जैसलमेर, करौली, अलवर का इतिहास
जैसलमेर, करौली और अलवर के समृद्ध इतिहास के बारे में जानें। यह लेख भाटी (जैसलमेर), जादौन (करौली) और नरुका कछवाहा (अलवर) राजवंशों के उदय, प्रमुख युद्धों, सांस्कृतिक विरासत और ब्रिटिश काल के दौरान उनकी भूमिका को विस्तार से बताता है। राजस्थान की इन प्रमुख रियासतों की वीरगाथाएँ और ऐतिहासिक महत्व समझें।
जैसलमेर का भाटी वंश
जैसलमेर के भाटी चन्द्रवंशीय यादव थे और अपना सम्बन्ध भगवान कृष्ण से जोड़ते थे। भाटियों का मूल स्थान पंजाब माना जाता है।
भट्टीय
भाटी राजवंश संस्थापक/आदि पुरुष-मूल पुरुष कहलाता है।
भट्टीय नामक व्यक्ति ने 285 ई. में भाटी वंश की स्थापना की। इसने भटनेर का किला बनवाकर इसे अपनी राजधानी बनाया।
मंगलराव भाटी
मंगलराव भाटी को गजनी के डुण्डी ने पराजित कर भटनेर से निकाल दिया, तत्पश्चात् इसने तनोट को राजधानी बनाया।
मंगलराव बाद उसका पुत्र केहर व केहर बाद तनु शासक बना। केहर ने तनु नाम पर एक शहर व तनोट माता मंदिर बनवाया। तनु तनोट राजधानी बनाई।
विजय राज प्रथम
इसे चूडाला भी कहा जाता है। यह तनु का पुत्र था। इसके समय बाराह व लंगाह राजपूतों ने तनोट पर आक्रमण किया।
देवराज भाटी
इसने लोद्रवा को राजधानी बनाया।
'महारावल' उपाधि धारण की।
विजय राज प्रथम
इसने उत्तरप्रदेश के राजा को हराया तब विजय राज द्वितीय ने 'उत्तर भड किवाड' की उपाधि धारण की।
रावल जैसल
रावल जैसल ने 1155 ई. में जैसलमेर बसाकर इसे अपनी राजधानी बनाया।
रावल जैसल ने ही जैसलमेर के स्वर्णगिरि (सोनगढ़) किले का निर्माण प्रारम्भ करवाया था जिसे उसके पुत्र शालिवाहन द्वितीय ने पूर्ण करवाया।
जैसलमेर के किले में चूने का प्रयोग नहीं किया गया बल्कि यह पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया गया है।
जैत्रसिंह
इनके समय अलाऊदीन का शाही खजाना जैसलमेर होकर दिल्ली जा रहा था, तब जेत्रसिंह पुत्र मूलराज व रतनसिंह शाही खजाना के लूट लिया। अलाऊदीन ने सेना भेजी घेराबंदी के समय ही जैत्रसिंह की मृत्यु हो गई।
रावल मूलराज प्रथम
मूलराज प्रथम के समय अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) ने जैसलमेर पर आक्रमण किया। इसी समय जैसलमेर का प्रथम साका हुआ।
रावल दूदा
रावल दूदा के समय फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.) ने आक्रमण किया, परिणामतः जैसलमेर का दूसरा साका हुआ।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार ये साका 1370-71 ई. में हुआ।
रावल लूणकरण
जैसलमेर के रावल लूणकरण ने अपनी पुत्री ऊमादे (रूठी रानी) का विवाह राव मालदेव से किया था।
जैसलमेर का तीसरा साका रावल लूणकरण के समय 1550 ई. में शरणागत अमीर खाँ के विश्वासघात के कारण हुआ।
तीसरे साके को 'अर्द्धसाका 'कहा जाता है। इसमें पुरुषों ने तो वीरगति प्राप्त की परन्तु महिलाओं ने जौहर नहीं किया क्योंकि भाटी सेना अन्ततः विजयी रही थी।
लुणकरण ने अपने पिता के समय 'जेतबंध यज्ञ' किया व इसमें उन भाटियों को बुलाया जिन्होंने सिंध जाकर इस्लाम स्वीकार कर लिया। ये शुद्धिकरण सम्बन्धित प्रथम घटना है।
रावल हरराय
रावल हरराय ने 1570 ई. में नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार कर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये।
