राजस्थान के प्रमुख युद्ध
आबू का युद्ध - 1178 ई.
1175 ई. में मुल्तान पर अधिकार करने के बाद 1178 ई. में गजनी का शासक मोहम्मद गौरी कच्छ और पश्चिमी राजस्थान को पार कर भारत विजय हेतु आबू के निकट पहुँच गया।
इस समय गुजरात पर चालुक्य (सोलंकी) वंशी मूलराज द्वितीय का शासन था, जिसकी राजधानी अन्हिलवाड़ा थी। मूलराज द्वितीय ने आबू के युद्ध में मोहम्मद गौरी को पराजित कर दिया। मोहम्मद गौरी की यह भारत में प्रथम पराजय थी।
तुमुल का युद्ध - 1182 ई.
चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय ने साम्राज्य विस्तार की नीति के तहत 1182 ई. में पड़ौसी चन्देल राज्य पर आक्रमण कर दिया।
चन्देल शासक परमार्दी देव के प्रसिद्ध सेनानायक आल्हा व ऊदल चौहान सेना का मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तथा चौहान सेना विजयी रही। इस युद्ध को 'तुमुल का युद्ध' कहा जाता है।
तराइन का प्रथम युद्ध - 1191 ई.
तुर्क आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी ने चौहान राज्य की सीमाओं का उल्लंघन करते हुए 1191 ई. में भटिण्डा (तबर हिन्द) को जीत लिया।
पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने तराइन (जिला करनाल, हरियाणा) के मैदान में तुर्क सेना का सामना किया तथा तुर्कों को गहरी शिकस्त दी।
तराइन का द्वितीय युद्ध - 1192 ई.
तराइन के प्रथम युद्ध में पराजय के बाद एक विशेष प्रशिक्षित घुड़सवार सेना के साथ 1192 ई. में मोहम्मद गौरी पुनः तराइन के मैदान में आ धमका।
इस युद्ध में तुर्क सेना ने पृथ्वीराज चौहान तृतीय के नेतृत्व वाली चौहान सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया। पृथ्वीराज को बंदी बनाकर हत्या कर दी गई तथा अजमेर और दिल्ली पर तुर्कों का अधिकार हो गया।
रणथम्भौर का युद्ध - 1301 ई.
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) ने उलूग खाँ और नुसरत खाँ के नेतृत्व में रणथम्भौर विजय के लिए सेना भेजी, परन्तु यह सेना पराजित हुई और नुसरत खाँ मारा गया।
1301 ई. में स्वयं सुल्तान ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया। सुल्तान ने रणथम्भौर के शासक हम्मीर देव चौहान (1282-1301 ई.) के दो मंत्रियों को अपनी ओर मिलाकर रणथम्भौर पर अधिकार कर लिया।
हम्मीर और मुहम्मदशाह (मंगोल शरणार्थी) लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तथा किले की महिलाओं ने रानी रंगादेवी के नेतृत्व में जौहर किया। यह 'राजस्थान का प्रथम साका' कहलाता है।
चित्तौड़ का युद्ध - 26 अगस्त, 1303 ई.
अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया, चित्तौड़ पर इस समय रावल रतनसिंह (1302-1303 ई.) का शासन था।
रतनसिंह अपने सेनापतियों गोरा व बादल सहित लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ तथा महिलाओं ने रानी पद्मिनी के साथ जौहर किया। यह चित्तौड़ का प्रथम एवं राजस्थान का दूसरा साका माना जाता है।
अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर अधिकार कर अपने पुत्र खिज्रखाँ को प्रशासक नियुक्त किया तथा चित्तौड़ का नाम 'खिज्राबाद' कर दिया।
सिवाना का युद्ध - 1308 ई. (बालोतरा)
सिवाना का युद्ध जालौर विजय की पृष्ठभूमि के रूप में हुआ क्योंकि सिवाना जालौर के अधीन था। इस समय सिवाना का प्रशासक सातलदेव था।
अलाउद्दीन खिलजी ने कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में 1308 ई. में एक सेना सिवाना को जीतने के लिए भेजी।
राजपूत सरदार भावले के विश्वासघात के कारण सातलदेव लड़ता हुआ मारा गया तथा महिलाओं ने जौहर कर लिया।
अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाना (बालोतरा) पर अधिकार कर उसका नाम 'खैराबाद' कर दिया।
जालौर का युद्ध - 1311 ई.
अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 ई. में कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में एक सेना जालौर विजय हेतु भेजी।
दहिया सरदार बीका के विश्वासघात के कारण कान्हड़देव की पराजय हुई और वह वीरगति को प्राप्त हुआ।
जालौर पर तुर्कों का अधिकार हो गया और सुल्तान ने जालौर का नाम 'जलालाबाद' कर दिया।
पदमनाभ ने अपने ग्रन्थ 'कान्हड़देव प्रबन्ध' में इस युद्ध का विस्तार से वर्णन किया है।
सिंगोली का युद्ध - 1326 ई.
1326 ई. में सिसोदिया राणा हम्मीर ने चित्तौड़ पर पुनः गुहिलों का अधिकार स्थापित किया था।
इस समय दिल्ली पर मुहम्मद बिन तुगलक का शासन था। उसने चित्तौड़ को पुनः दिल्ली सल्तनत में मिलाने के लिये अपनी सेना भेजी, परन्तु राणा हम्मीर ने सिंगोली के युद्ध में सुल्तान की सेना को पराजित कर खदेड़ दिया।
सारंगपुर का युद्ध - 1437 ई.
सारंगपुर (म.प्र.) का युद्ध महाराणा कुम्भा और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम के बीच हुआ था, जिसमें कुम्भा की विजय हुई।
इस विजय के उपलक्ष्य में कुम्भा ने चित्तौड़ में कीर्तिस्तम्भ (विजय स्तम्भ) का निर्माण करवाया था।
दाड़िमपुर का युद्ध - 1473 ई.
उदा या उदयकरण अपने पिता राणा कुम्भा की हत्या कर मेवाड़ का शासक बना था जिससे मेवाड़ के अधिकांश सामन्त उससे घृणा करते थे।
कुम्भा के दूसरे पुत्र रायमल ने अपने समर्थकों की सहायता से दाड़िमपुर के युद्ध में उदा को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। उदा भागकर माण्डू चला गया, जहाँ बिजली गिरने से उसकी मृत्यु हो गई।
खातौली का युद्ध - 1517 ई.
महाराणा सांगा और दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी के मध्य 1517 ई. में खातौली (कोटा) का युद्ध हुआ। इस युद्ध में सांगा विजयी रहा, परिणामस्वरूप सम्पूर्ण उत्तर भारत में सांगा की शक्ति की धाक जम गई।
बाड़ी का युद्ध - 1518 ई.
मियाँ हुसैन फारमूली व मियाँ माखन के नेतृत्व वाली इब्राहीम लोदी की सेना और महाराणा सांगा के मध्य धौलपुर के निकट बाड़ी नामक स्थान पर 1518 ई. में युद्ध हुआ। सांगा ने इब्राहीम लोदी की सेना को पराजित कर दिया।
गागरोण का युद्ध - 1519 ई.
इस युद्ध में महाराणा सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को पराजित किया।
ढोसी का युद्ध - 1526 ई.
राज्य विस्तार के प्रयास में बीकानेर के राठौड़ शासक राव लूणकरण ने 1526 ई. में नारनौल (हरियाणा) पर आक्रमण कर दिया। नारनौल के शासक शेख अबीमीरा के साथ हुए ढोसी के युद्ध में राव लूणकरण वीरगति को प्राप्त हुआ तथा राठौड़ सेना पराजित हुई।
बयाना का युद्ध - 16 फरवरी, 1527 ई.
पानीपत की विजय के बाद मुगल बादशाह बाबर की सेना ने बयाना (भरतपुर) पर अधिकार कर लिया था परन्तु फरवरी, 1527 ई. में राणा सांगा ने मुगल सेना को पराजित कर बयाना पर पुनः अधिकार कर लिया।
खानवा का युद्ध - 17 मार्च, 1527 ई.
भरतपुर जिले में स्थित खानवा में 17 मार्च, 1527 ई. को मुगल बादशाह बाबर और महाराणा सांगा के मध्य युद्ध हुआ जिसमें बाबर की जीत हुई।
मुस्लिम शासकों- हसन खाँ मेवाती (नागौर) और महमूद लोदी (इब्राहीम लोदी का भाई) ने भी इस युद्ध में महाराणा सांगा की ओर से भाग लिया था।
यह युद्ध भारतीय इतिहास के निर्णायक युद्धों में से एक था। इसी युद्ध से भारत में मुगल शासन की वास्तविक रूप से स्थापना मानी जाती है।
सेवकी गाँव का युद्ध - 1529 ई.
मारवाड़ के राव गांगा के विद्रोही चाचा शेखा ने नागौर के शासक दौलत खाँ की सहायता से जोधपुर पर आक्रमण करने का प्रयास किया परन्तु राव गांगा ने बीकानेर के राव जैतसी की सहायता से सेवकी गाँव (जोधपुर) के युद्ध में आक्रमणकारियों को पराजित कर दिया।
चित्तौड़ का युद्ध - 1534 ई.
1534 ई. में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया, इस समय राणा सांगा का पुत्र विक्रमादित्य (1531-1535) चित्तौड़ का शासक था।
राजमाता कर्णावती (सांगा की पत्नी) ने इस आक्रमण के विरुद्ध मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता माँगी थी, परन्तु हुमायूँ समय पर सहायता नहीं कर सका।
किले का पतन नजदीक जानकर रानी कर्णावती ने अन्य राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया तथा राजपूत योद्धा लड़कर वीरगति को प्राप्त हुए। यह घटना चित्तौड़ का दूसरा साका के रूप में प्रसिद्ध है। दूसरा साका मार्च, 1535 ई. को हुआ।
मावली का युद्ध - 1540 ई.
कुँवर पृथ्वीराज के अनौरस पुत्र बणवीर ने राणा विक्रमादित्य की हत्या कर 1536 ई. में चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था परिणामस्वरूप उदयसिंह को कुम्भलगढ़ में शरण लेनी पड़ी।
उदयसिंह ने शक्ति संगठित कर मारवाड़ के राव मालदेव की सहायता से 1540 ई. में मावली (उदयपुर) के युद्ध में बणवीर को पराजित कर चित्तौड़ सहित सम्पूर्ण मेवाड़ राज्य पर अधिकार कर लिया।
पाहेबा का युद्ध - 1541 ई. - फलौदी
1541 ई. में जोधपुर के राव मालदेव ने बीकानेर विजय के लिए राठौड़ कूँपा के नेतृत्व में सेना भेजी। पाहेबा नामक स्थान पर हुए युद्ध में बीकानेर का राव जैतसी वीरगति को प्राप्त हुआ तथा जोधपुर की सेना विजयी रही।
बीकानेर पर मालदेव का अधिकार हो गया। मालदेव ने कूँपा को झुंझुनूं की जागीर देकर बीकानेर का प्रशासक नियुक्त कर दिया।
गिरि-सुमेल/जैतारण - 5 जनवरी, 1544 ई. (ब्यावर)
मारवाड़ के शासक मालदेव व दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी के बीच ब्यावर के पास गिरि-सुमेल नामक स्थान पर जनवरी, 1544 ई. में युद्ध हुआ।
युद्ध से पूर्व मेड़ता के वीरमदेव और बीकानेर के कल्याणमल ने मालदेव के विरुद्ध शेरशाह से सहायता माँगी थी।
शेरशाह द्वारा मालदेव के सेनापति जैता व कूँपा को अपनी ओर मिलाने के ढोंग के कारण मालदेव युद्ध स्थल छोड़कर चला गया, अतः राजपूत सेना का नेतृत्व जैता वं कूँपा ने किया।
जैता व कूँपा वीरगति को प्राप्त हुए तथा राजपूत सेना पराजित हुई। विजय के बावजूद शेरशाह ने कहा- "एक मुट्ठी बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता।"
हरमाड़ा का युद्ध - 1557 ई.
24 जून, 1557 ई. को हरमाड़ा (जयपुर) का युद्ध मेवाड़ के राणा उदयसिंह और अजमेर के हाजीखाँ पठान के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में राव मालदेव ने हाजीखाँ पठान को सैनिक सहायता दी थी, परिणामस्वरूप राणा उदयसिंह की सेना पराजित हुई।
चित्तौड़ का युद्ध- 1567-68 ई.
