लोक नीति
यह लेख लोक नीति की अवधारणा, अर्थ, प्रकृति और संपूर्ण प्रक्रिया को गहराई से लेकिन सरल भाषा में प्रस्तुत करता है। इसमें बताया गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार किस प्रकार जनता की समस्याओं, आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को लोक नीतियों के माध्यम से वास्तविक रूप देती है। नीति निर्माण, क्रियान्वयन, मूल्यांकन और संशोधन की पूरी प्रक्रिया को व्यावहारिक उदाहरणों और विद्वानों के विचारों के साथ समझाया गया है।
लेख में लोक नीति के प्रकार, नीति निर्माण को प्रभावित करने वाले सरकारी एवं गैर-सरकारी घटक, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया, दबाव समूह और सामाजिक आंदोलनों की भूमिका को स्पष्ट किया गया है। साथ ही नीति क्रियान्वयन की चुनौतियाँ, बाधाएँ और मूल्यांकन की विधियों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। कुल मिलाकर यह सामग्री लोक नीति को केवल सैद्धान्तिक विषय नहीं, बल्कि शासन, प्रशासन और आम नागरिक के जीवन को सीधे प्रभावित करने वाली एक जीवंत और गतिशील प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत करती है।
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में राज्य अपनी नीतियों के माध्यम से जनता की इच्छाओं को वास्तविक रूप प्रदान करता है। कोई भी शासन व्यवस्था अपनी लोकनीतियों के आधार पर ही सफल या असफल होती है।
नीति निर्माण सरकार की महत्वपूर्ण क्रियाओं में से एक है। वर्तमान लोक कल्याणकारी राज्य में लोक प्रशासन व लोक नीति में घनिष्ठ सम्बन्ध व सर्वोच्च महत्त्व है। लोक नीति वह दिशा-निर्देश या आधार पत्र होता है, जो सरकारी कार्यों तथा कार्यक्रमों को एक निश्चित दिशा प्रदान करता है, जिससे सरकार अपने निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति करती है।
लोक नीति का निर्माण क्रियान्वयन, मूल्यांकन और संशोधन करना लोक प्रशासन का मुख्य कार्य है। इसलिए लोक नीति निर्माण लोक प्रशासन का सार है। लोक प्रशासन में लोक नीतियाँ प्रामाणिक मार्ग-दर्शन होती है। प्रबन्धकों को योजना बनाने व निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति करने में सहायता प्रदान करती है। लोक नीति कानूनी आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करने का रास्ता दिखाती है। इसलिए पीटर ओडे गार्ड ने कहा है कि, 'नीति और प्रशासन राजनीति के जुड़वां बच्चे हैं।' अक्सर लोग नीति को नियम, रीति-रिवाज, प्रक्रिया, विनिश्चय और योजना जैसे शब्द समझ लेते हैं परन्तु इन सबके अपने-अपने अर्थ है। लोकनीति गतिशील व लचीली होती है।
लोक नीति का अर्थ (Meaning of Public Policy)
साधारण लोक नीति शब्द लोक व नीति हो शब्दों से मिलकर बना है।
लोक का अर्थ है
सरकार या सरकारी या सार्वजनिक।
नीति का अर्थ
जनता की माँगों एवं समस्याओं के समाधान हेतु राजनीति द्वारा निर्धारित इच्छाएँ या निर्णय।
अन्य अर्थों में नीति का अर्थ
उन उठने वाली माँगों, इच्छाओं एवं निर्णयों से है जो राजनीति द्वारा निर्धारित मूल्यों एवं माप दण्डों में व्याप्त है और नीति के परिणामों से मूल्यों एवं मानदण्डों को समयानुसार बदल सकते हैं। अर्थात् जनता की समस्याओं एवं माँगों के समाधान के लिए सरकार जो नीति बनाती है, वे लोक नीतियां कहलाती है। अर्थात् लोक नीति का अर्थ यह निर्णय करना है कि क्या किया जाए, कब किया जाए और कहाँ किया जाए।
थॉमस डाई के अनुसार, ''लोकनीति का सम्बन्ध उन सभी बातों से है जिन्हें सरकार करने अथवा न करने का निर्णय लेती है''।