रावल अमरसिंह
रावल अमरसिंह ने सिन्धु नदी का पानी जैसलमेर लाने के लिए 'अमरप्रकाश' नामक नाले का निर्माण करवाया था।
रावल अखैसिंह
अखैसिंह ने अखैशाही मुद्रा तथा जैसलमेर रियासत में तौलने हेतु नवीन बाटों का प्रचलन किया था। जैसलमेर रियासत में कर प्रणाली को निश्चित व नियमित करने का श्रेय अखैसिंह को दिया जाता है।
मूलराज द्वितीय
12 दिसम्बर, 1818 ई. को अंग्रेजों से अधीनस्थ सन्धि की।
गजसिंह
महारावल गजसिंह ने अफगान युद्ध (1878 ई.) में अंग्रेजों को सहायता दी थी।
रणजीतसिंह
रणजीतसिंह के समय ही जैसलमेर की शिल्प कला को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई।
महारावल जवाहरसिंह
महारावल जवाहरसिंह जैसलमेर के भाटी राजवंश के अन्तिम शासक थे।
इनके समय ही प्रसिद्ध क्रान्तिकारी सागरमल गोपा को 4 अप्रैल, 1946 ई. को तेल डालकर जीवित जला दिया गया था। सागरमल गोपा ने 'जैसलमेर का गुण्डाराज' नामक पत्रिका लिखी थी।
नोट
सागरमल गोपा की मृत्यु के कारणों की जाँच करने के लिए 'गोपाल स्वरूप पाठक आयोग' गठित किया गया जिसने इस घटना को आत्महत्या बताया।
एकीकरण के समय जवाहरसिंह ने जोधपुर महाराजा हनुवंतसिंह के साथ मिलकर पाकिस्तान में शामिल होने का प्रयास किया था।
करौली का यादव वंश
ये चन्द्रवंशी या यदुवंशी कहलाते हैं। ये अपना सम्बन्ध मथुरा के सुरसेनी शाखा से भगवान कृष्ण से जोड़ते हैं।
विजयपाल
करौली के यादव राजवंश की स्थापना 1040 ई. में विजयपाल ने की। वह मथुरा के यादव वंश से सम्बन्धित था।
विजयपाल ने बयाना को राजधानी बनाया। बयाना के विजयमन्दिरगढ़ किले का निर्माण विजयपाल ने करवाया था।
तवनपाल
विजयपाल के पुत्र तवनपाल या तिमनपाल ने तिमनगढ़ बसाया तथा किले का निर्माण करवाकर इसे अपनी राजधानी बनाया।
अर्जुनपाल
अर्जुनपाल ने 1348 ई. में कल्याणपुर (वर्तमान करौली) नगर की स्थापना की।
इन्होंने करौली में 'सिटी पैलेस' भवन का निर्माण करवाया।
धर्मपाल द्वितीय
इसने 1650 ई. में करौली को राजधानी बनाया।
गोपालपाल
गोपालपाल ने करौली में मदनमोहन मन्दिर का निर्माण करवाया। यह राजस्थान में गौड़ीय सम्प्रदाय की द्वितीय पीठ माना जाता है।
इसने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी।
हरबख्मपाल
9 नवम्बर, 1817 ई. को अंग्रेजों से सन्धि की। करौली राजस्थान की प्रथम रियासत थी जिसने अंग्रेजों से अधीनस्थ सन्धि की।
करौली राज्य पेशवा को खिराज देता था लेकिन ईस्ट इंडिया कम्पनी ने करौली को खिराज से मुक्त रखा।
हरबख्सपाल के बाद प्रतापपाल (1873-1848 ई.) उसके बाद नरसिंह पाल शासक बने।
मदनपाल
1857 ई. के विद्रोह के समय कोटा महाराव रामसिंह की सहायता के लिए सेना भेजी थी।
ब्रिटिश सरकार ने इनसे खुश होकर मदनपाल को 'ग्रांड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ स्टार ऑफ इण्डिया' की उपाधि दी।
स्वामी दयानन्द सरस्वती राजस्थान में सर्वप्रथम 1865 ई. में करौली में मदनपाल के समय ही आए थे।
मदनपाल के बाद लक्ष्मणपाल, जयसिंह पाल, अर्जुनपाल (1876-1886 ई.), भंवरपाल (1886-1927 ई.) आदि हुए।
इनके शासनकाल में करौली में ब्रिटिश सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ।
भौमपाल (1927-1940 ई.)