अकबर ने 13 अक्टूबर, 1567 ई. को चित्तौड़ पर आक्रमण कर घेरा डाल दिया। राणा उदयसिंह किले की रक्षा का भार जयमल व पत्ता को सौंपकर पहाड़ियों में चला गया।
दीर्घकालीन संघर्ष के बाद जयमल व फत्ता सहित राजपूत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए तथा महिलाओं ने जौहर कर लिया। यह चित्तौड़ का तीसरा साका (1568 ई.) माना जाता है।
25 फरवरी, 1568 ई. को चित्तौड़ के किले पर अधिकार कर अकबर ने भयंकर नरसंहार करवाया, जो आज भी एक महान् बादशाह के चरित्र पर कलंक माना जाता है।
हल्दीघाटी का युद्ध - 18 जून, 1576 ई.
हल्दीघाटी (राजसमन्द) का युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के मध्य हुआ। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व आमेर के कुँवर मानसिंह ने किया था।
इस युद्ध को अबुल फजल ने 'खमनौर का युद्ध' और बदायूँनी ने 'गोगुन्दा का युद्ध' कहा है।
कुम्भलगढ़ का युद्ध -1578 ई.
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद राणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ को केन्द्र बनाया। अकबर ने एक सेना शाहबाज खाँ के नेतृत्व में कुम्भलगढ़ पर विजय हेतु भेजी।
राणा प्रताप किले की रक्षा का भार मानसिंह सोनगरा को सौंपकर पहाड़ों में चला गया। भीषण संघर्ष के बाद अप्रैल, 1578 ई. में शाहबाज खाँ ने कुम्भलगढ़ पर अधिकार कर लिया।
दिवेर का युद्ध - अक्टूबर, 1582 ई.
मुगल अधिकृत मेवाड़ के पाँच मुगल स्थानों में से 'दिवेर' (राजसमन्द) का स्थान महत्त्वपूर्ण था, जहाँ सुल्तान खाँ नियुक्त था।
अक्टूबर, 1582 ई. में राणा प्रताप और अमरसिंह के नेतृत्व में मेवाड़ी सैनिकों ने दिवेर के थाने पर हमला कर सुल्तान खाँ को मार दिया तथा मुगलों को वहाँ से खदेड़ दिया।
कर्नल टॉड ने दिवेर के युद्ध को 'मेवाड़ का मेराथन' की संज्ञा दी है।
दत्ताणी का युद्ध - 1583 ई.
सिरोही के चौहान शासक सुरताण देवड़ा ने 1575 ई. में अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी, परन्तु अकबर ने राणा प्रताप के भाई जगमाल को आधा सिरोही राज्य दे दिया। इसी कारण 1583 ई. में राव सुरताण और जगमाल के मध्य दत्ताणी का युद्ध हुआ। इस युद्ध में जगमाल मारा गया था।
मतीरे की राड़ -1644 ई.
बीकानेर के कर्णसिंह और जोधपुर के गजसिंह के पुत्र अमरसिंह राठौड़ के मध्य 1644 ई. में जाखमणियाँ गाँव को लेकर सीमा विवाद हुआ, जो 'मतीरे की राड़' के रूप में प्रसिद्ध है।
दौराई का युद्ध - मार्च, 1659 ई.
अजमेर के पास दौराई नामक स्थान पर मार्च, 1659 ई. में औरंगजेब और दाराशिकोह के मध्य युद्ध हुआ जिसमें दारा पराजित हुआ था।
पिलसूद का युद्ध -1715 ई.
मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने 1713 ई. में आमेर के सवाई जयसिंह को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया था। इस दौरान सवाई जयसिंह ने मराठों के मालवा में प्रसार को रोकने का प्रयास किया।
1715 ई. में पिलसूद (भीलवाड़ा) नामक स्थान पर सवाई जयसिंह और मराठों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें सवाई जयसिंह ने मराठों को पराजित किया।
मन्दसौर का युद्ध - 1733 ई.
1732 ई. में सवाई जयसिंह को तीसरी बार मालवा का सूबेदार बनाया गया। जयसिंह ने पुनः मालवा में मराठा-प्रसार को रोकने के प्रयास किये, परन्तु फरवरी, 1733 ई. में वह मराठों से पराजित हो गया और उसे छः लाख रुपये युद्ध खर्चे के रूप में मराठों को देने पड़े।
मुकुन्दरा (रामपुरा) का युद्ध - 1735 ई.
17 जुलाई, 1734 ई. को आयोजित हुरड़ा सम्मेलन के बाद राजपूत शासकों ने संयुक्त रूप से मराठों का मुकाबला करने का निश्चय किया।
मराठों ने रामपुरा के निकट मुकुन्दरा में राजपूत सेना को घेरकर पराजित कर दिया। इस संघर्ष में जयपुर के सवाई जयसिंह की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। जयसिंह ने सन्धि कर मराठों को चौथ देना स्वीकार कर लिया।
गंगवाना का युद्ध - 1741 ई.
1741 ई. में गंगवाना (जोधपुर) के युद्ध में सवाई जयसिंह ने जोधपुर के अभयसिंह और नागौर के बख्तसिंह की संयुक्त सेना को पराजित किया था।
राजमहल का युद्ध - 1747 ई.
जयपुर के उत्तराधिकार संघर्ष को लेकर सवाई जयसिंह के पुत्रों- ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के मध्य 1747 ई. में राजमहल (टोंक) का युद्ध हुआ जिसमें माधोसिंह पराजित हुआ।
इस युद्ध में राणोजी सिंधिया, पेशवा और मुगल सम्राट ने ईश्वरीसिंह का साथ दिया तथा होल्कर, कोटा, बून्दी व मेवाड़ के शासकों ने माधोसिंह का साथ दिया था।
मानपुरा का युद्ध - 1748 ई.
जयपुर के सवाई ईश्वरीसिंह ने मार्च, 1748 ई. में मानपुरा (अलवर) नामक स्थान पर अफगानी आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली की सेना को पराजित किया था।
मावण्डा का युद्ध -1767 ई. (सीकर)
जयपुर व मराठो मध्य।
गिंगोली का युद्ध - 1807 ई. परबतसर (डीडवाना-कुचामन)
जगतसिंह (जयपुर) व मानसिंह।
बगरू का युद्ध - 1748 ई. (जयपुर)
जयपुर के उत्तराधिकार के प्रश्न पर ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के मध्य दूसरा युद्ध 1748 ई. में बगरू (जयपुर) नामक स्थान पर हुआ।
इस युद्ध में पेशवा व होल्कर की मदद से माधोसिंह ने ईश्वरीसिंह को पराजित किया।
भटवाड़ा का युद्ध - 1761 ई.
1761 ई. में कोटा और जयपुर राज्यों के मध्य भटवाड़ा (बाराँ) का युद्ध हुआ जिसमें जयपुर की सेना पराजित हुई।
इस युद्ध में कोटा राज्य की सेना का नेतृत्व झाला जालिमसिंह ने किया था।
तूंगा का युद्ध - 28 जुलाई, 1787 ई.
28 जुलाई, 1787 ई. को दौसा के पास तूंगा नामक स्थान पर मराठा सेनापति महादजी सिंधिया और जयपुर के सवाई प्रतापसिंह के मध्य युद्ध हुआ।
इस युद्ध में सवाई प्रतापसिंह ने जोधपुर के शासक विनयसिंह की मदद से सिंधिया को पराजित किया।
पाटन का युद्ध - 20 जुलाई, 1790 ई. (सीकर)
पाटन का युद्ध महादजी सिंधिया और सवाई प्रतापसिंह के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मराठा विजयी रहे थे।
मारवाड़ के शासक और अफगान नेता इस्माइल बेग ने जयपुर का साथ दिया तथा मराठा सेना का नेतृत्व डी. बोई नामक फ्रांसीसी सेनापति ने किया था।
मेड़ता/डंगा का युद्ध - 10 सितम्बर, 1790 ई.
मेड़ता के पास डंगा नामक स्थान पर डी. बोई के नेतृत्व वाली मराठा सेना ने जोधपुर के शासक विजयसिंह की सेना को पराजित किया।
युद्ध के परिणामस्वरूप साँभर की संधि (5 जनवरी, 1791 ई.) हुई जिसके अनुसार अजमेर शहर दुर्ग सहित मराठों को पुनः प्राप्त हुआ।
लासवाड़ी का युद्ध -1 नवम्बर, 1803 ई.
अलवर के पास लासवाड़ी में अंग्रेज सेनापति जनरल लेक ने पेशवा एवं सिंधिया की सम्मिलित सेना को पराजित किया। अलवर ने अंग्रेजों का साथ दिया था।
चम्बल का युद्ध - 8 जनवरी, 1804 ई.
इस युद्ध में होल्कर की सेना ने जनरल मानसून के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना को पराजित किया। यह राजस्थान में अंग्रेजों की प्रथम पराजय थी।
डीग का युद्ध - दिसम्बर, 1804 ई.
जसवन्तराव होल्कर ने अंग्रेजी सेना को पराजित किया। युद्ध में अंग्रेज सेनानायक मेजर फ्रेजर मारा गया।
भरतपुर का युद्ध - 1805 ई.
डीग के युद्ध के बाद जसवन्तराव होल्कर ने भरतपुर में शरण ली, परिणामस्वरूप जनवरी, 1805 ई. में अंग्रेजी सेना ने भरतपुर का घेरा डाल दिया।
लम्बे संघर्ष के बाद भी अंग्रेजी सेना लोहागढ़ दुर्ग को नहीं भेद सकी, अतः अंग्रेजों को संधि करनी पड़ी।
माँगरोल का युद्ध - अक्टूबर, 1821 ई.
कोटा महाराव किशोरसिंह द्वितीय और कोटा के फौजदार झाला जालिमसिंह के मध्य प्रशासनिक अधिकारों के कारण माँगरोल (बारा) का युद्ध हुआ।
इस युद्ध में झाला जालिमसिंह ने कर्नल टॉड की सहायता से महाराव किशोरसिंह को पराजित किया।
कोठारी (कुआड़ा) का युद्ध - 9 अगस्त, 1858 ई.
