राजस्थान में नगरीय (शहरी) प्रशासन

राजस्थान में नगरीय (शहरी) प्रशासन

यह लेख राजस्थान में नगरीय (शहरी) प्रशासन की संपूर्ण व्यवस्था को ऐतिहासिक, संवैधानिक और प्रशासनिक दृष्टि से सरल भाषा में प्रस्तुत करता है। इसमें ब्रिटिश काल से लेकर स्वतंत्र भारत और 74वें संविधान संशोधन तक शहरी स्थानीय शासन के क्रमिक विकास, नगर निगम, नगर परिषद और नगरपालिका जैसी संस्थाओं की संरचना, शक्तियों और कार्यों को स्पष्ट रूप से समझाया गया है।
लेख में राजस्थान के नगर निकायों की वर्तमान स्थिति, मेयर-सभापति-अध्यक्ष की भूमिका, चुनाव प्रक्रिया, आरक्षण, वित्तीय संसाधन तथा 12वीं अनुसूची में वर्णित विषयों के माध्यम से नगरीय प्रशासन की जिम्मेदारियों को व्यावहारिक रूप में जोड़ा गया है। कुल मिलाकर यह सामग्री शहरी प्रशासन को केवल कानून और अनुच्छेदों का विषय न बनाकर, आम नागरिक के दैनिक जीवन, सुविधाओं और शहरी विकास से जुड़े एक सजीव तंत्र के रूप में सामने लाती है।
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शहरी स्थानीय शासन राज्य सूची का विषय है। भारत में स्थानीय प्रशासन का शहरी स्वरूप 'नगरीय शासन' के नाम से जाना जाता है। इस शासन का अर्थ है कि स्थानीय शहरी लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से शहरी क्षेत्र का शासन संचालित किया जावे। भारत में सर्वप्रथम ब्रिटिश शासन के दौरान 1687 ई. में मद्रास (चेन्नई) नगर निगम की स्थापना की गई। इसके पश्चात् 1726 में मुम्बई और कोलकाता में नगर निगम स्थापित हुए। 1870 में लार्ड मेयो के काल में स्थानीय स्वशासन से जुड़ी इकाईयों को 'वित्तीय विकेन्द्रीकरण' रूप प्रदान किया गया। 1882 ई. में लार्ड रिपन ने स्थानीय स्वशासन पर एक प्रस्ताव पारित किया। जिसे स्थानीय शासन का मैग्नाकार्टा कहते है। इसीलिए 'लार्ड रिपन' को स्थानीय शासन का जनक कहा जाता है। मोंटेग्यू चैम्सफोर्ड अधिनियम (1919) में नगरीय स्थानीय स्वशासन एक अंतरिम विषय था। भारत शासन अधिनियम 1935 में नगरीय स्थानीय स्वशासन को प्रांतीय विषय में शामिल किया गया। स्वतंत्रता के पश्चात् बने संविधान में नगरीय स्वशासन को 7वीं अनुसूची में 'राज्य सूची' का विषय बनाया गया है।

संवैधानिक प्रावधान : भाग 9( क ), अनुच्छेद 243P से 243ZG तक
अनुच्छेद 243 P/त परिभाषाएँ
अनुच्छेद 243 Q/थ नगरपालिकाओं का गठन
अनुच्छेद 243 R/द नगरपालिकाओं की संरचना
अनुच्छेद 243 S/ध वार्ड समितियों, आदि का गठन और संरचना (3 लाख पर)
अनुच्छेद 243 T/न स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद 243 U/प नगरपालिकाओं की अवधि, आदि
अनुच्छेद 243 V/फ सदस्यता के लिए निरर्हताएँ
अनुच्छेद 243 W/ब नगरपालिकाओं, आदि की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
अनुच्छेद 243 X/भ नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियाँ
अनुच्छेद 243 Y/म वित्त आयोग
अनुच्छेद 243 Z/य नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा
अनुच्छेद 243 ZA/य क नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
अनुच्छेद 243 ZB/य ख संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना
अनुच्छेद 243 ZC/य ग इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
अनुच्छेद 243 ZD/य घ जिला योजना के लिए समिति
अनुच्छेद 243 ZE/य ड महानगर योजना के लिए समिति
अनुच्छेद 243 ZF/य च विद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना
अनुच्छेद 243 ZG/य छ निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों का हस्तक्षेप वर्जित

भारत में शहरी स्थानीय शासन के 8 प्रकार हैं-
  1. नगर निगम
  2. नगरपालिका
  3. टाउन एरिया समितियाँ
  4. नोटिफाईड एरिया समितियाँ
  5. सुधार न्यास
  6. छावनी बोर्ड
  7. पोर्ट ट्रस्ट तथा विशेष उद्देश्य एजेंसियाँ है।

