गुर्जर प्रतिहार वंश
रविकीर्ति जैन द्वारा रचित ऐहोल अभिलेख, जो चालुक्य सम्राट पुलकेशिन द्वितीय से जुड़ा है, उसमें पहली बार गुर्जर जाति का उल्लेख मिलता है।
647 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद हुए राजनीतिक विखराव और हुणों के आक्रमण से हुए नुकसान को संभालने में गुर्जर-प्रतिहार राजवंश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय राजनीति में उनके योगदान को अत्यंत विशिष्ट माना जाता है।
गुर्जर-प्रतिहार अपने को लक्ष्मण (भगवान राम के भाई) का वंशज बताते हैं।
चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो में वर्णित कथा के अनुसार, वशिष्ठ मुनि के अग्निकुंड से सबसे पहले प्रतिहार उत्पन्न हुए थे।
- राजस्थान के प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेखक मुहणोत नैणसी ने प्रतिहारों की 26 शाखाओं का उल्लेख किया है।
- भारत के उत्तरी पश्चिम क्षेत्र अर्थात् गुर्जराजा क्षेत्र में निवास के कारण प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहने लगे। राठौड़ों से पहले मारवाड़ पर गुर्जर प्रतिहारों का राज था।
- ग्वालियर प्रशस्ति में गुर्जर प्रतिहारों को सौमित्र (लक्ष्मण) का वंशज बताया।
- चीनी यात्री हवेन्सांग ने गुर्जर राज्य को 'कु-चे-लो' व 'पिलोमोलो' (भीनमाल) कहा।
- सुलेमान ने कहा गुर्जर राज्य जीभ की आकृति के समान था व सुरक्षित था।
- गुर्जर प्रतिहारों का शासन छठी से बारहवीं शताब्दी तक रहा। 8वीं व 10वीं शताब्दी शक्तिशाली थे।
- गुर्जर प्रतिहारों ने 200 साल तक अरब आक्रमणकारियों को रोका।
- बौक शिलालेख (जोधपुर) के अनुसार गुर्जर प्रतिहार छठी शताब्दी के द्वितीय चरण में मारवाड़ में आ गए थे।
- प्रारम्भ में गुर्जर प्रतिहारों के राजस्थान में दो प्रमुख केन्द्र थे: 1. मण्डौर, 2. भीनमाल।
- उत्तर भारत में गुर्जर प्रतिहारों के दो प्रमुख केन्द्र 1. कन्नौज 2. उज्जैन।
प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ द्वारपाल होता है। अरब आक्रमणकारियों से गुर्जर प्रतिहार शासकों ने हमारी रक्षा की।
- गुर्जरात्रा प्रदेश की राजधानी-भीनमाल (जालौर)
गुर्जर प्रतिहार शैली/महामारू शैली
8-12वीं शताब्दी उत्तर भारत में मंदिर निर्माण शैली को महामारू/गुर्जर प्रतिहार शैली कहते थे। इस शैली में बने अधिकांश मंदिर सूर्य या विष्णु भगवान को समर्पित है।
इस शैली में बने राजस्थान में मुख्य मन्दिर
- नारायणी माता - राजौरगढ़, अलवर
- हर्षद माता - आभानेरी, दौसा
- कामेश्वर महादेव मन्दिर - आऊवा, पाली
- ओसियाँ के सूर्य मन्दिर - जोधपुर
- किराडु का सोमेश्वर मन्दिर - बाड़मेर
गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों के मत
| मत | विद्वान |
|---|---|
| क्षत्रिय | डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा |
| ईरानी मूल के | जॉर्ज कैनेडी (इंग्लैण्ड) |
| विदेशी | जैक्शन, डॉ. भण्डारकर |
| कुषाण वंशी (शक) | कनिंघम |
| हूण वंशी | स्मिथ स्टेनफोनी |
| भारतीय मूल के | डॉ. दशरथ शर्मा, के.एम. मुंशी, गोपीनाथ शर्मा |
- अरब यात्री अलमसूदी ने गुर्जर प्रतिहारों को अलगुर्जर तथा राजा को बोरा बताया है।