लोक नीति की शुरूआत के बारे में डेनियल मैक्कूल (Daniel McCool) का कहना है कि, 'लोक नीति के अध्ययन की शुरूआत 1922 में हुई' जबकि प्रसिद्ध राजनीति विद्वान चार्ल्स मेरियम ने सरकारी गतिविधियों को लोक नीति से जोड़ा और इसको राजनीति के सिद्धान्त एवं व्यवहार से सम्बन्धित करने पर बल दिया। 1937 में लोक नीति को हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लोक प्रशासन विभाग द्वारा स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। लोक नीति पर 1951 में डेनियल लर्नर (Daniel lerner) तथा हेराल्ड डी लासवल (Herold De Lasswell) ने अपनी पुस्तक "The Policy Sciences" में लोक नीति का विवेचन कर लोक नीति को विषय के रूप में मान्यता दिलवाई। हेराल्ड लॉसवल को नीतिविज्ञान (Policy science) का आधुनिक जनक माना जाता है। भारत में औपचारिक रूप से 1894 ई. में बनी राष्ट्रीय वन नीति प्रथम नीति थी।
लोक नीति की परिभाषाएँ (Definition of Public Policy)
विभिन्न विद्वानों द्वारा अपने-अपने ढंग से लोक नीति को परिभाषित किया गया है।
डिमॉक के अनुसार, 'नीतियाँ व्यवहार के वे नियम हैं, जिन्हें सचेत रूप से मान्यता है जो प्रशासनिक निर्णयों का मार्ग-दर्शन करते हैं।' Public -Administration- 1956
जार्ज आर. टेरी के शब्दों में, 'नीति उस कार्यवाही की शाब्दिक, लिखित या निहित बुनियादी मार्ग दर्शक है, जिसे प्रबन्धक अपनाता है तथा जिसका अनुगमन करता है-' Principles of Management-1954
फ्रेडरिक के अनुसार, 'अमुक परिस्थितियों में क्या करना है या नहीं करना है, के सम्बन्ध में किए गए निर्णय ही नीतियाँ हैं।'
थॉमस आर.डाई के अनुसार, 'लोक नीति वह है जिसके अन्तर्गत या तो सरकार कुछ करना चाहती है या कुछ नहीं करना चाहती।' Understanding Public Policy-1978
विलियम जेनकिन्स के अनुसार, 'लोक नीति किसी राजनीतिक कार्यकर्ता या कार्यकर्ताओं के समूह द्वारा किए गए निर्णयों की माला है, जिनका सम्बन्ध लक्ष्यों के चयन और एक निश्चित स्थिति के भीतर उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपनाये जाने वाले साधनों से है जहाँ सिद्धान्त रूप से निर्णय को करने का अधिकार उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सत्ता के दायरे में है।'
रिचर्ड रोज के अनुसार, 'लोक नीति केवल एक निर्णय नहीं है बल्कि यह किसी कृत्य की एक प्रक्रिया या प्रतिरूप है।'
जान.सी.शी. के अनुसार, 'समाज के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के सम्बन्ध में सरकार द्वारा जान-बूझकर किये जाने वाले कार्यों के सम्बन्ध में लिए गए निर्णय ही लोक नीति कहलाते हैं।'
बी.गाई.पीटर्स का कहना है कि लोक नीति सरकारी गतिविधियों का समुच्चय है जो गतिविधियाँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नागरिकों के जीवन पर प्रभाव डालती हैं।
स्पष्ट है कि सरकार सार्वजनिक (public) उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो नीति बनाती है वह ही लोक नीति है। रॉबर्ट लीनबरी का कहना है कि, सरकार अपने नागरिकों के लिए जो भी करती है या करने में असफल रहती है, वही लोकनीति है। लोकनीति में उद्देश्यों, लक्ष्यों, कार्यवाहियों व अधिकारिक निर्णय शामिल होते हैं। भारत में नीति निर्माण वृद्धि मॉडल (Incremental Model) के आधार पर किया जाता है अर्थात् पुरानी नीति को संशोधन कर कुछ नया जोड़ दिया जाता है। इसलिए येजेकेल ड्रोर (Yehzkel Dror) ने भारतीय लोक नीति को अवशेष गुण नीति कहा है।
नीति निर्माण प्रक्रिया
नीति निर्माण प्रक्रिया एक चक्रीय प्रक्रिया है जो नीति निर्माण से प्रारम्भ होकर नीति समीक्षा (फीड बैक) पर समाप्त होती है। नीति निर्माण के अन्तर्गत सबसे पहले समस्या की पहचान की जाती है फिर उसका मूल्यांकन, इसके पश्चात् सम्भावित विकल्पों की तलाश की जाती है, परिणामों का पूर्वानुमान, नीति की स्वीकृति, नीति का चयन बाद में नीति का प्रवर्तन और अंत में प्रतिक्रियाओं का पुनरावलोकन किया जाता है। नीति निर्माण की चक्रीय प्रक्रिया को निम्न तरीके से समझा जा सकता है।