74वाँ संविधान संशोधन, 1992

नये अधिनियम के अन्तर्गत शहरी क्षेत्र की स्वशासन इकाइयों में एकरूपता लाने के लिये इसकी तीन इकाइयाँ बनायी गई है। 74वें संविधान संशोधन द्वारा 1992 में शहरी संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई। यह अधिनियम 1 जून, 1993 से पूरे देश में प्रभावी (लागू) हुआ। राजस्थान में 9 अगस्त, 1994 से लागू हुआ। इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में भाग (IX-A) 9क जोड़ा गया। जिसका शीर्षक 'नगरपालिकाएँ' हैं। इस संविधान संशोधन द्वारा संविधान में अनुच्छेद 243P से 243ZG तक 18 अनुच्छेद जोड़े गये इसी के द्वारा संविधान में 12वीं अनुसूची जोड़ी गयी। जिसमें 18 विषय शामिल किये गये हैं। राजस्थान में जुलाई, 2023 तक।
  1. नगर निगम (वर्तमान में 11)
  2. नगर परिषद् (वर्तमान में 36 कोटपुतली व कुचामन सिटी सहित)।
  3. नगरपालिका (वर्तमान में 194)
अगस्त, 2023 में 11 नगर निगम (अलवर नया), 54 नगरपालिका परिषद् व 175 नगरपालिका बोर्ड बन जाने की संभावना है। सामूहिक रूप से इन तीनों को संविधान में 'नगरपालिका' कहा जाता है। यह त्रिस्तरीय व्यवस्था है।
अतः वर्तमान में जुलाई, 2023 तक राजस्थान में 240 स्थानीय नगर निकाय है। 2 अप्रैल, 2021 को किए गए गठन के अनुसार राज्य में 213 स्थानीय निकाय थे। वर्ष 2023 में 240 नगरीय संस्थान हो गये हैं। नगरीय निकायों की संरचना का उल्लेख अनुच्छेद 243 द/R में किया गया है। नगर निकाय क्षेत्र के प्रतिनिधि प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचित होते हैं अर्थात् उस क्षेत्र के वयस्क मतदाताओं द्वारा चुने जायेंगे। इन क्षेत्रों को वार्ड कहा जाता है। विधानमण्डल कानून बनाकर नगर निकायों में जनता को प्रतिनिधित्व देता है। इसमें नगरीय क्षेत्र के विशिष्ट ज्ञान और अनुभव रखने वाले व्यक्ति, लोकसभा व विधानसभाओं के प्रतिनिधि, राज्यसभा या राज्य विधान परिषद के सदस्य और इस क्षेत्र की समितियों के अध्यक्ष भी शामिल होंगे।