- गुर्जर प्रतिहारों की कुलदेवी चामुण्डा माता।
- जोधपुर के घटियाला से संस्कृत भाषा के दो अभिलेख मिले हैं। जिसमें प्रथम अभिलेख 861 ई. का है इसमें प्रतिहार शासक कक्कुक का वर्णन है। गुर्जर प्रतिहारों का समय 8वीं से 10वीं सदी माना जाता है। गुर्जर प्रतिहारों की चार प्रमुख शाखाएँ थी।
मण्डौर के प्रतिहार
घटियाला शिलालेख में लिखा है कि छठी शताब्दी के द्वितीय चरण में एक हरीशचन्द्र नाम का ब्राह्मण विद्वान था।
रज्जिल के पोते नागभट्ट प्रथम ने मण्डोर को राजधानी बनाया, जोधपुर शिलालेखों के अनुसार मारवाड़ के प्रतिहार वंश का उदय छठीं शताब्दी के दूसरे चरण में हो चुका था।
रज्जिल
यह 560 ई. में मण्डोर का शासक बना तथा इसके बाद ही प्रतिहारों की वंशावली प्रारम्भ हुई।
इसने राजसूय यज्ञ किया था। इनके दरवारी बाह्यण नरहरि ने इसे राजा की उपाधि दी।
रोहिसकूप नामक स्थान पर रज्जिल ने महामण्डलेश्वर मन्दिर बनवाया।
नरभट्ट
इसने विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया।
ब्राह्मणों के गुरूओं का संरक्षणकर्ता होने के कारण इसे पिल्लीपणी की उपाधि मिली।
चीनी यात्री हवेनसांग ने अपनी पुस्तक सी.यू.की. में नरभट्ट के साहसी कार्यों के कारण पेल्लोपेल्ली नाम दिया।
नागभट्ट प्रथम
इसने मण्डोर के स्थान पर मेड़ता को जीतकर अपनी राजधानी बनाया। इतिहास में इसे नाहड़ के नाम से जाना जाता है।
नागभट्ट प्रथम की रानी जज्जिका देवी से भोज व तात नामक दो पुत्र हुए।
नागभट्ट प्रथम एक महत्त्वाकांक्षी शासक था, जो साम्राज्य विस्तार की नीति रखता था।
भोज
भोज के बड़े भाई तात ने आध्यात्मिकता धारण कर ली।
शीलुक
भोज की तीन पीढ़ी के बाद चंदूक का पुत्र शीलूक 10वें शासक के रूप में मण्डोर की गद्दी पर बैठा।
इसने सिद्धेश्वर महादेव मन्दिर (जोधपुर) का निर्माण करवाया।
शीलुक ने जैसलमेर के आस पास स्थित वल्लमण्डल के शासक देवराज भाटी को हराकर अधिकार कर लिया।
झोट
झोट अच्छा वीणा वादक था। झोट ने गंगा नदी में जलसमाधि ले ली।
भिल्लादित्य
झोट का पुत्र था।
हरिद्वार में मृत्यु।
कक्क
कक्क कन्नौज शासक नागभट्ट द्वितीय का सामन्त था।
इसने नागभट्ट द्वितीय की बगाल के शासक धर्मपाल के विरुद्ध सहायता की थी।
कक्क ने पद्मनी से विवाह किया जो भाटी वंश की राजकुमारी थी, जिसके बाउक नामक पुत्र हुआ।
कक्क की रानी दुर्लभ देवी से कक्कुक का जन्म हुआ। कक्क ने मुंगेर (बिहार) के गौड़ शासकों के साथ युद्ध किया।
बाउक/बालक
मण्डोर पर आक्रमण करने वाले राजा मयूर को हराया।
इसने मण्डोर के विष्णु मन्दिर में 837 ई. में प्रतिहार वंश की प्रशस्ति लगवाई।
कक्कुक
यह बाउक का सौतेला भाई था। इसने 861 ई. में दो शिलालेख स्थापित करवाये।
घटियाला शिलालेख (मण्डोर) जिनमें राजस्थान में सर्वप्रथम सती प्रथा का उल्लेख हुआ है। इस अभिलेख के अनुसार राणुका की मृत्यु पर उसकी पत्नी सम्पल देवी सती हुई थी जो राजस्थान में सती प्रथा का प्रथम प्रमाण है।
दूसरा शिलालेख रोहिन्सकूप (घटियाला) जोधपुर में महाजनो को बसाया और गाँव में बाजार बनवाए।
नोट
- भारत में सती प्रथा का प्रथम प्रमाण एरण अभिलेख (मध्यप्रदेश) में हुआ है जो 510 ई. का है।