भीलवाड़ा के सांगानेर कस्बे के पास कोठारी नदी के तट पर तांत्या टोपे और जनरल रॉबर्ट्स के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना के बीच युद्ध हुआ जिसमें तांत्या टोपे पराजित हुआ।
राजस्थान : इतिहास की प्रमुख तिथियाँ
ईसा पूर्व
पाषाण युगीन संस्कृतियाँ
- एक लाख वर्ष पूर्व - प्रारंभिक पाषाण काल में संस्कृतियाँ बसी।
- पचास हजार वर्ष पूर्व - मध्य पाषाण काल में बस्तियां बसी।
- दस हजार वर्ष पूर्व - नव पाषाण काल में बस्तियाँ बसी।
- 4480 - 3285 ई.पू. - बागौर संस्कृति- प्रथम स्तर
- 2765 - 500 ई.पू. - बागौर संस्कृति- द्वितीय स्तर
- 500 - 300 ई.पू. - बागौर संस्कृति तृतीय स्तर
ताम्र युगीन संस्कृतियाँ
- 2500 -1200 ई.पू. - गणेश्वर संस्कृति।
- 2500 ई.पू. - 200 ई. - जोधपुरा संस्कृति।
- 2300 - 2000 ई.पू. - कालीबंगा संस्कृति।
- 1800 -1200 ई.पू. - आहड़ संस्कृति।
- 700 - 300 ई.पू. - गिलुण्ड संस्कृति।
- 1200 - 900 ई.पू. - नोह संस्कृति।
लौह युगीन संस्कृतियाँ
- 1200 ई.पू. - 200 ई. - सुनारी संस्कृति
- 500 ई.पू. - 200 ई. - तिलवाड़ा संस्कृति
- 300 ई.पू. - 100 ई. - बैराठ संस्कृति
- 200 ई.पू. - 600 ई. - नगरी संस्कृति
- 200 ई.पू. - 200 ई. - रैढ़ संस्कृति
- 200 ई.पू. - 900 ई. - नलियासर संस्कृति
- 100 ई.पू. - 500 ई. - गर संस्कृति
- 100 ई.पू. - 400 ई. - रंगमहल संस्कृति
- 100 ई.पू. - 400 ई.: - भीनमाल संस्कृति
150 ई.पू. - मालवगण राजस्थान व मालवा आये।
75 ई.पू. - शकों ने पूर्वी राजस्थान पर कब्जा किया।
57 ई.पू. - विक्रम संवत् का प्रारंभ।
33 ई.पू. - पश्चिमी भारत में शक राज की स्थापना
ईसवी सन्
- 78 ई. - शक संवत का प्रारंभ।
- 150 ई. - प्रथम रुद्रदामन ने पश्चिम राजस्थान को जीता।
- 566 ई. - मेवाड़ में गुहिल द्वारा राज्य स्थापित किया गया।
- 622 ई. - हिजरी सन् का प्रारंभ।
- 647 ई. - हर्षवर्धन को मृत्यु।
- 728 ई. - बप्पा रावल ने मौर्य राजा से चित्तौड़ का राज्य छीना।
- 731 ई. - अरबों का राजस्थान से सीधा संघर्ष प्रारंभ।
- 731 ई. - तन्नोट (जैसलमेर) का किला बना।
- 736 ई. - गुर्जर राज्य की समाप्ति पर चौहान राजस्थान के शासक बने।
- 738 ई. - प्रतिहारों ने अपनी राजधानी भीनमाल के स्थान पर जालौर बनाई।
- 755 ई. - बप्पा रावल ने कुकुटेश्वर से चित्तौड़ को जीता।
- 836 ई. - मिहिरभोज का राज्यारोहण।
- 943 ई. - सांभर के लक्ष्मण चौहान ने नाडोल पर हमला कर स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।
- 944 ई. - सपादलक्ष के चौहानों ने रणथम्भौर दुर्ग का निर्माण करवाया।
- 947 ई. - रामसिंह ने टोंकरा (वर्तमान टोंक) बसाया।
- 956 ई. - सिंहराज प्रथम ने शेखावाटी में हर्षनाथ पहाड़ सीकर पर शिव मंदिर बनाया।
- 972 ई. - मालवा के परमार भुंज (वाक्पति) ने चित्तौड़ पर कब्जा किया।
- 973 ई. - चौहान प्रतिहारों से स्वतंत्र हुए। मालवा के भुंज परमार ने आहड़ को नष्ट किया। गुजरात के राष्ट्रकूटों का शासन समाप्त।
- 991 ई. - जयपाल ने मुसलमानों के आक्रमण के विरुद्ध सांभर, कालिंजर और कन्नौज के राजाओं का संघ बनाया।
- 1008 ई. - आनन्दपाल ने महमूद के खिलाफ उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर और कन्नौज, दिल्ली तथा सांभर के राजाओं का संघ बनाया।
- 1013 ई. - लोकदेवता तेजाजी जाट की मृत्यु।
- 1024 ई. - महमूद गजनवी ने अजमेर पर आक्रमण किया और गढ़ बीठढी पर घेरा डाला लेकिन घायल हो जाने पर वह घेरा उठाकर अन्हीलवाड़ा चला गया।
- अक्टूबर 1024 - महमूद गजनवी सोमनाथ पर आक्रमण करने के लिए रवाना हुआ।
- 1026 ई. - महमूद गजनवी ने वाराह (जैसलमेर) पर हमला किया।
- 1031 ई. - विमल शाह ने आबू पहाड़ पर आदिनाथ जैन मंदिर की स्थापना करवाई।
- 1040 ई. - यादव विजयपाल ने मथुरा से अपनी राजधानी हटा कर विजय मंदिर गढ़ में स्थापित की, जिसे अब बयाना गढ़ कहा जाता है।
- 1042 ई. - बसन्तगढ़ (सिरोही) को परमार नरेश पूर्णपाल ने अपनी राजधानी बनाया।
- 1113 ई. - चौहान अजयराज ने अजमेर नगर बसाया।
- 1119 ई. - मुहम्मद बाहलीम ने नागौर का किला बनवाया।
- 1137 ई. - अर्णोराज ने मुसलमान आक्रमणकारियों को हराकर युद्ध स्थल पर आनासागर झील (अजमेर) का निर्माण करवाया।
- 1137 ई. - दुल्हेराय ने बड़गुर्जरों को हराकर दौसा पर कब्जा किया और ढुंढाड़ राज्य की स्थापना की।
- 1151 ई. - अजमेर के विग्रहराज-IV ने चित्तौड़ पर कब्जा कर मेवाड़ का कुछ हिस्सा अपने राज्य में मिलाया।
- 1152 ई. - बीसलदेव (IV-विग्रहराज) ने अपने पितृहन्ता भाई जगदेव को पराजित कर अजमेर की गद्दी प्राप्त की।
- 1153 ई. - बीसलदेव बिस्सी को जीतकर भारत का प्रथम चौहान सम्राट बना।
- 1155 ई. - राव जैसल द्वारा जैसलमेर दुर्ग की स्थापना।
- 1158 ई. - यादव तवनपाल ने बयाना से 15 मील दूर तवनगढ़ बसाया।
- 1164 ई. - विग्रहराज चौहान ने शिवलिंग स्तम्भ नामक शिलालेख दिल्ली में खुदवाया।
- 1175 ई. - गुहिलवंशीय सामन्त सिंह ने बागड़ पर अधिकार किया।
- 1178 ई. - आबू के परमार नरेश धारावर्ष ने मुहम्मद गौरी को हराया। मोहम्मद गौरी ने नाडोल तथा किराडू को लूटा।
- 1187 ई. - पृथ्वीराज तृतीय ने गुजरात पर आक्रमण किया एवं आबू के परमार शासक धारावर्ष को हराया।
- 1190 ई. - जयानक ने अजमेर में पृथ्वीराज विजय नामक प्रसिद्ध महाकाव्य की रचना की।
- 1191 ई. - पृथ्वीराज-III ने थानेश्वर के निकट तरावडी मैदान मोहम्मद गौरी को प्रथम बार हराया। (तराईन का प्रथम युद्ध)
- 1192 ई. - तराईन का दूसरा युद्ध (तराईन-II युद्ध) जिसमें पृथ्वीराज मोहम्मद गौरी से हारा, मारा गया।
- 1192 ई. - कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर तथा मेरठ के विद्रोह को दबाया। बीसलदेव के सरस्वती मंदिर को तोड़ा। शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को गद्दी पर बैठाया। परन्तु गौरी के लौटने पर पृथ्वीराज के छोटे भाई हरिराज ने, गोविन्द राज को हराकर स्वयं को अजमेर का शासक बनाया।
- 1193 ई. - हरिराज ने दिल्ली पर आक्रमण किया।
- 1194 ई. - कन्नोज का जयचंद मोहम्मद गौरी से इटावा के पास चंदावर में मारा गया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर पर पुनः कब्जा कर उस स्वतंत्र राज्य को समाप्त किया, वहाँ मुस्लिम शासक नियुक्त किया।
- 1195 ई. - ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेर आया। मोहम्मद गौरी ने बयाना के जाटों भट्टी राजपूतों को हराया।
- 1196 ई. - कुतुबुद्दीन अन्हिलवाडा पर आक्रमण करने के लिए रवाना हुआ लेकिन मेरो तथा राजपूतों द्वारा रोक दिया गया। राजपूतों व मेरो ने अजमेर से मुसलमानों को बाहर निकालने का प्रयत्न किया। कुतुबुद्दीन ने तारागढ़ में शरण ली। कुतुबुद्दीन ने नाडोल पर अधिकार किया।
- 1197 ई. - मोहम्मद गौरी द्वारा तवनगढ़ व बयाना पर कब्जा।
- 1206-1210 ई. - अढ़ाई दिन के झोपड़े का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा करवाया गया।
- 1210 ई. - लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय कुतुबुद्दीन की मृत्यु। अजमेर का सरस्वती मंदिर, मस्जिद में परिवर्तित किया गया, जो अढाई दिन का झोपड़ा कहलाया।
- 1226 ई. - दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने रणथम्भौर पर कब्जा किया इसके पश्चात् उसने बयाना, अजमेर, नागौर, जालौर पर भी कब्जा किया।
- 1230 ई. - तेजपाल ने नेमीनाथ (लुणवसाही) मंदिर का निर्माण आबू पर्वत पर करवाया।
- 1234 ई. - मेवाड़ के राणा जैत्रसिंह ने शम्शुद्दीन इल्तुतमिश को हराया।
- 1236 ई. - ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु।
- 1237 ई. - मेवाड़ राणा समर सिंह ने तुर्कों को हराया।
- 1240 ई. - राव सीहा पाली आया।
- 1245 ई. - दिल्ली में सुल्तान का भाई जलालुद्दीन अपनी जान बचाने के लिए चित्तौड़ की पहाड़ियों में आ छुपा।
- 1246 ई. - बाहड़देव परमार ने बारड़मेर (वर्तमान बाड़मेर) बसाया।
- 1248 ई. - बलबन (उलुग खाँ) ने रणथम्भौर, बूँदी, चित्तौड़ पर हमला किया, तथा यहाँ से काफी धन माल ले गया।
- 1252 ई. - नसीरुद्दीन महमूद ने बयाना विजय की।
- 1258 ई. - उलुग खाँ (बलबन) ने रणथम्भौर व मेवात पर आक्रमण किया।
- 11 जुलाई, 1301 - रणथम्भौर पर अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार।
- 26 अगस्त, 1303 - अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ विजय अपने पुत्र खिज खाँ को चित्तौड़ का हाकिम नियुक्त किया। साका
- 9 नवंबर, 1308 - सिवाणा का साललदेव मारा गया, सिवाणा पर अलाउद्दीन का कब्जा, साका।
- 1311-1312 - 9 मई, अलाउद्दीन ने जालौर पर अधिकार किया।
- 1316 ई. - जैसलमेर पर अलाउद्दीन की विजय, साका
- 1326 ई. - हम्मीर सिसोदिया ने चित्तौड़ पर अधिकार किया।
- 1330 ई. - राव घड़सी ने घड़सिया तालाब (जैसलमेर) बनवाया।
- 1341 ई. - बम्बावदा के राव देवा ने जैता मीणा से बूँदी जीता।
- 21 मार्च, 1352 - रामदेव का जन्म।
- 1354 ई. - राव नरसिंह ने तारागढ़ (बूँदी) का दुर्ग बनवाया।
- 1358 ई. - डूंगरसिंह ने डुंगरपुर बसाया।
- 1362 ई. - रावल मल्लीनाथ का जन्म।
- 1364 ई. - क्षेत्रसिंह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा।
- 1382 ई. - मेवाड़ के राणा लाखा का राज्याभिषेक।
- 1383 ई. - राजपूतों व चारणों की देवी करणी का जन्म।
- 1385 ई. - रामदेव ने समाधि ली।
- 1394 ई. - वीरम के पुत्र चूंडा की सहायता से ईन्द्रा प्रतिहार ने मण्डोर पर कब्जा किया तथा उसे चूंडा राठौड़ को दे दिया। राव चूंडा ने चामुण्डा माता का मंदिर बनवाया। मोहम्मद तुगलक का बयाना पर आक्रमण।