विशेषताएँ

शहरी संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता देते हुए संविधान में नया भाग- '9क' 'नगरपालिकाएँ' नाम से जोड़ा गया और 12वीं अनुसूची जोड़ी गई।
74वें संविधान संशोधन 1992 के द्वारा अनुच्छेद 243Q में तीन प्रकार की नगरीय संस्थाओं की स्थापना का प्रावधान है। यह अधिनियम 1 जून, 1993 से लागू हुआ।
राजस्थान में सबसे पहले नगरीय स्थानीय स्वशासन का प्रारम्भ 19वीं शताब्दी के मध्य हुआ। राज्य में प्रथम नगरपालिका की स्थापना माउण्ट आबू (सिरोही) में 1864 में की गई, इसके पश्चात् 1866 में अजमेर, 1867 में ब्यावर में और 1869 में जयपुर में नगर पालिका स्थापित कर दी गई परन्तु इनमें सरकारी अधिकारियों का बाहुल्य था सामान्य जन को इनमें भागीदारी नहीं दी गई। ये संस्थाएँ स्थानीय स्वशासित इकाईयाँ नहीं थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात राज्य में 1951 में 'राजस्थान नगरपालिका अधिनियम-1951' बनाकर राज्य में शहरी प्रशासन में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया। 1959 में इस अधिनियम को समाप्त कर इसके स्थान पर 'राजस्थान नगरपालिका अधिनियम - 1959' लागू किया गया। 74वें संविधान संशोधन अधिनियम-1994 के अन्तर्गत स्थानीय स्वशासी संस्थाओं को वैधानिक रूप में मान्यता देते हुए संविधान में एक नया भाग-9(क) जोड़ा गया, जिसमें 18 कानून (अनुच्छेद 243(P)त से 243(ZG)य छ तक) जोड़े गये और एक नयी अनुसूची 12वीं अनुसूची जोड़ी गई। 9 अगस्त, 1994 को स्वायत्त शासन विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा शहरी स्थानीय स्वायत्तशासी संस्थाओं को निम्न भागों में वर्गीकृत किया गया है-
  • नगर निगम
  • नगर परिषद
  • नगर पालिका
वर्तमान में जुलाई, 2023 तक राजस्थान में 10 नगर निगम, 36 नगर परिषद व 194 नगर पालिकाएँ हैं। इस प्रकार राज्य में कुल 240 स्थानीय निकाय हैं।
वर्तमान समय में राज्य में 11 नगर निगमें निम्नलिखित हैं।
राजस्थान में सबसे पहले 1866 में अजमेर नगर निगम की स्थापना की गई। अजमेर राज्य की सबसे पुरानी नगर निगम है।
  1. राजस्थान निर्माण के पश्चात् प्रथम नगर निगम की स्थापना दिसम्बर, 1992 में जयपुर नगर निगम के रूप में की गई जिसमें 91 सीटें निर्धारित की गई थी। अक्टूबर 2019 में राजस्थान सरकार द्वारा जयपुर, जोधपुर व कोटा में 2-2 नगर निगम बनाने की अधिसूचना जारी की गई है। जयपुर शहर में 250 वार्ड हैं जिसमें 2 नगर निगमों, हेरिटेज निगम (100 वार्ड) व ग्रेटर निगम (150 वार्ड) बनाये गये है। इसलिए वर्तमान में राज्य में 10 नगर निगम हो गये है।
  2. दूसरा नगर निगम, दिसम्बर, 1992 में जोधपुर में बनाया गया जिसमें 65 सीटें निर्धारित की गई है। अक्टूबर, 2019 में जोधपुर नगर निगम में से ही नया नगर निगम बनाया गया है। जोधपुर शहर को जोधपुर उत्तर (80 वार्ड) व जोधपुर दक्षिण (80 वार्ड) बाँटा गया है।
  3. तीसरा नगर निगम, जनवरी, 1993 में कोटा में बनाया गया जिसमें 65 वार्ड थे। परन्तु अक्टूबर, 2019 में कोटा शहर में 150 वार्ड बनाये गये। कोटा को भी 2 नगर निगम कोटा उत्तर व कोटा दक्षिण में बाँटा गया है। कोटा उत्तर नगर निगम में 70 वार्ड हैं और कोटा दक्षिण नगर निगम में 80 वार्ड रखे गये हैं।
  4. चौथा नगर निगम -26 जनवरी, 2008 में अजमेर में 60 वार्ड।
  5. पाँचवा नगर निगम - 15 अगस्त, 2008 बीकानेर में 60 वार्ड।
  6. छठवाँ नगर निगम - 2014 उदयपुर में 55 वार्ड।
  7. सातवाँ नगर निगम - 2014 भरतपुर में 50 वार्ड।
  • 8वाँ, 9वाँ व 10वाँ नगर निगम अक्टूबर, 2019 में बनाये गये है।
  • 11वाँ नगर निगम अलवर को 1 अगस्त, 2023 में बनाया गया।

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नगर निगम

5 लाख से अधिक जनसंख्या वाले बड़े नगरों के लिये नगर निगमों की स्थापना की जायेगी। यह शहरी स्थानीय शासन की सर्वोच्च संस्था है। नगर निगम के अध्यक्ष को मेयर या महापौर कहते हैं। नगर निगम के प्रशासनिक अधिकारी को आयुक्त या कमिश्नर कहते हैं। वर्तमान में राजस्थान में 10 नगर निगम हैं, जो सभी संभागीय मुख्यालय पर स्थित हैं। नगर निगम के मेयर का चुनाव सीधे जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से 'वयस्क मताधिकार' के आधार पर किया जाता है लेकिन 2014 के चुनाव में मेयर का चुनाव पार्षदों द्वारा अपने में से बहुमत के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से किया गया।
नगर निगम ने महापौर (मेयर) के अलावा उपमहापौर व पार्षद होते हैं। महापौर व उपमहापौर का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से तथा पार्षद का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है। महापौर व उपमहापौर को शपथ कलेक्टर द्वारा और पार्षद को शपथ कलेक्टर द्वारा नियुक्त व्यक्ति दिलवाता है। महापौर व उपमहापौर अपना त्यागपत्र संभागीय आयुक्त को देते हैं और पार्षद महापौर को त्यागपत्र देते हैं।
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योग्यताएँ
21 वर्ष या अधिक आयु और नगर निगम की मतदाता सूची में नाम होना चाहिए।

शपथ
मेयर को जिला कलेक्टर द्वारा पद की शपथ दिलाई जाती है।

कार्यकाल
सभी पदों के लिए पाँच वर्ष होता है।

त्यागपत्र
मेयर अपना त्यागपत्र संभागीय आयुक्त को देता है।

हटाना
मेयर को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है। यह अविश्वास प्रस्ताव 3/4 बहुमत से पारित होना चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव 2 वर्ष से पूर्व नहीं लाया जा सकता है, इस प्रस्ताव के गिर जाने पर अगला प्रस्ताव तीसरे वर्ष साधारण बहुमत से लाया जा सकता है। 5 वर्ष के कार्यकाल में अधिकतम 3 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।