- इस अभिलेख के अनुसार भानुगुप्त के समय हूण जाति का आक्रमण हुआ जिसमें भानुगुप्त के सामन्त गोपराज की मृत्यु हो गई तथा गोपराज की पत्नी सीता सती हो गई जो प्रथम प्रमाण है।
- 1395 ई. में इन्द्रा प्रतिहार ने अपनी पुत्री किशोर कंवर का विवाह राव चूड़ा से किया और मण्डोर उसे दहेज में दे दिया था।
- 12वीं शताब्दी के मध्य में मण्डोर के आस-पास चौहानों ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।
- मण्डोर के एक अभिलेख से सहजपाल चौहान का नाम मिलता है।
भड़ौच के प्रतिहार
सातवीं और आठवीं शताब्दी के नान्दीपुरी में दिये गए दानपात्रों से पता चलता है कि भड़ौच और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर गुर्जर प्रतिहारों का राज था।
भड़ौच के शासक स्वतंत्र शासक नहीं थे।
भड़ौच के प्रतिहारों को दानपत्रों में 'सामन्त' व 'महासामन्त' नाम से सम्बोधित किया है।
डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार- यह गुजरात के चालुक्य और गुर्जर प्रतिहारों के सामन्त थे।
भड़ौच शासकों की प्रारम्भिक राजधानी, नांदीपुरी।
भड़ौच राज्य का संस्थापक बद्व प्रथम।
नोट:
प्रभाकर वर्धन ने भड़ौच के गुर्जरों को हराया तथा हर्षवर्धन ने गुर्जरों से भीनमाल छीना था।
- दद्व द्वितीय- भड़ौच के गुर्जरों का प्रथम शक्तिशाली शासक।
- हर्षवर्धन ने वल्लभी (गुजरात) के शासक ध्रुवसेन द्वितीय को हराया तो ध्रुवसेन भागकर दद्व द्वितीय के दरबार में शरण लेता है।
- दद्व द्वितीय ने ध्रुवसेन को उसका राज्य वापिस दिला दिया।
- जयभट्ट चतुर्थ- भड़ौच के प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था। इसके बाद इस शाखा का अंत हो गया।
भीनमाल के प्रतिहार
प्रतिहारों की सबसे प्राचीन शाखा मण्डोर थी, जिसका संस्थापक हरिशचन्द्र को माना जाता है। नागभट्ट प्रथम को प्रतिहारों का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
नागभट्ट प्रथम (730-60 ई.)
- उपनाम: जालौर के गुर्जर प्रतिहारों का संस्थापक
- नागभट्ट प्रथम को मलेच्छ नाशक
- इन्द्र के घमण्ड का नाशक
- क्षत्रिय ब्राह्मण
- नागवलोक
- राम का प्रतिहार
- नारायण की मूर्ति का प्रतीक
- भीनमाल (जालौर) शाखा के संस्थापक नागभट्ट प्रथम का संबंध मण्डोर शाखा से था। इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार शाखा भी कहते हैं।
- नागभट्ट प्रथम ने 730 ई. में चावड़ो से भीनमाल छीनकर अपनी नई राजधानी बनाया।
- उज्जैन पर अधिकार कर इसने प्रतिहारों की नई शाखा स्थापित की।
- ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट ने अरब देश की मलेच्छ जाति को हराया था।
- पुलिकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम को प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है।
- हांसोट अभिलेख के अनुसार नागभट्ट प्रथम ने भड़ौच अरब शासक जुनैद से छीनकर भतृवड को दिया।
- राष्ट्रकुट शासक दन्तीदुर्ग ने नागभट्ट प्रथम को हिरण्यगर्भ यज्ञ में द्वारपाल बनाने की कोशिश की।
- यह जानकारी अमोघवर्ष प्रथम के संजन ताम्रलेख में मिलती है जो 871 ई. का है।
- नागभट्ट प्रथम के समय सभी राजपूत वंश गुहिल, चौहान, चालुक्य, चंदेल, राठौड़, परमार आदि इसके सामन्त के रूप में कार्य करते थे।
ककुस्थ/देवराज/कक्कुक (760-83 ई.)
