर प्रजामण्डल
बीकानेर दमन नीति के कारण नेहरू जी ने कहा था कि "जहाँ शादी के कार्ड भी राज्य से सेंसन करवाने पड़े वहाँ का शासक इंसान नहीं हैवान है।"
गंगासिंह ने 1913 ई. में प्रतिनिधि सभा का गठन किया। बीकानेर में कुछ युवकों ने "सुविद्या प्रचारिणी सभा" का गठन किया। इसका उद्देश्य रिश्वतखोरी व अन्याय को रोकना था।
कन्हैयालाल ढूंढ व स्वामी गोपालदास ने चूरू में 1907 ई. में सर्वहितकारिणी सभा की स्थापना की। सर्वहितकारिणी सभा ने चूरू में लड़कियों की शिक्षा के लिए पुत्री पाठशाला व अछूतों के लिए कबीर पाठशाला की स्थापना की, जिन्हें बीकानेर शासक गंगासिंह ने अवैध घोषित कर दिया।
26 जनवरी, 1930 ई. को चन्दनमल बहड़ ने चूरू के धर्म स्तूप (लाल घण्टाघर) पर तिरंगा फहराया और नारा दिया "अखरो रिपयो चाँदी रो, राज महात्मा गाँधी रो।" गंगासिंह जब गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गये तब बीकानेर में उनकी नीतियों के विरूद्ध बीकानेर दिग्दर्शन के नाम से पम्पलेट बाँटे। लंदन में राजा गंगासिंह की आलोचना हुई। बीकानेर शासक गंगासिंह ने क्रान्तिकारियों पर बीकानेर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत राजद्रोह का मुकदमा चलाकर गिरफ्तार करवा दिया।
वकील रघुवर दयाल व मुक्ता प्रसाद ने चंदनमल बहड़, सत्यानारायण सर्राफ, वैद्य मघाराम, कुम्भाराम व इनके साथियों की पैरवी कर इन्हें रिहा करवाया। मघाराम वैद्य ने थोथी पौथी के नाम से पम्पलेट बाँटे।
4 अक्टूबर, 1936 ई. को रतनभाई ट्रस्ट के मकान (कलकता) में बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की गई, जिसका अध्यक्ष मघाराम वैद्य, उपाध्यक्ष लक्ष्मीदास व कोषाध्यक्ष भीक्षालाल को बनाया गया। वैद्य मघाराम ने कलकत्ता में 1937 ई. में बीकानेर प्रजामण्डल का पुर्नगठन किया और इसका अध्यक्ष लक्ष्मीदेवी आचार्य को बनाया गया।

नोट- बीकानेर के शासक के आतंक के कारण मघाराम वैद्य ने कलकत्ता जाकर बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की थी।

रघुवरदयाल ने 22 जुलाई, 1942 ई. को बीकानेर प्रजा परिषद् की स्थापना की, जिसका उद्देश्य उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था। इसमें गंगादास कौशिक और दाऊलाल आचार्य भी शामिल थे।
26 अक्टूबर, 1944 ई. को बीकानेर में दमन विरोधी दिवस मनाया गया। बीकानेर में 23 जनवरी को नेताजी दिवस व 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। बीकानेर राज्य में "नादिरशाही पुस्तक" विजयसिंह मोहता ने लिखी थी।
केन्द्रीय संविधान सभा में शामिल होने वाली पहली रियासत बीकानेर थी।
बीकानेर रियासत में होने वाला प्रथम किसान आंदोलन 1930 ई. का गंगनहर किसान आंदोलन था।
नोहर (हनुमानगढ़) में खादी भंडार की स्थापना की गई।

बीकानेर प्रजामंडल से संबंधित दिवस
  • बीरबल दिवस
  • किसान दिवस
  • नेताजी दिवस
  • स्वतंत्रता दिवस
  • माफी दिवस

रायसिंह नगर काण्ड (अनूपगढ़)
अध्यक्ष:- सत्यनारायण सर्राफ
1946 ई. में गंगानगर राज्य प्रजापरिषद् का नेतृत्व माधो सिंह ने किया।
बीकानेर लोक परिषद् का 1 जुलाई, 1946 ई. को रायसिंह नगर में सम्मेलन हो रहा था जिस पर बीकानेर शासक सार्दुलसिंह ने दमनकारी कार्यवाही की, जिसमें बीरबल सिंह की मृत्यु हो गई।
17 जुलाई, 1946 ई. को बीकानेर प्रजापरिषद् द्वारा बीरबल दिवस मनाया गया।