आय के स्रोत
  1. राज्य सरकार द्वारा दिया जाने वाला अनुदान आय का स्रोत है।
  2. राज्य सरकार द्वारा दिये जाने वाले ऋण शामिल हैं।
  3. विभिन्न प्रकार के कर शुल्क, जुर्माने और भूखंडों के लीज में दिये जाने से प्राप्त राशि।

नगर निगम के कार्य
नागरिक सुविधाओं का विस्तार करना, नगरीय सौन्दर्यीकरण, सड़कों व पुलों का रख-रखाव, जन्म-मृत्यु पंजीकरण आदि।

नगर परिषदें

1 लाख से 5 लाख तक आबादी वाले नगरों में नगरपालिका परिषद् स्थापित की जायेगी। वर्तमान में राजस्थान में 54 नगरपरिषदें हैं। इसमें से 2 अजमेर में स्थित हैं। इसकी स्थापना सरकार विधि द्वारा करती है। नगरपरिषद में एक निर्वाचित परिषद् होती है जो जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी जाती है। यह परिषद् ही नगरीय क्षेत्र में कानून और नियम बनाने का कार्य करती है। परिषद् अपने में से ही एक अध्यक्ष का चुनाव करती है। नगर परिषद् अपने कार्य संचालन के लिए कुछ स्थायी व अस्थायी समितियों का गठन करती है।
नगरपरिषद और नगरपालिका बोर्ड की संरचना एकसमान होती है। केवल जनसंख्या का अन्तर होता है।

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चुनाव
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष, पार्षद का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है।

शपथ
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व पार्षद को शपथ संबंधित निर्वाचन अधिकारी द्वारा दिलवाई जाती है।

त्यागपत्र
अध्यक्ष व उपाध्यक्ष जिला कलेक्टर को और पार्षद अध्यक्ष को त्यागपत्र देता है। नगरपरिषद के अध्यक्ष को 'सभापति' कहते हैं। सभापति का निर्वाचन नगरपरिषद के वार्डों के पार्षदों द्वारा किया जाता है। सभापति का चुनाव पहले अप्रत्यक्ष रूप से होता था, लेकिन वर्ष 2009 में प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा यह चुनाव किया गया। परन्तु 2014 में पुनः यह चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से हुए। पार्षदों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाता है।

हटाना
सभापति को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।
नगरीय क्षेत्रों में दो प्रकार की स्वायत्त शासन संस्थाएँ गठित की गई पहला वर्ग नगर पंचायत, नगरपालिका परिषद और नगर निगमों का है। जबकि दूसरे वर्ग में जिला नियोजन समिति और महानगर नियोजन समिति को शामिल किया गया है।
अनुच्छेद 243 (ZD) के द्वारा आयोजन समिति के गठन की व्यवस्था की गई है।

कार्यकाल
सभी इकाईयों का कार्यकाल प्रथम बैठक से 5 वर्ष रखा गया है। यदि कोई पद रिक्त हो जाता है, तो वह 6 माह में भरा जाना अनिवार्य होगा।
नगरीय क्षेत्र में गठित की जाने वाली सभी समितियों के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जावेगा।
संविधान के अनुच्छेद 243 (T) के द्वारा अनुसूचित जातियों, जन जातियों व महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया है।
संबंधित राज्य की विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य उस क्षेत्र की निर्वाचन मतदाता सूची में पंजीकृत होने पर अपने-अपने नगर की स्थानीय संस्थाओं के पदेन अध्यक्ष होगें।

नगरपालिका

ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में संक्रमण कर रहे कस्बों के लिए नगरपालिका पंचायतें होगी। जिनकी जनसंख्या 20 हजार से एक लाख के बीच होगी। इसके अध्यक्ष को चेयरमैन (अध्यक्ष), उपाध्यक्ष को उपसभापति और सदस्यों को पार्षद कहा जाता है। इसके प्रशासनिक अधिकारी को अधिशासी अधिकारी (E.O.) कहते हैं।
यह शहरी स्थानीय स्वशासन की सबसे निम्नस्तरीय संस्था है जो 20 हजार से 1 लाख की जनसंख्या पर बनाई जाती है। राजस्थान में सबसे पहले 1864 ई. में माउंट आबू, सिरोही में नगरपालिका की स्थापना की गई। स्वतंत्रता के बाद 1951 में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम पारित करके शहरी प्रशासन में एकरूपता लाई गई। 1959 में इसे समाप्त करके राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 1959 लागू किया गया। बाद में 74वें संविधान संशोधन द्वारा इसे संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई। तीन लाख या इससे अधिक की जनसंख्या वाले नगर निकायों में एक या अधिक वार्डों के लिए वार्ड समितियों का गठन किया जायेगा। वार्ड समितियों के संबंध में नियम राज्य विधानमण्डल बनाता है। इन वार्ड समितियों के क्षेत्राधिकार में आने वाले वार्ड सदस्यों (पार्षदों) को समिति में शामिल किया जाता है। नगरपालिका में न्यूनतम वार्डों की संख्या 13 होती है और वार्ड से चुने जाने वाले सदस्य को पार्षद कहते हैं। पार्षद का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा होता है। सभी पार्षद मिलकर सभापति व उप सभापति का चुनाव करते हैं। सभापति को शपथ जिला कलेक्टर द्वारा दिलवाई जाती है और वह अपना त्याग पत्र जिला कलेक्टर को देता है। शहरी संस्थाओं का कार्यकाल साधारणतया 5 वर्ष का होता है।

