प्रमुख इतिहासकार
राजस्थान के प्रमुख आधुनिक इतिहासकार
राजस्थान के प्रमुख इतिहासकारों में कई विद्वान शामिल हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र के इतिहास को गहराई से दर्ज किया है।
1. कर्नल जेम्स टॉड (1782-1835 ई.)
जीवन परिचय
जेम्स टॉड का जन्म 20 मार्च, 1782 ई. को स्कॉटलैण्ड (इंग्लैण्ड) में इंगलिस्टन नामक स्थान पर हुआ था।
1798 ई. में टॉड ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा में नियुक्त होकर भारत पहुँचा। 1800 ई. में टॉड को देशी पैदल फौज की 14वीं रेजीमेंट का लेफ्टिनेंट नियुक्त किया। इंजीनियरिंग कार्य में दक्ष जेम्स टॉड को 1801 ई. में दिल्ली के निकट एक पुरानी नहर के सर्वेक्षण का कार्य सौंपा गया।
1817-18 ई. में राजपूत राज्यों के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी की संधियाँ हो गईं। कर्नल टॉड को सर्वप्रथम फरवरी, 1818 ई. में उदयपुर राज्य में पॉलिटिकल एजेण्ट नियुक्त किया गया। 1818 ई. से 1822 ई. तक वह राजपूत रियासतों में पॉलिटिकल एजेण्ट के रूप में नियुक्त रहा।
टॉड ने भारत निवास के 24 वर्षों में 18 वर्ष राजपूताना में बिताये तथा अन्तिम 5 वर्ष मेवाड़, मारवाड़, जैसलमेर, कोटा, बूँदी और सिरोही रियासतों के राजनीतिक प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त रहा। यहाँ रहते हुए टॉड ने विभिन्न प्रकार की ऐतिहासिक सामग्री का संकलन किया।
1822 ई. में कर्नल टॉड ने खराब स्वास्थ्य के कारण कम्पनी की सेवा से त्याग-पत्र दे दिया। एकत्रित सामग्री को इंग्लैण्ड ले जाकर टॉड ने राजस्थान का इतिहास लिखने का कार्य किया।
टॉड प्रथम इतिहासकार थे जिन्होंने राजस्थान का विस्तार से क्रमबद्ध इतिहास लिखा, इसलिए कर्नल टॉड को 'राजस्थान के इतिहास का पिता' कहा जाता है। 1835 ई. में टॉड का देहान्त हो गया।
कर्नल टॉड के ग्रन्थ
(i) 'एनाल्स एण्ड एण्टिक्विटीज ऑफ राजस्थान'
टॉड ने इस ग्रन्थ की रचना दो भागों में की थी। जिसका प्रथम भाग 1829 ई. में और द्वितीय भाग 1832 ई. में प्रकाशित हुआ था। प्रथम भाग में राजपूताने की भौगोलिक स्थिति, राजपूतों की वंशावली, सामन्ती व्यवस्था और मेवाड़ का इतिहास है। दूसरे भाग में मारवाड़, आमेर, बीकानेर, जैसलमेर और हाड़ौती आदि राज्यों का इतिहास है।
(ii) ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया
कर्नल टॉड ने अपने दूसरे ग्रन्थ 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया' (पश्चिमी भारत की यात्रा) में भ्रमण के द्वारा प्राप्त अनुभवों के आधार पर राजपूती परम्पराओं, अन्धविश्वासों, मंदिरों, मूर्तियों और आदिवासियों के जीवन आदि का विस्तार से वर्णन किया है।
2. महामहोपाध्याय कविराज श्यामलदास (1838-1893 ई.)
