राज्यपाल को राष्ट्रपति के समान कार्यकारी, विधायी, वित्तीय, शक्तियाँ प्राप्त है इसके अलावा राज्यपाल के पास स्व-विवेकी शक्तियाँ भी है। परन्तु राज्यपाल को राष्ट्रपति की भाँति कूटनीतिक, सैन्य तथा आपातकालीन शक्तियाँ प्राप्त नहीं है। राज्यपाल को शक्तियाँ निम्नलिखित हैं।
1. अनुच्छेद 154 के अनुसार राज्य की कार्यपालिका शक्तियाँ राज्यपाल में निहित हैं, जो इस प्रकार हैं- राज्य सरकार के सभी कार्यकारी कार्य, नियम निर्माण व क्रियान्वयन औपचारिक रूप से राज्यपाल के नाम से होते हैं (अनुच्छेद 166)
2. अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री एवं अन्य मन्त्रियों को नियुक्त करता है वे सब राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं।
3. वह राज्य के महाधिवक्ता को नियुक्त (अनु. 165) करता है और उसका पारिश्रमिक तय करता है। महाधिवक्ता का पद राज्यपाल के प्रसादपर्यंत रहता है। महाधिवक्ता राज्य का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है।
4. वह राज्य निर्वाचन आयुक्त को नियुक्त (अनुच्छेद-243-K तथा 243ZA) करता है और उसकी सेवा शर्तें और कार्यावधि तय करता है। हालाँकि राज्य निर्वाचन आयुक्त को विशेष मामलों या परिस्थितियों में उसी तरह हटाया जा सकता है जैसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
5. राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को राज्यपाल नियुक्त करता है। लेकिन उन्हें सिर्फ राष्ट्रपति ही हटा सकता है, न कि राज्यपाल।
6. अनुच्छेद 167 के अनुसार वह मुख्यमंत्री से प्रशासनिक मामलों या किसी विधायी प्रस्ताव की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
7. यदि किसी मंत्री ने कोई निर्णय लिया हो और मंत्रीपरिषद ने उस पर संज्ञान न लिया हो तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री से उस मामले पर विचार करने की माँग कर सकता है।
8. वह राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल लगाने (अनुच्छेद 356) के लिए सिफारिश कर सकता है। राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान उसकी कार्यकारी शक्तियों का विस्तार राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में हो जाता है।
9. अनुच्छेद 243(1/झ) के द्वारा राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष के लिए राज्य वित्त आयोग का गठन करता है। वह राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है और उसकी सेवा शर्तें व कार्यविधि तय करता है।
10. वह राज्य के लोकायुक्त, राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त और दूसरे आयुक्तों तथा राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति करता है।
11. राजस्थान का राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधि प्रावधानों व कृत्यों के अनुसार कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करता है वह निम्नलिखित पद धारित होता है या इनके अध्यक्षों की नियुक्ति कर सकता है।
12. वह राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है और वह राज्य के विश्वविद्यालयों (State University) के कुलपतियों की नियुक्ति करता है।
13. संविधान के अनुच्छेद 166(2) व (3) के तहत राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार की कार्यवाहियों में सुगमता लाने तथा मंत्रियों के बीच उनके कार्य आवंटन के लिए नियम बनाने का प्रावधान है। राज्यपाल राज्य प्रशासन के संचालन के लिए कार्य विधि नियम (Rule of Business) निर्मित करवाता है।
14. राज्यपाल राज्य प्रशासन से संबंधित महत्त्वपूर्ण नियम-विनियम तथा अध्यादेश जारी करता है।
15. संविधान के अनुच्छेद 244 के अन्तर्गत 'विशेष क्षेत्र' घोषित जनजातियों के प्रशासन एवं विकास योजनाओं के क्रम में संबंधित राज्य के राज्यपाल के पास कतिपय विशिष्ट शक्तियाँ होती है।
16. चार राज्यों छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्यप्रदेश तथा ओडिशा के राज्यपालों को विशेष दायित्व सौंपे गए हैं। ये राज्यपाल अपने राज्य में जनजातियों के कल्याण हेतु एक मंत्री की नियुक्ति कर सकते हैं जो जनजातियों के कल्याण के साथ-साथ अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण हेतु कार्य करेंगे या किसी अन्य कार्य को भी संभाल सकते हैं।
अनुच्छेद 166 (1) के अनुसार राज्य सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाहियाँ राज्यपाल के नाम से की हुई कही जायेगी। अनुच्छेद 166 (2) के अनुसार राज्यपाल के नाम से निष्पादित किये गये आदेशों और अन्य लिखतों को इस आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जा सकता कि उनका निष्पादन राज्यपाल ने स्वयं नहीं किया है। अनुच्छेद 166 (3) के अनुसार राज्यपाल राज्य सरकार के कार्यों को सुविधाजनक बनाने के लिए नियम (Rule of Business) बना सकता है।
167 (क) राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करेगा।
इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उन विषयों पर होगा जिनके संबंध में उस राज्य के विधानमण्डल को विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है।
अनुच्छेद 168 के अनुसार राज्यपाल राज्य विधान मण्डल का अभिन्न अंग होता है। इस नाते उसकी निम्नलिखित विधायी शक्तियाँ एवं कार्य होते हैं-
अनुच्छेद 174 (1) के अनुसार राज्यपाल समय-समय पर राज्य विधानमण्डल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय व स्थान जो वह ठीक समझे अधिवेशन के सत्र को आहूत या सत्रावसान और विघटित कर सकता है। किसी एक अधिवेशन की अंतिम बैठक तथा आगामी बैठक के बीच 6 माह से अधिक का समय नहीं होगा। एक कलैण्डर वर्ष में विधानसभा के कम से कम 3 सत्र अर्थात् शीतकालीन सत्र, बजट सत्र और वर्षाकालीन सत्र होंगे।
अनु. 176 के अनुसार वह विधानसभा या विधानपरिषद के प्रत्येक चुनाव के पश्चात् पहले सत्र को और प्रतिवर्ष के पहले सत्र को सम्बोधित करता है।
वह किसी सदन या विधानमण्डल के सदनों में विचाराधीन विधेयकों या अन्य किसी मामले पर संदेश भेज सकता है। वह एक सदन या दोनों सदनों में एक साथ समवेत अभिभाषण करेगा। राज्यपाल को अनुच्छेद 175 के अनुसार सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 175 (1) राज्यपाल, विधानसभा में या विधान परिषद वाले राज्यों की दशा में उस राज्य के विधानमण्डल के किसी एक सदन या एक साथ समवेत (दोनों) सदनों में, अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
जब विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद खाली हो तो वह विधानसभा के किसी सदस्य को कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त कर सकता है।
राज्यपाल अनुच्छेद 171 (5) के द्वारा राज्य विधानपरिषद् के कुल सदस्यों के 1/6 सदस्य नामित कर सकता है, जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आन्दोलन और समाज सेवा में ख्याति प्राप्त हो या इसका व्यावहारिक अनुभव हो।
यदि राज्यपाल को ऐसा प्रतीत हो, कि राज्य विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं है, तो वह अनु. 333 के द्वारा विधानसभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय के एक सदस्य का मनोनयन कर सकता है। जनवरी, 2020 से 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 से यह प्रावधान समाप्त कर दिया है।
विधानसभा सदस्य की निरर्हता के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग से विमर्श करने के बाद उसका निर्णय राज्यपाल करता है- अनुच्छेद 192 (2)।
राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के पास भेजे जाने पर- (अनुच्छेद -200 के अन्तर्गत)
अनुच्छेद 201 के अनुसार जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख लिया जाता है तब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या रोक लेता है।
इसके अलावा यदि निम्नलिखित परिस्थितियाँ हों तब भी राज्यपाल विधेयक को सुरक्षित रख सकता है-
9. वह राज्य के लेखों से संबंधित राज्य वित्त आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग की रिपोर्ट को राज्य विधानसभा के सामने प्रस्तुत करता है।
यदि राज्यपाल विधानसभा की अध्यक्षता करने के लिए अध्यक्ष या उपाध्यक्ष (विधानपरिषद के मामले में सभापति या उपसभापति) का पद रिक्त है, तो राज्यपाल बैठक की अध्यक्षता के लिए राज्य विधानसभा के किसी भी सदस्य को नियुक्त कर सकता है।
अनुच्छेद 213 के अनुसार जब राज्य विधानमण्डल या राज्य विधानसभा सत्र में न हो (विश्रांति काल में) तथा संविधान की सातवीं अनुसूची में अन्तर्विष्ट राज्यसूची में वर्णित विषयों में से किसी विषय पर कानून बनाना आवश्यक हो, तब राज्यपाल मन्त्रिपरिषद की सलाह पर अध्यादेश जारी कर सकता है। परन्तु राज्यपाल, राष्ट्रपति के अनुदेशों (Instructions) के बिना, कोई अध्यादेश जारी नहीं कर सकता। इस प्रकार जारी किया गया अध्यादेश केवल 6 माह तक प्रभावी रहता है और यदि 6 माह की अवधि के समापन के पूर्व ही राज्य विधानसभा का सत्र प्रारम्भ हो जाए, तो अध्यादेश को 6 सप्ताह के अंदर विधानमण्डल द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए और यदि 6 सप्ताह के अन्दर अनुमोदित नहीं किया जाता है, तो अध्यादेश स्वतः ही रद्द हो जाएगा। ऐसा अध्यादेश अधिकतम 6 माह 6 सप्ताह तक मान्य रह सकता है। राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह से अध्यादेश को किसी भी समय राज्यपाल वापस ले सकता है। जिन विधेयकों पर राज्यपाल अनुमति देने के पूर्व उन्हें राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखता है, उन विधेयकों से संबंधित विषय पर राज्यपाल, अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है। राज्यपाल की अध्यादेश निर्माण की शक्ति स्वैच्छिक या विवेकाधीन नहीं है। राज्यपाल द्वारा जारी अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होता है जो विधानमण्डल द्वारा निर्मित विधि का होता है।
डी.सी. वाधवा बनाम बिहार राज्य मामले में यह निर्णय दिया गया कि राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति असाधारण परिस्थितियों के लिए है, इसे राजनैतिक साध्य के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता।
कृष्ण कुमार सिंह मामले, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि अध्यादेशों को जारी करने का अधिकार प्रकृति में पूर्ण नहीं है, यह सशर्त है। यदि मौजूदा परिस्थितियों में तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है, तभी इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। लगातार अध्यादेश जारी करना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अनुचित प्रयोग होगा।