नगरपालिका कार्मिक प्रशासन
नगरपालिका में मुख्य रूप से दो अधिकारी होते हैं। एक राजनीतिक प्रमुख जिसे नगरपालिका अध्यक्ष या चेयरमैन कहते हैं तथा दूसरा प्रशासनिक अधिकारी होता है, जिसे 'अधिशासी अधिकारी' (E.O.) कहते है, जो नगरपालिका का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है।

नगरपालिका अध्यक्ष
यह नगरपालिका की बैठकों की अध्यक्षता करता है और महत्वपूर्ण निर्णय लेता है। वह नगरपालिका का सर्वोच्च निर्वाचित सदस्य होते है।

कार्यपालिका अधिकारी
कार्यपालिक अधिकारी नगरपालिका का सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है इसके अधीन सभी कर्मचारी कार्य करते है।

वार्ड पार्षद
नगरपालिका के सदस्य प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा, 5 वर्ष के लिए चुने जाते है। यदि कोई सदस्य नगरपालिका की अनुमति के बिना तीन से अधिक क्रमवर्ती साधारण बैठकों में अनुपस्थित रहता है या पद की शपथ नहीं लेता है तो उसे पद से हटाया जा सकता है।

राजस्थान में प्रावधान

  1. 1864 ई. में सबसे पहले माउण्ट आबू में नगरपालिका की स्थापना की गई।
  2. राजस्थान नगरपालिका अधिनियम-1959 में बनाया।
  3. 1 जून, 1993 से 74वाँ संविधान संशोधन लागू किया।
  4. नगर पालिका अधिनियम- 2009 जो 15 सितम्बर, 2009 को पारित किया। इसमें महिलाओं को आरक्षण 1/3 ही रखा है। (न्यायालय की रोक) उसके द्वारा अध्यक्ष उपाध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होगा। हटाने के लिए 1/3 सदस्य प्रस्ताव लाएंगे 3/4 अनुमोदन करेंगे, जनमत संग्रह द्वारा बहुमत प्रस्ताव के आधार पर राइट टू रि-कॉल लागू होंगे। भारत का पहला राज्य मध्यप्रदेश है जहाँ वर्ष 2001 से राइट टू रि-कॉल लागू किया गया। राजस्थान ऐसा तीसरा राज्य है जिसमें वर्ष 2011 में इस व्यवस्था को लागू किया।

वेतन
महापौर का वेतन ₹20,000 रुपये मासिक होता है। नगरपरिषद के सभापति को ₹12000 और नगरपालिका अध्यक्ष का ₹7500 मासिक वेतन देय है।

वर्तमान में राजस्थान में कुल 240 नगर निकाय हैं जिनमें से 194 नगर पालिकाएँ, 36 नगर परिषद् एवं 10 नगर निगम हैं।

नगरपालिका बोर्ड

74 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के द्वारा प्रदेश के छोटे कस्बे जो नगर पंचायत में परिवर्तित हो रहे है। उनके लिए नगर पंचायत की व्यवस्था करता है। परन्तु राजस्थान राज्य में सबसे छोटे कस्बों अर्थात् संक्रमणकालीन क्षेत्रों में नगर पंचायत गठित न करके नगरपालिका बोर्ड गठित किया जाता है। नगरपालिका बोर्ड ऐसे क्षेत्रों में स्थापित किये जाते है जिसकी जनसंख्या 20 हजार से अधिक और एक लाख से कम होती है। नगरपालिका बोर्ड को द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के रूप में गठित करते है।
नगरपालिका बोर्ड में जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित एक परिषद बोर्ड होती है जो निर्वाचन के बाद अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष का चुनाव करती है। इस संस्था का कार्यकाल, शक्तियाँ व कार्य नगरपरिषद के समान होते है।
राजस्थान में नगरपालिका बोर्ड की तीन श्रेणियाँ है-
  • (i) नगरपालिका बोर्ड (द्वितीय श्रेणी) : द्वितीय श्रेणी की नगरपालिका (50,000 से 99,999 आबादी), जिला स्तर की नगरपालिका तथा प्रति व्यक्ति आय ₹ 200 या अधिक हो)
  • (ii) नगरपालिका बोर्ड (तृतीय श्रेणी) : तृतीय श्रेणी की नगरपालिका (25,000 से 49,999 आबादी), जिला स्तर की नगरपालिका तथा प्रति व्यक्ति आय ₹ 150 या अधिक हो)
  • (iii) नगरपालिका बोर्ड (चतुर्थ श्रेणी) : चतुर्थ श्रेणी की नगरपालिका (25000 से कम जनसंख्या)

