इतिहास प्रसिद्ध राजस्थानी महिलाएँ

इतिहास प्रसिद्ध राजस्थानी महिलाएँ

यह लेख राजस्थान की उन इतिहास-प्रसिद्ध महिलाओं का विस्तृत परिचय प्रस्तुत करता है जिन्होंने अपने साहस, त्याग, राष्ट्रप्रेम, सामाजिक नेतृत्व, भक्ति और अदम्य धैर्य से इतिहास में अमिट स्थान बनाया। अंजना देवी चौधरी, नगेन्द्रबाला जैसी स्वतंत्रता सेनानियों से लेकर करणी माता, मीरा बाई जैसी आध्यात्मिक हस्तियों तक यह लेख उनके महत्वपूर्ण जीवन प्रसंगों और योगदानों को उजागर करता है।
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यहाँ पन्नाधाय, गोरा धाय, हाड़ी रानी, पद्मिनी, रंगादेवी जैसी वीरांगनाओं के त्याग और जौहर की गाथाएँ भी शामिल हैं। साथ ही, राजपूताने की राजमाताओं, रानियों और प्रशासिकाओं जैसे कर्पूरी देवी, जयवन्ताबाई, धीरबाई, कर्मावती आदि के राजनीतिक कौशल और ऐतिहासिक निर्णयों का भी उल्लेख किया गया है। राजस्थान की इन महान नारियों ने अपने पराक्रम, दृढ़ संकल्प, संस्कृति-समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा से युगों-युगों तक प्रेरणा देने वाली विरासत रची। यह लेख पाठकों को राजस्थान की महिला वीरांगनाओं के गौरवशाली इतिहास की झलक प्रदान करता है।

अंजना देवी चौधरी

जन्म - श्रीमाधोपुर (सीकर) 1897 ई. में। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान गिरफ्तार होने वाली प्रथम महिला।
राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता रामनारायण चौधरी की पत्नी अंजना देवी ने बिजौलिया तथा बेगूँ किसान आन्दोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया।
1921 ई. से 1924 ई. तक मेवाड़-बूँदी की महिलाओं में राष्ट्रीयता, समाज सुधार की ज्योति जलाई। 1934 ई. से 1936 ई. तक 'नारेली आश्रम' में रहकर हरिजन सेवा कार्यों में भाग लिया। 1939 ई. से 1942 ई. तक गाँधीजी के सेवाग्राम आश्रम में रहकर आश्रम कार्यों में सहभागिता प्रदान की।

नगेन्द्रबाला

कोटा की स्वतंत्रता सेनानी, जो 1941-1947 ई. तक किसान आंदोलन में सक्रिय रही।
स्वतंत्रता पश्चात् ये कोटा की जिला प्रमुख रहीं। इन्हें राजस्थान की प्रथम महिला जिला प्रमुख होने का श्रेय प्राप्त है। ये राजस्थान विधानसभा की सदस्या रहीं।

करणी माता

1383 ई. में चारण परिवार में जन्म, देवी के रूप में पूजित। देशनोक (बीकानेर) में मंदिर स्थित है तथा जो चूहों वाली देवी के रूप में प्रसिद्ध ।

उमादे

जोधपुर के राव मालदेव की रानी उमादे, रूठी रानी के रूप में प्रसिद्ध। जैसलमेर के राव लुणकरण की पुत्री।

गिन्दोली

अजमेर के मुस्लिम सेनापति घुड़लेखा की पुत्री। राव जोधा के पुत्र सातल ने 1491 ई. में अपने जनाने में डाला।
गिन्दोली ने पूजा से अनुमति लेकर अपने पिता की याद में घुड़ला त्योहार मनाया।

गोरा धाय

19 फरवरी, 1679 ई. को लाहौर में अजीतसिंह का जन्म होने के बाद जब उसे दिल्ली लाया गया तो बादशाह औरंगजेब ने अजीतसिंह को उसकी माता के साथ कैद कर लिया था।
इस स्थिति में अजीतसिंह की धाय माँ गोरा ने अपने पुत्र का बलिदान देकर अजीतसिंह को मुक्त करवाया। गोरा धाय को 'मारवाड़ की पन्नाधाय' भी कहा जाता है। गोरा धाय 1704 ई. में सती हुई।