यह नागभट्ट प्रथम का भतीजा था।
ककुस्थ ने मण्डोर में विजयस्तम्भ व विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया जो राजस्थान का दूसरा प्राचीन स्तम्भ है।
नोट
राजस्थान का प्रथम विजय स्तम्भ भरतपुर में है जिसका निर्माण समुद्रगुप्त ने करवाया था।
राजस्थान का प्रसिद्ध विजय स्तम्भ चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है जिसका निर्माण राणा कुम्भा ने करवाया था।
तनोट माता (जैसलमेर) के मन्दिर के सामने दो विजय स्तम्भ हैं जिसका निर्माण 1965 ई. की पाकिस्तान विजय पर करवाया था।
कक्कुक के बाद उसका भाई देवराज गद्दी पर बैठा। देवराज (760 से 783 ई.) को उज्जैन (अवन्ती) का शासक बनाया गया।
वत्सराज (783-95 ई.)
- यह उज्जैन के शासक देवराज व भूमिका देवी का पुत्र था।
- कुवलयमाला के लेखक उद्योतन सूरि इनके दरबार में थे।
- इसने जालौर/जाबालीपुर के प्रतिहार वंश की नींव डाली जिसकी राजधानी भीनमाल थी।
नोट
हवेनसांग ने भीनमाल को पीलोमोलो कहा है।
वत्सराज को रणहस्तिन् व जयवराह की उपाधि प्राप्त थी।
यह शैव धर्म को मानता था। पृथ्वीराज विजय के रचनाकार जयानक ने दुलर्भराज चौहान को वत्सराज का सामन्त माना है।
778 ई. में उद्योतन सूरि ने वत्सराज के समय कुवलयमाला ग्रन्थ की रचना जालौर में की। 783 ई. में हरिवंशपुराण ग्रन्थ की रचना जिनसेन सूरि ने की। वत्सराज शैव धर्म का अनुयायी था।
वत्सराज ने ओसियाँ (जोधपुर) में महावीर स्वामी का मन्दिर बनाया जो पश्चिमी भारत का प्राचीनतम मन्दिर माना जाता है।
ओसियाँ का प्राचीन नाम उपकेशपट्टन है। इसे राजस्थान का भुवनेश्वर कहते हैं। यहाँ पर उत्पल परमार ने ओसवालों की कुलदेवी सच्चिया माता का मन्दिर बनवाया, जो साम्प्रदायिक सद्भाव की कुलदेवी मानी जाती है।
वत्सराज ने कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष को शुरू किया था। इसने बंगाल के पालवंशी शासक धर्मपाल को पराजित किया लेकिन स्वयं राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से हार गया।
कन्नौज का त्रिपक्षीय संघर्ष
- कन्नौज का यह संघर्ष 752 ई. में कन्नौज के शासक यशोवर्धन की मृत्यु के बाद शुरू हुआ था।
- यशोवर्धन वर्धन वंश का शासक था।
- कन्नौज के त्रिपक्षीय संघर्ष की जानकारी अमोघवर्ष प्रथम के सज्जन ताम्रपत्र, राधनपुर अभिलेख, वाणी अभिलेख से मिलती है।
- यह संघर्ष कन्नौज पर अधिकार को लेकर बंगाल के पाल पश्चिम के प्रतिहार व दक्षिण के राष्ट्रकूटों के बीच 783 से 915 ई. में हुआ था। यह संघर्ष 6 चरणों में हुआ था।
प्रथम चरण
प्रतिहार शासक वत्सराज ने कन्नौज पर अधिकार कर अपने अधीन इन्द्रायुद्ध को कन्नौज का शासक बनाया।
पाल शासक धर्मपाल ने वत्सराज पर आक्रमण किया परन्तु पराजित हुआ। राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने वत्सराज को हरा दिया।
द्वितीय चरण
राष्ट्रकूट शासक ध्रुव जब वापस दक्षिणी भारत लौट गया तब पाल शासक धर्मपाल ने कन्नौज पर आक्रमण कर अपने अधीन चक्रायुद्ध को कन्नौज का शासक बनाया।
तीसरा चरण
प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय ने धर्मपाल को पराजित कर कन्नौज का शासक इन्द्रायुद्ध को पुनः बना दिया।
राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय ने धर्मपाल व नागभट्ट द्वितीय को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
चौथा चरण
इस समय कभी प्रतिहारों को तो कभी राष्ट्रकूटों को सफलता मिली।
पाँचवाँ चरण
इस समय प्रतिहार शासक रामभद्र अयोग्य था तथा राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष अपने ही राज्य की समस्या में उलझ गया जिसका फायदा पाल शासक देवपाल ने उठाकर उत्तरी भारत में विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
छठा चरण
प्रतिहार शासक मिहिरभोज व महेन्द्रपाल ने राष्ट्रकूटों को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
नागभट्ट द्वितीय (795-833 ई.)