74वाँ संविधान संशोधन की विशेषताएँ

अनुच्छेद 243 P/त - परिभाषाएँ
अनुच्छेद 243 P/त के अनुसार, "समिति, जिला, महानगर क्षेत्र तथा नगरपालिका क्षेत्र" को परिभाषित किया गया है।

अनुच्छेद 243 Q/थ - नगरपालिकाओं का गठन
नगरीय संस्थाओं की संरचना त्रिस्तरीय होगी। अधिनियम की धारा 243Q/थ के अनुसार, प्रत्येक राज्य में तीन तरह की नगरपालिकाएँ होंगी। (i) नगर पंचायत (ii) नगर परिषद् (iii) नगर निगम
नगरपालिका से आशय नगर निगम, नगर परिषद् और नगरपालिका बोर्ड से है।
नगर निगम के मामले में नगर निगम का राजनीतिक प्रमुख 'महापौर' कहलाता है और प्रशासनिक प्रमुख 'आयुक्त' कहलाता है। नगर पालिका परिषद् के मामले में राजनीतिक प्रमुख 'सभापति' और प्रशासनिक प्रमुख 'आयुक्त नगर परिषद्' कहलाता है। नगर पालिका के मामले में राजनीतिक प्रमुख को 'चेयरमैन' या अध्यक्ष कहते हैं और प्रशासनिक प्रमुख को 'अधिशासी अधिकारी' कहा जाता है।

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अनुच्छेद 243 R/द - नगरपालिकाओं की संरचना
नगरपालिका के सभी सदस्य 'प्रत्यक्ष निर्वाचित' होंगे। इसलिए नगरपालिका को वार्डों में बाँटा जायेगा। राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा विभिन्न प्रतिनिधियों को सदस्य नामित भी कर सकेगा और नगरपालिका के अध्यक्ष के निर्वाचन की विधि का निर्धारण भी कर सकेगा। राज. नगरपालिका अधिनियम, 2009 अधिनियम की धारा 6 में नगरपालिका की संरचना का उल्लेख किया गया है। नगरपालिका के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र को वार्ड कहा जाएगा और वार्ड में चुनाव प्रत्यक्ष होगा। किसी नगरपालिका में न्यूनतम 13 वार्ड होंगे। वार्डों की संख्या समय-समय पर राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित करके निर्धारित कर सकती है। नगरपालिका के वार्डों में से 'पार्षद' का निर्वाचन प्रत्यक्ष होता है। उस क्षेत्र विधायक (MLA) व सांसद (MP) नगरपालिका के सदस्य होंगे पर उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होता है। इसके अलावा नगरपालिका में विशेष अनुभव रखने वाले सदस्यों को राज्य सरकार मनोनीत कर सकती है।
राज्य सरकार- नगरपालिका बोर्ड में 6 सदस्य नगरपरिषद् में 8 सदस्य और नगर निगम में 12 सदस्य मनोनीत कर सकती है। इनमें एक दिव्यांग व्यक्ति अनिवार्य रूप से मनोनीत होगा। मनोनीत करने का प्रावधान वर्ष 2021 में संशोधन करके किया गया।

अनुच्छेद 243 S/ध वार्ड समितियों, आदि का गठन और संरचना
वार्ड समिति : 243 S/ध के अनुसार, इसके अन्तर्गत 3 लाख या अधिक जनसंख्या वाली नगरपालिका के क्षेत्र के अन्तर्गत एक या अधिक वार्डों को मिलाकर वार्ड समिति का गठन किया जायेगा। वार्ड समिति की संरचना, क्षेत्र और पदों की संख्या राज्य विधानमंडल निर्धारित करेगा। राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 2009 की धारा 3 के अनुसार राज्य सरकार राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना के माध्यम से किसी भी स्थानीय क्षेत्र को नगरपालिका घोषित कर सकती है या नगरपालिका से अपवर्जित करके नगरपालिका की सीमाओं में परिवर्तन भी कर सकती है और किसी गाँव को नगरपालिका में बदलने के लिए राज्य सरकार निर्देश दे सकती है।
अधिनियम की धारा 54 के अनुसार नगरपालिका में वार्ड समिति का गठन किया जा सकता है। ऐसी वार्ड समितियाँ 3 लाख से अधिक जनसंख्या वाली नगरपालिकाओं में बनायी जाती है। वार्ड समिति में दो तरह के सदस्य होते हैं-
वार्ड का पार्षद
पाँच अन्य सदस्य जिनकी आयु 25 वर्ष से कम न हो।