उपयुक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि लोक नीति
- जनता की समस्याओं एवं माँगों के समाधान के लिए सरकार द्वारा बनाई जाती है।
- लोक नीति का मुख्य रूप से सम्बन्ध सरकारी क्षेत्र से होता है। गैर सरकारी क्षेत्र भी इसे प्रभावित कर सकते हैं या प्रभावित होते हैं।
- नीतियाँ मार्गदर्शक है जो योजना बनाने, संविधान के अनुरूप कार्य करने तथा वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करती है।
- लोक नीति एवं जटिल प्रक्रिया का परिणाम है।
- जनहित पर आधारित है।
- यह एक गतिशील प्रक्रिया है।
- लोक नीति भविष्योन्मुख होती है।
- लोक नीति दिशा-निर्देश रेखांकित करती है।
- लोक नीति परिणामोन्मुखी होती है और इसमें अधिक आधुनिक तकनीक के द्वारा अधिकतम लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
- लोकनीति वैधानिक सत्ता के आवरण में निर्मित होती है।
- नीति सरकार के उद्देश्यों तक पहुँचने का साधन है।
- नीति संविधान, कानून, अध्यादेश विनियम, कार्यकारी आदेश अथवा न्यायिक निर्णय के रूप में हो सकती है।
- लोक नीति एक निश्चय प्रशासनिक व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य करती है।
लोक नीति की प्रकृति- लोक नीति की प्रकृति मुख्यतः सरकारी है परन्तु गैर सरकारी संस्थाएँ भी नीति निर्माण प्रक्रिया को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। लोक नीति सरकारी निकायों एवं सरकारी अधिकारियों द्वारा निर्मित एवं विकसित की जाती है।
लोक नीति वैधानिक व बाध्यकारी होती है। यह वास्तव में सरकार द्वारा किया जाने वाला कार्य है। नीतियाँ कुछ निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बनाई जाती है इसलिए लोक नीतियाँ लक्ष्योंन्मुखी होती है।
लोकनीति का स्वरूप सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है। जब किसी प्रश्न या समस्या के सन्दर्भ में सरकारी हस्तक्षेप का निर्णय शामिल हो सकता है। तो वह सकारात्मक कहलाता है और जब हस्तक्षेप नहीं होता (अहस्तक्षेप) तो वह नकारात्मक स्वरूप कहलाता है।
नीति निर्माण को प्रभावित करने वाले घटक
नीति निर्माण को सरकारी व गैर सरकारी दोनों तरह के घटक प्रभावित करते हैं। नीति निर्माण को प्रभावित करने वाला घटक निम्नलिखित हैं-
लोक नीति के प्रकार
लोक नीति का सम्बन्ध जनहित से है, इसका क्षेत्र व्यापक होता है इसलिए इसके प्रकार निश्चित कर पाना सम्भव नहीं है फिर भी सुविधा की दृष्टि से लोक नीति के निम्नलिखित प्रकार है।
- मूलभूत या सारगत या बुनियादी नीतियाँ- (Substantive Policies) ये प्राथमिक व मूलभूत नीतियाँ है ये नीतियां किसी खास वर्ग, क्षेत्र या समुदाय से संबंधित नहीं होती बल्कि सम्पूर्ण समाज के सामान्य व एवं सर्वांगीण कल्याण व विकास से सम्बन्धित होती है जैसे- शिक्षा, चिकित्सा, स्वास्थ्य, रोजगार कानून-व्यवस्था आदि से सम्बन्धित नीतियाँ। ये नीतियाँ संवैधानिक व समाज से सम्बन्धित होती है ।
- नियंत्रक नीतियाँ (Regulatory Policies) - ऐसी नीतियाँ जो सरकार के नियंत्रण सम्बन्धी कार्यों को प्रकट करती है । नियंत्रण का काम सरकार की संस्थाएँ करती है ये संस्थाएँ प्रायः स्वायत्त होती है । जैसे उद्योग, व्यापार, सुरक्षा उपायों, लोक हित सेवाओं के नियंत्रण सम्बन्धित नीतियाँ है। इसके अन्तर्गत भारतीय रिजर्व बैंक, निर्वाचन आयोग, राज्य परिवहन निगम आदि।
- वितरण सम्बन्धी नीतियाँ (Distributive Policies)- इन नीतियों का उद्देश्य पिछड़े तबकों को मुख्यधारा से जोड़ना है। ये नीतियाँ संसाधनों तक सभी की समान पहुँच के लक्ष्य को लेकर बनाई जाती है। ये नीतियां व्यक्तिगत हितों से सम्बन्धित होती है।