श्यामलदास का जन्म 1838 ई. में मेवाड़ के छाछीवाड़ा (धोकलिया) ग्राम में हुआ था। इन्होंने मेवाड़ के महाराणा शंभूसिंह के शासनकाल में 1871 ई. में मेवाड़ का इतिहास लिखना प्रारम्भ किया था। परन्तु इसका अधिकांश भाग महाराणा सज्जनसिंह के समय लिखा गया था, जिसके लिये महाराणा ने एक लाख रु. का अनुदान दिया था।
लगभग 21 वर्षों के कठिन परिश्रम द्वारा ऐतिहासिक सामग्री का संकलन कर श्यामलदास ने महाराणा फतहसिंह के शासनकाल में 1892 ई. में अपने ऐतिहासिक ग्रन्थ 'वीर विनोद' को प्रकाशित किया परन्तु महाराणा फतहसिंह ने इसके प्रचलन पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
चार खण्डों में उपलब्ध 'वीर विनोद' 2259 पृष्ठों का विशाल ग्रन्थ है जिसमें मेवाड़ राज्य और उससे सम्बन्ध रखने वाले राज्यों के इतिहास का विस्तृत वर्णन किया गया है।
वीर विनोद की रचना पर ब्रिटिश सरकार ने श्यामलदास को 'केसर-ए-हिन्द' की उपाधि प्रदान की थी। 1879 ई. में महाराणा सज्जनसिंह ने उन्हें 'कविराज' की उपाधि तथा 1888 ई. में 'महामहोपाध्याय' की उपाधि से सम्मानित किया।
3. महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण (1815-1868 ई.)
सूर्यमल्ल मीसण का जन्म 19 अक्टूबर, 1815 को बूँदी राज्य के हिरणा गाँव में हुआ था। इनके पिता चण्डीदान ख्यातनाम कवि और बून्दी महाराव रामसिंह के दरबारी विद्वान थे। चण्डीदान ने तीन ग्रन्थों की रचना की थी- बलविग्रह, सारसागर और वंशाभरण।
इस प्रकार सूर्यमल्ल मिश्रण को प्रारम्भ से ही राजकीय प्रोत्साहन और साहित्यिक वातावरण प्राप्त हुआ। सूर्यमल्ल ने दस वर्ष की आयु में ही 'रामरंजाट' नामक रचना पूर्ण कर दी थी।
सूर्यमल्ल मिश्रण को भी महाराव रामसिंह का संरक्षण प्राप्त हुआ और उनके आदेश पर ही सूर्यमल्ल ने अपने प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ 'वंशभास्कर' का लेखन प्रारम्भ किया था। सूर्यमल्ल द्वारा इस ग्रन्थ में निष्पक्ष शैली का प्रयोग करने के कारण महाराव उनसे नाराज हो गये, परिणामतः वंशभास्कर अधुरा रह गया, जिसे सूर्यमल्ल के दत्तक पुत्र मुरारीदान ने पूर्ण किया।
सूर्यमल्ल मिश्रण कवि व इतिहासकार ही नहीं थे बल्कि एक सच्चे देशभक्त भी थे। उन्होंने 1857 की क्रान्ति के समय राजपूत रियासतों के शासकों द्वारा अंग्रेज सरकार की सहायता की घोर आलोचना की तथा उन्हें क्रान्तिकारियों का साथ देने के लिए ललकारा। इन्होंने इस समय एक प्रसिद्ध दोहे द्वारा भारतीय जनता और देशी शासकों के स्वाभिमान को जगाने का प्रयास किया -
इला न देणी आपणी, हालरियां हुलराय।
पूत सिखावै पालणे, मरण बड़ाई माय।।
1857 की क्रान्ति के समय ही सूर्यमल्ल मिश्रण ने अपनी सर्वाधिक प्रसिद्ध कृति 'वीर सतसई' की रचना की थी। महाकवि सूर्यमल्ल ने अपनी रचनाओं में डिंगल भाषा का प्रयोग किया है।
सूर्यमल्ल मीसण ने चार ग्रन्थों की रचना की थी - वंशभास्कर, वीर सतसई, रामरंजाट और बलवन्त विलास। वंश भास्कर और बलवन्तविलास ऐतिहासिक रचनाएँ हैं, वीर सतसई स्वतंत्रता संग्राम का चित्रण है, जबकि रामरंजाट में लोक संस्कृति का वर्णन किया गया है।
4. दयालदास (1798-1891 ई.)