अनुच्छेद 243 T/न - स्थानों का आरक्षण
अनुच्छेद 243 T/न के अनुसार, नगरपालिका में अनुसूचित जाति व जनजाति को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था करेगा और महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था करेगा। अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण ऐच्छिक रूप से प्रदान किया गया है जो संबंधित राज्य के विधानमण्डल द्वारा निर्धारित किया जाता है।

अनुच्छेद 243 U/प - नगरपालिकाओं की अवधि या कार्यकाल
अनुच्छेद 243 U/प के अनुसार तथा अधिनियम 2009 की धारा-7 के अनुसार प्रत्येक प्रकार की नगरपालिका अपने प्रथम बैठक से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी। यदि पाँच वर्ष के पूर्व किसी संस्था का विघटन होता है तो छह माह में चुनाव करवाया जाना अनिवार्य होगा और नये चुने गये सदस्यों का कार्यकाल और नगरपालिका की अवधि शेष कार्यकाल के लिए होगी।

अनुच्छेद 243 V/फ - सदस्यता के लिए निरर्हताएँ
अनुच्छेद 243 V/फ के अनुसार, किसी व्यक्ति को नगरपालिका के लिए निर्वाचित होने के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए-
(i) विधानमण्डल द्वारा निर्धारित योग्यताएँ
(ii) न्यूनतम 21 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो। अधिनियम, 2009 की धारा-35(क) तथा धारा-41 के तहत वर्णित निरर्हताएँ।

अनुच्छेद 243 W/ब - नगरपालिकाओं, आदि की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
अनुच्छेद 243 W/ब के अन्तर्गत नगरपालिकाओं की शक्तियों, प्राधिकार और उत्तरदायित्वों का उल्लेख किया गया है। 12वीं अनुसूची में 18 विषयों को शामिल करते हुए नगरपालिकाओं के अधिकारों का उल्लेख किया गया है।

अनुच्छेद 243 X/भ - नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियाँ

अनुच्छेद 243 Y/म - वित्त आयोग
नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति को मजबूत करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 243 Y/म के द्वारा राज्य वित्त आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है। जो नगरपालिका की वित्तीय स्थिति का पुनरावलोकन करेगा। जैसा कि पंचायतीराज संस्थाओं में राज्य वित्त आयोग का गठन करके व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 243 Z/य - नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा

अनुच्छेद 243- ZA/य क - नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
राज्य निर्वाचन आयोग : नगरपालिकाओं के चुनाव करवाने के लिए अनुच्छेद 243 ZA/यक के द्वारा एक 'राज्य निर्वाचन आयोग' की व्यवस्था की गयी है। जो नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचित नामावली तैयार करवायेगा और नगरपालिकाओं के चुनावों का संचालन करने के लिए अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण भी करेगा। राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 2009 की धारा-11 में भी 'नगरपालिका के निर्वाचन' संबंधी प्रावधान है। चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग करवाता है। राज्य सरकार, राज्य निर्वाचन आयोग की सिफारिश के आधार पर निर्वाचन हेतु तिथी (तारीख) का निर्धारण करता है।

अनुच्छेद 243 Z B/य ख - संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना

अनुच्छेद 243 Z C/य ग - इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना

अनुच्छेद 243 Z D/य घ - जिला योजना के लिए समिति
जिला नियोजन समिति: अनुच्छेद 243 ZD/य घ के द्वारा जिला नियोजन समिति के गठन की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 243 ZE/य ड - महानगर योजना के लिए समिति
महानगर नियोजन समिति: अनुच्छेद 243 ZE/य ड के द्वारा प्रत्येक महानगर के लिए एक महानगर नियोजन समिति की व्यवस्था की गई है। यह समिति महानगर क्षेत्र के लिए विकास योजना का प्रारूप तैयार करेगी। राज्य का विधानमण्डल महानगर नियोजन समिति की संरचना का निर्धारण करेगा और समितियों में भरे जाने वाले स्थानों की संख्या निश्चित करेगा। परन्तु ऐसी समिति के कम से कम 2/3 सदस्य, महानगर क्षेत्र में नगरपालिकाओं के निर्वाचन सदस्यों और पंचायतों के अध्यक्षों द्वारा, अपने में से, उस क्षेत्र में नगरपालिकाओं की और पंचायतों की जनसंख्या के अनुपात में निर्वाचित किए जाएंगे। इसके अलावा यह समितियाँ भारत सरकार और राज्य सरकार का तथा ऐसे संगठनों और संस्थाओं का प्रतिनिधित्व भी करेंगी जो कर्त्तव्य इन्हें सौंपे गए हैं। महानगर समिति को इस क्षेत्र के लिए योजना और समन्वय के कार्य भी सौंपे जाएंगे। राज्य सरकार ही समिति के अध्यक्षों का तरीका निर्धारित करेगी।