- यह वत्सराज व सुन्दर देवी का पुत्र था।
- उपाधि परमभट्टारक व महाराजाधिराज
- इसने कन्नौज के शासक धर्मपाल के सेनापति चक्रायुद्ध को हराकर कन्नौज पर अधिकार किया तथा कन्नौज को प्रतिहार वंश की राजधानी बनायी।
- इसने मुंगेर (बिहार) के युद्ध में बंगाल शासक धर्मपाल को भी पराजित कर दिया।
- राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय ने 806 ई. में नागभट्ट को पराजित कर दिया। नागभट्ट द्वितीय को विजयों का उल्लेख ग्वालियर प्रशस्ति में मिलता है। जिसमें नागभट्ट की दानशीलता के कारण इसे कर्ण की उपाधि दी गयी है।
- चन्द्रप्रभा सूरि के प्रभावक चरित ग्रंथ के अनुसार 833 ई. में नागभट्ट द्वितीय ने गंगा नदी में जल समाधि ले ली।
- नागभट्ट ने बुचकेला (जोधपुर) में शिव व विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया।
- नागभट्ट द्वितीय प्रथम शासक था जिसने अरब आक्रमणों को असफल किया। चौहान शासक गुवक प्रथम नागभट्ट का सामन्त माना जाता है (गुवक प्रथम के सामन्त हट्टड़ ने जीणमाता मंदिर का निर्माण सीकर में करवाया था।)
- नागभट्ट द्वितीय ने मालवा, काठियावाड़, वत्स, कौशाम्बी, किरातप्रदेश (हिमालय का दक्षिण क्षेत्र) तथा मत्स्य प्रदेश आदि क्षेत्रों पर अधिकार किया था।
रामभद्र (833-836 ई.)
- यह नागभट्ट द्वितीय व रानी इष्टा देवी का पुत्र था।
- रामभद्र की शादी अप्पा देवी से हुई जिनसे राजाभोज का जन्म हुआ था।
- पाल शासक देवपाल ने रामभद्र को हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
- इनके समय मंडोर के प्रतिहार स्वतंत्र हो गये थे।
मिहिर भोज/भोज प्रथम (836-889 ई.)
- पिता- रामभद्र
- माता-अप्पा देवी
- पत्नी- बन्द्र भट्टारिका
- इसने अपने पिता रामभद्र की हत्या कर राज्य प्राप्त किया था। जिस कारण इसे प्रतिहारों का पितृहन्ता कहा जाता है।
- मिहिर भोज का शाब्दिक अर्थ है 'सूर्य का प्रतीक'।
उपाधियाँ
- आदिवराह (ग्वालियर अभिलेख में)
- सार्वभौम, मालवाचक्रवती, श्रीमदआदिवराह (सिक्कों पर- चाँदी व ताँबे के सिक्कों पर)
- प्रभास की उपाधि (दौलतपुर अभिलेख में)
- मिहिर भोज वैष्णव था। मिहिर भोज ने विष्णु के वराह अवतार के सिक्के चलाये। इसने द्रुम सिक्के का प्रचलन किया।
- 836 ई. का वराह अभिलेख इसका प्रथम अभिलेख माना जाता है।
- मिहिर भोज प्रतिहारों का सबसे शक्तिशाली शासक था तथा इसका समय प्रतिहार वंश का स्वर्णकाल था।
- मिहिर भोज के समय 851 ई. में अरबयात्री सुलेमान भारत आया था। जिसने अपनी पुस्तक किताब-उल-सिंध-वल-हिंद में मिहिर भोज को अरबों का शत्रु/इस्लाम का शत्रु बताया है। सुलेमान के अनुसार मिहिर भोज अपने विद्वान कवियों के एक-एक श्लोक पर सोने की मुद्राएँ प्रदान करता था। सुलेमान ने मिहिर भोज के बारे में लिखा कि वह इस्लाम का शत्रु था।
