भरतपुर जाट राजवंश

भरतपुर जाट राजवंश

भरतपुर का जाट राजवंश राजस्थान के प्रमुख शासक वंशों में से एक माना जाता है। यह वंश सिनसिनी गाँव से उत्पन्न हुआ तथा इनका गोत्र वार बताया गया है। भरतपुर के जाट स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज मानते हैं, जिसके कारण इन्हें वैष्णव परंपरा का अनुयायी भी माना जाता है।
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भरतपुर जाट राजवंश की कुलदेवी राजेश्वरी माता हैं, जिनकी पूरे राजवंश तथा जनता द्वारा अत्यंत श्रद्धा से पूजा की जाती है।

वीर गोकुल (1660-70 ई.)
तिलपत का जमींदार व सिनसिनी गाँव से था।
शिवाजी के गुरु रामदास से प्रभावित होकर जाटों के नेता बने।
इन्होंने मथुरा के फौजदार अब्दुल नब्बी की हत्या कर दी जो मंदिर तोड़ो अभियान का प्रमुख था।

तिलपत (हरियाणा) का युद्ध (1669 ई.)
औरंगजेब ने हसन खाँ मेवाती के नेतृत्व में सेना भेजी, गोकुल व उसके दादा सिद्धा को आगरा की कोतवाली के सामने मरवा दिया।

राजा राम जाट (1670-88 ई.)
राजा राम ने मऊ गढ़ी के थानेदार लाल बेग को मार दिया, क्योंकि इसने अहिर स्त्री का अपहरण किया था।
राजा राम ने सिकन्दरा (आगरा) में अकबर की कब्र को लूटा (1688 ई.) था।
राजा राम को भी आगरा की कोतवाली में औरंगजेब ने मरवा दिया।

चूड़ामन (1695-1721 ई.)
चूड़ामन को भरतपुर जाट राजवंश का संस्थापक व बिना ताज का जाट राजा कहा जाता है।
चूड़ामन ने आजम व मुअज्जम के मध्य हुए जाजऊँ के युद्ध में धन लूटा। इस धन से थून का किला बनवाया।
बहादुरशाह-1 ने चूड़ामन को 1500 जात व 500 घुड़सवार का मनसबदार बनाया।
फर्रुखसियर ने चूड़ामन को 'राव बहादुर खाँ' व 'राह दार खाँ' की उपाधि दी।
कानुनगों के अनुसार एक भेड़िये को भेड़ों के रेवड़ का रखवाला बना दिया।

बदनसिंह (1623-56 ई.)
उपाधि - बृजराज ठाकुर (सवाई जयसिंह द्वारा प्रदत्त)
बदनपुरा कस्बा बसाया। सवाई जयसिंह ने 1731 ई. में मथुरा में बदनसिंह को 'राव' की उपाधि दी।
बदनसिंह ने डीग के जल महल बनवाये।
कवि सोमनाथ बदनसिंह के दरबार में था।
कुम्हेर (भरतपुर, 1726 ई.) व बैर (भरतपुर) का दुर्ग बनाया।

भरतपुर दुर्ग

पूर्व में इसे 1700 ई. में खेमा जाट ने बनवाया था। 1733 ई. में महाराजा सुरजमल ने बनवाया।
भरतपुर दुर्ग में मोती झील व सुजान गंगा का पानी आता है।
पश्चिम की ओर अष्टधातु का दरवाजा लगा है, जिसे जवाहर सिंह लाल किले से उखाड़ कर लाया था। ये दरवाजा 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ से लाया था।
दुर्ग में जवाहर बुर्ज बना है, जहाँ जाट राजाओं का राज्याभिषेक होता था।
जवाहर बुर्ज सबसे ऊँचा बुर्ज है।
अलीगढ़ किले का निर्माण सुरजमल ने करवाया।
डीग के अन्दर 1756 ई. में बदनसिंह की मृत्यु हुई।
जदुनाथ सरकार के अनुसार "बदनसिंह के पिछले वर्षों का इतिहास वास्तव में सुरजमल का इतिहास है।"

महाराजा सुरजमल (1756-63 ई.)
उपनाम- 18वीं सदी का कनिष्क/जाटों का प्लेटो/अफलातुन
भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट (मुस्लिम इतिहासकारों ने कहा)।
मुगल सम्राट ने सूरजमल को 'राजेन्द्र' की उपाधि व 'कुँवर महादुर' का पद देकर सम्मानित किया।
जन्म- 1707 ई. बसन्त पंचमी
पत्नी- (1) किशोरी देवी काशी की पुत्री।
(2) हांसिया नाहरसिंह का जन्म हुआ।
(3) गंगा- जवाहर सिंह का जन्म हुआ।
जयपुर के उत्तराधिकारी बगरू के युद्ध में सुरजमल, ईश्वरसिंह की ओर से लड़े थे।
कुँवर सुरजमल ने पुरानी दिल्ली पर आक्रमण किया, वे दिल्ली से संगमरमर का झूला लाये थे, जो डीग के गोपाल महल में लगवाया।

पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी, 1761 ई.)
अहमद शाह अब्दाली व सदाशिव राव भाऊ के मध्य हुआ। मराठा हार के बाद जब जाट राज्य में आये तब सूरजमल ने उनकी सहायता की।
अब्दाली व जवाहर सिंह के मध्य चौमुंहा का युद्ध हुआ था।
सुरजमल का आगरा पर अधिकार (12 जून, 1761 ई.) में किया।

