राजस्थान का एकीकरण

राजस्थान का एकीकरण

  • सर्वप्रथम प्रयास: राजस्थान के समूहीकरण (एकीकरण) की पहल सबसे पहले 1939 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो द्वारा की गई थी।
  • ब्रिटिश सत्ता में परिवर्तन: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन में राजनीतिक बदलाव हुए। विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill) की कंजर्वेटिव पार्टी के स्थान पर क्लीमेंट एटली (Clement Attlee) के नेतृत्व वाली मजदूर पार्टी (लेबर पार्टी) चुनाव जीतकर सत्ता में आई।
  • स्वतंत्रता की घोषणा: ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी, 1947 को संसद में एक महत्वपूर्ण घोषणा की। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन जून 1948 तक भारत को पूरी तरह से सत्ता सौंपकर आजाद कर देगा।
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आजादी के समय नेतृत्व:
  • जब भारत को आजादी मिली, तब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली थे, जो लेबर पार्टी से थे।
  • भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) थे, जिन्हें सत्ता हस्तांतरण का कार्य सौंपा गया था।
25 जून, 1947 ई. को भारत की अंतरिम सरकार ने निर्णय लिया कि एक नऐ रियासती विभाग का गठन किया जाऐं परिणामस्वरूप-

रियासती विभाग

  • स्थापना :- 5 जुलाई, 1947 ई.
  • मुख्यालय :- श्रीनगर जम्मू कश्मीर
  • अध्यक्ष :- सरदार वल्लभ भाई पटेल
  • सचिव :- वी.पी. मेनन
नरेन्द्र मण्डल सम्मेलन (दिल्ली) में 25 जुलाई, 1947 ई. को लार्ड माउण्टबेटन ने देशी राज्यों के विलय के लिए 2 पत्र तैयार करवाएँ।
  1. इंस्ट्रूमेण्ट ऑफ एक्सेशन - इस पत्र पर हस्ताक्षर करकर कोई भी राजा भारतीय संघ में शामिल हो सकता है व अपना आधिपत्य केन्द्र सरकार को सौंप सकता है।
  2. स्टैण्डस्टिल एग्रीमेन्ट - यह एक प्रकार से यथा स्थिति (शर्त) के लिए सहमति पत्र था।

नोट
सरदार वल्लभ भाई पटेल - सरदार की उपाधि बारदोली गुजरात की महिलाओं द्वारा प्रदान की गई। इन्हें भारत का लौह पुरुष, भारत का बिस्मार्क कहते हैं। भारत में सबसे ऊँची प्रतिमा (182 मी.) वल्लभ केवडिया गुजरात में नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। जिसे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी कहते हैं। जिसके शिल्पकार राम वी. सुथार है। एकता दिवस 31 अक्टूबर को मनाया जाता है।
  • भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम 1947 ई. की धारा 8 में रियासती विभाग के अनुसार वही रियासतें स्वतन्त्र रहेगी जिनकी जनसंख्या 10 लाख व वार्षिक आय एक करोड़ रूपये हों।
  • इस मापदंड में राजस्थान की 4 रियासतें आयीः- जोधपुर, जयपुर, बीकानेर, उदयपुर।
  • भारत में कुल 565 रियासतें थी। 15 अगस्त, 1947 ई. को जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब कश्मीर, हैदराबाद एवं जूनागढ़ के अतिरिक्त देश में 550 से अधिक रियासतें 15 अगस्त से पूर्व ही भारतीय संघ में शामिल हो गयीं।

भारत में इन तीन रियासतों में समस्याएँ आयी
  1. कश्मीर:- यहाँ विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाये गये।
  2. हैदराबाद:- यहाँ सैनिक कार्यवाही की गई।
  3. जूनागढ़ (गुजरात):- यहाँ जनमत करवाया गया है।
  • भारत की सबसे बड़ी रियासत हैदराबाद थी।
  • भारत की सबसे छोटी रियासत बिलावरी (मध्यप्रदेश) थी।
  • लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से देश छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटने से बच गया।

राजस्थान एकीकरण से पूर्व राजाओं के प्रयास

रियासतों के राजाओं ने स्थिति का आकलन कर अपेक्षित प्रयास प्रारम्भ किये।

1. उदयपुर के महाराणा की पहल- उदयपुर के महाराणा भूपालसिंह ने राजस्थान का एक संघ बनाने का प्रयास किया। इसके लिए महाराणा ने 25 और 26 जून को राजस्थान, गुजरात तथा मालवा के राजाओं का एक सम्मेलन उदयपुर में बुलाया। इसमें 22 राजाओं ने भाग लिया। इस सम्मेलन में महाराणा ने कहा, "हम सब मिलकर एक 'राजस्थान यूनियन' का निर्माण करें।" राजाओं ने महाराणा की योजना पर विचार करने का आश्वासन दिया। महाराणा ने अपनी योजना को क्रियान्वित करने हेतु संविधानवेत्ता श्री के. एम. मुंशी को अपना संवैधानिक सलाहकार बनाया। श्री मुंशी के कहने पर महाराणा ने सभी राजाओं का 23 मई, 1947 ई. को उदयपुर में दुबारा सम्मेलन बुलाया। सम्मेलन में प्रस्तावित 'राजस्थान यूनियन' का विधान तैयार करने हेतु एक समिति 'कौंसिल ऑफ एक्शन' का गठन किया गया, परन्तु राजाओं में परस्पर वैचारिक मतभेद होने, तथा प्रजामण्डल के नेताओं के विरोध के कारण महाराणा के प्रयास असफल रहे। महाराणा नेतृत्व में संघ के निर्माण की योजना के. एम. मुन्शी के उदयपुर से चले जाने के साथ ही समाप्त हो गई।

2. जयपुर के महाराजा का प्रयास- जयपुर के महाराजा मानसिंह द्धितीय की अनुमति से उनके दीवान सर वी.टी. कृष्णामाचारी ने राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन बुलवाया। इस सम्मेलन में एक ऐसा संघ बनाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश की जो रियासते अपना पृथक् अस्तित्व रखने की क्षमता नहीं रखती, वे पड़ोस की बड़ी रियासतों में मिल जाएँ, परन्तु यह सम्मेलन भी असफल रहा।