मेवाड़ प्रजामण्डल
24 अप्रैल, 1938 ई. को माणिक्य लाल वर्मा व बलवन्त सिंह मेहता ने मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की। इसमें अन्य सदस्य हीरालाल कोठारी, भूरेलाल बयां, रमेशचन्द्र व्यास, भवानी शंकर वैद्य थे।
मेवाड़ प्रजामण्डल के प्रथम सभापति बलवंतसिंह मेहता व उपाध्यक्ष भूरेलाल बयां व माणिक्यलाल वर्मा को मंत्री बनाया गया।
11 मई 1938 ई. को मेवाड़ प्रधानमंत्री धर्मनारायण ने प्रजामण्डल पर प्रतिबंध लगा दिया तथा माणिक्य लाल वर्मा का मेवाड़ से निष्कासन कर दिया। भूरेलाल बयां को सराड़ा किला उदयपुर में नजरबंद किया गया।
माणिक्यलाल वर्मा ने अजमेर जाकर 'मेवाड़ का वर्तमान शासन' नामक पुस्तक लिखकर राणा के अत्याचारों की आलोचना की। माणिक्य लाल वर्मा की पुस्तक मेवाड़ वासियों से अपील भी क्रांतिकारी रचना थी।
माणिक्य लाल वर्मा ने पंछीड़ा नामक गीत लिखा जिसका गायन बिजौलिया किसान आन्दोलन की समाप्ति पर, मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना पर व संयुक्त राजस्थान के प्रधानमंत्री बनते समय किया गया। माणिक्य लाल वर्मा को कुम्भलगढ़ दुर्ग में कैद किया गया था।
मेवाड़ प्रजामण्डल में महिलाओं का नेतृत्व नारायणी देवी वर्मा ने किया था। आन्दोलन का सर्वाधिक प्रभाव नाथद्वारा में था। प्रजामण्डल आन्दोलन में गंगाबाई ने नाथद्वारा में विशेष भूमिका निभाई।
नवम्बर, 1941 ई. में मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन शाहपुरा हवेली उदयपुर में आयोजित किया गया जिसके अध्यक्ष माणिक्य लाल वर्मा थे। आचार्य कृपलानी व विजय लक्ष्मी पण्डित भी शामिल हुए। इस सम्मेलन में भूरेलाल बयां को उपाध्यक्ष बनाया गया, सम्मेलन में भाग लेने वाले नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। जिन्हें 1944 ई. में रिहा कर दिया गया। मेवाड़ प्रजामण्डल ने बलेठ प्रथा पर रोक लगाई।
माणिक्य लाल वर्मा ने 31 दिसम्बर, 1945 ई. से 1 जनवरी, 1946 ई. को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का 7वाँ अधिवेशन उदयपुर में बुलाया, जिसकी अध्यक्षता पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने की।
8 मई, 1946 ई. को मेवाड़ सरकार ने ठाकुर गोपालसिंह की अध्यक्षता में संविधान निर्मात्री समिति का गठन किया गया, जिसमें प्रजा मण्डल के 5 सदस्य शामिल किये गये। 23 मई, 1947 ई. को प्रजामण्डल के नेता मोहनलाल सुखाड़िया को मंत्री पद दिया गया। 18 अप्रैल, 1948 ई. को उदयपुर का राजस्थान में विलय हो गया।

जैसलमेर प्रजामण्डल
जैसलमेर में जनजागृति का श्रेय सागरमल गोपा व रघुनाथ सिंह मेहता को जाता है।
1915 ई. में सागरमल गोपा ने सर्वहितकारिणी वाचनालय की स्थापना की, लेकिन जैसलमेर शासक ने अनुमति नहीं दी।
1932 ई. में रघुनाथ सिंह मेहता ने माहेश्वरी नवयुवक मण्डल की स्थापना की, लेकिन महारावल ने गैरकानूनी घोषित कर दिया तथा रघुनाथ सिंह पर मुकदमा चलाया गया, जिसके विरोध में सागरमल गोपा ने जैसलमेर में गुण्‍डाराज व आजादी के दीवाने नामक पुस्तक लिखकर महारावल की आलोचना की। सागरमल गोपा को जैसलमेर से निर्वासित कर दिया गया तो वह नागपुर चले गये।
1941 ई. में सागरमल के पिता की मृत्यु हुई तब गोपा जैसलमेर आये तो उन्हें 1942 ई. में गिरफ्तार किया गया तथा 6 वर्ष की सजा हुई। सागरमल गोपा ने जेल में जेलर गुमानसिंह की यातनाओं के बारे में अब्दुल्ला खाँ व जयनारायण व्यास को लिखा। 4 अप्रैल, 1946 ई. को जेलर गुमान सिंह ने मिट्टी का तेल छिड़कर सागरमल गोपा को जला दिया। जवाहर लाल नेहरू ने जयनारायण व्यास की अध्यक्षता में गोपालस्वरूप पाठक आयोग की नियुक्ति की गई, जिसने इसे आत्महत्या माना।
17 नवम्बर, 1930 ई. को पण्डित जवाहलाल नेहरू के स्वास्थ्य लाभ के लिए जैसलमेर में जवाहर दिवस मनाया गया।
1932 ई. में रघुवर दास मेहता द्वारा माहेश्वर युवक मण्डल का गठन किया गया।
पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने जैसलमेर को निराली रियासत विश्व का आठवाँ आश्चर्य कहा।
1939 ई. में जैसलमेर प्रजा परिषद् की स्थापना बम्बई में की गई। 15 सितम्बर, 1945 ई. को मीठा लाल व्यास ने जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना जोधपुर में की।

डूंगरपुर प्रजामण्डल 1944 ई.
1934 ई. में माणिक्य लाल वर्मा ने डूंगरपुर में खाँडलाई आश्रम की स्थापना की। 1935 ई. में शोभालाल गुप्त व गौरीशंकर आचार्य ने हरिजनों व भीलों के हितों के लिए सागवाड़ा आश्रम की स्थापना की। 1935 ई. में भोगीलाल पाण्डया ने डूंगरपुर में हरिजन सेवा समिति की स्थापना की। 1935 ई. में माणिक्य लाल वर्मा ने भीलों में जागरूकता लाने के लिए वागड़ सेवा मन्दिर की स्थापना की जिसे भोगीलाल पाण्डया ने सेवा भारती संघ नाम दिया। 1939 ई. में डूंगरपुर सेवा संघ की स्थापना हुई। 26 जनवरी 1945 ई. में गौरीशंकर आचार्य, भोगीलाल पाण्डया, हरिदेव जोशी के नेतृत्व में डूंगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना हुई।

