लोकायुक्त (राजस्थान)

लोकायुक्त

किसी लोकतांत्रिक व कल्याणकारी शासन व्यवस्था का स्वच्छ, पारदर्शी तथा भ्रष्टाचार मुक्त होना आवश्यक है। शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिए समय-समय पर प्रयास किये जाते रहे हैं। देश में सुशासन के लिए व भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के उद्देश्य से जिस प्रकार एक लोकपाल की व्यवस्था की गई है वैसे ही राज्यों में एक लोकायुक्त के गठन का प्रावधान किया गया है।
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केन्द्र में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में गठित प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-69) के द्वारा अपने अंतरिम प्रतिवेदन 'नागरिकों की शिकायतों के निवारण में कमियाँ' के द्वारा केन्द्र में लोकपाल व राज्यों में लोकायुक्त नामक संस्था की स्थापना की सिफारिश की गई। इसका कार्य प्रशासन के कार्यों का मूल्यांकन करना, लोगों की शिकायतों का निवारण करना और उस पर कार्यवाही करना होगा। ऐसा आयोग प्रशासनिक अधिकारियों की शिकायतों की जाँच भी करेगा। इस आधार पर सबसे पहले उड़ीसा ने लोकायुक्त संस्था के निर्माण हेतु 1970 में कानून बनाया।
केन्द्र की तरह राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना सबसे पहले 1971 में महाराष्ट्र में की गई। यह संस्था महाराष्ट्र लोकायुक्त एवं उप लोकपाल अधिनियम 1971 के द्वारा 1972 में शुरू की गई। परन्तु इसमें कई कमजोरियाँ थी। जबकि कर्नाटक लोकायुक्त देश में सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता है। सबसे पहले ओडिशा में लोकायुक्त अधिनियम 1970 में पारित किया गया लेकिन ओडिशा में यह 1983 में अस्तित्व में आया। ओडिशा ऐसा पहला राज्य था जिसने मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के दायरे में रखा था परन्तु बाद में इसे बाहर कर दिया। लोकायुक्त को विधिपूर्वक अधिकार व शक्तियाँ लोकपाल लोकायुक्त विधेयक 2013 द्वारा ही प्रदान की गई।
विभिन्न राज्यों में लोकायुक्त को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे राजस्थान में इस संस्था को लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त कहते हैं। केरल में 'पब्लिक मैन', तमिलनाडु में 'कमिश्नर ऑफ इन्क्वारीज' कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर में इसे राज्य उत्तरादायित्व आयोग कहते हैं। वर्तमान में 21 राज्यों व एक केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली द्वारा अपने यहाँ लोकायुक्त स्थापित कर लिये हैं।

विभिन्न राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना
क्र.सं. राज्य का नाम स्थापना वर्ष
1. महाराष्ट्र 1971
2. राजस्थान 1973
3. बिहार 1974
4. उत्तर प्रदेश 1975
5. मध्य प्रदेश 1981
6. ओडिशा 1983
7. आंध्र प्रदेश 1983
8. हिमाचल प्रदेश 1983
9. कर्नाटक 1985
10. असम 1985
11. गुजरात 1986
12. पंजाब 1995
13. दिल्ली 1995
14. केरल 1999
15. झारखण्ड 2001
16. छत्तीसगढ़ 2002
17. हरियाणा 2002
18. उत्तराखण्ड 2002
19. जम्मू कश्मीर 2002
20. पश्चिम बंगाल 2003
21. त्रिपुरा 2008
22. गोवा 2011

नोट : लोकायुक्त संबंधी सबसे पहले कानून बनाने वाला राज्य ओडिशा (1970) है।

लोकायुक्त के कार्य

राज्यों में लोकायुक्त आयकर विभाग और भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो के साथ मिलकर कार्य करता है। यह राज्यों में कर्मचारियों के कार्यों की जाँच करता है। इसका मुख्य कार्य शिकायतों का जल्द से जल्द निपटारा करना होता है। लोकायुक्त 5 साल से पुराने मामलों की जाँच नहीं करता है।

राजस्थान लोकायुक्त

राजस्थान में राजस्थान प्रशासनिक सुधार समिति 1963 की सिफारिश पर लोकायुक्त की स्थापना, राजस्थान लोकायुक्त एवं उपलोकायुक्त अधिनियम 1973 के द्वारा 3 फरवरी, 1973 को की गई। 28 अगस्त, 1973 को सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री आई.डी. दुआ को प्रथम लोकायुक्त व श्री के.पी.यू. मेनन को 5 जून, 1973 को प्रथम उपलोकायुक्त बनाया गया। हाल ही में 9 मार्च, 2021 को पूर्व न्यायाधीश प्रताप कृष्ण लोहरा को राज्य का नया लोकायुक्त नियुक्त किया गया है। राज्य में विगत 2 वर्षों से यह पद रिक्त चल रहा था।
राजस्थान के मंत्रियों, सचिवों, राजकीय प्रतिष्ठानों के अध्यक्षों, स्वायत्त शासन संस्थाओं के अध्यक्षों, उपाध्यक्षों, प्रमुखों, प्रधानों एवं अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार, पद के दुरुपयोग एवं अक्रमण्यता की जांच के लिए स्थापित यह एक उच्चस्तरीय वैधानिक एवं स्वतंत्र संस्थान है। लोकायुक्त संस्था सांविधिक एवं सलाहकारी संस्था हैं।