बीकानेर राज्य के इतिहास लेखक दयालदास का जन्म 1798 ई. में बीकानेर राज्य के कुड़ीया नामक गाँव में हुआ था। इन्हें बीकानेर के चार शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ था- सूरतसिंह, रत्नसिंह, सरदारसिंह और डूंगरसिंह।
इन्होंने 'बीकानेर रै राठौड़ा री ख्यात' की रचना महाराजा रत्नसिंह के आदेश पर प्रारम्भ की थी। इस ग्रन्थ को 'दयालदास की ख्यात' के रूप में ख्याति प्राप्त हुई। इस ग्रन्थ में मारवाड़ी गद्य भाषा का प्रयोग किया गया है।
दयालदास की ख्यात में राठौड़ों की उत्पत्ति से लेकर महाराजा सरदारसिंह के राज्यारोहण तक का इतिहास वर्णित है। इस रचना में लेखक ने इतिहास से सम्बन्धित सभी पक्षों पर लेखन किया है।
इन्होंने ख्यात के अतिरिक्त देश-दर्पण, आर्याख्यान, कल्पद्रुम और बीकानेर के पट्टा रै गांवाँ री विगत आदि गद्य रचनाओं सहित पद्म में सुजस बावनी और पंवार वंशदर्पण की भी रचना की।
5. डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा (1863-1947 ई.)
जीवन परिचय
डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का जन्म 15 सितम्बर, 1863 ई. को सिरोही जिले के रोहिड़ा गाँव में हुआ था।
1888 ई. में गौरीशंकर हीराचन्द ओझा उदयपुर पहुँचे, जहाँ कविराज श्यामलदास ने इतिहास लेखन में इन्हें अपना सहायक बनाया।
ओझा ने 1908 से 1938 ई. तक अजमेर के राजपूताना म्यूजियम के अधीक्षक के रूप में काम किया।
उन्हें 1914 ई. में 'रायबहादुर' की उपाधि मिली। 1933 ई. के हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से ओझा को 'अनुशीलन' की पदवी मिली। 1937 ई. में इन्हें 'साहित्य वाचस्पति' की उपाधि प्राप्त हुई। 1937 ई. में ही काशी विश्वविद्यालय से डी. लिट. की उपाधि मिली। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें 'महामहोपाध्याय' की उपाधि से सम्मानित किया था।
17 अप्रैल, 1947 ई. को अपनी जन्मभूमि रोहेड़ा में ही डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का निधन हो गया।
डॉ. ओझा की रचनाएँ
भारतीय प्राचीन लिपिमाला इनकी प्रथम पुस्तक 'भारतीय प्राचीन लिपिमाला, 1894 ई. में प्रकाशित हुई थी।
- सोलंकियों का प्राचीन इतिहास
- सिरोही राज्य का इतिहास
- राजपूताने का प्राचीन इतिहास
- उदयपुर राज्य का इतिहास, प्रथम एवं द्वितीय भाग
- डूंगरपुर राज्य का इतिहास
- बाँसवाड़ा राज्य का इतिहास
- बीकानेर राज्य का इतिहास, प्रथम एवं द्वितीय भाग
- जोधपुर राज्य का इतिहास, प्रथम एवं द्वितीय भाग
- प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास।
6. डॉ. दशरथ शर्मा (1903-1976 ई.)
महान् इतिहासविद् और राजस्थान के प्रख्यात इतिहासकार डॉ. दशरथ शर्मा का जन्म 1903 ई. में चूरू में हुआ था। इन्होंने आगरा और दिल्ली विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की।
1943 ई. में आगरा विश्वविद्यालय ने दशरथ शर्मा को 'अर्ली चौहान डायनेस्टीज' नामक शोध निबन्ध पर डी. लिट् की उपाधि प्रदान की थी। डॉ. दशरथ शर्मा ने 1945 ई. में 'सार्दुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट' की स्थापना की तथा इस संस्था के निदेशक रहे।
डॉ. दशरथ शर्मा ने अर्ली चौहान डायनेस्टीज, राजस्थान थ्रू दी एजेज, लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्ट्री एण्ड कल्चर और 'सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय और उनका युग' आदि प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थों की रचना की थी।

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