3. अन्य प्रयास- कोटा के शासक महाराव भीमसिंह ने प्रयास किया कि कोटा, बूँदी एवं झालावाड़ को मिलाकर 'हाड़ौती संघ' बनाया जाए। इसी प्रकार डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मणसिंहजी ने डूंगरपुर, बाँसवाडा, कुशलगढ़ तथा प्रतापगढ़ रियासत को मिलाकर 'बागड़ संघ' बनाने का प्रयास किया। परन्तु ये दोनों प्रयास भी असफल रहे।
राजस्थान का एकीकरणः- एकीकरण से पूर्व राजस्थान में 19 रियासतें व 3 ठिकाने और 1 केन्द्रशासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा था।

3 ठिकाने
  1. नीमराणा (कोटपूतली बहरोड़):- यहाँ का सामन्त राव राजेन्द्र था. नीमराणा का प्रथम चरण में मिलाया गया। नीमराणा के शासक का विरोध नीमराणा ठिकाने के प्रमुख बिना उनकी मर्जी के उनके ठिकाने के मत्स्य संघ में विलय से नाराज थे। इनकी इच्छा थी कि इनकी रियासत को पंजाब के गुड़गाँव में सम्मिलित कर दिया जाये।
  2. कुशलगढ़ (बाँसवाड़ा):- यहाँ का सामन्त हरेन्द्र सिंह था, इसे दूसरे चरण में मिलाया गया कुशलगढ़ सबसे बडा ठिकाना था।
  3. लावा (टोंक):- इसे चौथे चरण में वृहद राजस्थान संघ में मिलाया गया। लावा सामन्त बंस प्रदीप सिंह था। यह सबसे छोटा ठिकाना था। 19 जुलाई, 1948 को लावा ठिकाने को केन्द्रीय सरकार के आदेश से जयपुर रियासत में शामिल कर लिया गया था।
  • एक C श्रेणी का अजमेर मेरवाड़ा केन्द्र शासित प्रदेश था। अजमेर-मेरवाड़ा की अलग से विधानसभा थी जिसे धारा सभा कहा जाता था। अजमेर-मेरवाडा विधानसभा में 30 सदस्य थे। इसके एकमात्र मुख्यमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय बने थे।
  • राजस्थान बी श्रेणी में आता था।
  • राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पूर्ण हुआ। 8 वर्ष 7 माह 14 दिन लगे।

राजस्थान एकीकरण के 7 चरण

  • मत्स्य संघ - 18 मार्च, 1948 ई.
  • पूर्व राजस्थान संघ - 25 मार्च, 1948 ई.
  • संयुक्त पूर्व राजस्थान संघ - 18 अप्रैल, 1948 ई.
  • वृहद राजस्थान संघ - 30 मार्च, 1949 ई.
  • संयुक्त वृहद राजस्थान संघ/वृहत्तर राजस्थान संघ - 15 मई, 1949 ई.
  • राजस्थान संघ - 26 जनवरी, 1950 ई.
  • वर्तमान राज. संघ - 1 नवम्बर, 1956 ई.

प्रथम चरण

1. मत्स्य संघ (मत्स्य यूनियन) - 18 मार्च, 1948 ई.
भारत सरकार को खबर मिली की अलवर में दंगे भड़काने में एन.बी. खरें का हाथ है, अलवर का दीवान एन.बी. खरें हिन्दू महासभा का सदस्य था। 30 जनवरी, 1948 ई. को नाथूराम गोडसे ने गाँधीजी की हत्या कर दी।
भारत सरकार को सूचना मिली की इसमें अलवर का शासक तेजसिंह भी शामिल है। गोडसे एन.बी. खरें के गाँव से था गाँधीजी की हत्या से पहले गोडसे खरें से मिला था।
अलवर नरेश तथा खरे पर जाँच कमेटी बिठाई दोनों को निर्दोष साबित किया। के.एम. मुन्शी के परामर्श पर भारत सरकार ने इस संघ का नाम मत्स्य संघ रखा। 28 फरवरी, 1948 ई. को चारों अलवर भरतपुर धौलपुर करौली राज्यों के शासकों ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।

नोट
विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले राजपूताने के अन्तिम राजा धौलपुर नरेश उदयभान सिंह थे। (14 अगस्त, 1947 ई.)
  • मत्स्य संघ का उद्घाटन 17 मार्च, 1948 ई. को होना तय हुआ। परन्तु जैसे ही उद्घाटन दिवस की घोषण हुई भरतपुर महाराजा बृजेन्द्र सिंह के छोटे भाई मानसिंह व जाट नेता देशराज जाट ने इसका विरोध किया व जाट विरोधी बताकर जाटों का भड़काया। इसने जाटों को शस्त्रों सहित भरतपुर पहुँचने का आह्वान किया, मानसिंह को गिरफ्तार कर लिया व समझाकर भीड़ को शान्त किया।
नोट
इस कारण मत्स्य संघ का विधिवत उद्घाटन एन.बी. गाडगिल ने 18 मार्च, 1948 ई. को किया।
मत्स्य संघ में रियासतें अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली व एक ठिकाना नीमराणा को मिलाया गया। राजधानी अलवर को बनाया गया। धौलपुर के राजा उदयभान सिंह को राजप्रमुख एवं करौली के शासक गणेशपाल को उप-राजप्रमुख बनाया गया। अलवर प्रजामण्डल नेता शोभाराम को संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया। इस प्रकार एकीकरण का प्रथम चरण पूरा हुआ। मत्स्य संघ का क्षेत्रफल 7536 वर्ग मील (12000 वर्ग किलोमीटर) जनसंख्या 183000 थी। वार्षिक आय ₹184 लाख।
  • समाजवादी दल ने सरकार के विरूद्ध जन सभा करके भरतपुर, धौलपुर को मिलाकर अलग बृज प्रदेश बनाने की मांग रखी।
  • शोभाराम कुमावत अलवर के थे, मत्स्य संघ के विलय में युगलकिशोर चतुर्वेदी का भी विशेष योगदान था, इन्हें राजस्थान का नेहरु कहा जाता है। युगलकिशोर व गोपीलाल यादव भरतपुर से थे इन्हें उपप्रधानमंत्री बनाया गया।
  • मत्स्य संघ का उद्घाटन लोहागढ़ दुर्ग भरतपुर में हुआ।

मत्स्य संघ का मंत्रिमण्डल
  1. गोपीलाल यादव (धौलपुर)
  2. डॉ. मंगल सिंह (धौलपुर)
  3. चिंरजीलाल शर्मा (करौली)
  4. मास्टर भोलानाथ अलवर