राज्यपाल, राज्य लोकसेवा आयोग (RPSC), राज्य महाधिवक्ता तथा राज्य वित्त आयोग (SFC) का प्रतिवेदन सदन में रखवाता है।
अनुच्छेद 200 के अन्तर्गत किसी विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करना या विधेयक पुर्नविचार के लिए लौटाना
यदि विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो, तो मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना।
यदि सरकार सदन में बहुमत खो दे या कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री की मृत्यु हो जाये।
राज्य बर्खास्तगी के मामले में विधानसभा में विश्वास मत हासिल न होने की स्थिति में मंत्रिपरिषद की बर्खास्तगी के मामले में।
1. मुख्यमंत्री की नियुक्ति- यदि विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता या किसी भी व्यक्ति को कुछ दलों का समर्थन न प्राप्त हो या कई दलों के गठबन्धन ने मिलकर चुनाव में बहुमत न प्राप्त किया हो, तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री को नियुक्त करने में अपने विवेक का प्रयोग करता है। संविधान के अनुच्छेद 163 में राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद की व्यवस्था है। इसमें कहा गया है कि- (1) जिन बातों में इस संविधान द्वारा इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे, उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों के लिए सहायता व परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी। राज्यपालों द्वारा मुख्यमंत्री को नियुक्त करने में प्रयोग किए गए विवेकाधिकार से निम्नलिखित सिद्धांतों का विकास हुआ।
2. मंत्रिपरिषद को भंग करना- राज्यपाल को मंत्रिपरिषद को भंग करने का अधिकार प्राप्त है। राज्यपाल निम्नलिखित स्थितियों में मंत्रिपरिषद को भंग कर सकता है- जब राज्यपाल को विश्वास हो जाए कि मंत्रिपरिषद का विधानसभा में बहुमत नहीं रह गया है। जब मंत्रिपरिषद के विरुद्ध विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दे और मंत्रिपरिषद त्यागपत्र न दे। जब मंत्रिपरिषद संविधान के प्रावधानों के अनुसार कार्य न कर रहा हो या मंत्रिपरिषद की नीतियों से राष्ट्र का अहित सम्भाव्य हो या केन्द्र से संघर्ष होने की संभावना हो। जब किसी स्वतन्त्र अधिकरण ने जाँच के पश्चात् मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार में शामिल होना पाया हो।
3. विधानसभा का अधिवेशन बुलाना- सामान्यतः राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर विधानसभा का अधिवेशन बुलाता है, लेकिन यदि असाधारण परिस्थिति उत्पन्न हो जाए, तब राज्यपाल विधानसभा का विशेष अधिवेशन स्वयं भी बुला सकता है।
4. विधानसभा भंग करना- राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही विधानसभा को भंग करता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में वह मुख्यमंत्री की सलाह के बिना भी विधानसभा को भंग कर सकता है। यदि राज्यपाल की राय में विधानसभा में सरकार को बहुमत प्राप्त नहीं है तो वह मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देने या बहुमत सिद्ध करने के लिए कह सकता है। यदि मुख्यमंत्री दोनों में से किसी भी कार्य को करने के लिए तैयार न हो तो राज्यपाल मंत्रिपरिषद को भंग करके, मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर सकता है।
5. मुख्यमंत्री को अभियोजित करने की अनुमति देना- राज्यपाल कार्यरत या भूतपूर्व मुख्यमंत्री के विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही करने की अनुमति दे सकता है, यदि वह भ्रष्टाचार या किसी षडयन्त्र या आपराधिक कार्य में संलग्न पाया गया हो। राज्यपाल द्वारा अपनी विवेकाधीन शक्ति के द्वारा किया गया विनिश्चय अन्तिम होता है अर्थात् राज्यपाल द्वारा स्वविवेक से किये गये किसी कार्य की विधि मान्यता को इस आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जा सकता कि उसके द्वारा किया गया कार्य विवेकानुसार नहीं था या उन्होंने विवेकानुसार कार्य नहीं किया- अनुच्छेद 163 (2)।
संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, राष्ट्रपति राज्यपाल की सलाह या सिफारिश से किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। यदि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है या ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं कि उस राज्य में संविधान के उपबन्धों के अनुसार शासन नहीं चलाया जा सकता तो भी राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं।
राजस्थान में अलग-अलग परिस्थितियों में अब तक चार बार राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है-
प्रथम बार 13 मार्च, 1967 को चौथी विधानसभा की कार्यावधि में जब किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ तो राज्यपाल सम्पूर्णानन्द ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की। इस समय राज्य में मोहनलाल सुखाड़िया के नेतृत्व में पुनः सरकार का गठन किया गया। 26 अप्रैल 1967 राष्ट्रपति शासन हटाया गया, उस समय राज्य के राज्यपाल सरदार हुकूम सिंह थे। यह न्यूनतम अवधि वाला राष्ट्रपति शासन था जो 44 दिन तक रहा।
दूसरी बार 30 अप्रैल, 1977 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। उस समय वेदपाल त्यागी राज्य के राज्यपाल थे। वे कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में कार्य कर रहे थे। 1977 में जब गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली इस जनता दल सरकार ने अधिकतर राज्यों के राज्यपालों को बर्खास्त कर दिया। इसके पश्चात् भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। यह राष्ट्रपति शासन 21 जून 1977 को हटाया गया, उस समय रघुकुल तिलक राज्य के राज्यपाल थे।
तीसरी बार 17 फरवरी, 1980 को राष्ट्रपति शासन लागू हुआ जब रघुकुल तिलक राज्यपाल थे। केन्द्र ने इंदिरा गाँधी की सरकार बनने पर राज्य सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और पाँचवीं विधानसभा में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
चौथी बार 15 दिसम्बर, 1992 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। जब भैरोसिंह शेखावत सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। इस सरकार की बर्खास्तगी अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढह जाने के कारण हुई। इस समय राजस्थान के राज्यपाल एम. चन्ना रेड्डी थे। यह राष्ट्रपति शासन 3 दिसम्बर 1993 को हटाया गया। उस समय बलिराम भगत राज्य के राज्यपाल थे। यह सबसे लम्बी अवधि तक 354 दिन तक लागू रहने वाला राष्ट्रपति शासन था।
राजस्थान में राष्ट्रपति शासन - 4 बार
1. प्रथम बार (13 मार्च, 1967 से 26 अप्रैल, 1967)
राज्यपाल: सम्पूर्णानंद, सरदार हुकुम सिंह
मुख्यमंत्री: मोहनलाल सुखाड़िया
विशेष/कारण: सबसे कम समय 44 दिन तक रहा। (अस्पष्ट बहुमत के कारण)
2. द्वितीय बार (30 अप्रैल, 1977 से 21 जून, 1977)
राज्यपाल: वेदपाल त्यागी (कार्यवाहक)
मुख्यमंत्री: हरिदेव जोशी
विशेष/कारण: विधानसभा में बहुमत सिद्ध न कर पाने के कारण हरिदेव जोशी सरकार बर्खास्त
3. तीसरी बार (17 फरवरी, 1980 से 5 जून, 1980)
राज्यपाल: रघुकुल तिलक
मुख्यमंत्री: भैरोसिंह शेखावत
विशेष/कारण: बहुमत सिद्ध न कर पाने पर भैरोसिंह शेखावत सरकार बर्खास्त
4. चौथी बार (15 दिसम्बर, 1992 से 3 दिसम्बर, 1993)
राज्यपाल: एम. चेन्ना रेड्डी
मुख्यमंत्री: भैरोसिंह शेखावत
विशेष/कारण: बाबरी मस्जिद ढाँचा गिराए जाने के बाद। सबसे अधिक समय 354 दिन तक रहा।
व्यवहार में राज्यपाल
- भारत में प्रथम महिला राज्यपाल श्रीमति 'सरोजिनी नायडू' थी जो उत्तरप्रदेश की राज्यपाल बनीं। सरोजिनी नायडू के अनुसार, "राज्यपाल सोने के पिंजरे में निवास करने वाली चिड़िया के समतुल्य है।"
- एम.वी. पायली के अनुसार, "राज्यपाल एक सूझबूझ वाला परामर्शदाता तथा राज्य में शान्ति का संस्थापक है।"
- श्री प्रकाश ने राज्यपाल के सम्बन्ध में कहा है कि "राज्यपाल की भूमिका मात्र यह है कि वह निर्धारित शून्य स्थान पर हस्ताक्षर करता है।"
- विजय लक्ष्मी पंडित के अनुसार, "राज्यपाल वेतन के आकर्षण का पद है।"
- डॉ. पट्टाभि सीता रमैय्या- "राज्यपाल का पद अतिथि सत्कार तथा राष्ट्रपति को एक पखवाड़े का प्रतिवेदन देने के लिए है।"
- के.के. मुंशी के शब्दों में, "राज्यपाल संवैधानिक औचित्य का प्रहरी व कड़ी है जो राज्य को केन्द्र के साथ जोड़कर भारत की एकता के लक्ष्य को प्राप्त करता है।"
- भारत में सर्वप्रथम 1980 में तमिलनाडु के राज्यपाल प्रभुदास पटवारी को बर्खास्त किया गया।
- 1981 में राजस्थान के राज्यपाल रघुकुल तिलक को बर्खास्त किया गया, जो राजस्थान से बर्खास्त होने वाले पहले राज्यपाल थे।
राज्यपाल की भूमिका से जुड़े प्रमुख वाद
एस.आर बोम्मई बनाम भारत सरकार वाद में उच्चतम न्यायालय ने 11 मार्च, 1994 को दिये अपने ऐतिहासिक निर्णय में केन्द्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 356 के व्यापक दुरुपयोग पर विराम लगाते हुए यह व्यवस्था दी कि किसी भी राज्य सरकार के बहुमत का फैसला विधानमण्डल में होना चाहिए न की राजभवन में। मंत्रिमण्डल के समर्थन का निर्धारण एक व्यक्ति की निजी राय से नहीं किया जा सकता, चाहे वह व्यक्ति राज्यपाल हो या राष्ट्रपति। अनुच्छेद 356 का प्रयोग अनिवार्य परिस्थितियों में और बहुत कम किया जाना चाहिए।
फैसले में निम्न तथ्य सामने आए
- अनुच्छेद 356 के अधीन जारी की गई घोषणा की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
- राज्य विधानसभा को संसद द्वारा घोषणा के अनुमोदन के बाद ही भंग किया जाना चाहिए।
- न्यायालय संघ सरकार के अपेक्षा करता है कि वह उस सामग्री को प्रकट करे, जिनके आधार पर अनुच्छेद 356 का प्रयोग किया गया है।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत सरकार (2006 )- रामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार मामले में वर्ष 2006 में बिहार के राज्यपाल बूटासिंह ने तत्कालीन समता पार्टी के नेता नीतिश कुमार को जो तब जनतादल यूनाइटेड के नेता थे, विश्वास मत सिद्ध करने के लिए विधानसभा में अवसर नहीं दिया। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल ने अपनी विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग किया है। मामले में उच्चतम न्यायालय की पाँच सदस्यीय पीठ ने अपने महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो कुछ दल मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं चाहे चुनाव पूर्व इन दलों में गठबंधन हुआ हो या न हुआ हो। न्यायालय ने पुनः दोहराया कि विधानसभा में विश्वास मत राज्यपाल के विवेक का विषय नहीं हैं, बल्कि विधानसभा के पटल पर सिद्ध होना चाहिए।