- पुनः वितरक नीतियां (Redistributive Policies) - ऐसी नीतियां समाज में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने के लिए बनाई जाती है। कुछ लोक कल्याण सेवाओं का समाज के वर्गों में असमान वितरण होता है। रॉबिनहुड शैली में बनने वाली इन नीतियों के द्वारा अमीरों से टैक्स वसूलकर गरीबों को राहत पहुँचायी जाती है। जैसे भूमि सुधार नीति आदि।
- संघटक नीति (Constituent Policy) - ऐसी लोक नीतियाँ जो ज्ञान या तकनीकी विशेषज्ञ उपकरणों पर आधारित होती है ये नीतियाँ राष्ट्र की सुरक्षा, राज्यहित तथा व्यापक संदर्भों से युक्त होती है, संघटक नीतियाँ कहलाती हैं।
- क्षेत्रक नीतियाँ (Sector Policies) - लोक प्रशासन के कार्य क्षेत्र के अनुसार विषयवार या विशेषज्ञतानुसार जो नीतियां बनाई जाती हैं, उन्हें क्षेत्रक नीतियाँ कहा जाता है। स्थूलरूप से क्षेत्रक नीति के तीन क्षेत्र ही। (1) नियामकीय नीति, (2) आर्थिक नीति, (3) सामाजिक नीति।
लोक नीति निर्माण की विशेषताएँ
लोक नीति निर्माण की निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए-
- यह लोक कल्याण या लोक हित पर आधारित हो।
- लोक नीति सरकारी संस्थाओं द्वारा बनाई जानी चाहिए।
- लोक नीति जटिल प्रक्रिया का परिणाम है।
- लोक नीति में दिशा-निर्देश रेखांकित होने चाहिए।
- यह भविष्योन्मुख होनी चाहिए।
- लोक नीति निर्माण में विभिन्न निकायों एवं प्राधिकरणों का योगदान है।
कुछ अन्य विद्वानों का विभाजन
थियोडोर जे. लोवी जो कि नव संस्थानिक प्रतिमान के संस्थापक माने जाते हैं ने लोक नीति को निम्नलिखित प्रकार बताया है-
- नियामकीय नीति (Regulatory Policy)
- वितरणात्मक नीति (Distributive Policy)
- पुनः वितरणात्मक नीति (Re-Distributive Policy)
- संघटक नीति (Constituent Policy)
ग्लेडन ने लोकनीति के निम्नलिखित प्रकारों का उल्लेख किया है-
- राजनीति एवं सामान्य नीति
- निष्पादन नीति
- प्रशासनिक नीति
- तकनीकी नीति।
कार्य क्षेत्र के आधार पर तीन प्रकार की नीतियाँ हो सकती हैं-
- राष्ट्रीय या संघीय नीति
- प्रान्तीय नीति या राज्य नीति
- स्थानीय नीति।
नीति निर्माण प्रक्रिया
नीति निर्माण निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें गतिशील और लचीलापन पाया जाता है। नीति निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जो बहुत से व्यक्तियों के प्रयत्न का सामूहिक फल होती है। जिसमें सरकारी अंगों के साथ-साथ गैर-सरकारी अंग भी भूमिका निभाते हैं। देश में नीति निर्माण की संस्थाएँ निम्नलिखित हो सकती हैं-
- संविधान
- संसद
- मंत्रिमण्डल
- योजना आयोग
- राष्ट्रीय विकास परिषद्
- न्याय पालिका
- दबाव समूह
- राजनीतिक दल
- परामर्शदायी समितियाँ
- मीडिया।
देश में नीति निर्माण विकेन्द्रीकरण प्रक्रिया द्वारा होता है जिसमें उपरोक्त सभी अंग अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। वातावरण में प्राकृतिक संसाधनों, जलवायु भौगोलिक विशेषताएँ, जनसंख्या और स्थानीय स्थिति जैसे कारकों पर नीति निर्माण निर्भर करता है। वातावरण संबंधी दो कारक है जो नीति निर्माण को प्रभावित करते हैं-
- राजनीतिक संस्कृति
- सामाजिक आर्थिक दशाएँ और प्राकृतिक संसाधन।
नीति निर्माण की प्रक्रिया
नीति निर्माण में निम्नलिखित प्रक्रियाएँ सम्पन्न की जाती है ये प्रक्रियाएँ विभिन्न सरकारी अंगों तथा गैर सरकारी माध्यमों से सम्बन्धित होती है जो निम्नलिखित हैं-
- राजनीतिक कार्यपालिका
- प्रशासनिक तंत्र
- विधायिका
- न्यायपालिका
- दबाव एवं हित समूह
- राजनीतिक दल
- लोकमत
- जन-संचार माध्यम
- सामाजिक आंदोलन
- अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ।