द्वितीय चरण

2. पूर्व राजस्थान संघ/ राजस्थान संघ (राजस्थान यूनियन) - 25 मार्च, 1948 ई.
एकीकरण में राजस्थान नाम सर्वप्रथम दूसरे चरण में आया। 3 मार्च, 1948 ई. को कोटा, डूंगरपुर तथा झालावाड़ के शासकों ने परस्पर विचार-विमर्श किया और भारत सरकार से एक संघ बनाने के लिए अनुरोध किया।
सरकार से सम्बन्धित राज्यों के नेताओं को बुलाकर उनके सामने दो विकल्प रखे-
इन रियासतों को मालवा में मिलाकर एक संघ बनाया जाए।
इन्हें आपस में मिलाकर 'पूर्व राजस्थान संघ' का निर्माण किया जाए। अन्त पूर्व राजस्थान संघ के विचार को स्वीकार कर लिया गया।

नोट
बाँसवाड़ा, बूँदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, कोटा, टोंक, प्रतापगढ़ एवं शाहपुरा रियासतों को मिलाकर संघ बनाया गया। पूर्व राजस्थान संघ की राजधानी कोटा को बनाया गया। राजप्रमुख कोटा के भीम सिंह को बनाया गया, उपराजप्रमुख बूँदी के बहादुरसिंह को बनाया गया। कनिष्ठ उपराजप्रमुख डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मणसिंह को बनाया गया। उ‌द्घाटन एन.बी गॉडगिल ने किया। उद्घाटन कोटा दुर्ग में हुआ। इस प्रकार एकीकरण को द्वितीय चरण पूरा हुआ। पूर्व राजस्थान संघ का क्षेत्रफल 16807 वर्ग किलोमीटर व इस संघ की जनसंख्या 23.05 लाख व पूर्व संघ की वार्षिक आय ₹2 करोड़ थी।.

  • सरकार ने उदयपुर रियासत को भी इनमें मिलाने का प्रस्ताव रखा, परन्तु उदयपुर के महाराणा ने इन सभी रियासतों का विलय उदयपुर राज्य में चाहते थे, जिसे भारत सरकार ने स्वीकार नहीं किया। अतः यह निश्चिय किया कि फिलहाल उदयपुर को छोड़ दिया जाए और दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के राज्यों को मिलाकर 'पूर्व राजस्थान संघ' का निर्माण कर दिया जाए।
  • कोटा का भीमसिंह हाड़ौती संघ बनाना चाहता था।
  • बाँसवाड़ा के डॉ. चन्द्रवीरसिंह ने एकीकरण पर हस्ताक्षर करते समय कहा था- "मैं अपने मृत्यु प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर करता हूँ"

एकीकरण का तृतीय चरण

3. संयुक्त पूर्व राजस्थान संघ (यूनाईटेड स्टेटस ऑफ राजस्थान - 18 अप्रैल, 1948 ई.)
मेवाड़ रियासत अपना स्वतंत्र अस्तित्व रख सकती थी, फिर भी भारत सरकार ने मेवाड़ रियासत को संघ में मिलने के लिए कहा, तब मेवाड़ महाराणा व उनके प्रधानमंत्री सर रामामूर्ति ने इसे अस्वीकार कर दिया।
मेवाड़ महाराणा ने कहा- "मेवाड़ का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है इसे भारत में विलय करके मानचित्र पर अपना अस्तित्व समाप्त नहीं करना चाहती' इसके विरोध में माणिक्यलाल वर्मा ने दिल्ली से एक भाषण में कहा "20 लाख जनता के भाग्य का फैसला अकेले महाराणा व उनके प्रधानमंत्री रामामूर्ति नहीं कर सकते।"

सयुक्त पूर्व राजस्थान संघ में मिलने से पूर्व महाराणा की शर्ते:-
  1. बीस लाख रूपये प्री पेन्शन दी जाए:- नियम ये बनाया गया था कि किसी भी शासक को ₹10 लाख से ज्यादा पेन्शन नहीं दी जाएगी, तब इसका समाधान ये निकाला गया की महाराणा को ₹10 लाख प्री पेन्शन दी जाएगी, ₹5 लाख रुपया राजप्रमुख पद का भत्ता दिया जाएगा व ₹5 लाख रुपया धार्मिक कार्य के खर्च के लिए दिये जाएँगे।
  2. राजप्रमुख पद वंशानुगत किया जाएः- महाराणा को राजप्रमुख पद वंशानुगत न करके आजीवन कर दिया।
  3. राजधानी:- उदयपुर को संयुक्त राजस्थान की राजधानी बनायी जाए।

नोट
11 अप्रैल, 1948 को महाराणा भूपालसिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया।
पूर्व राजस्थान संघ में उदयपुर रियासत मिलते ही संयुक्तपूर्व राजस्थान संघ कहलाया। अब इस चरण में 10 रियासते हो गई- बाँसवाड़ा, बूँदी, किशनगढ़, कोटा, झालावाड़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, शाहपुरा, टोंक, उदयपुर।
संयुक्त पूर्व राजस्थान संघ की राजधानी उदयपुर को, राजप्रमुख उदयपुर के महाराणा भूपालसिंह को बनाया गया। उपराजप्रमुख कोटा के भीमसिंह को बनाया गया।
कनिष्ठ उप राजप्रमुख डूंगरपुर के लक्ष्मणसिंह, बूँदी के बहादुरसिंह को बनाया गया। प्रधानमंत्री कोल्यारी गाँव (उदयपुर) के माणिक्यलाल वर्मा को बनाया गया। पूर्व राजस्थान संघ का उद्घाटन प. जवाहरलाल नेहरु ने किया उद्घाटन कोटा दुर्ग में हुआ। संयुक्त पूर्व राजस्थान संघ का क्षेत्रफल 29777 वर्ग मील व जनसंख्या लगभग 42 लाख 60 हजार व इस संघ की वार्षिक आय लगभग ₹3.16 करोड़ थी।

नेहरू के परामर्श पर माणिक्यलाल वर्मा ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। वर्मा जी के मंत्रिमण्डल में प्रजामण्डल के गोकुललाल असावा, प्रेमनारायण माथुर, भूरेलाल बया, भोगीलाल पाण्ड्या, अभिन्न हरि एवं बृजसुन्दर शर्मा मोहनलाल सुखाड़िया आदि कार्यकर्ताओं को लिया गया। इसके साथ ही एकीकरण का तीसरा चरण सम्पन्न हुआ।
हनुमंत सिंह के पाकिस्तान के मिलने कि बात पर महाराणा भोपाल सिंह ने कहा था भारतीय महाद्वीप में मेवाड़ का स्थान क्या होगा यह मेरे पूर्वज निर्णय करके चले गये अगर मेरे पूर्वज गद्दारी करते तो मुझे भी हैदराबाद जैसी बड़ी रियासत मिलती न तो मेरे पूर्वजों ने ऐसा किया और न ही में ऐसा करूँगा।