- गुर्जर प्रतिहारों की अश्व सेना तात्कालिक भारत की सर्वश्रेष्ठ अश्व सेना थी। सुलेमान ने मिहिर भोज के साम्राज्य की प्रशंसा की है। उसने लिखा है कि मिहिर भोज के राज्य में सोने, चाँदी की बहुत सी खाने थी और उसका राज्य चोरी, डकैती से मुक्त था।
- सुलेमान व ग्वालियर शिलालेख के अनुसार मिहिर भोज ने बंगाल के पाल शासक देवपाल व विग्रहपाल तथा राष्ट्रकूट शासक ध्रुव तथा कालिन्जर शासक जयशक्ति चन्देल को संयुक्त रूप से नर्मदा नदी के किनारे हराया तथा कन्नौज पर अन्तिम रूप से अधिकार कर लिया।
- राजस्थान के प्रतिहार, चौहान, गुहिल, कलचुरी, चैदी शासक मिहिर भोज के सामन्त थे।
- बैग्रमा (उत्तरप्रदेश) अभिलेख में मिहिर भोज को सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने वाला बताया है।
- दण्डपाषिक मिहिर भोज के शासनकाल में पुलिस अधिकारी था। जिसका उल्लेख 893 ई. के प्रतिहार अभिलेख से मिलता है।
- स्कन्दपुराण के अनुसार मिहिरभोज ने तीर्थयात्रा करने के लिए शासन का कार्यभार अपने बेटे महेन्द्रपाल प्रथम को सौंपकर गद्दी त्याग दी।
- ग्रंथ- कृत्यकल्पतरू, योग सूत्र वृति, आयुर्वेद, सर्वस्त्र, राजमृगाक, सरस्वती, श्रृंगार प्रकाश, शब्दानुशासन, कण्ठाभरण, राजमार्तण्ड।
महेन्द्रपाल प्रथम (889-908 ई.)
- पिता मिहिर भोज
- माता- चन्द्रभट्टारिका
उपाधियाँ
- महाराजाधिराज, परमभट्टारक, रघुकुल चूडामणी, महेन्द्रायुध, निर्भय नरेश, निर्भय राज, निर्भय नरेन्द्र, महिषपाल, परमेश्वर, परमभागवत
- उत्तरभारत के राजनैतिक इतिहास के रचनाकार बी.एन. पाठक ने भारत का अन्तिम महान हिन्दू सम्राट महेन्द्रपाल प्रथम को माना है।
- महेन्द्रपाल प्रथम प्रतिहार शासक था, जिन्होंने पाल व राष्ट्रकूट वंश की संयुक्त सेना को हराया।
- काठियावाड, झाँसी, अवध, बिहार शरीफ, गया, हजारी बाग, पहाड़पुर (बंगाल) से अभिलेख मिले हैं जिनसे महेन्द्रपाल प्रथम की जानकारी मिलती है।
- राजशेखर महेन्द्रपाल प्रथम का दरबारी विद्वान व गुरु था।
- राजशेखर ने अपने ग्रंथ बाल भारत में महेन्द्रपाल को रघुग्रामणी तथा विद्धशालभंजिका में रघुकुलतिलक कहा है।
- कर्पूरमंजरी, काव्य मीमांसा, बाल रामायण, हरविलास, बाल भारत, प्रचण्ड पाण्डव, भुवनकोश आदि राजशेखर के प्रसिद्ध ग्रंथ हैं।
- कवि राजशेखर ने अपने ग्रंथ 'विद्धशालभंजिका' में महेन्द्रपाल को रघुतिलक कहा है।
- राजशेखर की पत्नी अवन्ति सुन्दरी थी जिनके कहने पर राजशेखर ने कर्पूरमंजरी की रचना की थी।
भोज द्वितीय (908-913 ई.)
यह महेन्द्रपाल प्रथम की पत्नी देहनागा देवी का पुत्र था। इसे आदिवराह व प्रभास की उपाधि प्राप्त थी।
कोक्कलदेव प्रथम की सहायता से कन्नौज की गद्दी पर बैठा। इसे महिपाल ने हरा दिया।
महिपाल प्रथम (913-943 ई.)