- 1398 ई. - मेवाड के चूडा ने राजगद्दी से अपना अधिकार छोड़ा। तैमूर का भारत पर हमला। भटनेर के भाटी राजपूत शासक दूलचन्द ने तैमूर के सामने आत्म समर्पण किया। भटनेर नगर को जलाकर भस्म कर दिया गया।
- 1399 ई. - चूंडा राठौड़ ने अजमेर पर कब्जा किया। मालानी के रावल मल्लीनाथ का स्वर्गवास।
- 1405 ई. - शिवभाण देवडा ने शिवपुरी (पुराना सिरोही) शहर बसाया।
- 1423 ई. - सितम्बर 27, मालवा के होशांगशाह ने 15 दिन के घेरे के बाद गागरोन गढ़ पर कब्जा किया तथा अचलदास खींची मारा गया।
- 1425 ई. - सहसमल देवड़ा ने चंद्रावती के स्थान पर सिरोही नगर बसाया।
- 1426 ई. - रणमल राठौड़ की सेना ने जैतारण व सोजत पर अधिकार किया।
- 1433 ई. - राणा मोकल अहमदाबाद के सुलतान के विरुद्ध लड़ते हुए मारा गया।
- 1438 ई. - मण्डौर का रणमल राठौड़, मेवाड़ में मारा गया। महाराणा कुम्भा राजगद्दी पर बैठा।
- 1440 ई. - रणकपुर में त्रिलोक्य दीपक मंदिर की प्रतिष्ठा हुई।
- 1443 ई. - अप्रैल, 26, महाराणा कुम्भा तथा मालवा के सुल्तान महमूदशाह खिलजी के बीच कुम्भलगढ़ के निकट युद्ध।
- 1444 ई. - मालवा के महमूद ने गागरोन पर कब्जा किया। महमूद विफल होकर लौट गया।
- 2 फरवरी, 1449 - महाराणा कुम्भा का कीर्ति स्तम्भ बनकर पूर्ण।
- 1450 ई. - कायम खाँ ने राजपूतों के राज्य को जीतकर नपा राज्य स्थापित किया, जिसकी राजधानी झुंझुनूं बनाई गई।
- 1451 ई. - बिश्नोई मत के प्रवर्तक जांभाजी का पीपासर में जन्म।
- 1453 ई. - महाराणा कुंभा ने अचलगढ़ दुर्ग की प्रतिष्ठा कराई।
- 1455 ई. - मालवा के सुल्तान महमूद ने अजमेर पर कब्जा किया।
- 1456 ई. - महाराणा कुम्भा ने गुजरात की सेना को हराकर नागौर जीता। प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया लेकिन वहाँ से हारकर लौट आया। मालवा के महमूद ने माण्डलगढ़ पर आक्रमण किया लेकिन कुंभा ने उस पर कब्जा नहीं होने दिया।
- 1458 ई. - कुम्भलगढ़ की प्रतिष्ठा।
- 1458 ई. - राव जोधा का राज्याभिषेक।
- 1459 ई. - राव जोधा द्वारा जोधपुर नगर बसाया गया।
- 1460 ई. - मंडोर की चामुण्डा की मूर्ति जोधपुर के किले में स्थापित की गई।
- 1465 ई. - राव जोधा का पुत्र बीका, अपने चाचा कांथल के साथ जांगल प्रदेश गया, तथा उसको जीतकर अपना नया राज्य स्थापित किया।
- 1472 ई. - राव बीका ने कोडमदेसर में राजधानी स्थापित की व अपने आपको राजा घोषित किया।
- 1478 ई. - वल्लभ सम्प्रदाय के संस्थापक श्री वल्लभाचार्य तैलंग का जन्म। राव बीका का भाटियों से युद्ध।
- 12 अप्रैल, 1482 - महाराणा संग्राम सिंह का जन्म।
- 1483 ई. - राजस्थान में घोर अकाल।
- 12 अप्रैल, 1488 - राव बीका ने बीकानेर नगर बसाया।
- 1492 ई. - जोधपुर नरेश सातल का कोसाणा के पास अजमेर के मल्लू खाँ के पास युद्ध हुआ। यवन सेनापति घडूला मारा गया। तब से राजस्थान में घडूले मेले का प्रचलन हुआ। राव बीका राजवंश की पूज्यनीय चीजें जोधपुर से बीकानेर ले गया।
- 1498 ई. - 12 जुलाई मीराबाई का जन्म।
- 1503 ई. - मालवा के नासिर शाह ने मेवाड़ पर चढ़ाई की वह महाराणा रायमल के सामंत राजा भवानीदास की पुत्री को लेकर लौट गया। वह लड़की बाद में चित्तौड़ी बेगम कहलाई।
- 1508 ई. - महाराणा संग्राम सिंह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठा।
- 1516 ई. - महाराणा सांगा के ज्येष्ठ कुंवर भोजराज का मीरा बाई से विवाह हुआ। सिकन्दर लोदी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया लेकिन वह असफल होकर लौट गया।
- 1517 ई. - दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी व मेवाड़ के महाराणा सांगा के बीच बूँदी के निकट खातौली का युद्ध हुआ। जिसमें महाराणा सांगा की विजय हुई।
- 1517 ई. - खातौली (कोटा) के युद्ध में महाराणा सांगा ने इब्राहीम लोदी को हराकर बूँदी राज्य जीता। बागड़ के महारावल उदयसिंह ने अपना आधा राज्य (बाँसवाड़ा) अपने दूसरे पुत्र जगमाल को दे दिया।
- 1527 ई. - बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक जाम्भोजी की तालवा गाँव (बीकानेर) में मृत्यु। 17 मार्च, 1527 महाराणा सांगा व बाबर के बीच खानवा के मैदान में युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा की हार हुई। डूंगरपुर के रावल उदयसिंह रावत, रतनसिंह चुण्डावत, हसन खाँ मेवाती आदि वीर गति को प्राप्त हुए। भारत में पहली बार इस युद्ध में गोला बारूद का प्रयोग किया गया। 20 मई, 1528 माण्डलगढ़ में महाराणा सांगा की मृत्यु जहर दिये जाने से।
- 1532 ई. - मालदेव मारवाड़ की राजगद्दी पर बैठा। उसका राज्याभिषेक सोजत दुर्ग में हुआ।
- 1535 ई. - मेवाड़ की राजमाता कर्मावती ने बहादुरशाह के 8 मार्च आक्रमण पर 13000 स्त्रियों के साथ जौहर किया।
- 25 अप्रैल, 1535 - चित्तौड़ पर वापस सिसोदियों का कब्जा।
- 1536 ई. - मालदेव ने नागौर के खानजादे पर चढ़ाई कर नागौर पर कब्जा किया। मालदेव का विवाह जैसलमेर के रावल की पुत्री उमादे (रूठी रानी) से हुआ।
- 9 मई, 1540 - महाराणा प्रताप का जन्म।
- 16 जुलाई, 1541 - रावं चंद्रसेन राठौड़ का जन्म।
- 5 जनवरी, 1544 - रावल मालदेव और शेरशाह की सेनाओं के बीच गिरीसुमेल का युद्ध हुआ। शेरशाह ने मारवाड़, चित्तौड़, नागौर तथा अजमेर पर कब्जा किया।
- जून, 1545 - मालदेव ने पुनः जोधपुर पर अधिकार किया।
- 1549 ई. - राजस्थान के प्रसिद्ध कवि पृथ्वीराज का जन्म।
- 1556 ई. - जोधपुर नरेश मालदेव की सेना अजमेर के सूबेदार हाजी खाँ की सेना से हारी। इस युद्ध में मेवाड़ के राणा उदयसिंह व बीकानेर नरेश कल्याण मल ने हाजी खाँ की सहायता की।
- 24 जनवरी, 1557 - हरमाड़ा के युद्ध में मालदेव और हाजी खाँ की सम्मिलित सेना ने राणा उदय सिंह व उसके सहायक मेड़ता के जयमल को पराजित किया। डूंगरपुर के महारावल आसकरण ने महाराणा का साथ दिया।
- 1559 ई. - महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर बसाया। महाराणा उदयिंसह ने उदयसागर तालाब बसाया।
- 1560 ई. - वल्लभ सम्प्रदाय के वल्लभाचार्य की मृत्यु। विक्रम सिंह ने देवलिया (प्रतापगढ़) को राजधानी बनाया।
- 1562 ई. - जनवरी 20, भारमल ने अकबर की अधीनता उसके सांगानेर के पड़ाव पर स्वीकार की।
- 6 फरवरी, 1562 - आमेर के भारमल की पुत्री हरखा बाई (मरियम उज्जमानी) का विवाह अकबर से हुआ। जिसके गर्भ से बादशाह जहाँगीर का जन्म हुआ।
- 10 फरवरी, 1562 - आमेर के भगवंत दास व मानसिंह की मुगल दरबार में नियुक्ति। तब से ही मुगल शासकीय सेवा में हिन्दुओं को उच्च पद दिये गये।
- 10 नवम्बर, 1562 - मारवाड़ के मालदेव की मृत्यु।
- 1564 ई. - अकबर ने हिन्दुओं पर से जजिया कर हटाया। मुगल सेना ने जोधपुर पर अधिकार किया। चंद्रसेन भाद्राजूण चला गया। अकबर ने अजमेर व नागौर का फौजदार सैफुद्दीन के स्थान पर हैसन कुली बेग को नियुक्त किया।
- 1565 ई. - जोधपुर पर मुगलों का अधिकार हो जाने से, वहाँ मुगल बादशाह के सिक्कों का प्रचलन हुआ।
- 25 फरवरी, 1568 - चित्तौड़ का तीसरा साका।
- 2 मार्च, 1568 - मीरां बाई की मृत्यु।
- 5 नवम्बर, 1570 - अकबर का नागौर दरबार आयोजित। मारवाड़ के चंद्रसेन, बीकानेर के राव कल्याणमल व जैसलमेर के रावल हरराय के प्रतिनिधि अकबर के समक्ष उपस्थित हुए। बीकानेर तथा जैसलमेर के शासकों ने अकबर की अधीनता स्वीकार की। लेकिन चंद्रसेन ने अधीनता स्वीकार नहीं की तथा भाद्राजूण चला गया।
- 1571 ई. - अकबर द्वारा अजमेर की चारदीवारी तथा अपने निवास के लिए महल बनवाया जो वर्तमान में तोपखाना कहलाता है।
- 28 फरवरी, 1572 - महाराणा प्रताप की गोगुन्दा में राजगद्दी।
- 18 जून, 1576 - महाराणा प्रताप तथा कछवाह राजा मानसिंह (मुगल सेनापति) के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।
- 3 अप्रैल, 1578 - शाहबाज खाँ ने कुंभलगढ़ पर कब्जा किया।
- 4 अप्रैल, 1578 - शाहबाज खाँ ने उदयपुर पर कब्जा किया।
- 1580 ई. - बादशाह अकबर द्वारा जोधपुर पर पूर्ण कब्जा।
- 1581 ई. - राव चन्द्रसेन की मृत्यु ।
- 1582 ई. - महाराजा रायसिंह ने बीजा देवड़ा से सिरोही छीनकर आधा भाग राव सुरतान को दे दिया।
- 1583 ई. - सिरोही के देवड़ा सुरतान ने सिसोदिया जगमाल पर दत्ताणी गाँव में आक्रमण किया, जिसमें सुरतान की विजय हुई, जगमाल मारा गया राठौड़ व सिसोदिया हारे।
- 1583 ई - बादशाह अकबर ने जोधपुर के राव मालदेव की पौत्री तथा आमेर के भगवंत दास के चचेरे भाई जयमल कच्छवाहा की पत्नी को सती होने से रोका।
- 1585 ई. - आमेर के भगवान दास की पुत्री मानबाई का शहजादा सलीम के साथ लाहौर में विवाह हुआ। महाराणा प्रताप ने चावण्ड को अपनी राजधानी बनाया।
- 1585 ई. - जोधपुर के राजा उदयसिंह की पुत्री मानमती (जगत गुसाई) का शहजादा सलीम से विवाह हुआ। यह बेगम बाद में जोधा बाई कहलाई । महाराणा प्रताप ने चित्तौड़गढ़ तथा माण्डलगढ़ को छोड़कर सारे मेवाड़ पर पुनः कब्जा कर लिया।
- 1589 ई. - बीकानेर के राय सिंह ने बीकानेर के किले का शिलान्यास किया। बादशाह अकबर ने कृष्ण सिंह (किशनगढ राज्य के संस्थापक) को कुछ परगने दिये।
- 1593 ई. - तिलराज में पशुमेला भरना आरंभ हुआ।
- 19 जनवरी, 1597 - महाराणा प्रताप की मृत्यु।
- 1600 ई. - महाराज रायसिंह को नागौर जागीर में दिया।
- 1603 ई. - नरायणा (जयपुर) में संत दादू की मृत्यु।
- 1606 ई. - जोधपुर नगर के बाहर महाराज सूर सिंह ने सूर सागर तालाब बनवाया।
- 1612 ई. - कृष्ण सिंह राठौड़ ने किशनगढ़ नगर बसाया। बीकानेर के रायसिंह की मृत्यु।
- 1614 ई. - आमेर के मिर्जा राजा मानसिंह का देहांत।
- 5 फरवरी, 1615 - महाराणा अमर सिंह शहजादा खुर्रम से गोगुन्दा में मिला।