संयुक्त पूर्वी राज. संघ मंत्रिमण्डल में निम्न व्यक्ति
  • गोकुल लाल असावा (शाहपुरा)
  • भोगीलाल पाण्ड्या (डूंगरपुर)
  • अभिन्न हरि (कोटा)
  • बृजसुन्दर शर्मा (बूँदी)
  • भूरेलाल बयां (उदयपुर)
  • प्रेमनारायण माथुर (उदयपुर)
  • मोहनलाल सुखाड़िया (उदयपुर)

चतुर्थ चरण

4. वृहद राजस्थान संघ (ग्रेटर राजस्थान) - 30 मार्च, 1949 ई.
संयुक्त राजस्थान के पुनर्गठन के बाद राजस्थान के केवल चार राज्यों-जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, तथा जैसलमेर आदि का मिलना शेष रह गया था। जैसलमेर के अतिरिक्त तीन राज्यों के शासक अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखना चाहते थे।
11 जनवरी, 1949 ई. में वी. पी. मेनन ने जयपुर के महाराजा से बातचीत की। उन्होंने कुछ शर्तों के साथ संयुक्त राजस्थान में विलय की बात को मान लिया। इसी दिन जोधपुर तथा बीकानेर रियासत के शासकों को भी तार भेजे गये और उन्होंने संयुक्त राजस्थान में विलय के प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 14 जनवरी, 1949 ई. को उदयपुर में एक सार्वजनिक सभा को सम्बोधित करते हुए सरदार पटेल ने वृहत्तर राजस्थान के निर्माण की घोषणा की।
तीसरा प्रश्न जोधपुर, जयपुर एवं बीकानेर के राजाओं का प्रीवीपर्स निर्धारित करना था। अतः यह निश्चित किया गया कि ₹18 लाख जयपुर के महाराजा को ₹17.50 लाख जोधपुर के महाराजा एवं बीकानेर के शासक को ₹17 लाख प्रतिवर्ष दिया जायेगा। अन्त में यह निश्चय किया गया कि वृहत्तर राजस्थान का निर्माण कर इसका विधिवत् उद्घाटन सरदार पटेल के हाथों से करवाया जाए।
30 मार्च, 1949 ई. को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वृहद राजस्थान संघ का उद्घाटन किया। इसी दिन राजस्थान दिवस मनाया जाता है। जयपुर के महाराजा मानसिंह द्वितीय को राजप्रमुख बना दिया गया। परन्तु उदयपुर के महाराणा ने इसका विरोध किया अतः उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख से भी अधिक सम्मानित पद महाराज प्रमुख बनाया गया।
एकीकरण में एकमात्र महाराज प्रमुख यही बने इनको मिलने वाले भत्ते उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जायेंगे। उदयपुर के महाराणा ने भी इस निर्णय को स्वीकार कर लिया। दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रश्न राजधानी बनाने को लेकर था अर्थात् किस नगर को राजस्थान की राजधानी बनाई जाए, इस समस्या पर काफी मतभेद रहा। जयपुर एवं जोधपुर को मध्यनजर रखते हुए सत्यनारायण कमेटी के कहने पर जयपुर को राजस्थान की राजधानी बनायी गई। बी.आर. पटेल की अध्यक्षता में गठित इस कमेटी में पेयजल आपूर्ति के आधार पर जयपुर को राजधानी घोषित किया।
इस कमेटी के अन्य सदस्य टी.सी. पुरी व श्री एच.पी. सिन्हा थे। वृहद राजस्थान का नामकरण मनोहर लोहिया के द्वारा समाजवादी दल का गठन करके रखा गया था। 7 अप्रैल, 1949 ई. को रामनवमी के दिन पं. हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में नये मंत्रिमण्डल ने शासन सम्भाल लिया।

नोट
7 अगस्त, 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले बीकानेर के साईल सिंह राजपुताने के पहले राजा थे।
  • जोधपुर का शासक हनुमंत सिंह को वी.पी. मेनन ने वाइस राय भवन में माउंटबेटन के पास बुलाया, जहाँ उनसे विलय पत्र पर हस्ताक्षर कराये गये। हनुमंत सिंह ने वी.पी. मेनन पर पेन, पिस्टल तानकर कहा था "में तुम्हारे दबाब में नहीं आने वाला" तब वहा माउंट बेटन वहा आ गये और पिस्टल ले लिया यह पिस्टल वर्तमान में इंग्लैंड के एक क्लब में रखा है।

वृहद राजस्थान संघ मंत्रिमण्डल में निम्न व्यक्ति
  • सिद्धराज ढडढा (जयपुर)
  • वेदपाल त्यागी (कोटा)
  • रघुवर दयाल गोयल (बीकानेर)
  • हनुमंत सिंह (जोधपुर)
  • प्रेमनारायण माथुर (उदयपुर)
  • भूरेलाल बयां (उदयपुर)
  • फूलचंद बाफना (जोधपुर)
  • नृसिंह कच्छवाहा (जोधपुर)

विभागों का बँटवारा
  • जोधपुर - राजस्थान उच्च न्यायालय
  • बीकानेर - शिक्षा विभाग,
  • उदयपुर - खनिज विभाग,
  • भरतपुर - कृषि विभाग,
  • कोटा - वन विभाग,
  • अजमेर - राजस्व विभाग