इसने द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की सहायता की।
गणेशपाल (1940-1947 ई.)
करौली का अंतिम शासक, एकीकरण के समय करौली का शासक था।
अलवर राज्य
कनिंघम के अनुसार साल्वपुर से सल्वर फिर हलवर और फिर अलवर बना। आमेर के रामसिंह ने 1671 ई. में कल्याणसिंह नरूका को माचेड़ी की जागीर प्रदान की थी। वह कच्छवाहों की नरूका शाखा से सम्बन्धित था।
प्रतापसिंह नरूका (1775-1790 ई.)
अलवर राज्य की स्थापना 1774 ई. में प्रतापसिंह नरूका ने की।
मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय ने 1774 ई. में प्रतापसिंह नरूका को माचेड़ी का पृथक् शासक स्वीकार कर उसे 'रावराजा बहादुर' की उपाधि प्रदान की।
दिसम्बर, 1775 ई. में प्रतापसिंह ने जाटों से अलवर छीनकर इसे राजधानी बनायी।
1770 ई. - प्रतापसिंह ने राजगढ़ दुर्ग व टहला दुर्ग बनवाया।
1772 ई. - मालाखेड़ा दुर्ग व बलदेवगढ़ दुर्ग बनवाया।
बख्तावरसिंह (1790-1815 ई.)
इसने लासवाड़ी के युद्ध (1803 ई.) में मराठों के खिलाफ अंग्रेजों को सहायता दी थी।
नवम्बर, 1803 ई. - अंग्रेजों ने अलवर राज्य के साथ मैत्री सन्धि की।
बख्तावर सिंह बख्तेश तथा चन्द्रमुखी नाम से कविताएँ लिखते थे।
1793 ई. - बख्तावरसिंह ने सिटी पैलेस का निर्माण करवाया।
विनयसिंह (1815-1857 ई.)
विनयसिंह ने अलवर में 80 खम्भों वाली मूसीरानी की छतरी का निर्माण करवाया। मूसीरानी बख्तावरसिंह की पासवान थी।
1845 ई. - विनयसिंह ने अपनी रानी शीला के लिए सिलीसेढ़ झील के किनारे सिलीसेढ़ महल का निर्माण करवाया।
इस समय नीमराणा अलवर से अलग ठिकाना बना।
नोट
विनयसिंह ने मेव जाति से सुरक्षा के लिए रघुनाथगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
1857 ई. - क्रान्ति के दौरान विनय सिंह ने अंग्रेजों की सहायता की।
शिवदान सिंह (1857-1874 ई.)
मंगल सिंह (1874-1892 ई.)
जयसिंह
महाराजा जयसिंह ने ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग की शिकार यात्रा के दौरान सरिस्का पैलेस का निर्माण करवाया था।
1918 ई. - विजयमन्दिर महल का निर्माण जयसिंह ने करवाया था।
जयसिंह ने नरेन्द्र मंडल के सदस्य के रूप में प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। नरेन्द्र मंडल को यह नाम अलवर महाराजा जयसिंह ने ही दिया था।
1925 ई. - नीमूचाणा हत्याकाण्ड के समय अलवर का शासक था।
1902 ई. - ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग के आगमन पर सरिस्का पैलेस बनवाया।
इन्होंने उर्दू के स्थान पर हिन्दी को राजभाषा बनवाया।
अंग्रेजों ने इन्हें राजगद्दी से हटा दिया। पेरिस में इनका निधन हुआ।
तेजसिंह (1937-1948 ई.)
आजादी व एकीकरण के समय अलवर के शासक थे।

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