नाबाम रेबिया केस- 2016
वर्ष 2016 में उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया कि राज्यपाल को मुख्यमंत्री के परामर्श के बिना विधानसभा बैठक बुलाने का अधिकार नहीं है। न्यायपालिका ने बोम्मई निर्णय को पुनः दोहराते हुए कहा कि सरकार का बहुमत राज्यपाल के विवेक का विषय नहीं है, बल्कि यह सदन के पटल पर सिद्ध होना चाहिए। राज्यपाल के विवेक के प्रयोग से संबंधित अनुच्छेद 163 सीमित है और राज्यपाल द्वारा की जाने वाली कार्यवाही मनमानी या काल्पनिक नहीं होनी चाहिए। अपनी कार्यवाही के लिए राज्यपाल के पास तर्क होना चाहिये और यह सद्भावना पूर्ण होनी चाहिए। विधानसभा की कार्यवाही को राज्यपाल निर्देशित नहीं कर सकता, क्योंकि विधानसभा की कार्यवाही संचालित करने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष का है। यह मामला अरुणाचल प्रदेश ( 2016) से जुड़ा है। वर्ष 2016 में अरुणाचल प्रदेश में एक नाटकीय घटनाक्रम हुआ। अरुणाचल प्रदेश की 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की 47 सीटें, भाजपा की 11 सीटें थी। कांग्रेस के मुख्यमंत्री नाबाम टुकी (Nabam Tukki) के विरुद्ध 21 विधायकों ने बगावत की जिससे नाबाम टुकी सरकार अल्पमत में आ गई। अरुणाचल प्रदेश की विधानसभा बैठक जुलाई 2015 में हुई थी और आगामी बैठक जनवरी 2016 में होनी थी। परन्तु असम के राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा, जो अरुणाचल प्रदेश का प्रभार भी देख रहे थे, ने विधानसभा की बैठक 16 दिसम्बर, 2015 को बुला ली। जबकि विधानसभा की बैठक पहले से ही 14 जनवरी 2016 को बुलाई गई थी। राज्यपाल ने 15 जनवरी, 2016 को राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजकर राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की।
कांग्रेस ने इसके विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर पूर्ववर्ती सरकार को बहाल करने की मांग की। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया। संविधान पीठ द्वारा मामले की संवैधानिक दायरे में होने की समीक्षा की और उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में राज्यपाल की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए राज्यपाल के निर्णय को रद्द कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में निर्णय देते हुए कहा कि-
- यदि मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद को विधानसभा का विश्वास मत प्राप्त है, तो राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना विधानसभा की बैठक नहीं बुला सकता। यदि राज्यपाल ऐसा करते है तो उनका निर्णय एकतरफा और विवेकाधिकार शक्ति असंवैधानिक है।
- राज्यपाल, मंत्रिपरिषद की सलाह एवं परामर्श के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है और उसकी विवेकाधीन शक्ति 'संवैधानिक दायरे' के अधीन है।
- राज्यपाल विधानसभा की कार्यवाही को निर्देशित नहीं कर सकता, क्योंकि विधानसभा की कार्यवाही के संचालन का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) को है। वह विधानसभा अध्यक्ष को हटाने संबंधी निर्णय नहीं ले सकता।
त्रिशंकु विधानसभा में राज्यपाल की भूमिका से जुड़े विवादित मामले
1. महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव 21 अक्टूबर, 2019 को हुए और 24 अक्टूबर, 2019 को आए परिणाम के बाद किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। भाजपा को 105, शिवसेना को 56, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी को 54 तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 44 सीटें मिली।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 12 नवम्बर, 2019 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया और अचानक हुए एक घटनाक्रम द्वारा 23 नवम्बर, 2019 को देवेन्द्र फडणवीस को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया गया, किन्तु फ्लोर टेस्ट के पूर्व 26 नवम्बर को फडणवीस ने त्यागपत्र दे दिया। इस फैसले से राज्यपाल की भूमिका विवादित हो गई। इसके पहले मई, 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। परन्तु राज्यपाल वजुभाई ने भाजपा के येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया। इससे कांग्रेस ने आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया बाद में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का निर्णय दिया परन्तु येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया। बाद में कांग्रेस व जेडीएस गठबंधन सरकार बनी परन्तु राज्यपाल की भूमिका विवादित रही।
राज्यपाल के विशेष उत्तरदायित्व
संविधान के अनुच्छेद 371 (2)- में महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष उपबंध किये गए है। इसमें कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति ने निर्देश दिये हों तो विदर्भ, मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र या सौराष्ट्र, कच्छ और शेष गुजरात के लिए पृथक विकास बोर्डों की व्यवस्था की जायेगी, उक्त क्षेत्रों के विकास व्यय के लिए निधियों के साम्यपूर्ण आवंटन की व्यवस्था की जायेगी और समस्त राज्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, उक्त सभी क्षेत्रों के संबंध में तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए सुविधाओं की व्यवस्था की जायेगी।
नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध अनुच्छेद 371 क (1) (ख)- संविधान के अनुच्छेद 371 क (1) ख के अनुसार नागालैंड के राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व होगा कि वह नागालैंड राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में व्यवस्था करें और नागालैंड में विद्रोही नगाओं के कारण उपजी आंतरिक अशांति से निपटने के लिए उपबंध करे।
असम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध- अनुच्छेद 371 (ख) में असम राज्य के संबंध में उपबंधों में संविधान की छठी अनुसूची के पैरा 9 (2) के अनुसार यदि असम सरकार तथा स्वायत्त जनजातीय जिला परिषद् के मध्य खानों के लीज में होने वाली आय के बँटवारे को लेकर विवाद (संघर्ष) हो तो राज्यपाल स्व-विवेक से निर्णय लेगा।
371 ग. मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष उपबंध :- अनुच्छेद 371ग(1) मणिपुर के राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व होगा कि मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित होने वाली समिति का उचित कार्यकरण सुनिश्चित करें। अनुच्छेद 371ग(2) के अनुसार राज्यपाल प्रतिवर्ष या जब कभी राष्ट्रपति ऐसी अपेक्षा करें, मणिपुर राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन (ऐसे क्षेत्र जो राष्ट्रपति द्वारा पहाड़ी क्षेत्र घोषित किये गये है) के संबंध में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
सिक्किम राज्य के संबंध में राज्यपाल की स्व-विवेक शक्तियाँ अनुच्छेद 371(च)(छ) सिक्किम के राज्यपाल का दायित्व होगा कि वह सिक्किम की शांति के लिए और सिक्किम की जनता के विभिन्न विभागों की सामाजिक और आर्थिक उन्नति सुनिश्चित करने के लिए कार्य करे।
संविधान के अनुच्छेद 371 ज के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल का निधि और व्यवसाय के संबंध में विशेष उत्तरदायित्व होता है। उपर्युक्त विशेष उत्तरदायित्वों के संबंध में राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने या स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है।
कर्नाटक-हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड की स्थापना का प्रावधान 98वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2012 में किया गया।
अनुच्छेद 239(2) के अन्तर्गत जब राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को किसी निकटवर्ती संघ शासित क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त किया जाता है तो राज्यपाल प्रशासक के रूप में अपने कार्यों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कार्य करेगा।
राज्यपाल राहत कोष
राजस्थान में 'गवर्नर रिलीफ फण्ड विनियम, 1973 के द्वारा राज्य में समस्त वैधानिक व प्रशासनिक प्रयोजनार्थ इस कोष का गठन 14 मार्च, 1973 को किया गया। फण्ड का मुख्य उद्देश्य अकाल एवं अभाव ग्रस्त क्षेत्रों में सहायता पहुँचाना, प्राकृतिक आपदाओं यथा अग्निकांड, बाढ़ एवं दुर्घटना में सहायता उपलब्ध कराना है। इसके अन्तर्गत प्रदेश में महामारी, अतिवृष्टि, टिड्डी, ओलावृष्टि तथा अन्य आपदा क्षेत्रों में फसल नुकसान, औषधि एवं उपकरणों की खरीद के लिए सहायता दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त महोदय द्वारा अन्य जो भी कारण उचित समझे, जहाँ तात्कालिक आवश्यकता हो। वर्ष 2020 में इस फण्ड से कोविड-19 में भी राशि दी गई।
फण्ड की आय के स्रोत
- किसी भी व्यक्ति/संस्था एवं निकाय से प्राप्त आर्थिक सहायता।
- कोष में संग्रहित पूँजी के बैंकों/निगमों में विनियोजन पर ब्याज
- कोई भी अन्य वैधानिक योगदान
- फण्ड में जमा राशि आय कर से मुक्त होती है।
फण्ड से व्यय की विधि
राज्यपाल रिलीफ फण्ड से राशि का व्यय राज्यपाल महोदय की आज्ञा एवं निर्देशानुसार निर्धारित प्रक्रिया द्वारा किया जाता है।
राजस्थान के राज्यपाल
- महाराजा सवाई मानसिंह (राजप्रमुख): 30.03.1949 से 31.10.1956 तक (राजप्रमुख)
- सरदार श्री गुरुमुख निहाल सिंह: 1.11.1956 से 15.4.1962 तक (राजस्थान के प्रथम व सर्वाधिक कार्यकाल वाले राज्यपाल)
- डॉ. सम्पूर्णानन्द: 16.4.1962 से 15.4.1967 तक (इनके कार्यकाल में प्रथम बार 1967 में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ)
- सरदार श्री हुकुम सिंह: 16.4.1967 से 19.11.1970 तक (लोकसभा अध्यक्ष व संविधान सभा सदस्य रहे)
- जगत नारायण (कार्यवाहक): 20.11.1970 से 23.12.1970 तक (प्रथम कार्यकारी/कार्यवाहक राज्यपाल)
- सरदार श्री हुकुम सिंह (दूसरी बार): 24.12.1970 से 30.06.1972 तक
- सरदार श्री जोगेन्द्र सिंह: 01.07.1972 से 14.02.1977 तक (प्रथम राज्यपाल जिन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दिया).