- 16 फरवरी, 1615 - उदयपुर का कुँवर कर्ण सिंह बादशाह जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ। डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, देवलिया (प्रतापगढ़) शाही फरमान के अनुसार मेवाड़ के अधीन। बादशाह जहाँगीर ने उदयपुर के महाराणा को पाँच हजारी जात और पाँच हजार सवारों का मनसब दिया। उदयपुर का कर्ण सिंह 5 जून, 1615 को बादशाह के दरबार (अजमेर) से विदा किया गया। तथा उसे 2 लाख रु., पाँच हाथी तथा 110 घोड़े देकर सम्मानित किया गया।
- 1616 ई. - सर जेम्स का राजदूत टामस रो अजमेर में जहाँगीर के दरबार में संधि हेतु पहुँचा।
- 1621 ई. - बादशाह जहाँगीर ने गजसिंह को दलथम्भन की पदवी तथा जालौर का परगना मनसब की जागीर में दिया।
- 1625 ई. - बूंदी के राव रतन को बादशाह ने 5 हजारी जात व 5 हजार सवार का मनसब तथा राव राय की पदवी दी।
- 1627 ई. - बादशाह ने माधोसिंह को कोटा का स्वतंत्र शासक नियुक्त किया।
- 1630 ई. - जोधपुर नरेश गजसिंह को बादशाह जहाँगीर ने महाराज की पदवी दी।
- 1633 ई. - बादशाह ने सेना भेजकर देवलिया (प्रतापगढ़) वर महारावल का कब्जा करवाया।
- 1637 ई. - शाहजहाँ ने अजमेर की आना सागर झील पर बारहदरिया बनवाई।
- 1638 ई. - राठौड़ दुर्गादास का जन्म।
- 1639 ई. - आमेर नरेश जयसिंह को बादशाह ने मिर्जा राजा की पदवी दी।
- 1644 ई. - बीकानेर व नागौर के शासकों की सेना के बीच मतीरे के राड़ की लड़ाई हुई।
- 1649 ई. - मिर्जा राजा जयसिंह की मनसब में पाँच हजार जात व पाँच हजार सवार किये गये। जिसमें तीन हजार सवार दो अस्पा सेइ अस्पा थे।
- 1652 ई. - उदयपुर में जयसिंह प्रथम ने जगदीश मंदिर का निर्माण पूर्ण करवाया।
- 1654 ई. - जोधपुर नरेश जसवंत सिंह को मनसब में 6000 जात व 6000 सवार जिसमें 5000 दो अस्पा सेह अस्पा के दी जाकर महाराज की पदवी दी गई।
- 1657 ई. - जोधपुर नरेश जसवंत सिंह का मनसब 7000 जात व 7000 सवार किया गया। मालवा की सूबेदारी देकर औरंगजेब के विरुद्ध भेजा गया।
- 16 अप्रैल, 1658 - धरमत के युद्ध में दारा की सेना हारी। शाहपुरा नरेश सुजान सिंह और कोटा नरेश मुकुन्द सिंह धरमत के युद्ध में मारे गये। मारवाड़ नरेश जसवंत सिंह शाहजहाँ की ओर से धरमत के युद्ध में औरंगजेब से हारा।
- 29 मई 1658 - बूंदी का राव शत्रुशाल सिंह सामूगढ़ के युद्ध में मारा गया। शहजादा दारा, सामूगढ़ के युद्ध में औरंगजेब से हारा। औरंगजेब ने महाराणा राजसिंह (उदयपुर) का पद बढ़ाकर 6000 जात व 6000 सवार, जिसने 1000 सवार दो अस्पा तीन अस्पा कर दिया। बादशाह ने मेवाड़ के महाराणा राजासिंह के नाम बसाड, गयासपुर, बाँसवाड़ा, देवलिया, डूंगरपुर आदि का फरमान किया।
- 15 जनवरी, 1659 - जोधपुर नरेश जसवंत सिंह खजुवाह का युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व ही शाह शूजा के इशारे पर औरंगजेब की सेना में लूटमार कर मारवाड़ चला गया।
- 14 मार्च, 1659 - औरंगजेब व दारा शिकोह के बीच दोराई (अजमेर) का युद्ध।
- 1660 ई. - महाराणा राजसिंह का किशनगढ़ की राजकुमारी से विवाह।
- 1662 ई. - राजसमुद्र (राजसमंद झील) निर्माण प्रारंभ।
- 1663 ई. - जसवंत सिंह की हाड़ी रानी में राई का बाग बनवा कर हाड़ीपुर बसाया।
- 1664 ई. - औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी को दबाने के लिए नियुक्त किया।
- 1665 ई. - औरंगजेब ने आदेश जारी किया कि भविष्य में बाहर से लाए जाने वाले माल पर चुंगी मुसलमानों से ढाई प्रतिशत तथा हिन्दुओं से 5% वसूली जायेगी।
- 11 जून, 1665 - शिवाजी ने मिर्जा राजा जयसिंह से पुरन्दर की संधि की। बादशाह ने मिर्जा राजा जयसिंह का मनसब 7000 सवार दो अस्पा सिंह अस्पा शिवाजी के विरुद्ध सफलता प्राप्त करने के कारण दिया।
- 1667 ई. - आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह की बुरहानपुर में मृत्यु।
- 1669 ई. - मथुराधीश की प्रतिमा बूँदी लाई गई जो 1744 में कोटा ले जाई गई।
- 1670 ई. - राजसमन्द झील का निर्माण कार्य पूर्ण।
- 1671 ई. - कल्याणसिंह नरुका को माचेड़ी (अलवर) की जागीर आमेर नरेश रामसिंह ने दी।
- 1672 ई. - नाथद्वारा में गोवर्धन नाथ की मूर्ति स्थापित।
- 1676 ई. - राजसमुद्र का नामकरण।
- 1678 ई. - बांसवाड़ा का फरमान महारावल कुशल सिंह के नाम पर। अनूप सिंह ने अनूपगढ़ का निर्माण कराया जोधपुर नरेश जसवंत सिंह की मृत्यु।
- 1679 ई. - बादशाह ने सेना जोधपुर पर कब्जा करने के लिए भेजी। जोधपुर के महाराज अजीत सिंह का लाहौर में जन्म। बादशाह औरंगजेब ने हिन्दुओं से जजिया वसूल करने की आज्ञा जारी की। नागौर के इन्द्रसिंह राठौड़ को बादशाह द्वारा जोधपुर का राजा बनाकर भेजा गया। बादशाह ने यह प्रथा बंद की जिसके अनुसार जब बड़े-बड़े राजाओं को राज्य सौंपा जाता था तब बादशाह स्वयं उनके तिलक करता था। दुर्गादास राठौड़ बालक अजीत सिंह को लेकर जोधपुर पहुँचा। बालक महाराजा अजीत सिंह का राजतिलक संस्कार किया गया। बादशाह ने जोधपुर पर पुनः कब्जा करने के लिए सेना भेजी। मारवाड़ में मुगल फौजदार नियुक्त किया गया। राजपूत स्वाधीनता संघर्ष प्रारंभ।
- 1680 ई. - मुगल सेना ने देबारी (मेवाड़) पर अधिकार किया। औरंगजेब ने आमेर के मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया 22 अक्टूबर, 1680 ई. महाराज राजसिंह का देहांत।
- 1681 ई. - मुहम्मद अकबर ने देसूरी में औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कर अपने आपको बादशाह घोषित कर दिया। महाराणा जयसिंह तथा शहजादा मुअज्जम राजसमुद्र में मिले और संधि की। बादशाह औरंगजेब ने महाराणा जयसिंह को 5000 जात, 5000 सवार की मनसब देकर पुर, मांडल, मुबारकपुर, माण्डलगढ़ व बदनोर के परगने दिये।
- 1688 ई. - सवाई जयसिंह का जन्म।
- 1690 ई. - बादशाह ने उदयपुर के महाराणा को उससे लिए पुर तथा बदनोर के परगने वापस दे दिये तथा उनका मनसब 6 हजारी कर दिया।
- 1706 ई. - बूँदी का जोधसिंह हाड़ा गणगौर की प्रतिमा सहित तालाब में डूबा तब से प्रसिद्ध है 'हाडो ले डुब्यो गणगौर'
- 1707 ई. - महाराज अजीत सिंह ने जोधपुर दुर्ग में प्रवेश किया। औरंगजेब के पुत्रों मुअज्जम तथा आजम के बीच जाजऊ के मैदान में युद्ध जिसमें कोटा का रामसिंह मारा गया। मेहराब खां जोधपुर का फौजदार नियुक्त।
- 1708 ई. - बादशाह आमेर पहुँचा तथा आमेर का नाम मोमीनाबाद (बहादुर शाह) रखा तथा उसे खालसा घोषित किया। महाराज अजीत सिंह आनन्दपुर (मेड़ता के निकट) बादशाह बहादुरशाह के समक्ष आत्मसमर्पण किया तथा बादशाह ने अजीत सिंह को महाराजा की पदवी दी। बादशाह ने आमेर राज्य विजय सिंह को देकर उसे सवाई राजा की पदवी दी तथा विजयसिंह की माता को एक लाख के जेवहरात दिये। महाराज अजीत सिंह ने आमेर नरेश जयसिंह व मेवाड़ के राणा अमरसिंह की सहायता से जोधपुर के किले पर फिर से अधिकार कर लिया। आमेर से जोधपुर की सेनायें सांभर पहुँची व वहाँ से मुगल सेना को भगा दिया। जयसिंह ने महाराजा अजीत सिंह की सहायता से आमेर पर कब्जा किया। बादशाह ने जयसिंह को आमेर का तथा अजीत सिंह को जोधपुर का शासक मान लिया।
- 1710 ई. - बादशाह ने जोधपुर नरेश अजीत सिंह को 4000 जात व 4000 सवार का मनसब दिया।
- 1712 ई. - बादशाह जहाँदार शाह ने जजिया कर बंद करने की घोषणा की। जोधपुर नरेश अजीत सिंह ने अजमेर पर अधिकार कर लिया।
- 1713 ई. - जहाँदार शाह और फर्रुखसियर के बीच सामूगढ़ युद्ध के अंत में चूड़ामन जाट ने दोनों पक्षों को लूटा। बादशाह फरुखसियर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जजिया कर बंद कर दिया। चूड़ामन बादशाह द्वारा बुलाए जाने पर दिल्ली पहुँचा। आमेर नरेश जयसिंह को पहली बार मालवा का सूबेदार नियुक्त किया। बादशाह ने चूड़ामन जाट को बहादुर खाँ की उपाधि तथा राव का पद दिया।
- 1714 ई. - जोधपुर नरेश अजीत सिंह को गुजरात का सूबेदार नियुक्त करने का फरमान भेजा। अजीत सिंह की पुत्री इन्द्र कुंवरी का बादशाह फारूखसियर से विवाह, हिन्दू तथा मुस्लिम मिश्रित रीति से हुआ।
- 1718 ई. - चूड़ामन अपने भतीजे के साथ दिल्ली बादशाह से समझौता करने गया। अजीत सिंह दिल्ली में बादशाह से मिला। बादशाह ने उसे राजराजेश्वर की उपाधि दी। दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु।
- 1719 ई. - जजिया कर बंद कर दिया गया तथा हिन्दुओं पर धार्मिक स्थानों की यात्रा करने पर प्रतिबंध हटाए गये। अजीत सिंह को अपनी पुत्री (फर्रुखसियर की बेगम) को हिन्दू धर्म में शुद्ध करने उसे जोधपुर ले जाने की अनुमति बादशाह ने दी।
- 1720 ई. - कोटा के महाराव भीम सिंह ने बूँदी पर अधिकार किया बादशाह मुहम्मद शाह ने चूड़ामन को ठाकुर की पदवी तथा अधिकार दिये।
- 1721 ई. - बादशाह ने आमेर नरेश जयसिंह को 'सरमहाराज' की उपाधि दी।
- 1727 ई. - जयपुर नगर की नींव सवाई जयसिंह ने रखी।
- 1730 ई. - जोधपुर के पास खेजड़ली गाँव में हरे वृक्षों को बचाने के लिए 363 स्त्री पुरुषों ने बलिदान दिया। जोधपुर के महाराज अभयसिंह ने अहमदाबाद पर आक्रमण किया आमेर का महाराज तीसरी बार मालवा का सूबेदार नियुक्त।
- 1733 ई. - सवाई जयसिंह का मराठों से मन्दसौर के पास युद्ध हुआ। जयसिंह को युद्ध में असफल होने पर मराठों को चौथ देने हेतु समझौता करना पड़ा।
- 1734 ई. - मराठों का मुकाबला करने के लिए मेवाड़ की सीमा पर हुरड़ा नामक स्थान पर राजस्थान के 5 नरेशों- जयपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर, किशनगढ़ का सम्मेलन हुआ तथा एक अहमदनामा लिखा गया। सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ किया। जयपुर में गोविन्द देवजी के मंदिर की स्थापना।