पूनावाड़ा हत्याकाण्ड - डूंगरपुर
मई, 1947 ई. में पूनावाड़ा घटना हुई जिसमें शिवराम भील बच्चों को शिक्षा दे रहा था तथा सरकार ने स्कुल तोड़ दिया। 1946 ई. में शेरकटारा घटना के तहत सरकार ने अकाल के समय किसानों से कर मांगा जिसके विरोध में किसानों ने भोगीलाल पाण्डया व देवालाल के नेतृत्व में विरोध किया।

रास्तापाल हत्याकाण्ड (डूंगरपुर)
19 जून, 1947 ई. को अग्रेंजो ने रास्तापाल की पाठशाला को बंद किया, जिसके विरोध में शिक्षक नानाभाई खांट की पुलिस की पिटाई से मृत्यु हो गई तथा शिक्षक सेंगा भाई को पुलिस ने ट्रक के पीछे बांधकर घसीटा जिसे देखकर 13 वर्षीय भील छात्रा काली बाई ने दांतली से रस्सी काट दी, जिस कारण पुलिस ने काली बाई को गोली मार दी तथा वह शहीद हो गई। काली बाई (गैवसागर झील डूंगरपुर) व नाना भाई का स्मारक सुरपुरा में बना है। राजस्थान सरकार साक्षरता को काली बाई स्मृति पुरस्कार देती है।

बाँसवाड़ा प्रजामण्डल
बाँसवाड़ा में 1930 ई. में शान्त सेवा कुटीर की स्थापना चिमनलाल मालोत द्वारा की गई व सर्वोदय पत्रिका के माध्यम से जनचेतना का कार्य किया गया। 1943 ई. में भुपेन्द्र शंकर त्रिवेदी, धुलजी भाई, मणिशंकर, भावशाह द्वारा बाँसवाड़ा प्रजामण्डल की स्थापना की गई, जिसके अध्यक्ष विनोदचन्द्र कोठारी को बनाया गया। 1945 ई. में बाँसवाड़ा प्रजामण्डल का पुनर्गठन किया गया।

अलवर प्रजामण्डल
अलवर प्रजामण्डल की स्थापना 1938 ई. में पण्डित हरीनारायण शर्मा व कुंजबिहारी लाल मोदी के द्वारा की गई, अलवर प्रजामंडल का पहला अधिवेशन जनवरी, 1944 ई. में हुआ जिसका अध्यक्ष भवानी शंकर को बनाया गया।
अलवर प्रजामंडल में 1946 ई. में मिनिस्टर कुर्सी छोड़ो अभियान मास्टर भोलानाथ के द्वारा चलाया गया।
पण्डित हरिनारायण शर्मा ने जनता में जागृति लाने के लिए अस्पृश्यता निवारण संघ, वाल्मीकी संघ, आदिवासी संघ की स्थापना की गई।
अलवर प्रजामण्डल ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भी भाग लिया। अलवर प्रजामण्डल में उत्तरदायी शासन की माँग के लिए आन्दोलन चला जिस कारण सरकार ने आन्दोलनकारियों को जेल में डाल दिया। पण्डित जवाहरलाल नेहरू की सभा पर 2 सितम्बर, 1946 ई. को आन्दोलन समाप्त कर दिया गया।
मास्टर भोलानाथ ने 1946 ई. में प्रजामण्डल के माध्यम से गैरजिम्मेदार मिनीस्टरों कुर्सी छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ किया।