- श्री वेद पाल त्यागी (कार्यवाहक): 15.02.1977 से 11.5.1977 तक (दूसरे न्यायाधीश जो राज्य के कार्यवाहक राज्यपाल बने).
- श्री रघुकुल तिलक: 12.05.1977 से 08.08.1981 तक (राजस्थान के प्रथम व एकमात्र बर्खास्त राज्यपाल).
- श्री के.डी. शर्मा (कार्यवाहक): 08.08.1981 से 05.03.1982 तक (तीसरे न्यायाधीश जो राज्य के कार्यवाहक राज्यपाल रहे).
- श्री ओमप्रकाश मेहरा (एयर चीफ मार्शल): 06.03.1982 से 04.01.1985 तक
- श्री पी.के. बनर्जी (कार्यवाहक) कार्यकारी: 05.01.1985 से 31.01.1985 तक
- श्री ओम प्रकाश मेहरा (एयर चीफ मार्शल): 01.02.1985 से 03.11.1985 तक
- श्री डी.पी. गुप्ता (कार्यवाहक): 04.11.1985 से 19.11.1985 तक
- श्री वसन्त राव पाटिल: 20.11.1985 से 14.10.1987 तक
- श्री जे.एस. वर्मा (कार्यवाहक): 15.10.1987 से 19.02.1988 तक
- श्री सुखदेव प्रसाद: 20.02.1988 से 02.02.1989 तक (भारतीय खेल परिषद् के सदस्य व राज्यसभा सदस्य रहे)
- श्री जे.एस. वर्मा (कार्यकारी): 03.02.1989 से 19.02.1989 तक
- श्री सुखदेव प्रसाद: 20.02.1989 से 02.02.1990 तक
- श्री मिलाप चन्द जैन (कार्यवाहक): 03.02.1990 से 13.02.1990 तक
- प्रो. देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय: 14.02.1990 से 25.08.1991 तक
- डॉ. स्वरूप सिंह (अतिरिक्त प्रभार): 26.8.1991 से 4.02.1992 तक (प्रथम बार अतिरिक्त प्रभार दिया गया। वे गुजरात के राज्यपाल थे)
- श्री एम. चन्ना रेड्डी: 05.02.1992 से 30.05.1993 तक (अन्तिम बार राज्य में राष्ट्रपति शासन)
- श्री धनिक लाल मंडल (अतिरिक्त प्रभार): 31.5.1993 से 29.06.1993 तक (अतिरिक्त प्रभार, वे हरियाणा राज्य के राज्यपाल थे)
- श्री बलिराम भगत: 30.06.1993 से 30.04.1998 तक (1 जनवरी, 1976 से मार्च, 1977 तक लोकसभा अध्यक्ष)
- श्री दरबारा सिंह (पद पर निधन): 01.05.1998 से 24.05.1998 तक (सबसे कम कार्यकाल व प्रथम राज्यपाल जिनकी पद रहते हुए मृत्यु हुई)
- एन.एल. टिबरेवाल (कार्यवाहक): 25.5.1998 से 15.01.1999 तक (कार्यवाहक)
- श्री अंशुमान सिंह: 16.01.1999 से 13.05.2003 तक
- श्री निर्मल चंद जैन: 14.05.2003 से 22.09.2003 तक (कार्यकाल के दौरान निधन)
- कैलाशपति मिश्रा (अतिरिक्त प्रभार): 22.09.2003 से 13.01.2004 तक
- श्री मदन लाल खुराना (त्यागपत्र): 14.01.2004 से 01.11.2004 तक (प्रथम राज्यपाल जिन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दिया)
- टी.वी. राजेश्वर (अतिरिक्त प्रभार): 01.11.2004 से 08.11.2004 तक (सबसे कम कार्यकाल वाले राज्यपाल, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल)
- श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल (त्यागपत्र): 08.11.2004 से 23.06.2007 तक (राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल जिन्होंने पद से त्याग पत्र दिया)
- डॉ. के. आर. किदवई (अतिरिक्त प्रभार): 23.06.07 से 06.09.2007 तक (हरियाणा के राज्यपाल)
- श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह (कार्यवाहक): 06.09.2007 से 01.12.2009 तक (कार्यकाल के दौरान निधन, कार्यकारी राज्यपाल)
- श्रीमती प्रभा राव (अतिरिक्त प्रभार/कार्यकारी): 03.12.2009 से 24.01.2010 और 25.01.2010 से 26.04.2010 तक (राज्य की प्रथम महिला राज्यपाल जिनका कार्यकाल के दौरान निधन हुआ)
- श्री शिवराज पाटिल (अतिरिक्त प्रभार): 28.04.2010 से 12.05.2012 तक (कार्यवाहक राज्यपाल, पंजाब के राज्यपाल)
- श्रीमती मार्गरेट अल्वा (कार्यवाहक): 12.05.2012 से 07.08.2014 तक (उत्तराखण्ड की पूर्व राज्यपाल)
- श्री राम नाईक (अतिरिक्त प्रभार): 08.08.2014 से 03.09.2014 तक (उत्तर प्रदेश के राज्यपाल)
- श्री कल्याण सिंह: 04.09.2014 से 09.09.2019 तक (इनके पास हिमाचल का अतिरिक्त प्रभार 28.01.15 से 12.08.15 तक रहा)
- श्री कलराज मिश्र: 09.09.2019 से 30.07.2024 तक (इससे पूर्व में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल थे)
- हरिभाऊ किशनराव बागडे: 31.07.2024 से लगातार (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ नेता। महाराष्ट्र विधानसभा के 2014-2019 तक अध्यक्ष रहे 1985 में पहली बार विधायक बने। राजस्थान में 8 अतिरिक्त प्रभार वाले राज्यपाल और 11 कार्यवाहक राज्यपाल रहे हैं)
राजस्थान के राज्यपाल (The Governor)
महाराजा सवाई मानसिंह (राजप्रमुख)- 30 मार्च, 1949 से 31 अक्टूबर, 1956 तक
जन्म 21 अगस्त 1911 को ईसरदा ठिकाने के ठाकुर सवाई सिंह के यहाँ पर हुआ था। बचपन का नाम 'मोरमुकुट सिंह' था।
महाराजा ने 1922 से 1949 तक जयपुर पर शासन किया था। इन्होंने जीवन के अंतिम समय में स्पेन में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया।
लेफ्टिनेंट जनरल महाराजा सवाई श्री मानसिंह जयपुर रियासत के 39वें व अंतिम शासक थे। वे महाराजा चैम्बर ऑफ प्रिंसेस के सदस्य तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की कोर्ट के वंशानुगत सदस्य थे।
महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय को 7 सितंबर 1922 को राजगद्दी पर बैठाया गया। जयपुर राज्य के एकीकरण के पश्चात् वर्ष 1949 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय को राजस्थान का राजप्रमुख नियुक्त किया गया। उन्हें सरदार पटेल ने शपथ दिलाई। वे 30 मार्च, 1949 से 30 अक्टूबर 1956 तक राज प्रमुख रहे। महाराजा सवाई मानसिंह पोलो के विश्व विख्यात खिलाड़ी थे। जब सिरेन्केस्टर, इंग्लैण्ड में पोलो खेल रहे थे तब एक दुर्घटना में अकाल मृत्यु हो गई।
गुरुमुख निहाल सिंह (1 नवंबर, 1956 से 15 अप्रैल, 1962 तक)
राजस्थान के प्रथम राज्यपाल सरदार गुरुमुख निहाल सिंह ने रियासतों के पुनर्गठन के बाद 1 नवम्बर, 1956 को पदभार संभाला तथा 15 अप्रैल, 1962 तक इस पद पर आसीन रहे। गुरुमुख निहाल सिंह ने लन्दन विश्वविद्यालय से बी.ए. (अर्थशास्त्र) की उपाधि प्राप्त की। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं रामजस कॉलेज (दिल्ली) के प्राचार्य रहे। 7 मई, 1952 को विधानसभा अध्यक्ष चुने गये। वर्ष 1955 में इन्हें कांग्रेस विधायक दल का सर्वसम्मति से नेता चुन लिया गया। 13 फरवरी 1955 से 31 अक्टूबर 1956 को दिल्ली विधानसभा के समाप्त होने तक गुरुमुख निहाल सिंह मुख्यमंत्री पद पर रहे। उनका कार्यकाल 5 वर्ष, 5 माह व 15 दिन था जो राज्य में किसी राज्यपाल का सबसे लम्बा कार्यकाल रहा है।
डॉ. सम्पूर्णानन्द
डॉ. सम्पूर्णानन्द का जन्म 1 जनवरी, 1891 को हुआ। क्वीन्स कॉलेज बनारस में पढ़कर आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। डॉ. सम्पूर्णानन्द 1918-1921 तक डूँगर कॉलेज, बीकानेर के प्राचार्य रहे। असहयोग आंदोलन के दौरान प्राचार्य पद त्याग दिया। इन्होंने सांगानेर (जयपुर) में खुली जेल का निर्माण करवाया। वर्ष 1922 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गए। ये 3 बार उत्तरप्रदेश की कांग्रेस कमेटी के सचिव रहे। ये गोविन्द वल्लभ पंत के मुख्यमंत्रीत्व में शिक्षा मंत्री रहे। स्वतंत्रता के बाद उत्तरप्रदेश सरकार में शिक्षा, वित्त व गृह मंत्री रहे। 1954 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने एवं 1960 तक पद पर बने रहे। डॉ. सम्पूर्णानन्द ने राज्य के दूसरे राज्यपाल के रूप में 16 अप्रैल 1962 को शपथ ग्रहण की और 15 अप्रैल, 1967 तक इस पद पर आसीन रहे। भारत-चीन युद्ध 1962 के समय वे राजस्थान के राज्यपाल थे। इनके कार्यकाल में पहली बार 13 मार्च, 1967 से 26 अप्रैल, 1967 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। इस दौरान विधानसभा निलम्बित रही।
सरदार हुकुम सिंह
सरदार हुकुम सिंह का जन्म 30 अगस्त, 1895 को मोन्टगोमरी में हुआ। इन्होंने राजस्थान के तीसरे राज्यपाल के रूप में 16 अप्रैल, 1967 को कार्यभार ग्रहण किया और 30 जून, 1972 तक पद पर आसीन रहे। राजस्थान के तीसरे राज्यपाल सरदार हुकुम सिंह 19 नवम्बर, 1970 से 23 दिसम्बर, 1970 तक विदेश यात्रा पर रहे। उनकी उपस्थिति में राजस्थान उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री जगतनारायण ने कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