1. राजनीतिक कार्यपालिका- नीति निर्माण में राजनीतिक कार्यपालिका की अहम भूमिका रहती है राजनीति कार्यपालिका के अंतर्गत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद, मंत्रिमण्डल सचिवालय, विभिन्न मामलों से संबंधित मंत्रिमण्डलीय समितियों और प्रधानमंत्री कार्यालय की मुख्य भूमिका होती है। संसदीय शासन वाले देशों में लोकनीति का निर्धारण मंत्रिमण्डल द्वारा किया जाता है जिसमें केबिनेट स्तर के मंत्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
2. प्रशासन तंत्र- प्रशासन का मुख्य कार्य नीतियों का क्रियान्वयन होता है परन्तु नीति निर्माण में भी लोक प्रशासन प्रभावी भूमिका निभाता है। कार्यपालिका से सम्बन्धित नीति निर्माण में प्रशासन जो आंकड़े और सूचनाएँ एकत्रित करता है उसी आधार पर नीति सम्बन्धी प्रस्ताव तैयार किए जाते हैं।
नीति निर्माण में प्रशासन तंत्र की भूमिका को तीन क्रियाओं में बांटा जा सकता है- (1) सूचना देना, (2) परामर्श देना, (3) विश्लेषण करना।
विधायिका- विधायिका का मुख्य कार्य नीति निर्माण है।
न्यायपालिका- न्यायपालिका व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गये कानूनों की जाँच या समीक्षा का कार्य करता है न्यायपालिका यह देखती है कि जो भी नीति बनायी गयी है वह संवैधानिक प्रावधानों के अनुकूल है या नहीं। न्यायपालिका, व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गये कानूनों को अवैध घोषित कर सकती है समय-समय पर न्यायपालिका द्वारा दिये गये निर्णय नीति निर्माण में सहायक होते है ये निर्णय सरकार के मार्ग दर्शक कहलाते हैं।
दबाव एवं हित समूह- ये ऐसे संगठन है जो अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। दबाव व हित समूह अपनी ताकत और प्रभाव के बल पर लोकनीति को प्रभावित करते हैं। इसके अंतर्गत महिला संगठन छात्र संगठन, किसानों का समूह उद्योगपतियों का समूह आदि शामिल होते हैं।
राजनीतिक दल- राजनीतिक दल चुनाव घोषणा-पत्र के माध्यम से अपनी-अपनी नीतियाँ घोषित करते है और चुनाव में विजयी होने पर इन नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं।
लोकमत- वर्तमान लोक कल्याणकारी राज्य में जनता की इच्छा सर्वोपरि होती है। इसके लिए नागरिक समाज में सक्रिय संगठन शिक्षण संस्थाएँ, मीडिया व सिनेमा लोकमत की अभिव्यक्ति है।
जनसंचार माध्यम- जनसंचार माध्यम समाज में चेतना बढ़ाने तथा महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने के मुख्य साधन हैं। ये जनता की इच्छा को समाचार पत्रों पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन और समाचार चैनलों, इंटरनेट, यू-ट्यूब आदि के माध्यम से सरकार तक पहुँचाते है जिससे सरकार नीतियों का निर्माण करती है।
सामाजिक आंदोलन- नीति निर्माण प्रक्रिया में सामाजिक आंदोलन अहम भूमिका निभाते है। कई महत्वपूर्ण नीतियाँ केवल सामाजिक आंदोलन के कारण ही बनी है।
अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ- वर्तमान वैश्वीकरण युग में कुछ नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। जैसे व्यापार संबंधी नीतियाँ विश्व व्यापार संगठन (W.T.O) को ध्यान में रखकर बनाते हैं।
लोक नीति निर्माण प्रक्रिया को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है- क्रम संख्या 1 से 8 तक क्रमिक रूप से लोक नीति की प्रक्रिया पूरी की जाती है- (1) समस्या की पहचान (2) समस्या का मूल्यांकन, (3) सम्भावित विकल्पों पर विचार, (4) परिणामों का पूर्वानुमान, (5) नीति की स्वीकृति, (6) नीति का चयन, (7) नीति का प्रवर्तन, (8) प्रतिक्रिया का पुनरावलोकन
नीतिगत प्रस्तावों को नीति में परिवर्तित करते समय प्राय: निम्नांकित तकनीकें अपनायी जाती है- (1) सौदेबाजी, (2) प्रतियोगिता, (3) आदेश, (4) संघर्ष, (5) सहयोग।