भरतपुर प्रजामण्डल
भरतपुर प्रजापरिषद् की स्थापना 1930 ई.
अध्यक्ष : गोपीलाल यादव
सचिव : ठाकुर देशराज
भरतपुर कांग्रेस मण्डल की स्थापना 1930 ई.
सदस्य : जगन्नाथ कक्कड़, गोकुल वर्मा, मास्टर फकीरचंद
भरतपुर में जनजागृति जुगलकिशोर चतुर्वेदी, जगननाथ दास, गंगाप्रसाद शास्त्री ने पैदा की। 1912 ई. में हिन्दी साहित्य समिति की स्थापना हुई। भरतपुर शासक किशनसिंह ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया।
भरतपुर के देशराज जाट ने जगह-जगह पर किसानों की सभाएँ की। भरतपुर के शासक किशनसिंह ने भरतपुर में उत्तरदायी शासन की माँग की और अंग्रेजों ने किशनसिंह को हटाकर बालक बृजेन्द्रसिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया तथा डंकन मैकेन्जी को नियुक्ति शासन सम्भालने के आदेश दिये। डंकन मैकेन्जी ने किसानों पर अत्याचार शुरू कर दिये।
हिन्दी साहित्य का सम्मेलन भरतपुर में 1927 ई. में हुआ। इस सम्मेलन की अध्यक्षता पं. गौरी शंकर हीराचन्द ओझा ने की। इसमें भाग लेने के लिये नेताजी सुभाष चन्द्र बोस व जवाहर लाल नेहरू पहुँचे थे। भरतपुर प्रजासंघ की स्थापना 1928 ई. में गोपीलाल यादव के द्वारा की गई।
दिसम्बर, 1938 ई. में भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना रेवाड़ी (हरियाणा) में मा. आदित्येन्द्र, गोपीलाल यादव, जुगलकिशोर चतुर्वेदी, किशनलाल जोशी द्वारा की गई। गोपीलाल यादव को भरतपुर प्रजामण्डल का अध्यक्ष बनाया गया तथा मा. आदित्येन्द्र को कोषाध्यक्ष बनाया गया।
दिसम्बर, 1939 ई. में भरतपुर शासक बृजेन्द्रसिंह के समय भरतपुर प्रजामण्डल का भरतपुर प्रजा परिषद् के नाम से पंजीकरण हुआ जिसका अध्यक्ष मा. आदित्येन्द्र को बनाया गया।
गोकुल जी वर्मा को भीष्म पितामाह के रूप में जाना जाता है। गोकुल जी वर्मा को भरतपुर का शेर भी कहते हैं। महात्मा गाँधी ने गोकुल जी वर्मा को "भरतपुरवाला" कहा है।
1939 ई. में फकीरचन्द ने भरतपुर में जमींदार किसान सभा का गठन किया गया।
1942 ई. में भारत छोड़ो आंदोलन के समय भरतपुर में महिला आन्दोलनकारियों का नेतृत्व श्रीमती सरस्वती बोहरा व विमला देवी के द्वारा किया गया।
अक्टूबर, 1943 को रियासत ने जनता के हितों के लिए बृज जया प्रतिनिधी सभा घटित की। मई, 1945 ई. में भरतपुर प्रजामण्डल का बयाना में तथा दिसम्बर, 1946 ई. को कामा में अधिवेशन हुआ, जिसमें उत्तरदायी शासन की मांग रखी गई। जनवरी, 1947 ई. को वायसराय लॉर्ड वेवेल भरतपुर आये जिसे जनता ने काले झण्डे दिखाये।
1947 ई. में भरतपुर में साम्प्रदायिक आन्दोलन प्रारम्भ हो गये रियासत ने प्रजामण्डल के जाट नेताओं को मंत्री नियुक्त किया। भरतपुर प्रजामंडल में इंडोनेशिया दिवस मनाया गया।
भुसावर काण्ड- 1947 ई. में अंग्रेज वेवल व महाराजा सार्दुल शहर के भरतपुर आगमन पर अंग्रेजों द्वारा आंदोलनकारी रमेश स्वामी को बस तले कुचल दिया।

धौलपुर प्रजामण्डल
आचार सुधारिणी सभा का गठन 1910 ई. में यमुना प्रसाद शर्मा ने किया। इन्ही के द्वारा 1911 ई. में धौलपुर में आर्य समाज की स्थापना की गई।
यहाँ जनजागृति का कार्य आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानन्द ने 1918 ई. में स्वदेशी व शुद्धि आन्दोलन चलाकर की। 1934 में ज्वालाप्रसाद जिज्ञासु व जौहरीलाल इन्दु ने नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की।
स्थापना: 1936 ई.
अध्यक्ष: कृष्णदत्त पालीवाल
अन्य सदस्य: ज्वालाप्रसाद जिज्ञासु, जौहरीलाल इन्दु, मूलचन्द।

तसीमों काण्ड (धौलपुर)
11 अप्रैल, 1947 ई. को प्रजामण्डल के अधिवेशन पर सरकार ने गोलियाँ चला दी जिसमें छत्तरसिंह परमार व पंचमसिंह कुशवाह शहीद हो गये।
राममनोहर लोहिया की अध्यक्षता में आयोजित राजनीतिक सम्मेलन में धौलपुर महाराजा उदयभान सिंह ने तसीमों काण्ड की जाँच के आदेश व उत्तरदायी शासन की माँग की। सरदार पटेल ने महाराजा को दिल्ली बुलाकर शासनाधिकार त्यागने पर मजबूर कर दिया।
एकीकरण के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले धौलपुर अंतिम रियासत थी।

करौली प्रजामण्डल
1921 ई. में कुंवर मदनसिंह ने अपनी पत्नी के साथ बेगार प्रथा, सूअर समस्या व हिन्दी को राजभाषा बनाने हेतु आन्दोलन किया। कुंवर मदनसिंह ने प्रेमाश्रम व ब्रह्मचार्य आश्रम संस्थाओं की स्थापना की। मुंशी त्रिलोकचन्द्र माथुर ने करौली राज्य सेवक संघ के माध्यम से करौली में जनजागृति पैदा की व इनके साथ ठाकुर पुरण सिंह भी थे।
1933 ई. में करौली प्रजामण्डल की स्थापना की गई जिसका पुनर्गठन 1939 ई. में त्रिलोकचन्द्र माथुर ने किया। त्रिलोकचन्द्र माथुर की मृत्यु बाद 1945 ई. में करौली प्रजामण्डल का अध्यक्ष चिरंजीलाल मिश्र को बनाया गया। जुलाई, 1947 ई. में रियासत ने संवैधानिक सुधारों हेतु एक समिति का गठन किया।

झालावाड़ प्रजामण्डल
श्यामशंकर, अटल बिहारी, तनसुख लाल मितल, रामनिवास, मदनगोपाल, मांगीलाल ने झालावाड़ में जनजागृति का काम किया। 25 नवम्बर, 1946 को मांगीलाल भव्य की अध्यक्षता में मकबूल आलम व कन्हैयालाल मित्तल ने झालावाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की।
झालावाड़ प्रजामण्डल को महाराजा हरिशचन्द्र ने संरक्षण दे रखा था। रियासती शासक द्वारा संरक्षण देकर बनने वाला एकमात्र प्रजामण्डल झालावाड़ था। यह राजस्थान का अन्तिम गठित प्रजामण्डल है।