ये अकाली दल के सदस्य एवं तीन वर्षों तक शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष भी रहे। ये 1947 से नवम्बर 1948 तक कपूरथला में राज्य उच्च न्यायालय के उत्तरवर्ती न्यायाधीश भी रहे। ये संविधान सभा के अंतरिम सांसद एवं द्वितीय लोकसभा के सदस्य भी थे। वे राज्य के 45 दिन तक राज्यपाल रहे।
वर्ष 1965 में सोवियत संघ और यूगोस्लाविया गये। संसदीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य रहे। इन्होंने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में दूसरी बार 24 दिसम्बर, 1970 से 30 जून, 1972 तक राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएँ प्रदान की।
जगत नारायण
राज्यपाल सरदार हुकुम सिंह विदेश यात्रा पर गए तो उनके स्थान पर श्री जगत नारायण 20 नवम्बर, 1970 से 23 दिसम्बर, 1970 तक प्रथम कार्यवाहक राज्यपाल रहे। वे प्रथम कार्यवाहक राज्यपाल बने।
सरदार जोगेन्द्र सिंह
सरदार जोगेन्द्र सिंह का जन्म 30 अक्टूबर, 1903 को उत्तरप्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ। इन्होंने 34 वर्ष की आयु में राजनीति में प्रवेश लिया व केन्द्रीय विधानसभा हेतु चुने गये। ये संविधान सभा व अंतरिम संसद के सदस्य रहे।
वर्ष 1965 में राज्य सभा के लिए चुने गये एवं जन लेखा एवं प्रकाशन समिति के सदस्य रहे। वे सितम्बर, 1971 से जून, 1972 तक उड़ीसा के राज्यपाल भी रहे।
वे 1 जुलाई, 1972 से 14 फरवरी, 1977 तक राजस्थान के राज्यपाल रहे।
इनके गुरु श्री गोविन्द वल्लभ पन्त थे जिनके सानिध्य में वे एक निर्भीक राष्ट्रवादी बन गये। उड़ीसा के भी राज्यपाल रहे। ये नेशनल राइफल एसोसिएशन के महासचिव रहे।
वेद पाल त्यागी (कार्यकारी)
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वेदपाल त्यागी ने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 15 फरवरी, 1977 से 11 मई, 1977 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की। 14 फरवरी, 1977 को तत्कालीन राज्यपाल सरदार जोगेन्द्र सिंह ने उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए त्यागपत्र दिया।
वे राजस्थान के दूसरे कार्यवाहक न्यायाधीश रहे।
इनके कार्यकाल में राज्य में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।
रघुकुल तिलक
राजस्थान के पाँचवें राज्यपाल श्री रघुकुल तिलक का जन्म 7 जनवरी, 1900 को उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में हुआ था। वे काशी विद्यापीठ के उपकुलपति रहे। वे रेलवे सेवा चयन आयोग (उत्तरी क्षेत्र) के अध्यक्ष भी रहे। इन्होंने इतिहास में एम.ए. किया और 1924 से 1926 तक खुरजा कॉलेज में व्याख्याता तथा 1928 से 1932 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा में पुस्तकालयाध्यक्ष भी रहे। 1958 से 1960 तक राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य रहे।
उन्होंने 12 मई, 1977 को राज्यपाल का कार्यभार संभाला और 8 अगस्त, 1981 तक राजस्थान के राज्यपाल रहे। इनकी नियुक्ति से पूर्व 30 अप्रैल, 1977 से 21 जून, 1977 तक राज्य में तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लागू रहा था। वे राजस्थान के प्रथम राज्यपाल थे, जिन्हें पद पर रहते हुए 1981 में राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त किया गया। केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के कारण उन्हें 8 अगस्त, 1981 को पदमुक्त कर दिया गया।
प्रो. तिलक का निधन 25 दिसम्बर, 1989 को एक सड़क दुर्घटना में हुआ था।
के.डी. शर्मा (कार्यवाहक राज्यपाल)
के.डी. शर्मा ने राजस्थान के तीसरे कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में राजस्थान को अपनी सेवाएँ प्रदान की। इन्होंने 8 अगस्त, 1981 से 5 मार्च, 1982 तक राजस्थान के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
श्री ओम प्रकाश मेहरा (8वें एयर चीफ मार्शल)
श्री ओम प्रकाश मेहरा ने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 6 मार्च, 1982 को पदग्रहण किया और 4 जनवरी, 1985 तक इस पद पर बने रहे। श्री ओम प्रकाश मेहरा 5 जनवरी, 1985 से 31 जनवरी, 1985 तक विदेश यात्रा पर रहे। इस अवधि में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री पी.के. बनर्जी कार्यवाहक राज्यपाल रहे। मेहरा का कार्यकाल 3 नवम्बर, 1985 को समाप्त हुआ। तब नये राज्यपाल की नियुक्ति होने तक मुख्य न्यायाधीश श्री द्वारका प्रसाद गुप्ता (डी.पी. गुप्ता) 4 नवम्बर, 1985 से 19 नवम्बर, 1985 तक राज्य के कार्यकारी राज्यपाल रहे। वे एयर चीफ मार्शल पूर्व वायु सेना अध्यक्ष महाराष्ट्र के राज्यपाल (1980-82) एवं भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष (1975-80) भी रहे। वे हिन्दुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड के अध्यक्ष रहे। डूरण्ड कप एसोसिएशन के आजीवन अध्यक्ष रहे। वे महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से स्थानान्तरित होकर राजस्थान में आये। इनका जन्म 19 जनवरी, 1919 में हुआ, इन्हें जनरल ड्यूटी (पायलेट शाखा) में नियुक्ति मिली। इन्होंने कई क्षेत्रों व कमानों का पद ग्रहण किया एवं वर्ष 1968 में परम विशिष्ट सेवा पदक व 1977 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। भारतीय ओलंपिक संघ के 5वें अध्यक्ष रहे। इनकी पुस्तक 'मेमोरीज स्वीट एण्ड सोर'।
डी.पी. गुप्ता (कार्यवाहक राज्यपाल)
डी.पी. गुप्ता ने कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान की उन्होंने 4 नवम्बर, 1985 से 19 नवम्बर, 1985 तक राजस्थान के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
पी.के. बनर्जी
इन्होंने राजस्थान के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में 5 जनवरी, 1985 से 31 जनवरी, 1985 तक कार्य किया।
श्री वसन्त राव बंडू जी पाटिल
इनका जन्म 13 नवम्बर, 1917 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में हुआ। इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप में भाग लिया एवं कई बार जेल भी गये। श्री पाटिल 4 बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। इन्हें 1967 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
श्री पाटिल ने 20 नवम्बर, 1985 को राजस्थान के राज्यपाल के रूप में कार्य ग्रहण किया एवं 14 अक्टूबर, 1987 तक पद आसीन रहे।
ये राज्य सहकारी चीनी मिल संघ के अध्यक्ष (1964-65), 1966-67), महाराष्ट्र राज्य सहकारी फर्टिलाइजर्स एण्ड केमिकल्स लिमिटेड तथा राष्ट्रीय सहकारी चीनी मिल संघ के अध्यक्ष भी रहे।
राजस्थान के सातवें राज्यपाल बसंत दादा पाटिल द्वारा 15 अक्टूबर, 1987 को निजी कारणों से त्यागपत्र देकर पदमुक्त हुए। उनके स्थान पर मुख्य न्यायाधीश श्री जगदीश शरण वर्मा ने 15 अक्टूबर, 1987 को कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में पद ग्रहण किया।
जे. एस. वर्मा (कार्यवाहक राज्यपाल)
न्यायमूर्ति जगदीश शरण वर्मा ने राजस्थान के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में 15 अक्टूबर, 1987 से 19 फरवरी, 1988 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की।
श्री सुखदेव प्रसाद
श्री सुखदेव प्रसाद का जन्म 20 मार्च, 1921 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ। इन्होंने 20 फरवरी, 1988 से 2 फरवरी, 1990 तक राजस्थान के राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान की।
ये 1936 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े एवं 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। ये वर्ष 1975 से 1977 तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्टील एवं माइन्स विभाग के उप मंत्री रहे। फरवरी, 1985 से अगस्त, 1955 तक उत्तर प्रदेश सरकार में दलित एवं समाज कल्याण मंत्री रहे। अक्टूबर 1982 से फरवरी 1985 तक उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे।
जे.एस. वर्मा (कार्यकारी)
इन्होंने राजस्थान के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में 3 फरवरी, 1989 से 19 फरवरी, 1989 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की थी। इन्होंने सुखदेव प्रसाद की विदेश में चिकित्सा के दौरान (अवधि में) अपनी सेवाएँ प्रदान की।