अनुच्छेद 243 ZF/य च - विद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना

अनुच्छेद 243 ZG / यछ - निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों का हस्तक्षेप वर्जित

12वीं अनुसूची में वर्णित विषय

  • सार्वजनिक स्थानों पर रोशनी की व्यवस्था।
  • सफाई व स्वच्छता।
  • सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण की रोकथाम।
  • अतिवृष्टि, अनावृष्टि हेतु उपाय।
  • महामारी फैलने की दशा में आवश्यक उपाय।
  • सामुदायिक भवनों, अस्पतालों व सार्वजनिक हित हेतु भूमि उपलब्ध करवाना।
  • कमजोर वर्गों को स्वरोजगार में सहायता प्रदान करना।
  • विश्राम गृहों, अनाथ आश्रमों का निर्माण।
  • मनोरंजन हेतु मेलों का प्रदर्शन।
  • बेघर व्यक्तियों हेतु आवास की उपलब्धता।
  • पुस्तकालय, वाचनालय व संग्रहालयों की व्यवस्था करना।
  • सार्वजनिक उद्यानों की व्यवस्था।
  • मार्गों का नामकरण व मकानों पर नम्बर आवंटित करना।
  • सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण।
  • शहर में आम लोगों के जान-माल की रक्षा हेतु जर्जर भवनों को गिरवाना।
  • शमशान व कब्रिस्तान की भूमि उपलब्ध करवाना।
  • आवारा पशुओं को हटवाना।
  • भूकम्प से बचाव के उपाय करना।

अक्टूबर, 2019 में राजस्थान सरकार द्वारा दिया गया निर्णय
राज्य मंत्रिमंडल द्वारा अपने 14 अक्टूबर, 2019 में लिये गये निर्णय में यह निश्चित किया गया है कि प्रदेश में नगरीय निकायों में नगर निगम के मेयर, नगर परिषद के सभापति एवं नगर पालिका के चैयरमेन के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से न होकर अप्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे।

राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 2009

यह अधिनियम राजस्थान नगरपालिका अधिनियम वर्ष, 2009 का 18वाँ अधिनियम था। यह 11 सितम्बर, 2009 को निर्मित और 15 सितंबर को लागू हुआ। यह भारतीय गणतंत्र का 60वाँ वर्ष था।
इस अधिनियम में कुल 17 अध्याय, 344 धाराएँ और 6 अनुसूचियाँ शामिल है।

अध्याय शीर्षक धाराएँ
प्रारंभिक धारा : 1 से 2
नगरपालिकाओं का गठन और शासन धारा : 3 से 50
कार्य संचालन एवं वार्ड समिति धारा : 51 से 66
नगरपालिका संपत्ति धारा : 67 से 75
नगरपालिका वित्त एवं नगरपालिका निधि धारा : 76 से 89
लेखा और संपरीक्षा धारा : 90 से 100
नगरपालिका राजस्व धारा : 101 से 140
उधार धारा : 141 से 151
वाणिज्यिक परियोजनाएँ, निजी क्षेत्र सहभागिता करार और अन्य अभिकरणों को समनुदेशन धारा : 152 से 155
आर्थिक और विकास योजना धारा : 156 से 158
नगरीय विकास और नगर योजना धारा : 159 से 199
नगरपालिका शक्तियाँ और अपराध धारा : 200 से 297
अभियोजन, वाद आदि धारा : 298 से 308
नियंत्रण धारा : 309 से 327
कर्मचारिवृन्द धारा : 328 से 336
नियम, विनियम और उप-विधियाँ धारा : 337 से 341
प्रकीर्ण धारा : 342 से 344

अधिनियम में शामिल अनुसूचियाँ

अनुसूची क्रमांक संबंधित धारा प्रावधान
प्रथम अनुसूची धारा-108 (ख) कर, पथकर या उपकर अधिरोपित करने की सूचना आपेक्ष हेतु प्रारूप
द्वितीय अनुसूची धारा-117/116 अंतरण के संबंध में दिए जाने वाले नोटिस का प्रारूप
तृतीय अनुसूची धारा-117/116 जब अंतरण लिखित से अन्यथा किया गया हो, का नोटिस का प्रारूप
चतुर्थ अनुसूची धारा-130 माँग के नोटिस का प्रारूप
पंचम अनुसूची धारा-131(1) वारंट का प्रारूप
षष्ठम अनुसूची धारा-133(4) तालिका और नोटिस का प्रारूप

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Kartik Budholiya

Kartik Budholiya

Education, GK & Spiritual Content Creator

Kartik Budholiya is an education content creator with a background in Biological Sciences (B.Sc. & M.Sc.), a former UPSC aspirant, and a learner of the Bhagavad Gita. He creates educational content that blends spiritual understanding, general knowledge, and clear explanations for students and self-learners across different platforms.