बूंदी प्रजामण्डल
हाड़ौती क्षेत्र में राजनैतिक चेतना का कार्य पण्डित नयनू राम शर्मा के द्वारा किया गया। बूँदी महाराव ईश्वरसिंह ने आन्दोलन को दबाने का भरसक प्रयास किया।
बरड आन्दोलन के माध्यम से विजयसिंह पथिक व रामनारायण चौधरी ने बूँदी में जनजागृति का कार्य किया। बिजौलिया भीलवाड़ा से बूँदी के मध्य का पथरीला क्षेत्र बरड़ कहलाता है।
1931 ई. में कान्तिलाल जैन की अध्यक्षता में बूँदी प्रजामण्डल की स्थापना हुई। 1935 ई. में बूँदी शासक ने सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया। 1937 ई. में प्रजामण्डल के अध्यक्ष ऋषिदत्त मेहता का 3 वर्ष के लिए बूँदी से निष्कासन कर दिया। 1944 ई. में ऋषिदत्त मेहता ने बूँदी प्रजामण्डल को बूँदी राज्य लोक परिषद् के नाम से पुनर्गठित किया। बूँदी प्रजापरिषद् के प्रथम अध्यक्ष हरिमोहन माथुर थे व बृजसुन्दर शर्मा को सदस्य बनाया गया। 1945 ई. में बूँदी प्रजापरिषद् के जुलूस पर गोलियाँ चलाई गई। जिसमें वकील रामकल्याण शहीद हुआ। बूंदी महाराव बहादुरसिंह के द्वारा उत्तरदायी शासन की मांग की गई और संविधान निर्माण के लिए एक कमेटी बनाई गई। जिसमें सात सदस्य लोक परिषद् के थे।

कोटा प्रजामण्डल
1934 ई. में पण्डित नयनूराम शर्मा ने हाड़ौती प्रजा परिषद् के नाम से संघठन की स्थापना की। मई, 1939 ई. में पण्डित नयनूराम शर्मा व अभिन्नहरि ने कोटा प्रजामण्डल की स्थापना की। कोटा में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार व खादी का प्रचार-प्रसार किया गया।
कोटा प्रजामण्डल के प्रारम्भ में स्थापना 1934 ई. में हाडौती प्रजामण्डल के नाम से हुई। हाड़ौती प्रजामण्डल के प्रथम अध्यक्ष हाजी फैज मोहम्मद खाँ थे।
पण्डित नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में कोटा प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन 14 अक्टूबर, 1939 ई. को मांगरोल (बाराँ) में हुआ। श्रीमती शारदा भार्गव (राज्यसभा में जाने वाली प्रथम महिला सांसद) की अध्यक्षता में महिलाओं ने भी सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें छः वर्ष के बालकों के लिए अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था का प्रस्ताव किया गया।
1941 ई. में पण्डित नयनूराम शर्मा की हत्या के बाद प्रजामण्डल की अध्यक्षता पण्डित अभिन्नहरि (माँगरोल बाराँ) ने की थी।
1942 ई. में प्रजामण्डल के अध्यक्ष मोतीलाल जैन ने कोटा शासक को पत्र लिखकर अंग्रेजो से संबंध विच्छेद करने के लिए कहा। भारत छोड़ो आन्दोलन में कोटा प्रजामण्डल ने भाग लिया तथा कुछ समय के लिए कोटा पर जनता का अधिकार रहा।
भारत छोड़ो आन्दोलन के समय 1942 ई. में कोटा में हर्बट स्कूल व सिटी स्कूल के विद्यार्थियों ने जुलूस निकाला था। इस समय कोटा के शासक भीमसिंह थे। वेणी माधोप्रसाद, शम्भूदयाल सक्सेना, पण्डित अभिन्न हरि को 1942 ई. के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गिरफ्तार किया गया था।

सिरोही प्रजामण्डल
सिरोही में राजनैतिक चेतना का कार्य गोविन्दगिरी ने व मोतीलाल तेजावत ने किया था।
सिरोही प्रजामण्डल की प्रथम स्थापना 1934 ई. में बम्बई में कुछ छात्रों ने की थी। जिसमें अध्यक्ष भीमशंकर शर्मा को बनाया गया। बम्बई में स्थापित सिरोही प्रजामण्डल के संस्थापक वृद्धिशंकर त्रिवेदी थे। 22 जनवरी, 1939 ई. में राजस्थान के गाँधी गोकुलभाई भट्ट ने सिरोही प्रजामण्डल का पुनर्गठन किया।

किशनगढ़ प्रजामण्डल
किशनगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना 1939 ई. में कान्तिलाल चौथाणी ने की थी, जिसके अध्यक्ष जमालशाह को बनाया गया। किशनगढ़ में जलियावाला बाग दिवस मनाया गया।

शाहपुरा प्रजामण्डल
श्रीरमेशचन्द्र ओझा व लादुराम व्यास ने 18 अप्रैल, 1938 को शाहपुरा प्रजामण्डल की स्थापना की। इसका अध्यक्ष अभय मल डांगी को बनाया गया।
1945 ई. में गोकुललाल असावा शाहपुरा प्रजामण्डल के अध्यक्ष बने, जिनके नेतृत्व में संविधान निर्मात्री समिति का गठन हुआ। शाहपुरा राजपुताने की प्रथम रियासत थी।
14 अगस्त, 1947 ई. को सुदर्शन देव के द्वारा सर्वप्रथम शाहपुरा में उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई।
सुदर्शन देव के द्वारा ही एकीकरण के विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये गये थे। शाहपुरा रियासत सबसे कम प्रीवीपर्स प्राप्त करने वाली रियासत (90 हजार) थी।