सुखदेव प्रसाद
सुखदेव प्रसाद ने पुनः 20 फरवरी, 1989 से 2 फरवरी, 1990 तक राजस्थान के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
मिलाप चन्द जैन
राजस्थान के जोधपुर में जन्मे मिलाप चन्द जैन कार्यवाहक राज्यपाल थे। इन्होंने 3 फरवरी, 1990 से 13 फरवरी, 1990 तक (कार्यवाहक) राज्यपाल के तौर पर राजस्थान को अपनी सेवाएँ प्रदान की थी। राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे। इन्होंने राजीव गाँधी हत्याकांड की जाँच की।
प्रो. देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय
प्रो. देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय का जन्म 5 नवम्बर, 1933 को बरीसान (बांग्लादेश) में हुआ था। इन्होंने कलकत्ता में M.A., L.L.B. और डी. फिल तक शिक्षा प्राप्त की।
ये वर्ष 1969 में पहली बार राज्य सभा हेतु चुने गये। जुलाई, 1975 में पुनः राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। ये 1971 से 1973 तक स्वास्थ्य व परिवार नियोजन मंत्रालय में राज्यमंत्री तथा 5 फरवरी, 1973 से 24 मार्च, 1977 तक केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री रहे। उन्होंने केन्द्र सरकार के निर्देश पर 22 अगस्त, 1991 को त्याग पत्र दिया।
श्री देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय भारत-चेकोस्लावाकिया तथा भारत युगोस्लाविया संयुक्त आयोगों के सह-अध्यक्ष तथा भारत-फ्रांस संयुक्त आयोग के प्रथम भारतीय सह-अध्यक्ष बनाये गये। इन्होंने 14 फरवरी, 1990 से 25 अगस्त, 1991 तक राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएँ प्रदान की।
डॉ. स्वरूप सिंह
डॉ. स्वरूप सिंह ने राजस्थान के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में 26 अगस्त, 1991 से 4 फरवरी, 1993 तक कार्य किया। वे गुजरात के राज्यपाल थे, जिन्हें राजस्थान के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के सदस्य रहे। दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे। राज्यसभा सांसद भी रहे।
डॉ. एम. चन्ना रेड्डी
डॉ. एम. चन्ना रेड्डी का जन्म 13 जनवरी, 1919 को हैदराबाद (आन्ध्रप्रदेश) जिले के खिरपुर ग्राम में हुआ। इन्होंने वर्ष 1941 में एम.बी.बी.एस. की डिग्री प्राप्त की व अल्पायु में राजनैतिक जीवन में प्रवेश किया। वे राज्य के 11वें राज्यपाल बने। आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
डॉ. रेड्डी ने 1962 से 1967 तक राज्य मंत्री के रूप में आन्ध्र प्रदेश में कई पदों पर कार्य किया। मार्च, 1967 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री बनाए गए। डॉ. रेड्डी ने 6 मार्च, 1978 में मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया। तत्पश्चात पंजाब के राज्यपाल बनाए गए। वे राजस्थान में 5 फरवरी, 1992 से 30 मई, 1993 तक राज्यपाल के पद पर आसीन रहे। उनके कार्यकाल में अन्तिम बार (चौथी बार) राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।
धनिक लाल मंडल (अतिरिक्त प्रभार)
धनिक लाल मंडल का जन्म 1932 में बिहार में हुआ था। ये 1977 व 1980 में 2 बार बिहार के झंझारपुर से लोकसभा के लिए चुने गए। ये बिहार विधानसभा (1967-1974) के अध्यक्ष रहे और 7 फरवरी, 1990-13 जून, 1995 तक सदस्य रहे। इन्होंने 31 मई, 1993 से 29 जून, 1993 तक राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर सेवाएँ प्रदान की। ये हरियाणा के राज्यपाल थे। राजस्थान के राज्यपाल का इन्हें अतिरिक्त प्रभार दिया गया था।
बलिराम भगत
श्री बलिराम भगत का जन्म बिहार राज्य के पटना शहर के मेंहदीगंज में 1 अक्टूबर, 1922 ई. को हुआ था। ये वर्ष 1939 से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से सम्बद्ध रहे एवं भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया। श्री भगत 1950-52 में अंतरिम संसद के सदस्य तथा प्रथम लोक सभा में 1952 से निरन्तर पाँचवीं लोकसभा 1977 तक सदस्य रहे। इसके अतिरिक्त सातवीं (1950-84) व आठवीं लोकसभा (1984-89) के सदस्य भी रहे हैं। वे लोकसभा अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत के विदेशमंत्री व रक्षामंत्री के रूप में कार्य किया। ये हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे।
बलिराम भगत वर्ष 1954 में टोक्यो तथा 1965 में बंगलौर में आयोजित सम्मेलनों में भारतीय दल के नेता रहे। इन्होंने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 30 जून, 1993 से 30 अप्रैल, 1998 तक अपनी सेवाएँ प्रदान कीं।
दरबारा सिंह
राजस्थान के 14वें राज्यपाल के रूप में दरबारा सिंह को नियुक्त किया गया। दरबारा सिंह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री (10वें क्रम) रहे और भारत छोड़ो आन्दोलन के समय जेल गये। वे 1984-90 तक राज्य सभा सदस्य और 1996-98 तक लोकसभा सदस्य रहे। 24 मई, 1998 को उनका निधन हो गया। वे मात्र 24 दिन राज्य के राज्यपाल रहे। राजस्थान के राज्यपाल पद पर 1 मई 1998 से 24 मई 1998 तक पद पर आसीन रहे। पोकरण परीक्षण के समय राज्य के राज्यपाल रहे। इनका कार्यकाल सबसे कम था। वे राजस्थान के पहले राज्यपाल थे, जिनकी पद पर रहते हुये मृत्यु हुई। इनकी मृत्यु लू लगने से हुई।
स्व. एल. टिबरेवाल (कार्यवाहक न्यायाधीश)
इनका जन्म 17 जनवरी, 1937 को झुंझुनूँ जिले में हुआ। ये एक न्यायाधीश थे। इन्होनें राजस्थान उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया है। ये 25 मई, 1998 से 15 जनवरी, 1999 तक राजस्थान के राज्यपाल रहे। राजस्थान बार काउंसिल के अध्यक्ष रहे।
श्री अंशुमान सिंह
अंशुमान सिंह का जन्म 7 जुलाई 1935 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ। वर्ष 1957 में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इनकी कानून के क्षेत्र में गहरी रुचि होने के कारण 1957 में 22 वर्ष की उम्र में ही जिला कोर्ट इलाहाबाद में वकालत प्रारंभ की। वर्ष 1996 में राजस्थान उच्च न्यायालय के प्रशासनिक न्यायाधीश नियुक्त हुए व सेवानिवृत्ति तक इस पद पर रहे।
अंशुमान सिंह ने राज्य के 15वें राज्यपाल के रूप में 16 जनवरी, 1999 से 13 मई, 2003 तक राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएँ प्रदान की। वे 4 बार राजस्थान के कार्यवाहक राज्यपाल रहे। गुजरात के राज्यपाल रहे। इनकी मृत्यु कोविड से हुई।
श्री निर्मल चंद जैन
श्री निर्मल चंद जैन का जन्म 24 सितंबर, 1926 को हुआ था। ये एक भारतीय राजनीतिज्ञ, मध्य प्रदेश के अधिवक्ता और 11वें वित्त आयोग के सदस्य रह चुके हैं। श्री निर्मल चंद ने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 14 मई, 2003 को पद ग्रहण किया और 22 सितम्बर, 2003 को इनकी कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो गई थी।
कैलाशपति मिश्रा (अतिरिक्त प्रभार)
वे एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वे जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी के नेता बने। वे 1977 में बिहार के वित्त मंत्री भी रहे। मई, 2003 से जुलाई, 2004 तक गुजरात के राज्यपाल रहे। इन्होंने निर्मल चन्द जैन के निधन के पश्चात् राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 22 सितम्बर, 2003 से 13 जनवरी, 2004 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की थी। वे गुजरात के राज्यपाल थे, उन्हें राजस्थान का अतिरिक्त प्रभार दिया गया।
श्री मदन लाल खुराना
श्री मदन लाल खुराना का जन्म 15 अक्टूबर, 1936 को पश्चिमी पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान के लायलपुर) में हुआ। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर एवं गाँधी मेमोरियल कॉलेज श्रीनगर से बी.एड. की उपाधि प्राप्त की।
ये वर्ष 1965 से 1967 एवं 1975 से 1977 तक भारतीय जनसंघ, दिल्ली के महासचिव रहे। वर्ष 1993 से 1996 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे।