- 1733 ई. - मराठों ने सांभर को लूटा। गोविन्द देव जी के मंदिर का निर्माण पूर्ण। गोविन्द देवजी की मूर्ति 1714 में वृन्दावन से लाकर आमेर के वृन्दावन बाग में रखी गई थी और वहाँ से जयपुर में इस वर्ष मंदिर निर्माण के पश्चात् स्थापित की गई।
- 1736 ई. - पेशवा चौथ वसूलने के उद्देश्य से उदयपुर पहुँचा।
- 1741 ई. - जोधपुर नरेश अभयसिंह तथा उसके भाई बख्तसिंह द्वारा जयपुर नरेश जयसिंह के साथ मगवाणा के मैदान में युद्ध हुआ जिसमें जोधपुर की सेना ने जयपुर की सेना को काफी नुकसान पहुँचाया।
- 1743 ई. - जयपुर नरेश सवाई जयसिंह की मृत्यु।
- 1744 ई. - कोटा का बूँदी पर कब्जा।
- 1745 ई. - बूँदी नरेश उम्मेदसिंह ने जयपुर की सेना को बिथौड़ (बूँदी) के युद्ध में हराया।
- 1745 ई. - उदयपुर के महाराणा ने नाथद्वारा में कोटा व बूँदी के शासकों के साथ संधि की।
- 1748 ई. - जयपुर नरेश ईश्वरी सिंह व अहमदशाही अब्दाली के बीच मानपुर में युद्ध हुआ। अब्दाली हारा। मल्हार राव होल्कर व गंगाधर राव ने जयपुर के 4 परगनों पर कब्जा कर लिया। कोटा महाराव ने सिन्धिया को दो लाख देने का इकरार किया। बगरू गाँव के पास माधव सिंह कच्छवाहा ने मल्हार राव होल्कर उदयपुर के महाराणा तथा जोधपुर के अभयसिंह राठौड़ को सम्मिलित सेना के साथ जयपुर के ईश्वरी सिंह से युद्ध किया। ईश्वरी सिंह युद्ध में हारा व होल्कर की शर्तों को स्वीकार किया।
- 1750 ई. - बख्त सिंह व रामसिंह की सेना के बीच पीपाड़ के निकट युद्ध। जयपुर नरेश ईश्वरी सिंह ने आत्महत्या की। सूरजमल को राजा का खिताब बादशाह से मिला।
- 1751 ई. - जयपुर ने मराठों के विरुद्ध दंगे। बख्तसिंह ने जोधपुर पर अधिकार किया।
- 1752 ई. - बादशाह अहमद शाह द्वारा भरतपुर के बदनसिंह को महेन्द्र की पदवी देकर राजा बना दिया गया और सूरजमल को राजेन्द्र की पदवी देकर कुँवर बहादुर बना दिया गया।
- 1754 ई. - गंगारडा के युद्ध में जोधपुर नरेश विजयसिंह, बीकानेर नरेश गजसिंह व किशनगढ़ नरेश बहादुर सिंह मराठा जयअप्पा से हारे।
- 1755 ई. - विजय सिंह ने मराठों से संधि की।
- 1759 ई. - रणथम्भौर के किले पर कब्जा करने के लिए कांकोड़ के मैदान में जयपुर व होल्कर की सेना के बीच युद्ध।
- 1760 ई. - अहमदशाह अब्दाली ने डीग के चौफेर घेरा डाला महाराज विजयसिंह ने जोधपुर नगर में गंग श्याम मंदिर बनवाया।
- 1761 ई. - भरतपुर नरेश सूरजमल ने आगरा नगर व किले पर कब्जा किया। जोधपुर के महाराज विजय सिंह ने अपने चाँदी के सिक्के चलाए।
- 1763 ई. - भरतपुर महाराज सुरजमल का मुगल सेनापति नजीबुद्दौला से दिल्ली के निकट युद्ध।
- 1764 ई. - भरतपुर नरेश सूरजमल ने तीन मास तक दिल्ली का घेरा रखकर उठा लिया।
- 1773 ई. - उदयपुर का महाराणा अरिसिंह बूँदी के राव अजीतसिंह द्वारा मारा गया।
- 1774 ई. - मिर्जा नजफ ने भरतपुर नरेश से आगरा खाली करवाया।
- 1775 ई. - माचेड़ी नरेश प्रताप सिंह ने अलवर से भरतपुर के जाटों का कब्जा हटा कर उसे अपनी राजधानी बना अलवर राज्य की स्थापना की। बादशाह ने उसे जयपुर राज्य से स्वतंत्र माना।
- 1776 ई. - मिर्जा नजफ ने सम्पूर्ण भरतपुर परगने के जाट राज्य पर अधिकार कर लिया परन्तु विपरा रानी की प्रार्थना पर वापस लौटा दिया।
- 1779 ई. - बादशाह ने जयपुर नरेश प्रताप सिंह का टीका किया तथा दोनों के बीच समझौता। गोहद के महाराज लोकेन्द्र ने अंग्रेजों से मित्रता संधि की।
- 1780 ई. - जोधपुर नरेश विजयसिंह ने बादशाह से अनुमति लेकर अपने नाम से विजयशाही चाँदी के रुपए चलाए तथा जोधपुर व नागौर की टकसाल चालू हुई।
- 1781 ई. - जोधपुर टकसाल में शुद्ध सोने की मोहरें बनने लगी। महाद जी सिंधिया तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच संधि जिसके अनुसार सिन्धिया लोकेन्द्र के राज्य तथा उसके कब्जे वाले ग्वालियर दुर्ग पर कोई आक्रमण नहीं करेगा जब तक लोकेन्द्र अंग्रेजों से हुई संधि की शर्तों का पालन करता रहेगा।
- 1786 ई. - महादजी सिंधिया तथा बादशाह ने कर प्राप्ति के लिए जयपुर में प्रवेश किया।
- 1787 ई. - तूँगा का युद्ध, जिसमें जयपुर तथा जोधपुर की सम्मिलित सेना ने मराठों को हराया। (जयपुर शासक प्रताप सिंह, जोधपुर नरेश विजयसिंह)
- 1789 ई. - जयपुर नरेश प्रताप सिंह तथा मराठों के बीच पाटन का युद्ध जिसमें मराठों की विजय। इस युद्ध में सिंधिया की सेना ने जोधपुर नरेश, जयपुर नरेश व ईस्माइल बेग को पाटण के युद्ध में हराया। मेड़ता का युद्ध-जोधपुर नरेश विजय सिंह तथा मराठों के बीच, जिसने मराठों की विजय।
- 1791 ई. - अजमेर दुर्ग सिंधिया के सुपुर्द।
- 1796 ई. - झाला जालिम सिंह द्वारा झालरापाटन कस्बे की नींव रखी गई।
- 1798 ई. - महात्मा रामचरण दास की शाहपुरा में मृत्यु।
- 1799 ई. - जयपुर में हवामहल का निर्माण।
- 1800 ई. - जॉर्ज टोमस (थॉमस) ने अपने इतिहास ग्रंथ में सबसे पहले राजपूताना शब्द का प्रयोग किया।
- 1803 ई. - गवर्नर वेलेजली ने तय किया कि राजस्थान के नरेश भारत के उत्तर पश्चिम में सुरक्षा के लिए ठीक रहेंगे। अतः उनको स्वतंत्रता की गारंटी दे दी जाये। गवर्नर जनरल वेलेजली ने जयपुर नरेश को प्रस्तावित संधि की शर्तें भेजी।
- 25 सितंबर, 1803 - भरतपुर नरेश रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से स्थायी मित्रता की संधि की जिसके अनुसार कृष्णगढ़ कटुम्बर, रेवाड़ी, गोकुल और सेहड़ के पाँच परगने भरतपुर राज्य में माने गये।
- 1 नवम्बर, 1803 - अलवर के लसवाड़ी मैदान में मराठों तथा अंग्रेज सेनापति लेक की फौजों के मध्य युद्ध। जिसमें सिन्धिया तथा पेशवा की सम्मिलित फौज की करारी पराजय हुई। अलवर ने इस युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया। अलवर नरेश बख्तावर सिंह को जनरल लेक से महत्वपूर्ण सहायता देने के कारण, 13 परगने मिले। जिसमें नीमराणा (राठ) का इलाका भी शामिल था। क्योंकि राठ ने युद्ध में मराठों का साथ दिया था।
- 12 दिसम्बर, 1803 - जयपुर महाराजा की मित्रता पारस्परिक सहायता के लिए अंग्रेजों से संधि हुई।
- 22 दिसम्बर, 1803 - जोधपुर नरेश मानसिंह और अंग्रेज सरकार के बीच मित्रता व पारस्परिक सहयोग हेतु सन्धि हुई।
- 1804 ई. - लॉर्ड लेक ने डीग में होल्कर और भरतपुर नरेश रणजीत सिंह को हराकर भरतपुर का घेरा डाला। भरतपुर नरेश ने होल्कर को अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता दी।
- 25 नवम्बर, 1804 -प्रतापगढ़ के महारावल ने अंग्रेजी सरकार से मित्रता व सहायता की संधि की।
- 16 अप्रैल 1805 - बीकानेर के सूरत सिंह द्वारा भटनेर दुर्ग मंगलवार के दिन जीता गया तथा इसका नाम हनुमान गढ़ रखा गया।
- 1805 ई. - जोधपुर नरेश मानसिंह ने जोधपुर किले में हस्तलिखित पुस्तकों का एक पुस्तकालय पुस्तक प्रकाश स्थापित किया। जोधपुर में महामंदिर की प्रतिष्ठा। लार्ड लेक ने होल्कर सिंधिया तथा अमीर खां की सम्मिलित सेना को बैर (भरतपुर) में हराया। अंग्रेजों ने भरतपुर का घेरा उठा लिया। भरतपुर नरेश ने होल्कर का साथ छोड़ दिया व अंग्रेजों से संधि कर ली।
- 17 अप्रैल 1805 - भरतपुर नरेश ने अंग्रेजों से दुबारा मित्रता व आपसी सहायता की संधि की। इस संधि से 1803 में अंग्रेजों द्वारा दिये गये 5 परगने भरतपुर से ले लिये गये तथा भरतपुर नरेश ने 20 लाख युद्ध के हर्जाने के रूप में अंग्रेजों को दिये।
- 1807 ई. - जयपुर व जोधपुर की सेना के बीच परबतसर की घाटी (गिंगोली) में युद्ध हुआ। जोधपुर की सेना हारी। (जयपुर का शासक जगतसिंह तथा जोधपुर नरेश रामसिंह) कृष्णा कुमारी विवाद (मेवाड़ भीमसिंह की पुत्री)
- 1810 ई. - उदयपुर के महाराणा भीमसिंह ने अमीर खाँ के प्रस्ताव पर कृष्णा कुमारी को जहर पीला कर मार डाला।
- 1817 ई. - नवम्बर 9, करौली राज्य ने अंग्रेजों से मित्रता व सहायता की संधि की।
- 26 दिसंबर 1817 - कोटा राज्य ने अंग्रेजों से मित्रता व सहायता की संधि की।
- 1818 ई. - 6 जनवरी, जोधपुर, 13 जनवरी उदयपुर, 10 फरवरी बूंदी, 20 फरवरी कोटा द्वारा अंग्रेजों से मित्रता व सहायता की संधि की।
- 8 मार्च 1818 - कर्नल टॉड मेवाड़ व हाड़ौती का पॉलिटीकल एजेन्ट नियुक्त होकर उदयपुर पहुँचा।
- 9 मार्च - बीकानेर, 2 अप्रैल जयपुर में कंपनी से सहायता व मित्रता संधि की।
- 16 सितम्बर - बाँसवाड़ा से अंग्रेजों ने सहायता व मित्रता संधि की।
- 5 अक्टूबर - प्रतापगढ़ राज्य से अंग्रेजों ने संरक्षण में लेने की संधि की।
- 31 अक्टूबर 1818 - सिरोही राज्य की अंग्रेजों से मित्रता व सहायता की संधि हुई।
- 20 नवम्बर - नसीराबाद में अंग्रेजी छावनी की स्थापना।
- 11 दिसम्बर, 1818 - डूंगरपुर एवं 12 दिसम्बर, 1818 जैसलमेर से अंग्रेजों ने सहायता व मित्रता की संधि। अजमेर में पहला अंग्रेजी स्कूल खोला गया लेकिन 1831 में बंद हो गया।
- 1821 ई. - कोटा नरेश महारावल किशोर सिंह, कर्नल टॉड व जालिम सिंह की फौज से हारा। महारावल हारकर नवम्बर, 12 को नाथद्वारा चला गया और कोटा राज्य को श्रीनाथ जी को अर्पित किया।
- 1822 ई. - मेरवाड़ा बटालियन की स्थापना की गई जिसमें मेर व मीणा ही भर्ती किये गये।
- 11 सितंबर 1823 - सिरोही राज्य द्वारा अंग्रेजों से मित्रता व संरक्षण के लिए संधि की गई।
- 1824 ई. - डूंगरपुर व बांसवाड़ा राज्यों ने स्थानीय सेना रखने के लिए अंग्रेजों से संधि की। गलियाकोट (डूंगरपुर) के पीर फखरुद्दीन की कब्र पर मेला भरने लगा।
- 1825 ई. - उत्तराधिकार मामले को लेकर अग्रजा ने भरतपुर पर आक्रमण किया।
- 1826 ई. - भरतपुर गढ़ पर अंग्रेजों का कब्जा।
- 1828 ई. - मारवाड़ में अव्यवस्था बताकर लार्ड विलियम बैंटिंक ने महाराजा मानसिंह को राजगद्दी से हटाया। हम्मीर रासो = जोधराज द्वारा नीमराणा में रचना। हम्मीर रासों को बाद में काशी की नागरी प्रचारिणी सभा ने छापा।