पंचम चरण

5. संयुक्त वृहद राजस्थान संघ/वृहत्तर राजस्थान संघ (यूनाइटेड स्टेट ऑफ ग्रेटर राजस्थान) 15 मई, 1949 ई.
  • अब भारत सरकार ने मत्स्य संघ के बारे में निर्णय करने के लिए 13 फरवरी, 1949 ई. को मत्स्य संघ के प्रतिनिधियों से विचार विमर्श किया। इसमें धौलपुर के अतिरिक्त शेष सभी राज्यों ने वृहत्तर राजस्थान में मिलना स्वीकार कर लिया।
  • धौलपुर के राजा ने कहा कि "वहाँ की जनता यू.पी. में मिलना चाहती है।" अतः भारत सरकार ने 4 अप्रैल, 1949 को शंकरदेवराय की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी। इस समिति के सदस्य आर. के सिद्धवा, प्रभुदयाल और हिम्मत सिंहका थे। इन्होंने जनमत से लोगों की राय जानी। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भरतपुर तथा धौलपुर दोनों ही राज्यों की जनता भारी बहुमत से राजस्थान में मिलना चाहती है। भारत सरकार ने कमेटी की सिफारिश के आधार पर 1 मई, 1949 ई. को मत्स्य संघ का राजस्थान में विलीनीकरण की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी।
  • 10 मई को दिल्ली में एक सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें मत्स्य संघ एवं वृहत्तर राजस्थान के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में मत्स्य संघ को राजस्थान में मिलाने का निर्णय लिया गया। 15 मई, 1949 ई. को मत्स्य संघ का राजस्थान में विलय कर दिया गया।
  • अलवर के मास्टर भोलानाथ, धौलपुर के मंगलसिंह, करौली के चिरंजीलाल शर्मा को मंत्री बनाया गया। ध्यान रहे मत्स्य संघ की राजधानी अलवर व मत्स्य प्रदेश की राजधानी विराटनगर थी।
  • विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते समय धौलपुर के महाराजा ने माउण्टबेटन से कहा- "आपके राजा के पूर्वजों और मेरे पूर्वजों के मध्य 1765 ई. से चले आ रहे संबंधों का अब अन्त हो गया" मत्स्य संघ के विलय में एम.एस जैन समिति का भी विशेष योगदान है।

छठा चरण

राजस्थान संघ (यूनाइटेड राजस्थान) 26 जनवरी, 1950
इस चरण में संयुक्त वृहद् राजस्थान संघ में सिरोही मिलाया गया, आबू व देलवाड़ा को छोडकर। संविधान लागू हो गया, प्रधानमंत्री के स्थान पर मुख्यमंत्री पद आ गया। प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री जी को बनाया गया।

सिरोही की समस्या
  • सिरोही का पर्यटक की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल होने के कारण गुजरात के नेता इसे गुजरात में मिलाना चाहते थे। जनता के विरोध के बाद भी रियासती विभाग ने नवम्बर, 1947 ई. में सिरोही को राजपूताना एजेन्सी से हटाकर गुजरात एजेन्सी के तहत कर दिया व मुम्बई प्रांत में मिला दिया। सिरोही की जनता मुम्बई में न मिलकर राजस्थान में मिलना चाहती थी। सिरोही के मामले पर हीरालाल शास्त्री ने सरदार पटेल को पत्र लिखा व कहा 'उदयपुर राजस्थान में मिला प्रसन्नता हुई अब सिरोही का भी राजस्थान में विलय होना चाहिए, सिरोही का अर्थ है गोकुल भाई भट्ट। गोकुल भाई भट्ट के बिना हम राजस्थान नहीं चला सकते।"
  • 18 अप्रेल को पूर्व राजस्थान संघ के उद्घाटन के समय राजस्थान के कार्यकर्ता नेहरु जी से मिले व सिरोही से सम्बधित जनता की भावनाओं को बताया। नेहरु जी ने सरदार पटेल को एक पत्र लिखा व कहा राजस्थान की जनता का जिस सवाल पर सबसे अधिक रोष है, वह सिरोही का है, मुझे बार बार कहा गया है सिरोही 300 वर्षों से भाषा व अन्य प्रकार से राजस्थान का हिस्सा रहा है, इसे राजस्थान में मिलना चाहिए जनता की राय माननी चाहिए।"
  • 22 अप्रैल, 1948 ई. नेहरु जी पत्र के जवाब में सरदार पटेल ने पत्र में लिखा "सिरोही से सम्बंधित सभी मुद्दों पर विचार करने के बाद में इस मत पर पहुँचा हूँ कि सिरोही गुजरात में मिलना चाहिए, राजस्थान वालों का सिरोही नहीं चाहिए, उन्हें गोकुल भाई भट्ट चाहिए, मैं गोकुल भाई भट्ट का हाथल गाँव राजस्थान में मिला देता हूँ।"
  • सरदार पटेल ने जनवरी, 1950 ई. में आबू व देलवाड़ा पर्यटक स्थलों को छोड़कर शेष सिरोही व हाथल गाँव राजस्थान में मिला दिया। इस निर्णय के बाद सिरोही में आन्दोलन हुए। इस आन्दोलन में गोकुलभाई भट्ट व बलवन्तसिंह मेहता ने भूमिका निभाई। ये आन्दोलन तब समाप्त हुआ जब भारत सरकार ने आश्वासन दिया कि हम निर्णय पर पुर्नविचार करेंगे। 1 नवम्बर, 1956 ई. को राज्य पुनर्गठन आयोग ने शेष सिरोही को राजस्थान में मिला दिया।

सातवाँ चरण

राजस्थान संघ (री-ओर्गेनाइज्ड राजस्थान) 1 नवम्बर, 1956 ई.
22 दिसम्बर, 1953 ई. को फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया। जस्टिस 'फजल अली' को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। इसके सदस्य पण्डित हृदयनाथ कुंजरू व सरदार पिन्नकर को चुना गया। इस आयोग ने अपनी रिर्पोट सितम्बर, 1955 ई. में भारत सरकार को सौंप दी। इस रिर्पोट के आधार पर संसद ने नवम्बर, 1956 ई. में 'राज्य पुनर्गठन अधिनियम' बनाया। इस अधिनियम के द्वारा अ, ब, स, व द राज्यों के बीच अन्तर को समाप्त कर दिया अब भारत को सिर्फ दो श्रेणी के राज्यों में रखा गया। प्रथम राज्य जिनकी संख्या 14 थी तथा द्वितीय 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए। इसकी सिफारिश पर 1 नवम्बर, 1956 ई. को अजमेर मेरवाड़ा सहित शेष सिरोही (आबू, देलवाडा) को राजस्थान संघ में मिला दिया गया। इसी दिन मध्यप्रदेश के मन्दसौर जिले के मानपुरा तहसील के सुनेलटप्पा को झालावाड़ में मिलाया गया व झालावाड़ के सिरौज को मध्यप्रदेश में मिलाया गया।
1 नवम्बर को राजस्थान अ श्रेणी में शामिल हो गया। राजप्रमुख के स्थान पर राज्यपाल पद बना दिया गया। राजस्थान के प्रथम राज्यपाल गुरूमुख निहाल सिंह थे। इस समय मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया थे, इनका सबसे लम्बा कार्यकाल है व इन्हें आधुनिक राजस्थान के निर्माता कहा जाता है।
सत्यनारायण कमेटी के कहने पर 7 नवम्बर, 1949 ई. को जयपुर को राजधानी बनायी गयी।