दिल्ली से 9वीं, 5वीं, 12वीं एवं 13वीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। ये 1999 में भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष भी रहे। इन्होंने राज्य के 18वें राज्यपाल के रूप में 14 जनवरी, 2004 को पद ग्रहण किया। इन्होंने 14 जनवरी, 2004 से 1 नवम्बर, 2004 तक राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएँ प्रदान की थी। वे राजस्थान के पहले राज्यपाल थे, जिन्होंने पद से त्यागपत्र दिया। इनके त्यागपत्र के बाद उत्तरप्रदेश के राज्यपाल टी.वी. राजेश्वर को अतिरिक्त प्रभार दिया।
टी.वी. राजेश्वर
टी.वी. राजेश्वर का जन्म 28 अगस्त, 1926 को हुआ था। ये भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी, इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व प्रमुख व सिक्किम, पश्चिमी बंगाल एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल रहे थे। इनको 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। इन्होंने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 1 नवम्बर, 2004 से 8 नवम्बर, 2004 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की। वे राजस्थान के सबसे कम कार्यकाल वाले राज्यपाल (अतिरिक्त प्रभार) थे।
श्रीमती प्रतिभा पाटिल
प्रतिभा पाटिल का जन्म 19 दिसम्बर, 1939 को हुआ। ये भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। इन्होंने 27 वर्ष की आयु में अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की एवं 1962 में उन्होंने इलाहाबाद क्षेत्र से चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर विजय प्राप्त की।
प्रतिभा पाटिल सन् 1962 से 1985 तक 5 बार महाराष्ट्र विधानसभा की सदस्य रही। कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य करते हुए कई महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला। वे राज्यसभा की उपसभापति भी रहीं। इन्होंने 8 नवम्बर, 2004 से 23 जून 2007 तक राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर कार्य किया। राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल जिन्होंने पद पर रहते हुए त्यागपत्र दिया था। इन्होंने राष्ट्रपति पद के चुनाव में भैरोंसिंह शेखावत को करीब 3 लाख मतों से पराजित कर राष्ट्रपति के चुनाव में जीत हासिल की। देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनीं।
डॉ. ए.आर. किदवई (अतिरिक्त प्रभार)
डॉ. ए.आर. किदवई को राजस्थान के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया। इन्होंने 23 जून, 2007 से 6 सितम्बर, 2007 तक राज्यपाल पद पर कार्य किया था। वे हरियाणा के राज्यपाल थे।
- UPSC के पूर्व अध्यक्ष
- UGC के पूर्व सदस्य
- राज्यसभा सांसद भी रहे।
- जम्मू-कश्मीर बैंक के निदेशक
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।
श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह (कार्यवाहक)
श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह ने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 6 सितम्बर, 2007 को पदभार ग्रहण किया। इन्होंने आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। इन्होंने 1959 से 1962 तक के वर्षों में नई दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय में विभिन्न पदों पर कार्य किया। दिसम्बर 2004 से सितम्बर 2007 तक अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे। इन्होंने राजस्थान के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में 6 सितम्बर, 2007 से 1 दिसम्बर, 2009 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की। इनका कार्यकाल के दौरान निधन हो गया था।
वे न्यूयार्क में UNO में 'परमानेंट मिशन ऑफ इंडिया' के सदस्य रहे।
दिल्ली विश्वविद्यालय ऑफ पेनसिल्वेनिया इंस्टिट्यूट फॉर दी एडवांस स्टडी ऑफ इंडिया के महासचिव रहे।
G-77, IAEA एवं UNCHR के पूर्व अध्यक्ष रहे।
श्रीमती प्रभा राव (अतिरिक्त प्रभार)
इनका जन्म 4 मार्च, 1933 को मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में हुआ। वर्ष 1979 में महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री एवं विधानसभा में विपक्ष की नेता रही एवं 1984 से 1989 तक राजस्व एवं सांस्कृतिक मामलात विभाग की मंत्री रहीं। वर्ष 1999 में 13वीं लोक सभा की सांसद निर्वाचित हुई, 19 जुलाई, 2008 से 24 जनवरी, 2010 तक हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल रहीं। 25 जनवरी, 2010 से 26 अप्रैल, 2010 तक राजस्थान की राज्यपाल के तौर पर कार्य किया। 26 अप्रैल, 2010 को निधन हो गया। वह राज्य की प्रथम महिला राज्यपाल थी, जिनका कार्यकाल के दौरान निधन हुआ। वे राजस्थान की दूसरी महिला राज्यपाल रहीं।
श्री शिवराज पाटिल (अतिरिक्त प्रभार/पंजाब)
श्री शिवराज पाटिल को राजस्थान के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। इन्होंने 28 अप्रैल, 2010 से 12 मई, 2010 तक अपने पद पर रहते हुये राज्यपाल के रूप में राजस्थान को सेवाएँ प्रदान की। वे पंजाब के राज्यपाल व चण्डीगढ़ (UT) के प्रशासक रहे। लोकसभा के अध्यक्ष रहे। इन्होंने लोकसभा में प्रश्नकाल की ऑनलाइन ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत करवाई। वे भारत के गृहमंत्री व रक्षा मंत्री भी रहे।
श्रीमती मार्गरेट अल्वा (कार्यवाहक)
ये उत्तराखण्ड की पूर्व राज्यपाल थीं, इन्होंने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 12 मई, 2012 से 7 अगस्त, 2014 तक अपनी सेवाएँ प्रदान की। 2022 में विपक्ष पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार थी, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। राजस्थान की तीसरी महिला राज्यपाल रहीं। लोकसभा सांसद तथा राज्यसभा की उपसभापति रहीं। महिला सशक्तिकरण की संसदीय समिति की अध्यक्ष रहीं। इस्केप (ESCAPE) की अध्यक्ष रहीं। नेशनल चिल्ड्रन बोर्ड की उपसभापति रहीं। बालश्रम की राष्ट्रीय समिति में शामिल।
श्री रामनाइक (अतिरिक्त प्रभार)
ये उत्तरप्रदेश के राज्यपाल थे। इनका जन्म 16 अप्रैल, 1934 को हुआ था। श्री रामनाइक 13वीं लोकसभा के सदस्य व अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट में तेल व प्राकृतिक गैस मंत्री थे। इन्होंने 8 अगस्त, 2014 से 03 सितम्बर, 2014 तक राजस्थान के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार संभाला था। रामनाइक भारत के रेल मंत्री रहे।
श्री कल्याण सिंह
इनका जन्म 5 जनवरी, 1932 को हुआ था। ये भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, साथ-साथ हिमाचल प्रदेश व राजस्थान के राज्यपाल रहे चुके हैं एवं 2 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इन्होंने राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर 4 सितम्बर, 2014 से 9 सितम्बर, 2019 तक कार्य किया एवं इनके पास हिमाचल का अतिरिक्त प्रभार 28 जनवरी, 2015 से 12 अगस्त 2015 तक रहा। कल्याण सिंह एक मात्र राज्यपाल हैं, जिन्होंने 1967 के बाद अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले राजस्थान के तीसरे राज्यपाल रहे।
कलराज मिश्र
कलराज मिश्र भारतीय राजनीतिज्ञ तथा राजस्थान के राज्यपाल रहे। वे लोकसभा व राज्यसभा सांसद रहे। 16वीं लोकसभा में लघु उद्योग मंत्री रहे हैं। श्री कलराज मिश्र ने 9 सितम्बर, 2019 को राजस्थान के 23वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली। इससे पूर्व वे हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल थे। राज्यपाल श्री कलराज मिश्र अपनी बायोग्राफी 'कलराज मिश्र निमित्त मात्र हूँ मैं' के विपणन और इसे सम्बन्धित किसी व्यावसायिक गतिविधि को लेकर चर्चा में रहें। इनकी पुस्तकों में 1. न्यायिक जिम्मेदारी (Judicial Accountability) तथा 2. हिन्दुत्व एक जीवन शैली है।
हरिभाऊ बागड़े
इनका जन्म 17 अगस्त, 1945 को हुआ जो वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल हैं। इससे पहले 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे। राज्य में 8 अतिरिक्त प्रभार वाले राज्यपाल और 11 कार्यवाहक राज्यपाल रहे हैं। हरिभाऊ बागड़े राजस्थान के 42वें क्रम के राज्यपाल है। वे 45वें क्रम के राजनेता हैं।