प्रतापगढ़ प्रजामण्डल
प्रतापगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना अमृत लाल व चुन्नीलाल प्रभाकर ने 1946 ई. में की थी। प्रतापगढ़ में जनजागृति का कार्य अमृतलाल व ठक्कर बाबा ने किया था।
ठक्कर बाबा की प्रेरणा से अमृतलाल पायक ने प्रतापगढ़ में हरिजन पाठशाला की स्थापना की। 1938 ई. में अमृतलाल ने गीत प्रचार समिति का गठन किया।
15 अगस्त, 1947 ई. को प्रतापगढ़ में लोकप्रिय मंत्रिमंडल का गठन किया गया।

कुशलगढ़ प्रजामण्डल
कुशलगढ़ बाँसवाड़ा राज्य का भाग था। इसमें जनजागृति का कार्य पन्नालाल शंकर त्रिवेदी के द्वारा किया गया।
कुशलगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना अप्रैल, 1942 ई. में की गई जिसके संस्थापक कन्हैयालाल सेठिया व अध्यक्ष भंवर लाल निगम थे।

नोट
टोंक राजस्थान की ऐसी रियासत थी जहाँ प्रजामण्डल की स्थापना नहीं हुई।

विभिन्न रियासतों में होने वाले प्रमुख काण्ड
तसीमो कांड धौलपुर 11 अप्रैल, 1947
कांगड़ा कांड चूरू (बीकानेर रियासत) 1946 ई.
डाबड़ा कांड डीडवाणा (मारवाड़ रियासत) 13 मार्च, 1947
रास्तापाल कांड डूंगरपुर 19 जून, 1947
पुनावाड़ा कांड डूंगरपुर मई, 1947

विभिन्न रियासतों में बनाए जाने वाले दिवस
नेताजी दिवस बीकानेर 23 जनवरी, 1946
किसान दिवस बीकानेर 6 जुलाई, 1946
बीरबल दिवस बीकानेर 17 जुलाई, 1946
मुक्ति दिवस जयपुर 28 अक्टूबर, 1946
गाँधी दिवस जयपुर 24 फरवरी, 1943
मोतीलाल दिवस जयपुर 5 अप्रैल, 1931
सीकर दिवस जयपुर 26 मई, 1935
कृष्णा दिवस जोधपुर 1936 ई.
सत्याग्रह दिवस जोधपुर 26 जुलाई, 1942
उत्तरदायी शासन दिवस जोधपुर 28 मार्च, 1941
शिक्षा दिवस जोधपुर 21 जून, 1936
जवाहर दिवस जैसलमेर 14 नवम्बर, 1930
इण्डोनेशिया दिवस भरतपुर 28 अक्टूबर, 1945

प्रजापरिषद की स्थापना
प्रजामण्डल वर्ष संस्थापक अध्यक्ष
मारवाड़ राज्य प्रजापरिषद् 1938 ई. जयनारायण व्यास रणछोडदास गट्टानी
जैसलमेर राज्य प्रजापरिषद् 1939 ई. शिवशंकर गोपा शिवशंकर गोपा
बीकानेर राज्य प्रजापरिषद् 1942 ई. रघुवरदयाल गोयल रघुवरदयाल गोयल
बूँदी राज्य प्रजापरिषद् 1944 ई. ऋषिदत्त मेहता हरिमोहन माथुर

शांतिलाल व आनन्दी लाल प्रजामण्डल आन्दोलन के दौरान 5 अप्रैल, 1948 को उदयपुर रियासत में शहीद हो गए।
सन् 1921 में बीकानेर में मुक्ता प्रसाद वकील ने अपने साथियों के साथ मिलकर कपड़ों की होली जलाई और खादी पहनने का व्रत लिया।
अजमेर में पण्डित गौरीशंकर के नेतृत्व में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया।
जोधपुर के सत्याग्राही भंवरलाल सर्राफ ने तिरंगे झंडे में एक ओर महात्मा गाँधी तथा दूसरी ओर स्वराज्य लिखा था।
सद्विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना बीकानेर में 1920 ई. में हुई। इस सभा द्वारा धर्मविजय और सत्यविजय नामक दो सामाजिक नाटकों का मंचन किया गया।
लक्ष्मीदेवी आचार्य ने बीकानेर की थोथी-पोथी नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई।
28 अप्रैल, 1947 ई. को बीकानेर के प्रतिनिधि के रूप में के.एम. पणिक्कर को संविधान निर्मात्री सभा में भेजा गया।
मारवाड़ प्रजामण्डल के दौरान छगनराज चौपासनी वाला को बाल भारत सभा का मंत्री बनाया गया।
मारवाड़ प्रजामण्डल में रमा देवी, कृष्णा कुमारी और दयावती का महत्त्वपूर्ण योगदान था। रमा देवी जयनारायण व्यास की पुत्री थी। कृष्णा कुमारी अचलेश्वर प्रसाद की पत्नी और दयावती रामचन्द्र पालीवाल की पत्नी थी।
जयपुर प्रजामण्डल में हीरालाल शास्त्री की प्रेरणा से जयपुर हितकारिणी सभा का गठन किया गया। जिसके अध्यक्ष बालचंद शास्त्री थे।
जयपुर प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन 8 व 9 मई, 1938 को नथमल का कटला (जयपुर) नामक स्थान पर सम्पन्न हुआ।
मेवाड़ प्रजामण्डल आन्दोलन के दौरान मेवाड़ के उपाध्यक्ष भूरेलाल बयां को गिरफ्तार कर सराड़ा किले में नजरबन्द किया गया।