रियासते
रियासतों को तोप सलामी का अधिकार था। ठिकाणों को नहीं। लेकिन राजस्थान में शाहपुरा व किशनगढ़ रियासत को अपवाद के रूप में माना जाता है। जिन्हें तोप सलामी का अधिकार नहीं था। मेवाड़ महाराणा को 19 तोपों की सलामी, बीकानेर राजा को 17 तोपों की सलामी मिलती थी। भारत में केवल तीन रियासतों को कश्मीर, पटियाला, बीकानेर को तोप रखने का अधिकार था।

एकीकरण से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • एकीकरण के समय सबसे बड़ी रियासत - मारवाड़ (1671 वर्ग में)
  • एकीकरण के समय सबसे छोटी रियासत - शाहपुरा (भीलवाड़ा 1450 वर्ग में)
  • एकीकरण के समय राजस्थान की सबसे प्राचीन रियासत मेवाड़ थी, जिसकी स्थापना 566 ई. में गुहादित्य ने की थी।
  • राजस्थान की सबसे नवीन रियासत 1838 ई. में झालावाड़ बनी थी।
  • झालावाड़ एकमात्र रियासत थी, जो अंग्रेजो ने बनायी थी।
  • झालावाड़ को 1818 ई. में कोटा से अलग कर के बनाया था।
  • झालावाड़ की राजधानी पाटन रखी गई थी।
  • एकीकरण के समय सर्वाधिक जनसंख्या वाली रियासत - जयपुर
  • एकीकरण के समय कम जनसंख्या वाली रियासत शाहपुरा
  • 1941 ई. की जनगणना के अनुसार जयपुर की जनसंख्या 30 लाख व शाहपुरा की 16 हजार थी।
  • एकीकरण के समय राजस्थान की जाट रियासत - भरतपुर व धौलपुर।
  • एकीकरण के समय राजस्थान की मुस्लिम रियासत - टोंक
  • जनतांत्रिक व पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना शाहपुरा रियासत ने की थी व जैसलमेर रियासत ने पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना नहीं की थी।
  • जैसलमेर राजस्थान की एक मात्र रियासत थी जिसने उत्तराधिकारी शुल्क नहीं दिया था। बीकानेर, जैसलमेर व किशनगढ़ रियासत मराठो को चौथ नहीं देते थे।
  • जयपुर व जैसलमेर रियासत ने 1942 ई. के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग नहीं लिया था।
  • डाक टिकट व पोस्ट कार्ड जारी करने वाली रियासत - जयपुर
  • वन्य जीव अधिनियम पारित करने वाली रियासत - अलवर
  • वन्य जीव अधिनियम कानून बनाने वाली रियासत - जोधपुर
  • शिकार एक्ट पर रोक लगाने वाली रियासत - टोंक
  • शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने वाली रियासत - डूंगरपुर
अलवर रियासत ने प्रथम स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया था। एकीकरण के समय अलवर, भरतपुर, धौलपुर, डूंगरपुर, टोंक व जोधपुर रियासतें राजस्थान में मिलना नहीं चाहती थी। इनमें से टोंक व जोधपुर रियासत पाकिस्तान में मिलना चाहती थी। एकीकरण के समय सर्वाधिक धरोहर राशि ₹4 करोड़ 87 लाख बीकानेर ने जमा करवायी।

एकीकरण या आजादी के समय रियासतो के शासक

रियासत शासक
1. मेवाड़/उदयपुर महाराणा भूपाल सिंह
2. मारवाड़/जोधपुर महाराजा हनुमंत सिंह
3. जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय
4. बीकानेर महाराज सार्दुलसिंह
5. अलवर महाराजा तेजसिंह
6. धौलपुर महाराजा उदयभान सिंह
7. भरतपुर महाराव बृजेन्द्रसिंह द्वितीय
8. कोटा महाराव भीमसिंह द्वितीय
9. बूँदी महाराव बहादुरसिंह
10. झालावाड़ राजराणा हरिश्चन्द्र
11. बाँसवाड़ा महारावल चन्द्रभान सिंह (चन्द्रवीर सिंह)
12. डुंगरपुर महारावल लक्ष्मणसिंह
13. किशनगढ़ महाराजा सुमेर सिंह
14. शाहपुरा महाराजा सुदर्शनदेव
15. सिरोही महाराजा अभय सिंह
16. जैसलमेर महारावल जवाहर सिंह
17. प्रतापगढ़ महारावल रामसिंह
18. टोंक अजीज उद्दौला
19. करौली महाराजा गणेशपाल

अंग्रेजों ने भारत को तीन श्रेणियों में बाँट रखा था
  1. 'ए' श्रेणी- इनमें वे क्षेत्र थे जिन पर अंग्रेजो का सीधा अधिकार था जैसे बम्बई, मद्रास, 'ए' श्रेणी के प्रमुख को गवर्नर कहते थे।
  2. 'बी' श्रेणी- वे क्षेत्र जो रियासतों में बँटे थे जैसे राजस्थान, मध्यप्रदेश/मध्यभारत। 'बी' श्रेणी के प्रमुख को राजप्रमुख कहते थे।
  3. 'सी' श्रेणी- वे क्षेत्र जिन पर अंग्रेजो का अधिकारी चीफ कमिश्नर बैठता था। जैसे- दिल्ली, अजमेर व मेरवाड़ा।

एकीकरण के समय राजस्थान में चार राजनैतिक एजेंसियाँ थीं
  1. राजस्थान रापूताना स्टेट एजेन्सी- कोटा।
  2. पश्चिमी राजपूताना स्टेट एजेन्सी- जोधपुर।
  3. दक्षिण/मेवाड़ राजपूताना स्टेट एजेन्सी- उदयपुर।
  4. जयपुर राजपूताना स्टेट एजेन्सी- जयपुर
शासको को मिलने वाली प्रिवीपर्स को पेंशन चौथी पंचवर्षीय योजना में समाप्त कर दी थी।