राजस्थान में महिला राज्यपाल
- श्रीमति प्रतिभा पाटिल (2004-2007)- राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल जिन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दिया और वे देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनी।
- प्रभाराव 2010- 2010 (पद पर रहते हुए मृत्यु) 26 अप्रैल, 2010 को मृत्यु। राज्य की प्रथम कार्यवाहक महिला राज्यपाल बनी।
- मार्गरेट अल्वा- (2012-2014) कार्यवाहक राज्यपाल रही। वर्ष, 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार बनी। नोट: राजस्थान में 3 महिला राज्यपाल पद पर कार्य कर चुकी हैं।
पद पर रहते हुए मृत्यु वाले राज्यपाल
- दरबारा सिंह (24 मई, 1998)- प्रथम राज्यपाल जिनकी पद पर रहते हुए मृत्यु हुई।
- निर्मलचन्द जैन (21.9.2003)
- शैलेन्द्र कुमार सिंह (1.12.2009)
- प्रभा राव (26.4.2010)- राजस्थान की एकमात्र महिला राज्यपाल जिनकी पद पर रहते हुए मृत्यु हुई।
पद से त्यागपत्र देने वाले राज्यपाल
- जोगेन्द्र सिंह - 1977
- मदनलाल खुराना- 01.11.2004
- प्रतिभा पाटिल- 23.06.2007 (प्रथम महिला)
राजस्थान के ऐसे राज्यपाल जो लोकसभा अध्यक्ष भी रहे
- सरदार हुकम सिंह - 1962-1967
- बलिराम भगत - 1976-77
- शिवराज पाटिल - 1991-96
अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले राजस्थान के राज्यपाल
- सरदार गुरुमुख निहाल सिंह
- सम्पूर्णानंद
- कल्याण सिंह
- कलराज मिश्र
राजस्थान के ऐसे राज्यपाल जो किसी अन्य राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे हैं
| क्र. |
राज्यपाल का नाम |
जिस राज्य के मुख्यमंत्री रहे |
| 1. |
सरदार गुरुमुख निहाल सिंह |
दिल्ली |
| 2. |
मदनलाल खुराना |
दिल्ली |
| 3. |
दरबारा सिंह |
पंजाब |
| 4. |
बसंतराव पाटिल |
महाराष्ट्र |
| 5. |
एम चन्ना रेड्डी |
आन्ध्रप्रदेश |
| 6. |
सम्पूर्णानन्द |
उत्तरप्रदेश |
| 7. |
कल्याण सिंह |
उत्तरप्रदेश |
| क्र. |
राज्यपाल (अतिरिक्त प्रभार) |
अवधि |
| 1. |
श्री स्वरूप सिंह (गुजरात के राज्यपाल) |
26.08.91 - 04.02.1992 |
| 2. |
श्री धनिक लाल मंडल (हरियाणा के राज्यपाल) |
31.05.93 - 29.06.1993 |
| 3. |
श्री कैलाशपति मिश्र (गुजरात के राज्यपाल) |
22.09.03 - 13.01.2004 |
| 4. |
श्री टी.वी. राजेश्वर राव (उत्तर प्रदेश के राज्यपाल) |
01.11.04 - 08.11.2004 |
| 5. |
श्री ए.आर. किदवई (हरियाणा के राज्यपाल) |
30.06.07 - 06.09.2007 |
| 6. |
श्रीमती प्रभा राव (हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल) |
03.12.09 - 24.01.2010 |
| 7. |
श्री शिवराज पाटिल (पंजाब के राज्यपाल) |
28.04.10 - 12.05.2012 |
| 8. |
श्री रामनाईक (उत्तर प्रदेश के राज्यपाल) |
08.08.14 - 03.09.2014 |
| क्र. |
कार्यवाहक राज्यपाल |
अवधि |
| 1. |
जस्टिस जगत नारायण |
20.11.1970 – 23.12.1970 |
| 2. |
जस्टिस वेदपाल त्यागी |
15.02.1977 – 11.05.1977 |
| 3. |
जस्टिस के.डी. शर्मा |
08.08.1981 – 05.03.1982 |
| 4. |
जस्टिस पी.के. बनर्जी |
05.01.1985 – 31.01.1985 |
| 5. |
जस्टिस डी.पी. गुप्ता |
04.11.1985 – 19.11.1985 |
| 6. |
जस्टिस जगदीश शरण वर्मा |
15.10.1987 – 19.02.1988 |
| 7. |
जस्टिस जगदीश शरण वर्मा |
03.02.1989 – 19.02.1989 |
| 8. |
जस्टिस मिलाप चंद जैन |
03.02.1990 – 13.02.1990 |
| 9. |
जस्टिस एन.एल. टिबरेवाल |
25.05.1998 – 15.01.1999 |
| 10. |
श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह |
06.09.2007 – 01.12.2009 |
| 11. |
श्रीमती मार्गरेट अल्वा |
12.05.2012 – 07.08.2014 |
राज्य का महाधिवक्ता (अनुच्छेद-165)
महाधिवक्ता राज्य का सर्वोच्च विधि या कानूनी अधिकारी होता है जो राज्य सरकार को कानूनी मामलों में सलाह या परामर्श देता है। संविधान में एक महाधिवक्ता के पद की भी व्यवस्था की गई है। संविधान के भाग-VI के अनुच्छेद 165 (1) के अनुसार प्रत्येक राज्य का राज्यपाल उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने की योग्यता (अर्हता) रखने वाले व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा। वह राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर बना रहता है। किन्तु यथार्थ में, वह उस मंत्रिपरिषद की कार्य अवधि तक पदासीन रहता है, जिसने उसे नियुक्त किया। उसकी नियुक्ति के लिए यह योग्यता निर्धारित की गई है कि वह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के योग्य हो।
महाधिवक्ता राज्य विधान मण्डल का सदस्य नहीं होता तथापि उसे विधान मण्डल में विधि विषयक स्पष्टीकरण के लिए बुलाया जा सकता है। जब कभी ऐसा होता है तो अनुच्छेद-177 के अनुसार उसे विधान मण्डल में बोलने तथा उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होता है। किन्तु वह उसमें मतदान नहीं कर सकता है।
अनुच्छेद 165 (2) के अनुसार, वह उन सब कार्यों को करता है जो विधि द्वारा उसके लिए निर्धारित किए जाते हैं। वह राज्य सरकार का सर्वोच्च वैधानिक परामर्शदाता (कानूनी सलाहकार) है तथा राज्य सरकार की ओर से सभी प्रारंभिक अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी अभियोगों (मुकदमे या मामले) में सरकार की ओर से वह अभियोग लगाता है। विभिन्न विभागों द्वारा विधेयकों के जो प्रारूप तैयार किए जाते है वह उनका परीक्षण करता है। वह राज्यपाल द्वारा भेजे या आवंटित किए गए कानूनी चरित्र के अन्य कर्त्तव्यों को भी करता है।
कार्यकाल एवं पारिश्रमिक
अनुच्छेद 165(3) महाधिवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद पर बना रहता है और उसे ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त होगा जो राज्यपाल अवधारित (निर्धारित) करेंगें।
योग्यताएँ
महाधिवक्ता राज्य का प्रथम विधि अधिकारी होता है, इसलिए उसकी योग्यताएँ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान होती हैं।
वह भारत का नागरिक हो।
वह किसी उच्च न्यायालय में 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो या 10 वर्ष तक किसी न्यायिक पद पर कार्य कर चुका हो।
शपथ
राज्य के महाधिवक्ता को शपथ राज्यपाल द्वारा दिलवाई जाती है।
कार्यकाल
महाधिवक्ता का कार्यकाल राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त निर्भर करता है। उसका कार्यकाल अनिश्चित होता है। राज्यपाल जब चाहे महाधिवक्ता को पद से हटा सकते हैं। व्यवहार में यह मुख्यमंत्री की इच्छा पर निर्भर करता है।
वेतन भत्ते
संविधान में महाधिवक्ता का पारिश्रमिक निर्धारित नहीं किया गया है। इनके वेतन व भत्ते राज्यपाल निर्धारित करते है।
त्यागपत्र
महाधिवक्ता अपना त्यागपत्र राज्यपाल को संबोधित करते हुए राज्यपाल को देता है।
महाधिवक्ता के 4 कार्य
राष्ट्रपति द्वारा सौंपें गए विधि संबंधी विषयों पर राज्य सरकार को सलाह देना।
संविधान या अन्य विधि द्वारा प्रदान किये गए कर्त्तव्यों का निर्वहन।
अपने कार्य संबंधी कर्त्तव्यों के तहत उसे राज्य के किसी न्यायालय के समक्ष सुनवाई का अधिकार है।
संविधान के अनु. 177 के अनुसार महाधिवक्ता राज्य के विधानमंडल के किसी भी सदन की कार्यवाही में भाग ले सकता है, बोल सकता है, परन्तु मतदान नहीं कर सकता। राजस्थान के महाधिवक्ता के कार्यालय की मुख्यपीठ जोधपुर तथा खण्डपीठ जयपुर में स्थित है। मुख्यपीठ 1956 में जोधपुर में स्थापित की गई।
महाधिवक्ता
अनुच्छेद 194(4) के अन्तर्गत जिस प्रकार विधानमण्डल सदस्य को अपने कार्यकाल के दौरान विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ प्राप्त होती है, उसी प्रकार महाधिवक्ता को भी प्राप्त होती है। महाधिवक्ता राज्य सरकार के विरुद्ध लाए गए मामलों में राज्य सरकार की तरफ से न्यायालय में उपस्थित होता है। ऐसे मामले जिनमें राज्य सरकार ने महाधिवक्ता से सलाह ली है, उनमें वह सरकार के विरुद्ध मुकदमा नहीं लड़ सकता।
राज्य सरकार की अनुमति के बिना वह किसी भी अपराधिक मामलों में अभियुक्तों की प्रतिरक्षा नहीं कर सकता और न ही किसी कम्पनी के निदेशक के पद पर अपनी नियुक्ति स्वीकार कर सकता है।
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