बैली का मत है कि लोक नीति निर्माण में चार तत्वों (4 Is) की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है- (1) विचार (Ideas), (2) हित (Interests), (3) संस्थाएँ (Institutions), (4) व्यक्ति (Individuals)
आधुनिक शासन व्यवस्थाओं में लोक नीतियों का निर्माण मुख्यतः विधायिका एवं मंत्रिपरिषद द्वारा होता है। संसदीय शासन प्रणाली में विधायिका तथा कार्यपालिका (मंत्रिपरिषद) एक स्थान पर सनहित दिखायी देती हैं। नीति निर्माण का दूसरा स्थल प्रशासनिक विभाग होते हैं।
नीति क्रियान्वयन प्रक्रिया
नीति निर्माण से ज्यादा महत्वपूर्ण नीति का क्रियान्वयन है अगर कोई नीति बहुत अच्छी है यदि उसका क्रियान्वयन उचित तरीके से नहीं होता तो वह नीति असफल हो जाती है।
लोक नीति के क्रियान्वयन के अध्ययन की शुरुआत हेराल्ड लासवेल के द्वारा अपने ग्रन्थ में सर्वप्रथम सन् 1956 में की गई।
एड्विन सी.हरग्रीव जैसे विचारकों का कहना है कि नीति क्रियान्वयन प्रक्रिया को सामाजिक नीति के अध्ययन के लिए विलुप्त कड़ी माना जा सकता है। वान मीटर और कार्ल वाल हार्न का कहना है कि अभी हम नीति क्रियान्वयन की प्रक्रिया के सम्बन्ध में अपेक्षाकृत कम जानते हैं।
क्रियान्वयन का अर्थ
क्रियान्वयन के निम्नलिखित अर्थ हो सकते हैं-
(1) पालन करना, (2) हासिल करना, (3) पूर्ण करना।
लोक नीति क्रियान्वयन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता है कि खोज की जाती है।
लोक नीति क्रियान्वयन के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
(1) क्रियान्वयन को नीति से विच्छिन्न नहीं होना चाहिए।
(2) नीति-निर्माताओं को उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष साधनों का उपयोग करना चाहिए।
(3) जिस सिद्धान्त का सहारा लिया जाता है उस पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए।
(4) नीतियों में सरलता को अपनाना चाहिए।
जैफ़री प्रैसमैन तथा एरन विल्दावस्की ने अपनी पुस्तक “Imple-mentation” में 1973 में कहा है कि लक्ष्यों के निर्धारण तथा उनकी प्राप्ति हेतु उठाए जाने वाले कदमों के मध्य अन्तरक्रिया की प्रक्रिया हो क्रियान्वयन कहा जाता हैं।
लोक नीति के क्रियान्वयन के चरण- लोक नीति के क्रियान्वयन के तीन चरण है।
प्रथम चरण- 1970 के दशक में लोक नीति के क्रियान्वयन पक्ष को महत्वपूर्ण मानते हुए ‘केस स्टडीज’ पर बल दिया गया। इस चरण में लोकनीति के क्रियान्वयन के अध्ययन का प्रथम प्रयास शुरू किया गया।
प्रमुख विद्वान: जेफरी प्रैसमैन एवं ए.एन विल्दावस्की
पुस्तक: Implementation-1973
द्वितीय चरण- 1980 के दशक में लोक नीति क्रियान्वयन में पद पर सोपानिक क्रियान्वयन पक्ष पर अधिक सैद्धान्तिक व आनुभाविक दृष्टि से अध्ययन पर बल दिया जाने लगा।
प्रमुख विद्वान: मैजमानियन एवं सैबेटियर
वैकल्पिक द्वितीय चरण- समानान्तर रूप में विकसित इस पीढ़ी के विचार में लोकनीति के परम्परागत अधोगामी क्रियान्वयन के बजाय उर्ध्वगामी परिप्रेक्ष्य महत्त्वपूर्ण था। लोकनीतियों को क्रियान्वित करने वाले वास्तविक कार्मिक इस पीढ़ी के चिन्तन के केन्द्रीय सूत्र थे।
प्रमुख विद्वान: बैनीजर्न
पुस्तक- Implementation Research-1982
तृतीय चरण- इस पीढ़ी में लोक नीति के क्रियान्वयन को अधिक वैज्ञानिक बनाने पर बल दिया। यह पीढ़ी लोक नीति क्रियान्वयन की जटिलता को समझने एवं उसके समाधान हेतु 'आकस्मिकता सिद्धान्तों' का समर्थन करती है। यह 1990 के दशक से मानी जाती है।
प्रमुख प्रवर्तकः मैल्काम गोगिन
तथ्यः ड़िलियान एवं डिलियान इस विधि को 'अस्पष्टता से भरपूर' नाम देते हैं।
लोकनीति क्रियान्वयन की प्रक्रिया