1949 में संविधान निर्मात्री सभा में राजस्थान के मनोनीत सदस्य
क्र.सं. नाम रियासत
1. मुकुट बिहारी भार्गव अजमेर-मेरवाड़ा
2. माणिक्य लाल वर्मा उदयपुर
3. जयनारायण व्यास जोधपुर
4. बलवंत सिंह मेहता उदयपुर
5. रामचंद्र उपाध्याय अलवर
6. दलेल सिंह कोटा
7. गोकुल लाल असावा शाहपुरा (भीलवाड़ा)
8. जसवंत सिंह बीकानेर
9. राज बहादुर भरतपुर
10. हीरालाल शास्त्री जयपुर
11. सरदार सिंह खेतड़ी

संविधान सभा के सदस्य, जो राजस्थान की रियासतों में प्रशासनिक अधिकारी
क्र.सं. नाम सदस्य रियासत
1. सर वी.टी. कृष्णामाचरी जयपुर
2. सी.एस. वेंकटाचारी जोधपुर
3. सरदार के. एम. पन्निकर बीकानेर
4. सर टी. विजयराघवाचार्या उदयपुर

रियासतों के नाम, संस्थापक, वंश, एकीकरण के समय रियासतों के शासक
  1. भरतपुर: जाटवंश, संस्थापक: चूड़ामन जाट, EIC से संधि: 1803 ई., 1857 के समय शासक: महाराजा जसवंतसिंह, एकीकरण/आजादी: महाराजा बृजेन्द्र सिंह
  2. अलवर: कच्छवाहा (सूर्यवंशी), संस्थापक: प्रतापसिंह, EIC से संधि: 1803 ई., 1857 के समय शासक: महाराजा बन्नेसिंह, एकीकरण/आजादी: महाराजा तेजसिंह
  3. उदयपुर (गुहिल): गुहिल/सिसोदिया (सूर्यवंशी), संस्थापक: उदयसिंह, EIC से संधि: 1818 ई., 1857 के समय शासक: स्वरूप सिंह, एकीकरण/आजादी: महाराणा भोपालसिंह
  4. जोधपुर (मारवाड़): राठौड़ (सूर्यवंशी), संस्थापक: राव जोधा, EIC से संधि: 1818 ई., 1857 के समय शासक: महाराजा तख्तसिंह, एकीकरण/आजादी: महाराजा हनुवंत सिंह
  5. बीकानेर: राठौड़ (सूर्यवंशी), संस्थापक: राव बीका, EIC से संधि: 1818 ई., 1857 के समय शासक: महाराजा सरदारसिंह, एकीकरण/आजादी: महाराजा सार्दुल सिंह
  6. जयपुर: कच्छवाहा (सूर्यवंशी), संस्थापक: सवाई जयसिंह द्वितीय, EIC से संधि: 1818 ई., 1857 के समय शासक: महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय, एकीकरण/आजादी: सवाई मानसिंह द्वितीय
  7. कोटा (हाड़ौती): हाड़ा चौहान (सूर्यवंशी), संस्थापक: माधोसिंह, EIC से संधि: 1817 ई., 1857 के समय शासक: महाराव रामसिंह द्वितीय, एकीकरण/आजादी: महाराव भीमसिंह
  8. बूँदी (हाड़ौती): हाड़ा चौहान (सूर्यवंशी), संस्थापक: राव देवा, EIC से संधि: 1818 ई., 1857 के समय शासक: महाराव रामसिंह, एकीकरण/आजादी: महाराव बहादुरसिंह
  9. जैसलमेर: भाटी (चंद्रवंशी), संस्थापक: जैसलभाटी, EIC से संधि: 1819 ई., 1857 के समय शासक: महारावल रणजीतसिंह, एकीकरण/आजादी: रघुनाथसिंह
  10. करौली: यदुवंशी (चंद्रवंशी), संस्थापक: विजयपाल, EIC से संधि: 1817 ई., 1857 के समय शासक: महाराजा मदनपालसिंह, एकीकरण/आजादी: महाराज गणेशपाल देव
  11. धौलपुर: जाटवंश, संस्थापक: धवलदेव, EIC से संधि: -, 1857 के समय शासक: महाराजा भगवन्तसिंह, एकीकरण/आजादी: महाराणा उदयभान सिंह
  12. सिरोही: चौहान वंश (सूर्यवंशी), संस्थापक: लूम्बा, EIC से संधि: 1823 ई., 1857 के समय शासक: महाराजा शिवसिंह, एकीकरण/आजादी: अभयसिंह
  13. किशनगढ़: राठौड़ वंश (सूर्यवंशी), संस्थापक: किशनसिंह, EIC से संधि: 1823 ई., 1857 के समय शासक: -, एकीकरण/आजादी: महाराजा सुमेरसिंह
  14. झालावाड: चौहान वंश (सूर्यवंशी), संस्थापक: झाला मदन सिंह, EIC से संधि: 1839 ई., 1857 के समय शासक: पृथ्वीसिंह, एकीकरण/आजादी: झाला हरिश्चन्द्र
  15. टोंक: पिण्डारी वंश (मुगलवंशी), संस्थापक: अमीर खाँ पिण्डारी, EIC से संधि: 1817 ई., 1857 के समय शासक: नवाब वजीरूद्दौला, एकीकरण/आजादी: अजीज उद्दौला
  16. शाहपुरा: सिसोदिया (सूर्यवंशी), संस्थापक: सुजानसिंह, EIC से संधि: -, 1857 के समय शासक: -, एकीकरण/आजादी: सुदर्शन देव
  17. प्रतापगढ़: सिसोदिया (सूर्यवंशी) सिंह (वंश), संस्थापक: महारावल प्रताप, EIC से संधि: 1818 ई., 1857 के समय शासक: दलपत सिंह, एकीकरण/आजादी: अम्बिका प्रतापसिंह
  18. बाँसवाड़ा (सूर्यवंशी): सिसोदिया वंश, संस्थापक: जगमाल, EIC से संधि: 1818 ई., 1857 के समय शासक: लक्ष्मणसिंह, एकीकरण/आजादी: महारावल चन्द्रवीर सिंह
  19. डुंगरपुर (सूर्यवंशी): सिसोदिया वंश, संस्थापक: पृथ्वीराज, EIC से संधि: 1818 ई., 1857 के समय शासक: उदयसिंह, एकीकरण/आजादी: महारावल लक्ष्मणसिंह