- 4 दिसंबर, 1828 - लार्ड विलियम बैटिंक ने सती प्रथा बंद की। (1830 अलवर), (1844 जयपुर), (1846 डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़) 1848 (जोधपुर) (कोटा में 1856) उदयपुर किशनगढ़ के अलावा शेष सभी राज्यों में ईसर हेतु 1860 में आदेश पारित किये गये। कर्नल टॉड ने वर्तमान राजस्थान प्रांत के लिए अपने इतिहास लेखन में पहली बार 'राजस्थान' शब्द का प्रयोग किया।
- 1832 ई. - अजमेर में राजपूताना रेजीडेन्सी कायम।
- 1834 ई. - 5 अप्रैल, जैसलमेर व बीकानेर की सेनाओं के बीच वासवाणी की लड़ाई हुई। राजस्थान के दो राज्यों के बीच यह अंतिम लड़ाई थी। जयपुर राज्य में शेखावाटी ब्रिगेड बनाई गई। कोटा तथा उदयपुर राज्यों में कन्यावध गैर कानूनी घोषित।
- 1835 ई. - जोधपुर लीजियन का गठन।
- 1837 ई. - एरिनपुरा छावनी (सिरोही) स्थापित की गई। बीकानेर नरेश रतनसिंह ने गपा में राजपूतों को अपनी पुत्रियों को न मारने की प्रतिज्ञा करवाई।
- 1838 ई. - अंग्रेजी सरकार द्वारा जालिम सिंह (कोटा) के वंशज मदन सिंह को 17 परगने देकर झालावाड़ की स्थापना की गई। कोटा के लिए कोटा कोण्टिनेंट की स्थापना।
- 1839 ई. - अजमेर कमिश्नर सदरलैण्ड ने अंग्रेजी सेना लेकर जोधपुर दुर्ग पर कब्जा किया। मेवाड़ भील कोर की स्थापना।
- 1841 ई. - अलवर व भरतपुर राज्यों में अंग्रेजी शिक्षा की पहली स्कूल स्थापित।
- 1844 ई. - जयपुर, जोधपुर, उदयपुर राज्यों में कन्या वध गैर कानूनी घोषित। जयपुर में अंग्रेजी शिक्षा की पहली स्कूल स्थापित। जयपुर में महाराजा कॉलेज की स्थापना।
- 1845 ई. - एजीजी का कार्यालय अजमेर से आबू लाया गया।
- 1847 ई. - जयपुर राज्य में बच्चों को बेचने को अवैध घोषित किया।
- 1848 ई. - अजमेर नगर की पहली बार जनगणना।
- 1853 ई. - उदयपुर में डाकन प्रथा गैर कानूनी घोषित।
- 1854 ई. - सिरोही के राव शिव सिंह ने अपने राज्य का प्रबंध और अच्छी तरह चलाने के लिए अंग्रेजों को सौंपा।
- 1856 ई. - जयपुर में रामनिवास बाग की नींव रखी गयी।
- 1857 ई. - भारत में सिपाही विद्रोह मेरठ से प्रारंभ।
- 21 मई - एरिनपुरा में सैनिक विद्रोह।
- 28 मई - नसीराबाद छावनी में सेना की दो टुकड़ियों ने सशस्त्र विद्रोह किया।
- 31 मई - भरतपुर की सेना ने होड़ल में विद्रोह किया।
- 3 जून - नीमच छावनी नष्ट कर विद्रोही सैनिक निम्बाहेड़ा पहुँच वे उस पर कब्जा किया।
- 11 जुलाई - नीमच तथा नसीराबाद के विद्रोही सैनिकों ने अछनेरा में अलवर राज्य की सेना पर आक्रमण किया।
- 8 सितम्बर - बिठुड़ा/बिथोड़ा (आऊवा) के निकट जोधपुर की सेना तथा आऊवा के कुशाल सिंह के मध्य युद्ध।
- 18 सितम्बर - एजीजी लॉरेन्स का आऊवा पर आक्रमण कैप्टन मोकमेसन मारा गया, जिसके शव को किले पर लटका दिया गया, लेरिन्स अजमेर भागा।
- 15 अक्टूबर - कोटा राज्य की सेना ने मेहताब खां के नेतृतव में अंग्रेजी रेजीडेन्सी पर आक्रमण कर दिया। डॉ. सेडलर, मेजर बर्टन मारे गये। कोटा की इस आजाद सेना ने 6 महीने तक मेहताब खां तथा जयदयाल के नेतृत्व में प्रजा की इच्छानुसार शासन चलाया। जोधपुर के किले पर चामुण्डा माता के मंदिर का पुनः निर्माण हुआ।
- 1858 ई. - बम्बई से आई अंग्रेजी सेना ने विद्रोहियों को हरा कर कोटा पर कब्जा कर लिया। राजस्थान की रियासतों के सिक्कों पर बादशाह के नाम के स्थान पर महारानी विक्टोरिया का नाम लिखा जाने लगा। तात्या टोपे झालरापाटन पहुँचे। तात्या टोपे के साथियों ने बाँसवाड़ा पर कब्जा कर लिया लेकिन बाद में अंग्रेजी सेना के आने पर विद्रोही मेवाड़ की ओर भागे।
- 23 दिसम्बर - तात्यां टोपे के सैनिकों का प्रतापगढ़ में अंग्रेजी सेना से सामना हुआ।
- 30 जनवरी - कैप्टन होम्स तथा जोधपुर सेना की संयुक्त सेना द्वारा आऊवा पर आक्रमण। कुशाल सिंह सलूम्बर-केशरसिंह के यहाँ चले गये। कालिका माता मूर्ति होम्स अजमेर ले गया। टेलर आयोग के सुझाव पर कुशाल सिंह को छोड़ा।
- 14 जनवरी, 1859 - ब्रिगेडीयर शावर्स जयपुर और भरतपुर के बीच देवसां मे तात्यां और फिरोजशाह की सेना के बीच लड़ाई।
- 21 जनवरी, 1859 - कर्नल होम्स ने सीकर में तात्यां की सेना को पराजित किया।
- 1860 ई. - झालावाड़ नरेश पृथ्वी सिंह ने झालरापाटन के पास नवलखां दुर्ग की नींव रखी। ब्यावर नगर में ईसाई धर्म प्रचार हेतु मिशन केन्द्र स्थापित।
- 1861 ई. - बीकानेर नरेश को सिपाही विद्रोह के वक्त की सेवा के उपलक्ष्य में सिरसा जिले के टी.बी. परगने के 41 गाँव मिले। मेवाड़ में सती प्रथा व जीते जी समाधि लेना गैर कानूनी घोषित किया गया। साथ ही स्त्रियों को डायन कहा जाकर मारा जाना वैध किया गया। जयपुर में पहला मेडिकल कॉलेज खोला गया।
- 1861 ई. - निम्बाहेड़ा परगना, उदयपुर से वापस लिया जाकर टोंक के नवाब को दिया गया।
- 1862 ई. - "मार्च 1862 राजस्थान के समस्त नरेशों को सिवाय टोंक के नवाब के गोद लेने का अधिकार अंग्रेजी सरकार से मिला। टोंक के नवाब को यह अधिकार 28 मई, 1862 को मिला।"
- 1863 ई. - बूंदी में अंग्रेजी स्कूल खुला।
- 1864 ई. - आऊवा के कुशाल सिंह, आजादी की अलख जगाने वाले सूरमा का उदयपुर में स्वर्गवास हुआ। ब्यावर नगर में ईसाई मिशन में लियो प्रेस खोला गया। अजमेर तथा जयपुर में तारघर खुले। (मई, 6) करौली में पहला अंग्रेजी स्कूल खुला। आगरा से अजमेर तक तार लाईन चालू की गई।
- 1865 ई. - उदयपुर में अंग्रेजी भाषा की शिक्षा दी जाने लगी। जोधपुर के महाराज तख्त सिंह और अंग्रेजी सरकार के बीच रेल्वे के लिए मुफ्त भूमि देने के लिए अहदनामा लिखा गया। जोधपुर से मारवाड़ गजट का प्रकाशन। नवम्बर, 19 गवर्नर जनरल लॉर्ड लॉरेन्स ने आगरा में दरबार किया जिसमें कई नरेश उपस्थित हुए। जयपुर, उदयपुर तथा भरतपुर में कन्या पाठशालायें खोली गई।
- 1867 ई. - टोंक का नवाब राजगद्दी से हटाया गया तथा लावा ठिकाना टोंक से स्वतंत्र किया गया।
- 1867 ई. - जोधपुर में प्रथम अंग्रेजी स्कूल खुला।
- 1868 ई. - 7 अगस्त, जयपुर नरेश एवं अंग्रेजों के बीच सांभर नमक समझौता (27 जनवरी, 1835 अंग्रेजों ने सांभर नगर तथा झील पर कब्जा किया था)।
- फरवरी, 1870 - जयपुर तथा जोधपुर नरेशों ने सांभर झील अंग्रेजों को सौंपी। लार्ड मेयो ने अजमेर में राजस्थान के राजाओं का दरबार लगाया।
- 1872 ई. - बीकानेर में पहला सरकारी स्कूल खुला।
- 1873 ई. - जयपुर में FA तक शिक्षा देते हुए महाराजा कॉलेज स्थापित। कोटा में पहला डाकघर खुला। जोधपुर नगर में चोरों पर नियंत्रण रखने के लिए रात को एक के बदले दो तोपे दागे जाने की आज्ञा दी गई।
- अप्रैल, 1874 - आगरा फोर्ट बाँदीकुई रेल प्रारंभ।
- 12 जून, 1874 - स्वामी दयानंद सरस्वती की सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ की रचना। प्रकाशन 1882, उदयपुर से।
- 21 अक्टू., 1875 - मेयो कॉलेज प्रारंभ।
- 10 अप्रैल, 1875 - आर्य समाज की मुम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापना।
- 1879 ई. - जोधपुर-अंग्रेजों के बीच डीडवाना, पचपदरा, फलौदी नमक संधि।
- 1883 ई. - आर्य समाज की परोपकारिणी सभा का पुनर्गठन कर उदयपुर में पंजीयन हुआ।
- अगस्त 12, - दयानन्द सरस्वती जोधपुर पहुँचे।
- सितम्बर, 29, - स्वामी दयानन्द को जोधपुर में जहर दिया गया।
- अक्टूबर, 16 - दयानन्द जोधपुर से आबू रवाना।
- अक्टूबर 30 - अजमेर में दयानन्द की मृत्यु।
- दिसम्बर 28 - अजमेर में स्वामी दयानन्द की परोपकारिणी सभा का प्रथम अधिवेशन हुआ।
- 1887 ई. - जोधपुर में महिला स्कूल स्थापित हुआ।
- 1888 ई. - राजपूताने के एजीजी कर्नल वाल्टर की अध्यक्षता में वाल्टर राजपूत हितकारिणी सभा अजमेर में स्थापित की गई।
- 1889 ई. - जोधपुर राज्य में सरदार रिसाला (घुड़सवार सेना) संगठित की गयी। जमनालाल बजाज का जन्म।
- 1890 ई. - भीलवाड़ा में कपास और ऊन ओटने का कारखाना स्थापित हुआ।
- 1891 ई. - खेतड़ी का अजीत सिंह आबू में विवेकानन्द से मिला।
- 1895 ई. - अजमेर में पहला साप्ताहिक राजपूताना टाइम्स चालू किया। श्याम जी कृष्ण वर्मा को उदयपुर की महदराज सभा का सदस्य नियुक्त किया गया।
- 1897 ई. - बिजौलिया किसान आंदोलन प्रारंभ।
- 1900 ई. - सर प्रताप सिंह जोधपुर रिसाला लेकर चीन युद्ध के लिए रवाना। विजयशाही सिक्का (जोधपुर) बंद, जोधपुर टकसाल बंद।
- 1 जनवरी, 1903 - दिल्ली दरबार में राजस्थान के कई नरेश सम्मिलित हुए। उदयपुर महाराणा दिल्ली जाकर भी दरबार में उपस्थित नहीं हुआ।
- 1905 ई. - बंगाल विभाजन। सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की लहर से राजस्थान भी प्रभावित।
- 1908. ई. - अजमेर में राजपूताना संग्रहालय स्थापित।
- 1911 ई. - जोधपुर राज्य में सोमवार के स्थान पर इतवार की साप्ताहिक छुट्टी की घोषणा।
- 12 दिसम्बर, 1911 - दिल्ली दरबार, आयोजित राजधानी कलकत्ता बनायी गई।
- 1912 ई. - जोधपुर में चीफ कोर्ट की स्थापना।
- 23 दिसम्बर, 1912 - दिल्ली में वायसराय हार्डिंग पर चाँदनी चौक में बम फेंका गया।
- 1913 ई. - बाँसवाड़ा में शासन द्वारा आक्रांत किये जाने पर भील आंदोलन का प्रारंभ। मानगढ़ हत्याकाण्ड-मेवाड़ भील कोर तथा वेलेजली राइफल्स द्वारा 1500 भील मारे गये तथा गोविन्द गुरू को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 1915 ई. - जोधपुर में मरुधरा हितकारिणी सभा स्थापित। जोधपुर में अजायबघर तथा पुस्तकालय की स्थापना।
- 21 फरवरी, 1915 - राव गोपाल सिंह तथा विजय सिंह पथिक द्वारा खरवा के निकट सशस्त्र क्रांति की तिथि निश्चित की गई लेकिन यह योजना सफल नहीं हो सकी।