लोकनीति निर्माण में व्यवस्थापिका की मुख्य भूमिका होती है। व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित लोक नीति या नीतिगत प्रस्तावों में मूलभूत लक्ष्यों का वर्णन रहता है। नीति निर्माण में विभाग का सचिव सम्बन्धित मंत्री को आवश्यक परामर्श देता है। नीतियों का वास्तविक क्रियान्वयन लोकसेवकों द्वारा किया जाता है। लोक सेवक व्यवहार में लोक नीति को क्रियान्वित करने के लिए कतिपय नियम, उपनियम, कार्यक्रम तथा रणनीति बनाते हैं। प्रदत्त विधान व्यवस्था के कारण नौकरशाही आवश्यकतानुसार नीति से सम्बन्धित विस्तृत प्रावधान करती है।
लोक नीति का वास्तविक क्रियान्वयन कार्यकारी संस्थाओं में कार्यरत लोक सेवकों द्वारा किया जाता है। कभी-कभी गैर-सरकारी संगठन या व्यक्ति भी लोक नीति क्रियान्वयन में शामिल होते हैं।
लोक नीति क्रियान्वयन में निम्नलिखित संगठन अपना-अपना योगदान देते हैं- (1) योजना आयोग, (2) सम्बन्धित क्षेत्रक मंत्रालय एवं विभाग, (3) मंत्रालय के अधीनस्थ एवं संलग्न संगठन, (4). लोक उपक्रम, (5) सरकार के स्वायत्तशासी संस्थान, (6) स्वैच्छिक संगठन, (7) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, (8) निजी संगठन।
लोक नीति क्रियान्वयन के चरण- लोक नीति क्रियान्वयन एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसमें नीति से सम्बन्धित विभाग, मंत्रालय, संगठन, निगम आदि का पूरा तंत्र शामिल होता है। इसके लिए उपयुक्त ढाँचे की आवश्यकता होती है। नीति क्रियान्वयन एक प्रक्रिया है, जिसमें कई चरण होते हैं। नीति निर्माण के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं-
- प्रथम चरणः नीति वक्तव्य को समझाना
- द्वितीय चरणः नीति का विभाजन
- तृतीय चरणः सूचना एकत्रण
- चतुर्थ चरणः क्रियान्वयन मानकों का निर्धारण
प्रथम चरणः नीति वक्तव्य को समझाना- नीति क्रियान्वयन के प्रथम चरण में नीति-दस्तावेज का बारीकी से अध्ययन किया जाता है। क्रियान्वयन से जुड़ी एजेंसियाँ नीति से जुड़े विभिन्न मामलों पर स्पष्टीकरण की माँग करती हैं। यदि किसी बिन्दु पर उलझन प्रतीत होती है तो उच्च स्तर से स्पष्टीकरण या निर्देश माँगे जाते हैं। सही समझ विकसित की जाती है ताकि किसी प्रकार का संदेह या उलझन ना रहे।
द्वितीय चरणः नीति का विभाजन- इस चरण में नीति को उसके कार्य क्षेत्र, लक्ष्यों, उद्देश्यों, आवश्यक संसाधनों, उपलब्ध संसाधनों तथा अवधि के अनुसार क्षेत्रवार या समूहवार बाँटने का काम किया जाता है। इसके द्वारा लक्षित क्षेत्र या समूह पर ध्यान दिया जाता है और संसाधनों की उपलब्धता को पहले किन क्षेत्रों या समूह पर लागू किया जाएगा इस आधार पर संसाधनों का आबंटन करते है।
तृतीय चरणः सूचना एकत्रण- इस चरण में नीति के क्रियान्वयन से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों, समूहों और क्षेत्रों से आवश्यक सूचनाएँ और आंकड़े इकट्ठे किये जाते हैं। ये सूचनाएँ और आंकड़े नीति के प्रभाव और उसके मूल्यांकन में काफी मददगार होते हैं।
चतुर्थ चरण: क्रियान्वयन मानकों का निर्धारण- इस चरण में तीनों चरणों के कार्यों, तमाम तरह की सूचनाओं, आंकड़ों और जमीनी हकीकत के संदर्भ में नीति क्रियान्वयन के लिए एक मानदण्ड या मानक बनाया जाता है जो आगे के लिए राह आसान कर देता है।
लोकनीति क्रियान्वयन के संदर्भ में कुछ विचारकों ने विचार प्रकट किए हैं। इस संबंध में लुई डब्ल्यू कोयनिंग का कहना है कि, "चारों ओर एक ही विलाप सुनाई देता है कि सरकार स्वयं द्वारा निर्मित नीतियों एवं कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक क्रियान्वित नहीं कर पा रही है।"
लोकनीति के क्षेत्र में नीति क्रियान्वयन या निष्पादन को एचील की एड़ी (Achilles' Heel) कहा जाता है। अर्थात् जो कुशलता नीति-निर्माण में दिखायी जाती है वह नीति क्रियान्वयन में नहीं दिखायी जाती।