राजस्थान का एकीकरण:- एक दृष्टि

प्रथम चरण- मत्स्य संघ
  • दिनांक:- 18 मार्च, 1948
  • उद्घाटनकर्ता:- एन.वी. गाडगिल
  • सम्मिलित होने वाली रियासत व ठिकाना:- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतें और नीमराणा ठिकाना
  • राजधानी:- अलवर
  • संवैधानिक प्रमुख:- धौलपुर महाराजा उदयभानसिंह (राजप्रमुख)
  • प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री:- शोभाराम कुमावत (अलवर)
  • विशेष विवरण:- के.एम. मुंशी के सुझाव पर 'मत्स्य संघ' नाम

द्वितीय चरण- राजस्थान संघ
  • दिनांक:- 25 मार्च, 1948
  • उद्घाटनकर्ता:- एन.वी. गाडगिल
  • सम्मिलित होने वाली रियासत व ठिकाना:- कोटा, बूँदी, झालावाड़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा, किशनगढ़, शाहपुरा, टोंक तथा लावा व कुशलगढ़ ठिकाने
  • राजधानी:- कोटा
  • संवैधानिक प्रमुख:- कोटा महाराव भीमसिंह द्वितीय (राजप्रमुख)
  • प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री:- गोकुल लाल असावा (शाहपुरा)

तृतीय चरण- संयुक्त राजस्थान
  • दिनांक:- 18 अप्रैल, 1948
  • उद्घाटनकर्ता:- पं. जवाहरलाल नेहरू
  • सम्मिलित होने वाली रियासत व ठिकाना:- राजस्थान संघ + मेवाड़
  • राजधानी:- उदयपुर
  • संवैधानिक प्रमुख:- मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह (राजप्रमुख)
  • प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री:- माणिक्यलाल वर्मा (उदयपुर)

चतुर्थ चरण- वृहद् राजस्थान
  • दिनांक:- 30 मार्च, 1949
  • उद्घाटनकर्ता:- सरदार पटेल
  • सम्मिलित होने वाली रियासत व ठिकाना:- संयुक्त राजस्थान + जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर
  • राजधानी:- जयपुर
  • संवैधानिक प्रमुख:- जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह (राजप्रमुख), उदयपुर महाराणा भूपालसिंह (महाराजप्रमुख)
  • प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री:- हीरालाल शास्त्री (जयपुर)
  • विशेष विवरण:- अधिकांश राज्यों के विलय के कारण '30 मार्च' को 'राजस्थान दिवस' माना जाता है।

पंचम चरण- संयुक्त वृहद् राजस्थान
  • दिनांक:- 15 मई, 1949
  • सम्मिलित होने वाली रियासत व ठिकाना:- वृहद् राजस्थान + मत्स्य संघ
  • राजधानी:- जयपुर
  • प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री:- हीरालाल शास्त्री

षष्ठ चरण- सिरोही का विलय
  • दिनांक:- 26 जनवरी, 1950
  • सम्मिलित होने वाली रियासत व ठिकाना:- संयुक्त वृहद् राजस्थान में सिरोही (आबू व देलवाड़ा तहसील को छोड़कर) का विलय
  • राजधानी:- जयपुर
  • प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री:- हीरालाल शास्त्री
  • विशेष विवरण: आबू व देलवाड़ा तहसील गुजरात में मिला दी गई

सप्तम चरण- वर्तमान राजस्थान
  • दिनांक:- 1 नवम्बर, 1956
  • सम्मिलित होने वाली रियासत व ठिकाना:- आबू व देलवाड़ा तहसील, अजमेर-मेरवाड़ा प्रदेश एवं सुनेल टप्पा का राजस्थान में विलय
  • राजधानी:- जयपुर
  • संवैधानिक प्रमुख:- राज्यपाल गुरुमुख निहाल सिंह
  • प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री:- मोहनलाल सुखाड़िया
  • विशेष विवरण:- राज्य पुनर्गठन आयोग (अध्यक्ष-फजल अली) की सिफारिशों के आधार पर सम्मिलित।

महत्त्वपूर्ण तथ्य
  1. भारतीय संविधान के अनुसार राजस्थान को भारत के द्वितीय श्रेणी (B) राज्य में रखा गया है।
  2. संयुक्त राजस्थान जो राजस्थान संघ में मेवाड़ के विलय से अस्तित्व में आया इसका उद्घाटन पंड़ित जवाहरलाल नेहरू ने किया। 
  3. राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया के प्रथम चरण में मत्स्य संघ का निर्माण हुआ। मत्स्य-संघ नाम का श्रेय के.एम. मुंशी को दिया जाता है। 
  4. मत्स्य संघ में अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर राज्य सम्मिलित थे।
  5. राजस्थान के एकीकरण के समय जोधपुर के शासक महाराजा हनुवन्त सिंह थे।
  6. मत्स्य संघ की राजधानी अलवर को बनाया गया।
  7. 1 नवम्बर, 1956 से पहले राजस्थान राज्य के प्रमुख राज प्रमुख जाने जाते थे।
  8. स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ी रियासत मारवाड़ थी।
  9. 1948 में मत्स्य संघ का राजप्रमुख महाराजा उदयभान सिंह को बनाया गया था।
  10. 26 जनवरी, 1950 को संयुक्त विशाल (वृहत्) राजस्थान का नाम राजस्थान संघ रखा गया, इसमें सिरोही रियासत का विलय हुआ।
  11. वृहद राजस्थान के महाराजा प्रमुख महाराणा भोपाल सिंह नियुक्त किये गये।
  12. सिरोही का राजस्थान में विलय 26 जनवरी, 1950 को हुआ।
  13. राजस्थान के एकीकरण के तहत् सबसे अंतिम समय में सम्मिलित होने वाला क्षेत्र अजमेर-मेरवाड़ा था।
  14. राजस्थान में राजप्रमुख का पद 1 नवम्बर, 1956 को समाप्त किया गया।
  15. अजमेर-मेरवाड़ा के विलय के साथ राजस्थान राज्य के एकीकरण की प्रक्रिया वर्ष 1956 ई. में पूर्ण हुई।
  16. अजमेर का राजस्थान में विलय 1956 ई. में हुआ था।
  17. माउण्ट आबू के राजस्थान विलय में महत्वपूर्ण योगदान गोकुल भाई भट्ट ने दिया।
  18. स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान में 19 रियासतें थी।
  19. मत्स्य संघ का प्रशासन, राजस्थान में स्थानान्तरित करने का निर्णय 1949 ई. में लिया।
  20. राजस्थान संघ का निर्माण 25 मार्च, 1948 को हुआ। इसमें राजप्रमुख कोटा महाराव भीमसिंह को बनाया गया।

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