- उपाधियाँ- विनायकपाल, हेरम्भपाल
- राजशेखर ने महिपाल को रघुवंश मुक्तामणि, आर्यावृत का महाराजाधिराज के नाम से उपाधि दी।
- यह महेन्द्रपाल प्रथम की रानी महिदेवी का पुत्र था।
- इसने अपने भाई भोज द्वितीय को हराकर राज्य प्राप्त किया था। जिसमें महिपाल की सहायता चन्देल शासक हर्षदेव ने की थी।
इसके समय अरबयात्री अलमसूदी (915-18 ई.) भारत आया था। अलमसूदी ने गुर्जर प्रतिहारों को अलगुर्जर व गुर्जर राजा को बोरा के नाम से पुकारा है।
नोट
अलमसूदी का ग्रंथ महजूल जुहाब था।
महिपाल प्रथम के समय गुर्जर प्रतिहारों का पतन शुरू हो गया था।
कवि पम्प के ग्रंथ पम्प भारत के अनुसार महिपाल प्रथम को राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने हरा दिया तथा कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
महेन्द्रपाल द्वितीय (943-948 ई.)
यह महिपाल प्रथम व प्रज्ञाधना का पुत्र था।
इसके समय गुर्जर प्रतिहारों की कई शाखाएँ हुई।
प्रतापगढ़ अभिलेख के अनुसार महेन्द्रपाल द्वितीय ने दशपुर (मंदसौर, मध्यप्रदेश) गाँव दान में दिया था।
देवपाल (948-949 ई.)
यह निर्बल शासक था। इसके समय चन्देलों का स्वतंत्र राज्य स्थापित हुआ।
चंदेल शासक यशोवर्मन ने इसके अनेक क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
विनायकपाल द्वितीय (953-955 ई.)
खजुराहो अभिलेख में जानकारी मिलती है।
महिपाल द्वितीय (955-907 ई.)
955 ई. के बयाना अभिलेख में इनके लिए "महाराजाधिराज महिपाल देव" शब्द का प्रयोग किया गया है।
विजयपाल द्वितीय (960-990 ई.)
इसके समय गुजरात में चालुक्य वंश की स्थापना हुई।
चालुक्य राजाओं ने स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित कर लिया।
राज्यपाल (990-1019 ई.)
इसके समय गजनी शासक महमूद गजनवी का 1018 ई. में कन्नौज पर आक्रमण हुआ तथा राज्यपाल कन्नौज छोड़कर भाग गया तथा महमूद गजनवी ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
महमूद गजनवी ने भारत पर कुल 17 आक्रमण किये जिसमें कन्नौज पर किया गया आक्रमण 12 वाँ था। चन्देल शासक विद्याधर ने राजाओं का संगठन बनाकर कायर शासक राज्यपाल की हत्या कर दी।
त्रिलोचनपाल (1019-1027 ई.)
1019 ई. में महमूद गजनवी ने इसको हरा दिया।
यशपाल
यह प्रतिहार वंश का अन्तिम शासक माना जाता है। जो 1036 ई. तक राज करता है। 1093 ई. में चन्द्रदेव गहडवाल ने प्रतिहारों से कन्नौज अपने अधिकार में ले लिया तथा गहडवाल वंश की स्थापना की।
महत्वपूर्ण तथ्य
- गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक नागभट्ट प्रथम ने अपनी राजधानी मण्डोर से मेड़ता स्थानान्तरित की थी।
- विदेशी यात्री सुलेमान ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश की सैन्य शक्ति एवं समृद्धि का उल्लेख किया है।
- प्रतिहार शासक महेद्रपाल प्रथम व महिपाल का दरबारी कवि राजशेखर था।
- प्रतिहार शासकों में 'रोहिलध्दि' के नाम से हरिश्चन्द्र को जाना जाता था।
- महान संस्कृत कवि एवं नाटककार राजशेखर महेन्द्रपाल प्रथम के दरबार से संबंधित थे।
- प्रतिहार शिलालेखों में पदाधिकारियों का उल्लेख राजपुरुष आता है।
- मिहिरभोज गुर्जर प्रतिहार वंश का प्रसिद्ध शासक था।
- इतिहासकार आर.सी. मजूमदार के अनुसार गुर्जर-प्रतिहारों ने छठी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अरब आक्रमणकारियों के लिए बाधक का काम किया।
- प्रतिहार राजा भोज प्रथम (मिहिर भोज) के काल में प्रसिद्ध ग्वालियर प्रशस्ति की रचना की गई।
- ओसियाँ (जोधपुर) में महावीर स्वामी को समर्पित जैन मंदिर का निर्माण राजा वत्सराज प्रतिहार के काल में हुआ।
- जोधपुर के निकट ओसियाँ के मंदिरों का समूह प्रतिहारों की देन है।
- गुर्जर-प्रतिहार शासक अग्निकुण्डीय राजपूत नाम से भी जाने जाते हैं।




Post a Comment