स्पष्ट है कि लोक नीति में निम्नलिखित चरण होते हैं-
- समस्या को पहचानना।
- समस्या के उचित हल के लिए विभिन्न उपलब्ध विकल्पों की खोज करना व तुलनात्मक अध्ययन करना।
- सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन करना।
- लोक नीति का क्रियान्वयन।
- लोक नीति क्रियान्वयन की देखभाल करना।
- मूल्यांकन
लोकनीति क्रियान्वयन में बाधाएँ
सामान्य नीतियाँ तो बहुत अच्छी होती है लेकिन उनका क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पाता। नीति के क्रियान्वयन में निम्नलिखित मुख्य समस्याएँ सामने आती है-
- त्रुटिपूर्ण नीति
- क्रियान्वयन अधिकारियों का जमीनी हकीकत से अपरिचय
- विशिष्ट वर्गों की अवरोधक भूमिका
- जागरूकता का अभाव
- भ्रष्टाचार
- आंतरिक सुरक्षा की समस्या
- बुनियादी ढाँचे का अभाव।
लोकनीति का मूल्यांकन
मूल्यांकन के अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि जिन व्यक्तियों, क्षेत्रों, समूहों के लिए नीति-निर्माण और क्रियान्वयन किया गया था। क्रियान्वयन के बाद उन लोगों को लाभ हुआ या नहीं हुआ और जो उद्देश्य व लक्ष्य निर्धारित किए गए थे उनकी प्राप्ति किस हद तक हुई है।
अर्थात जिन लोगों के लिए नीतियाँ बनाई जाती है उन लोगों पर नीति की विषय-वस्तु और प्रभावों का आकलन करना ही ‘लोकनीति का मूल्यांकन’ है। लोकनीति मूल्यांकन में अकादमी संस्थाओं की अपनी भूमिका होती है। लोकनीति का मूल्यांकन एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें कई संगठन, संस्थाएँ और अभिकरण अपनी भागीदारी करते हैं।
भारत में लोकनीति मूल्यांकन की कुछ महत्वपूर्ण संस्थाएँ है-
- योजना आयोग
- संसदीय समिति
- नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक
- राजनीति दल
- मीडिया
- गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.)
- अनुसंधान संस्थान
- विश्वविद्यालय।
लोकनीति मूल्यांकन उस प्रक्रिया को कहा जाता है जो कार्य रूप में लोकनीति का पता लगाती है।
लोकनीति मूल्यांकन के तीन प्रकार होते हैं -
- प्रशासनिक मूल्यांकन
- न्यायिक मूल्यांकन
- राजनीतिक मूल्यांकन
डेनियल लर्नर ने नीति-मूल्यांकन की तीन विधियों का वर्णन किया है, जो निम्नलिखित है-
- प्रक्रिया मूल्यांकन
- प्रभाव मूल्यांकन
- समग्र मूल्यांकन
- प्रक्रिया मूल्यांकन- इस मूल्यांकन के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि नीति निर्धारित दिशा निर्देशों के अनुसार लागू की गई हैं या नहीं और मूलभूत उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त हुए है।
- प्रभाव मूल्यांकन- इसके अन्तर्गत नीति क्रियान्वयन करने से लक्षित समूह या समाज पर पड़ने वाले सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव अर्थात् परिणामों का मूल्यांकन किया जाता है।
- समग्र मूल्यांकन- इसमें मूल्यांकन के सभी पक्षों अर्थात् प्रक्रिया एवं प्रभाव का मूल्यांकन किया जाता है अर्थात् नीति के क्या प्रभाव रहे, क्या नहीं जाना जाता है।
इस प्रकार लोकनीति मूल्यांकन एक आवश्यक तथा उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। सामान्यतः लोकनीति के मूल्यांकन के लिए निम्नांकित बिन्दुओं पर सर्वाधिक सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं-
- नीति में क्रियान्वित किए भाग तथा गतिविधियाँ,
- निर्धारित नीति से इनकी संगतता,
- नीति क्रियान्वयन की लागत,
- नीति निष्पादन से प्राप्त लाभ, परिणाम तथा प्रभाव,
- क्रियान्वयन के दौरान अनुभूत समस्याएँ या बाधाएँ ,
- नीति क्रियान्वयन से आए सकारात्मक एवं नकारात्मक परिवर्तन आदि।



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