योग्यता

राजस्थान सहित देश के कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र, बिहार आदि में लोकायुक्त पद पर नियुक्ति के लिए किसी विशेष योग्यता का निर्धारण नहीं किया गया है। राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति के संबंध में यह प्रावधान किया गया है कि लोकायुक्त का स्तर राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान होना चाहिए। सेवानिवृत्त या कार्यरत न्यायाधीशों को भी इस पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

लोकायुक्तों की नियुक्ति

लोकायुक्त की नियुक्ति संबंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है। इसके लिए वह उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता से परामर्श करता है। यदि राज्य में विधानपरिषद् भी है तो सभापति व विधानपरिषद् में विपक्ष के नेता से परामर्श कर सकता है। लोकायुक्त की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की सिफारिश तथा विधान सभा में विपक्ष के नेता की सहमति आवश्यक है। राजस्थान में लोकायुक्त व उपलोकायुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा अपने हस्ताक्षर व मुद्रा सहित वारंट के माध्यम से मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिश के आधार पर की जाती है। और उपलोकायुक्त की नियुक्ति लोकायुक्त के परामर्श से की जाती है।

कार्यकाल

लोकायुक्त व उपलोकायुक्त का कार्यकाल पदग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष होता है। लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो। 7 मार्च, 2019 को राजस्थान लोकायुक्त तथा उपलोकायुक्त (संशोधन) आदेश, 2019 जारी करके लोकायुक्त का कार्यकाल 8 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया है। वह पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

वेतन एवं भत्ते

लोकायुक्त व उपलोकायुक्त के वेतन एवं भत्ते राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। इनको साधारणतया उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान वेतन एवं भत्ते दिए जाते हैं।

त्यागपत्र

लोकायुक्त व उपलोकायुक्त अपना त्यागपत्र राज्यपाल को देते हैं।

हटाना

लोकायुक्त को उसके पद से दुर्व्यवहार या असक्षमता के आधार पर उसी विधि से हटाया जा सकता है जिस प्रकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।

वार्षिक प्रतिवेदन

लोकायुक्त अपना वार्षिक प्रतिवेदन राज्यपाल को प्रतिवर्ष प्रस्तुत करता है। राज्यपाल इस विवरण को एक व्याख्यात्मक ज्ञापन पक्ष के साथ सदन में प्रस्तुत करता है। लोकायुक्त राज्य विधायिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

जाँच प्रक्रिया

राज्य का लोकायुक्त किसी नागरिक द्वारा अनुचित प्रशासनिक कार्यवाही के विरुद्ध प्राप्त शिकायत की जाँच कर सकता है या स्वयं के संज्ञान से भी जाँच शुरू कर सकता है लेकिन उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश व असम राज्य में वह जाँच की पहल नहीं कर सकता है। कुछ राज्यों जैसे आंध्रप्रदेश, राजस्थान और गुजरात में लोकायुक्त का कार्य भ्रष्टाचार सम्बन्धी आरोपों की जाँच करना है न कि शिकायतों की। लोकायुक्त जाँच करते समय राज्य की जाँच एजेन्सियों से भी सहायता ले सकता है वह राज्य सरकार के विभिन्न विभागों से सम्बन्धित विषयों की फाइलों व दस्तावेजों की माँग भी कर सकता है।

लोकपाल एवं लोकायुक्त संशोधन विधेयक, 2016
केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 2016 में लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 44 में संशोधन करते हुए यह व्यवस्था की है कि लोकसेवकों द्वारा परिसम्पत्तियों व देनदारियों के सम्बन्ध में विभाग को जानकारी देनी होगी। इसके अनुसार सरकारी कर्मचारियों को पद ग्रहण करने की तिथि से 30 दिन के अन्दर अपनी सम्पत्ति और देनदारियों तथा लेनदारियों का विवरण अनिवार्य रूप से देना होगा। इसमें पति-पत्नी व आश्रित बच्चों की परिसम्पत्तियाँ भी शामिल हैं।

लोकायुक्त का अधिकार क्षेत्र

राजस्थान लोकायुक्त, उप लोकायुक्त अधिनियम, 1973 की धारा-7 के अनुसार आयोग का कार्य क्षेत्र निम्नलिखित मामलों तक विस्तृत है।