सुरजमल का अन्तिम युद्ध
दिल्ली विजय के समय सैय्यद मोहम्मद खाँ बलुच के नेतृत्व में सुरजमल पर अचानक से आक्रमण किया।
25 दिसम्बर, 1763 ई. में महाराजा सुरजमल की मृत्यु हुई।
महाराजा सुरजमल ने जीवन में 24 लड़ाईयाँ लड़ी।
कानूनगो ने लिखा है, "उसमें अपनी जाति के सभी गुण शक्ति, साहस, चतुराई, निष्ठा और कभी पराजय स्वीकार न करने वाली अदम्य भावना विद्यमान थी।"
इसके शासनकाल में पुरोहित मंगल सिंह द्वारा 'सुजान समत विलास' नाम ग्रन्थ लिखा जिसमें सूरजमल के बारे में जानकारी मिलती है। कविवर सुदन व अखैराज गर्ग नामक कवि सूरजमल के दरबार में थे।

जवाहर सिंह (1764-68 ई.)
उपाधि- महाराजा, सवाई तथा भारतेन्दु
दिल्ली पर आक्रमण अक्टूबर, 1764 ई. जवाहर सिंह दिल्ली पहुँचा। फ्रांसिसी जनरल समरू, जवाहर सिंह के साथ था।
जवाहर सिंह ने शहादरा को लूटा।
लाल किले से अष्ट धातु का दरवाजा, काले संगमरमर का पलंग व मदरसा उठाकर लाये। दिल्ली विजय के उपलक्ष्य में जवाहर सिंह ने जवाहर बुर्ज बनवाया, इस पर भरतपुर जाट राजाओं का राजतिलक होता था।
1761 ई. में जवाहर सिंह की माता किशोरी देवी ने पुष्कर की यात्रा की। पुष्कर में जाट घाट बनवाया। वापस लौटते समय जयपुर के शासक माधोसिंह प्रथम ने जवाहर सिंह पर आक्रमण कर दिया। इनके मध्य माऊण्डा (सीकर) में युद्ध हुआ।

रतनसिंह (1768-1769 ई.)
1769 ई. में रूपानंद गुसाई ने वृंदावन में उसकी हत्या कर दी।

केसरी सिंह/केहरी सिंह (1769-1775 ई.)

महाराजा रणजीत सिंह (1777-1805 ई.)
29 सितम्बर, 1803 ई. को रणजीत सिंह अंग्रेज सेनापति लॉर्ड लेक से संधि कर ली। अक्टूबर, 1804 ई. रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के विरूद्ध होल्कर को शरण देकर संधि तोड़ दी। इस कारण लार्ड लेक ने भरतपुर दुर्ग पर आक्रमण (1803-05 ई.) किया। भरतपुर दुर्ग लोहागढ़ नाम से प्रसिद्ध हुआ। 10 अप्रैल, 1805 ई. में पुनः संधि कर ली। अंग्रेजों से विजय के उपलक्ष्य में रणजीत सिंह ने लोहागढ़ दुर्ग में 'फतेह बुर्ज' बनवाई।

नोट
अंग्रेज आक्रमण के समय दुर्जन सिंह और माधोसिंह की वीरता के बारे में एक कहावत प्रचलित है- "आठ फिरंगी नौ गौरा, लड़े जाट के दो छौरा"

महाराणा रणधीर सिंह (1805-1823 ई.)
अपने पिता 'रणजीत सिंह की छतरी' व एक महल का निर्माण करवाया।
1818 ई. में इन्होंने अंग्रेजों के साथ संधि की थी।

महाराणा बलदेव सिंह (1823-1825 ई.)

महाराणा बलवंत सिंह (1825-1853 ई.)
बलवंत सिंह के अवयस्क होने के कारण राजमाता अमृत कुँवरी के नेतृत्व में 'रीजेन्सी कौंसिल' का गठन किया गया तथा शासन कार्य पॉलिटिकल एजेन्ट को सौंपा गया।
गंगा मंदिर-बलवंत सिंह ने बनवाया, महाराजा बृजेन्द्र सिंह ने इसमें मूर्ति लगवाई यह राजस्थान का एकमात्र गंगा मंदिर है।
जामा मस्जिद-महाराजा बलवंत सिंह ने बनवाई

महाराजा जसवंत सिंह (1853-1893 ई.)
शासन कार्य पॉलिटिकल एजेण्ट 'मॉरिसन' ने सम्भाला था।
1857 ई. की क्रान्ति के समय भरतपुर के शासक।
1879 ई. में अंग्रेजों के साथ नमक संधि की।

महाराणा रामसिंह (1893-1900 ई.)
इन्होंने 1900 ई, आबू में निजी सेवक की हत्या कर दी। इस कारण ब्रिटिश सरकार ने इन्हें दिल्ली छावनी भेज दिया।

कृष्णसिंह/किशनसिंह (1900-29 ई.)
इन्होंने उर्दू के स्थान पर हिन्दी को राजभाषा बनाया।
किशनसिंह ने शिमला में 'ब्रजमण्डल' की स्थापना की।
किशनसिंह ने भरतपुर में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया और 'भारत वीर' नामक पत्र निकाला।
हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए सर्वप्रथम प्रयास किया था।

बृजेन्द्र सिंह (1938-48)
एकीकरण के समय भरतपुर का शासक था।

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