- 1916 ई. - बिजौलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व विजयसिंह पथिक ने संभाला। इस हेतु 1919 में सरकार ने जाँच आयोग गठित किया परन्तु मेवाड़ के जागीरदारों के दबाव के चलते जाँच आयोग की सिफारिशें लागू नहीं की जा सकी।
- 1918 ई. - झालावाड़ नरेश को वंशानुगत महाराज राणा की पदवी भारत सरकार द्वारा।
- 1920 ई. - जोधपुर में मारवाड़ सेवा संघ का भँवरलाल सर्राफ की अध्यक्षता में गठन हुआ।
- 1921 ई. - जमना लाल बजाज ने राव बहादुर की पदवी त्यागी। राजाओं के नरेन्द्र मण्डल की स्थापना, जिसकी अध्यक्षता गंगासिंह बीकानेर द्वारा। राजस्थान सेवा संघ की स्थापना वर्धा में 1919 में की गई।
- 1922 ई. - सिरोही राज्य की रोहिड़ा तहसील में मोतीलाल तेजावंत के नेतृत्व में भील व रासिया आंदोलन हुआ।
- 1923 ई. - विजय सिंह पथिक गिरफ्तार।
- 1924 ई. - मरुधर मित्र हितकारिणी सभा का नाम बदलकर मारवाड़ हितकारिणी सभा किया गया। जोधपुर में नाप तौल आंदोलन।
- 1925 ई. - जोधपुर के इतिहासकार जगदीश सिंह गहलोत ने पहली बार राजस्थान की भाषा राजस्थानी घोषित करने तथा राजस्थानी सम्मेलन (अकादमी) स्थापित करने की माँग विभिन्न रियासतों से की। 14 मई, 1925, नीमूचणा हत्याकाण्ड।
- 1926 ई. - जोधपुर राज्य ने दरोगा प्रथा बंद की।
- 1927 ई. - गंगनहर का उद्घाटन वायसराय इरविन द्वारा किया गया। 1927 दिसम्बर, 17, बम्बई में अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद् का प्रथम अधिवेशन हुआ जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांतों और देशी राज्यों का संघ बनाये जाने की माँग रखी गई। जयनारायण व्यास को राजपूताना शाखा का मंत्री नियुक्त किया गया।
- 1928 ई. - राजस्थान में पहली महिला डॉक्टर पार्वती गहलोत जोधपुर राज्य की स्वास्थ्य सेवा में नियुक्त की गई।
- 1929 ई. - मोतीलाल तेजावत गिरफ्तार। 12 सितम्बर, 1929 जोधपुर में मारवाड़ राज्य प्रजा परिषद् के अधिवेशन पर रोक लगाई गई। जयनारायण व्यास तथा आनन्द राज सुराणा को गिरफ्तार किया गया। 12 मई, 1929 वनस्थली टोंक में हीरालाल शास्त्री द्वारा जीवन कुटीर नामक संस्था स्थापित हुई। 18 नवम्बर, जोधपुर में उम्मेद भवन महल की नींव रखी गयी।
- 1930 ई. - जोधपुर में पहली बार दुर्गादास जयंती चाँदमल सारदा के सभापतित्व में मनाई गई।
- 1931 ई. - बिजौलिया किसान आंदोलन अंतिम चरण।
- 23 नवम्बर, 1931 राजपूताना तथा मध्य भारत का प्रान्तीय राजनैतिक परिषद सम्मेलन अजमेर में हुआ जिसकी अध्यक्षता कस्तूरबा ने की।
- जुलाई, 1931 जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना।
- सितम्बर, 1931 कोटा में हाड़ौती प्रजामण्डल की स्थापना।
- नवम्बर, 1931 जोधपुर हवाई क्लब खुला।
- नवम्बर, 1931 बूँदी में प्रजामण्डल की स्थापना।
- 1933 ई. - झालावाड़ नरेश ने मंदिरों में अछूतों को दर्शन करने की छूट दी और छुआछूत समाप्त किया।
- 1934 ई. - मारवाड़ प्रजामण्डल स्थापित।
- 1935 ई. - लोहारू के सिंहानी तथा आसपास के अन्य गाँवों में भीषण गोलीकाण्ड व नृशंस हत्याकाण्ड।
- 1936 ई. - जोधपुर में संग्रहालय तथा पुस्तकालय के नए भवन का उद्घाटन वायसराय लार्ड विलिंगटन द्वारा किया गया। 4 अक्टूबर, 1936 बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना। नवम्बर, 1936 जयपुर प्रजामण्डल का पुनर्गठन। जोधपुर में रणछोड़दास गट्टानी की अध्यक्षता में नागरिक स्वतंत्रता संघ की स्थापना हुई।
- 1937 ई. - अप्रैल, 1937 भारतीय शासन अधिनियम 1935 का प्रांतीय भाग लागू किया गया।
- 1938 ई. - जयपुर सरकार द्वारा जमनालाल बजाज को गिरफ्तार किया गया। जयपुर में जमनालाल बजाज की गिरफ्तारी पर गाँधी जी ने धमकी दी कि वे इसे एक अखिल भारतीय मामला बना देंगे। 8-9 मई 1938 जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना, लेकिन 11 मई को ही इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। जोधपुर नगर को पाली से पानी पहुँचने के लिए 56 मील लम्बी सुमेर सामन्द नहर का उद्घाटन हुआ।
- 1938 ई. - जोधपुर में मारवाड़ लोकपरिषद् की स्थापना की गई। अलवर, जैसलमेर, शाहपुरा में प्रजामण्डलों की स्थापना।
- 1939 ई. - सिरोही में प्रजामण्डल की स्थापना। 15-16 फरवरी, 1939 अखिल भारतीय प्रजामण्डल का छठा अधिवेशन जवाहरलाल नेहरू के सभापतित्व में लुधियाना में हुआ।
- 1941 ई. - टोंक में मजलिसे आम का उद्घाटन। सागरमल गोपा जैसलमेर राज्य द्वारा गिरफ्तार किये गये। अर्जुनलाल सेठी की मृत्यु। जोधपुर के नगरपालिका चुनावों में लोकपरिषद् ने बहुमत प्राप्त किया।
- 1942 ई. - जमनालाल बजाज की मृत्यु। जोधपुर में उत्तरदायी शासन माँग दिवस मनाया गया। देशी राज्यों के शासकों के प्रतिनिधि के रूप में बीकानेर नरेश शार्दुल सिंह ने सर स्टेफर्ड क्रिप्स से बातचीत की। बालमुकुन्द बिस्सा की मृत्यु। मिर्जा ईस्माईल को जयपुर राज्य का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
- 1942 ई. - प्रजामण्डल के स्थान पर बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् स्थापित हुई। जयपुर में हाईकोर्ट स्थापित किया गया। जोधपुर में उत्तरदायी शासन मांग दिवस मनाया गया।
- 1942 ई. - प्रजामण्डल के स्थान पर बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् स्थापित हुई। मेवाड़ के प्रजामण्डल ने महाराणा के समक्ष भारत छोड़ो प्रस्ताव रखा ताकि वे अंग्रेजों से सम्बन्ध तोड़ लेवें।
- 1943 ई. - बीकानेर नरेश गंगासिंह का देहान्त हुआ। बूंदी में प्रतिनिधि धारा सभा का निर्माण हुआ।
- 1944 ई. - जोधपुर राज्य के उन समस्त कैदियों को जो भारत रक्षा नियम के अन्तर्गत जेल में थे, मुक्त कर दिया। जयपुर ने केन्द्रीय व जिला सलाहकारी बोर्डों को भंग कर 51 सदस्यों की विधान परिषद व 125 सदस्यों की विधानसभा बनाने की घोषणा की। जोधपुर महाराज ने जोधपुर संविधान अधिनियम बनाया।
- 1945 ई. - बीकानेर में संवैधानिक सुधारों की घोषणा की गई। जयपुर राज्य परिषद् व विधानसभा का उद्घाटन महाराज सवाई मानसिंह ने किया। देशी राज प्रजा परिषद के प्रधान जवाहरलाल नेहरू का जोधपुर आगमन। दिसम्बर, 31 उदयपुर में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में देशी राज्य लोक परिषद का वृहत अधिवेशन हुआ जो तीन दिन तक चला।
- 1946 ई. - जैसलमेर जेल में सागरमल गोपा को पेट्रोल से जलाकर मार डाला।
- 26 नवम्बर, 1946 - झालावाड़ प्रजामण्डल की स्थापना।
- 1947 ई. - राजपूताना विश्वविद्यालय की स्थापना।
- 13 मार्च, 1947 - डीडवाना के डाबडा गाँव में किसान सम्मेलन हुआ जिसमें पाँच किसान मारे गये तथा किसान सभा के कई कार्यकर्त्ताओं के साथ जागीरदारों ने मारपीट की।
- 1 अप्रैल, 1947 - जोधपुर राज्य का नया संविधान लागू। जोधपुर में हाईकोर्ट स्थापित।
- 1947 ई. - मेवाड़ संविधान बना, जिसके अन्तर्गत विधानसभा गठित होनी थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में रियासती सचिवालय स्थापित हुआ। शाहपुरा राज्य में संविधान घोषित। बीकानेर महाराजा ने बीकानेर राज्य में विधान बनाया जिसमें के सदन राज्यसभा तथा धारा सभा होते थे।
- 1948 ई. - सिरोही को गुजरात राज्य ऐजेन्सी का भाग बना दिया गया। जोधपुर महाराज ने लोकप्रिय मारवाड़ी सरकार बनाने की घोषणा की। अलवर नरेश को यह आदेश दिया गया कि वे अपना राज्य का प्रशासन केन्द्र को सौंप दें। मत्स्य संघ बनाने का समझौता किया गया। अलवर भरतपुर धौलपुर करौली राज्यों का संघ 'मत्स्य संघ' बना जिसका राजप्रमुख धौलपुर नरेश को तथा राजधानी अलवर रखी गई। कोटा राज्य छोटे राजस्थान में सम्मिलित। कोटा, बूँदी, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, झालावाड़, टोंक, किशनगढ़ राज्यों को सम्मिलित कर 25 मार्च, 1948 को राजस्थान संघ का निर्माण हुआ।
- 4 अप्रैल, 1948 - संयुक्त राजस्थान में उदयपुर सम्मिलित हुआ। इसका उद्घाटन जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया।
- 8 नवम्बर 1948 - सिरोही को केन्द्रीय प्रशासन के अन्तर्गत लिया गया 18 अप्रैल, संयुक्त राजस्थान संघ का निर्माण।
- 1949 ई. - आबू पर केन्द्रीय सरकार के आदेश से बम्बई सरकार का शासन स्थापित हुआ। 14 जनवरी, जोधपुर, जयपुर, बीकानेर, जैसलमेर रियासतों के राजस्थान में विलय की घोषणा सरदार पटेल ने की।
- 30 मार्च, 1949 - जयपुर, जोधपुर बीकानेर, जैसलमेर राज्य वृहत राजस्थान सम्मिलित।
- 7 अप्रैल 1949 - राजस्थान प्रशासन अध्यादेश बनाया जाकर लागू किया गया। जयपुर में राजस्थान का प्रथम मंत्रिमण्डल हीरालाल शास्त्री की अध्यक्षता में बनाया गया। जयपुर नरेश मानसिंह राज प्रमुख बने।
- 15 मई, 1949 - मत्स्य संघ राज्य में सम्मिलित। सी.एस. बैंकटाचारी की अध्यक्षता में राजस्थान में जाँच कमेटी संगठित की गई। राजस्थान जोधपुर में स्थापित। राजस्व मण्डल बनाये जाने का कानून लागू।
- 22 दिसंबर 1949 - राजस्थान लोकसेवा आयोग कानून लागू किया गया।
- 1950 ई. - अजमेर भारत में विलीन हुआ तथा सिरोही राज्य की आबू तथा देलवाड़ा तहसीलों को छोड़कर, जो बम्बई राज्य में मिलाई गई थी, राजस्थान में सम्मिलित।
- 1951 ई. - हीरालाल शास्त्री ने मुख्यमंत्री पद छोड़ा। जयनारायण व्यास राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। राजस्थान नगर पालिका कानून लागू।
- 29 मार्च 1952 - 160 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा का उद्घाटन। 3 मार्च टीकाराम पालीवाल मुख्यमंत्री।
- 1 अप्रैल, 1955 - आकाशवाणी जयपुर प्रसारण प्रारंभ।
- 28 जनवरी 1958 - राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर में स्थापित। राजस्थान की सब जागीरों का पुनर्ग्रहण किया गया।

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