माणिक्यलाल वर्मा ने मेवाड़ प्रजामण्डल आन्दोलन के दौरान कहा कि भाई हम तो मेवाड़ी हैं, "हर बार हर-हर महादेव बोलते आए हैं, इस बार भी बोलेंगे।"
करौली प्रजामण्डल के ठाकुर कुंवर मदनसिंह ने 1927 ई. में बेगार प्रथा के खिलाफ आन्दोलन चलाया।
भीमशंकर शर्मा ने सिरोही प्रजामण्डल में सिरोही सन्देश नामक अपने अखबार में सिरोही की प्रजाविरोधी घटनाओं को प्रकाशित किया था। मई, 1947 ई. में जयनारायण व्यास ने जैसलमेर प्रजामण्डल के दौरान आम सभा को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रध्वज फहराया और इकलाब जिंदाबाद और प्रजामण्डल जिंदाबाद के नारों के साथ जैसलमेर में उत्तरदायी शासन की मांग की।
बाँसवाड़ा में चिमनलाल मालोत ने 1930 ई. में शान्त सेवा कुटीर की स्थापना की। और सर्वोदया पत्रिका का प्रकाशन कर जनचेतना फैलाने का प्रयास किया।
1919 ई. में भोगीलाल पाण्ड्या ने आदिवासी छात्रावास की स्थापना कर डुंगरपुर प्रजामण्डल में जनचेतना फैलाने का प्रयास किया।
1935 ई. में माणिक्यलाल वर्मा, भोगीलाल पाण्ड्या और गौरीशंकर उपाध्याय ने बांगड़ सेवा समिति की स्थापना कर जनजागृति का प्रयास किया।
बाल गोविन्द तिवारी ने झालावाड़ प्रजामण्डल ने मित्र मण्डल की स्थापना की। जिसका उद्देश्य राजनैतिक चेतना का प्रसार करना था।
झालावाड़ में जनजागृति का कार्य श्यामशंकर एवं अटल बिहारी के प्रयासों से शुरू हुआ। उन्होंने 1919 ई. में झालावाड़ सेवा समिति की स्थापना की।
1921 ई. में रामनिवास शर्मा ने झालावाड़ में 'सारम' नामक समाचार पत्रों का प्रकाशन कर राजनैतिक आन्दोलन की गतिविधियों को प्रकाशित किया।

नोट - NCERT के अनुसार प्रजामण्डल की स्थापना

1. जयपुर प्रजामण्डल
वर्ष: 1931 ई., 1936 ई.
संस्थापक: जमनालाल बजाज
अध्यक्ष: जमनालाल बजाज, कर्पूरचन्द पाटनी, चिरंजीलाल मिश्र
प्रमुख नेता: हीरालाल शास्त्री, जमनालाल बजाज, बाबा हरिशचन्द्र, टीकाराम पालीवाल, लादूराम जोशी

2. बूँदी प्रजामण्डल
वर्ष: 1931 ई.
संस्थापक: कांतिलाल
अध्यक्ष: कांतिलाल
प्रमुख नेता: नित्यानन्द सागर, मोतीलाल अग्रवाल, गोपालाल जोशी, पूनमचन्द्र

3. हाड़ौती प्रजामण्डल
वर्ष: 1934 ई.
संस्थापक: पं. नयनूराम शर्मा
अध्यक्ष: हाजी फैज मोहम्म्द खां
प्रमुख नेता: पण्डित अभिन्न हरि, प्रभूलाल शर्मा

4. मारवाड़ प्रजामण्डल
वर्ष: 1934 ई.
संस्थापक: जयनारायण व्यास
अध्यक्ष: भँवरलाल सर्राफ
प्रमुख नेता: अभयमल मेहत्ता, छगनलाल चौपसनीवाल, आनन्दराज सुराणा, रणछोड़दास गट्टानी, चाँदकरण शारदा, मथुरादास माथुर

5. सिरोही प्रजामण्डल
वर्ष: 1934 ई.
संस्थापक: वृद्धिशंकर त्रिवेदी
अध्यक्ष: भीमशंकर शर्मा
प्रमुख नेता: समर्थमल, रामेश्वर दयाल

6. बीकानेर प्रजामण्डल
वर्ष: 1936 ई. (संस्थापक/अध्यक्ष), 1937 ई. (पुर्नगठन)
संस्थापक: मघाराम वैद्य
अध्यक्ष: मघाराम वैद्य (1936 ई.), लक्ष्मीदेवी आचार्य (1937 ई.)
प्रमुख नेता: रघुवलद्याल गोयल, बाबू मुक्ताप्रसाद, गंगाराम कौशिक, लक्ष्मणदास स्वामी

7. कोटा प्रजामण्डल
वर्ष: 1939 ई.
संस्थापक: पं. नयनूराम शर्मा
अध्यक्ष: पं. नयनूराम शर्मा
प्रमुख नेता: पं. अभिन्न हरि, बेनी माधव प्रसाद, तनसुखलाल मित्तल

8. मेवाड़ प्रजामण्डल
वर्ष: 1938 ई.
संस्थापक: माणिक्यलाल वर्मा
अध्यक्ष: बलवंतसिंह मेहता
प्रमुख नेता: माणिक्यलाल वर्मा, भूरेलाल बयां, जमनालाल वैद्य, भवानी शंकर