1. मंत्री : मंत्री से तात्पर्य राज्य मंत्रिपरिषद के किसी भी सदस्य से है अर्थात मंत्री, राज्यमंत्री और उपमंत्री शामिल है। मुख्यमंत्री को लोकायुक्त की परिधि से बाहर रखा गया है। हिमाचल प्रदेश, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात में मुख्यमंत्री को लोकायुक्त की परिधि में रखा गया। राजस्थान, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा में मुख्यमंत्री लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।

2. राजस्थान में राज्य सरकार के सभी मंत्री, राज्य सरकार के कार्मिक व अधिकारी और विभिन्न विभागों के अध्यक्ष, स्वायत्तशासी संस्थाओं के अध्यक्ष जाँच के दायरे में आते हैं।

3. राजस्थान राज्य के कार्यकलापों के संबंध में लोकसेवा में पद पर नियुक्त व्यक्ति।

4. जिला परिषद के जिला प्रमुख, उपजिला प्रमुख,
(I) पंचायत समिति का प्रधान, उपप्रधान तथा राजस्थान पंचायत समिति तथा जिला परिषद अधिनियम, 1959 के अधीन या द्वारा गठित किसी भी स्थायी समिति का अध्यक्ष।
(II) नगरपालिका, परिषद का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नगरपालिका बोर्ड का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा राजस्थान नगरपालिका अधिनियम, 1959 के अधीन गठित किसी संस्था का अध्यक्ष।

5. निम्नलिखित सेवाओं के सदस्य:
I. राजस्थान राज्य में कोई स्थायी प्राधिकरण,
II. राज्य अधिनियम के अधीन या द्वारा स्थापित कोई निगम;
III. सरकारी कम्पनियाँ तथा
IV. राजस्थान सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1958 के अधीन पंजीकृत सोसाइटी

6. राजस्थान सरकार के सचिव, विशेष सचिव, अपर सचिव, संयुक्त सचिव आदि लोकायुक्त के दायरे से बाहर।

राजस्थान लोकायुक्त के दायरे से बाहर

राजस्थान में मुख्यमंत्री, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, पदाधिकारी, कर्मचारी, आर.पी.एस.सी के अध्यक्ष, सदस्य, कर्मचारी, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, विधायक, महालेखाकार कार्यालय, सरपंच, उपसरपंच व वार्ड पंच आदि लोकायुक्त के जाँच दायरे से बाहर रखे गये हैं।

अब तक राजस्थान के लोकायुक्त रह चुके सदस्यों की सूची
क्र. नाम अवधि
1. न्यायमूर्ति आई.डी दुआ 28 अगस्त, 1973 से 27 अगस्त, 1978
2. न्यायमूर्ति डी.पी. गुप्ता 28 अगस्त, 1978 से 5 अगस्त, 1979
3. न्यायमूर्ति एम.एल.जोशी 6 अगस्त, 1979 से 7 अगस्त, 1982
4. न्यायमूर्ति के.एस.सिधू 4 अप्रैल, 1984 से 3 जनवरी, 1985
5. न्यायमूर्ति एम.एल.श्रीमाल 4 जनवरी, 1985 से 3 जनवरी, 1990
6. न्यायमूर्ति पी.डी.कुदाल 16 जनवरी, 1990 से 6 मार्च, 1990
7. न्यायमूर्ति एम.बी. शर्मा 10 अगस्त, 1990 से 30 सितम्बर, 1993
8. न्यायमूर्ति वी.एस.दवे 21 जनवरी, 1994 से 16 फरवरी, 1994
9. न्यायमूर्ति एम.बी.शर्मा 6 जुलाई, 1994 से 6 जुलाई, 1999
10. न्यायमूर्ति मिलापचंद जैन 26 नवम्बर, 1999 से 26 नवम्बर, 2004
11. न्यायमूर्ति जी.एल. गुप्ता 1 मई, 2007 से 30 अप्रैल, 2012
12. न्यायमूर्ति एस.एस.कोठारी 25 मार्च, 2013 से 2019
13. न्यायमूर्ति प्रताप कृष्ण लोहरा 9 मार्च, 2021 से लगातार

न्यायमूर्ति एच.एल.दत्तू, लोकपाल, लोकायुक्त को दंतविहीन, नखविहीन टाइगर कहते हैं क्योंकि ये सुधारात्मक कार्यवाही की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते है। यह जांच के लिए अन्य एजेंसी पर निर्भर रहते हैं तथा इनकी भूमिका परामर्शी है।

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Kartik Budholiya

Education, GK & Spiritual Content Creator

Kartik Budholiya is an education content creator with a background in Biological Sciences (B.Sc. & M.Sc.), a former UPSC aspirant, and a learner of the Bhagavad Gita. He creates educational content that blends spiritual understanding, general knowledge, and clear explanations for students and self-learners across different platforms.