9. अलवर प्रजामण्डल
वर्ष: 1938 ई.
संस्थापक: पं. हरिनारायण शर्मा
अध्यक्ष: पं. हरिनारायण शर्मा
प्रमुख नेता: कुंजबिहारी मोदी, मंगलसिंह, नत्थूराम मोदी, इन्द्रसिंह आजाद

10. भरतपुर प्रजामण्डल
वर्ष: 1938 ई.
संस्थापक: किशनलाल जोशी
अध्यक्ष: गोपीलाल यादव
प्रमुख नेता: जुगल किशोर चतुर्वेदी, रेवती शरण शर्मा, लच्छीराम, मुहम्मद अली, ठाकुर देशराज

11. शाहपुरा प्रजामण्डल
वर्ष: 1938 ई.
संस्थापक: रमेशचन्द्र ओझा
अध्यक्ष: अभयसिंह डांगी
प्रमुख नेता: गोकुललाल असावा, लादूराम व्यास

12. धौलपुर प्रजामण्डल
वर्ष: 1938 ई.
संस्थापक: ज्वालाप्रसाद जिझासु
अध्यक्ष: कृष्णदत्त पालीवाल
प्रमुख नेता: जौहरीलाल इंदू, केदारनाथ मूलचन्द

13. करौली प्रजामण्डल
वर्ष: 1938 ई.
संस्थापक: त्रिलोकचन्द माथुर
अध्यक्ष: त्रिलोकचन्द माथुर
प्रमुख नेता: चिरंजीलाल, कुंवर मदनसिंह

14. किशनगढ़ प्रजामण्डल
वर्ष: 1939 ई.
संस्थापक: कांतिलाल चौथानी
अध्यक्ष: जमाल शाह

15. जैसलमेर प्रजामण्डल
वर्ष: 1945 ई.
संस्थापक: मीठालाल व्यास
अध्यक्ष: मीठालाल व्यास

16. कुशलगढ़ प्रजामण्डल
वर्ष: 1942 ई.
संस्थापक: भंवरलाल निगम
प्रमुख नेता: पन्नालाल

17. डूंगरपुर प्रजामण्डल
वर्ष: 1944 ई.
संस्थापक: भोगीलाल पाण्ड्या
अध्यक्ष: भोगीलाल पाण्ड्या
प्रमुख नेता: हरिदेव जोशी, गौरीशंकर उपाध्याय

18. बाँसवाड़ा प्रजामण्डल
वर्ष: 1945 ई.
संस्थापक: भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी
अध्यक्ष: विनोद चन्द्र कोठारी
प्रमुख नेता: चिमनलाल, धूलजी भाई, मणिशंकर मोतीलाल

19. प्रतापगढ़ प्रजामण्डल
वर्ष: 1945 ई.
संस्थापक: अमृतलाल पायक
अध्यक्ष: अमृतलाल पायक
प्रमुख नेता: चुन्नीलाल प्रभाकर

20. झालावाड़ प्रजामण्डल
वर्ष: 1946 ई.
संस्थापक: मांगीलाल भव्य
अध्यक्ष: मांगीलाल भव्य
प्रमुख नेता: मकबूल आलम, कन्हैयालाल मित्तल, तनसुखलाल

महत्वपूर्ण तथ्य

  • बीकानेर लोक परिषद् की स्थापना 1936 में कलकत्ता शहर में हुई।
  • 1938 में जयपुर राज्य प्रजामण्डल का प्रथम वार्षिक अधिवेशन जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में आयोजित हुआ।
  • "मेवाड़ का वर्तमान शासक" नामक पुस्तक माणिक्य लाल वर्मा ने लिखी।
  • चूरू में 'सर्वहितकारिणी सभा' की स्थापना 1907 ई. में स्वामी गोपालदास ने की।
  • मेवाड़ प्रजामंडल के प्रमुख नेता माणिक्यलाल वर्मा, बलवन्त सिंह मेहता, मोहनलाल सुखाड़िया थे, जिन्हें भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 21 अगस्त, 1942 को गिरफ्तार किया गया।
  • करौली प्रजामण्डल की स्थापना 1938 ई. में त्रिलोकचन्द माथुर के द्वारा की गई।
  • मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अध्यक्ष बलवंतसिंह मेहता था।
  • 1947 से पूर्व राजस्थान की प्रत्येक रियासत में संवैधानिक सुधार कर उत्तरदायी सरकार बनाने की दिशा में कुछ कदम उठाये गये, जैसलमेर रियासत को छोड़कर।
  • मारवाड़ प्रजामण्डल का गठन 1934 ई. में किया गया था।
  • नवम्बर, 1941 में मेवाड़ प्रजामण्डल के प्रथम वार्षिक अधिवेशन का उद्घाटन आचार्य कृपलानी द्वारा किया गया।
  • हाड़ौती प्रजामण्डल की स्थापना नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में की गई थी।
  • पण्डित नयनूराम शर्मा कोटा प्रजामण्डल से संबंधित थे।
  • डूंगरपुर राज्य प्रजामण्डल के प्रथम अध्यक्ष भोगीलाल पण्ड्या थे।
  • बूँदी प्रजामण्डल की स्थापना कान्तिलाल ने की।
  • चुन्नीलाल व अमृतलाल पायक का संबंध प्रतापगढ़ प्रजामण्डल आंदोलन से मुख्यतः जुड़ा रहा।
  • मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना माणिक्य लाल वर्मा के द्वारा की गई।
  • कोटा राज्य प्रजामण्डल के संस्थापक नयनूराम शर्मा थे।

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