तुलछा राय

मारवाड़ महाराज मानसिंह की उपपत्नी जो भगवान राम की भक्त थी।

दयाबाई

अलवर के संत चरणदास की शिष्या।
रचना-दया बोध तथा विनय मालिका।

जैतलदे

जालौर के कान्हडे दे की पत्नी।
1311 ई. में अलाउद्दीन के आक्रमण पर जौहर किया।

मानमती

जोधपुर राजा (मोटा राजा) उदयसिंह की पुत्री, जिसका विवाह जहाँगीर से हुआ।
इसी का पुत्र शाहजहाँ था। मानमती को जोधाबाई, जगतगुसाई भी कहा जाता है।

मीरा बाई

कुडकी गाँव (जैतारण, ब्यावर) में (1504-1568 ई.) रतन सिंह राठौड की पुत्री के रूप में जन्म हुआ।
सांगा के पुत्र भोजराज की पत्नी थी।
त्याग तपस्या तथा ईश समर्पण की त्रिवेणी, मीरा का राजस्थान में वहीं स्थान है जो गंगा घाटी में भक्त शिरोमणी सूरदास तथा गोस्वामी तुलसीदास का है।

रतना शास्त्री

हीरालाल शास्त्री की पत्नी।
1995 ई. में पद्मश्री, 1975 ई. में पद्म विभुषण से सम्मानित राज्य की प्रथम महिला।

कर्पूरी देवी

अजमेर के चौहान शासक सोमेश्वर की पत्नी और पृथ्वीराज चौहान तृतीय की माता कर्पूरीदेवी एक कुशल प्रशासिका थी।
1177 ई. में पृथ्वीराज तृतीय 11 वर्ष की अल्पायु में शासक बना, इस स्थिति में पृथ्वीराज की माता कर्पूरीदेवी ने एक वर्ष तक सेनापति भुवनमल्ल और प्रधानमंत्री कदम्बवास की सहायता से शासन संचालित किया था।

रंगादेवी

राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर रणथम्भौर में 1301 ई. में रानी रंगादेवी के नेतृत्व में हुआ था। 1301 ई. में रणथम्भौर पर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय जब राजपूतों की विजय की कोई संभावना नहीं रही तो चौहान शासक हम्मीर की पत्नी रानी रंगादेवी के नेतृत्व में राजपूत महिलाओं ने जौहर कर अपने सतीत्व की रक्षा की।

पद्मिनी

मेवाड़ के शासक रावल रतनसिंह की पत्नी रानी पद्मिनी अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध थी। माना जाता है कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए ही चित्तौड़ पर आक्रमण किया था।
इस दौरान रावल रतनसिंह और शत्रु के मध्य युद्ध हुआ जिसमें राजपूत पराजित हुए और रावल रतनसिंह वीरगति को प्राप्त हुए।
रानी पद्मिनी ने 1303 ई. राजपूत वीरांगनाओं के साथ जौहर कर लिया। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम का साहित्यिक वर्णन मलिक मोहम्मद जायसी ने अपने ग्रन्थ 'पद्मावत' में किया है।

रमाबाई

रमाबाई मेवाड़ के महाराणा कुम्भा की पुत्री थी।
संगीत के विद्वान कुम्भा की पुत्री रमाबाई भी प्रख्यात संगीतज्ञ थी।

बालाबाई

बालाबाई बीकानेर के राठौड़ शासक राव लूणकरण की पुत्री थी, जिसका विवाह आमेर के कच्छवाहा शासक पृथ्वीराज के साथ सम्पन्न हुआ था।
पृथ्वीराज ने अपनी चहेती रानी बालाबाई के अनुरोध पर उसके पुत्र पूर्णमल को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जबकि यह अधिकार ज्येष्ठ पुत्र भीमदेव का था।
परिणामस्वरूप आमेर राज्य में गृह युद्ध प्रारम्भ हो गया जिसका अन्त आमेर पर मुगल प्रभुसत्ता की स्थापना के साथ हुआ।

कर्मावती

कर्मावती (कर्णावती) मेवाड़ के यशस्वी राणा सांगा की पत्नी थी। 1528 ई. में राणा सांगा की मृत्यु के बाद रतनसिंह मेवाड़ का शासक बना, इस पर रानी कर्मावती ने अपने पुत्र विक्रमादित्य को शासक बनाने के लिए मुगल बादशाह बाबर से अनुरोध किया कि अगर वह विक्रमादित्य को शासक बनाने में सहयोग करेगा तो उसे रणथम्भौर दे दिया जावेगा, परन्तु यह योजना क्रियान्वित होने से पूर्व ही दिसम्बर, 1530 ई. में बाबर की मृत्यु हो गई।
1531 ई. में रतनसिंह की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य मेवाड़ का राणा बना। विक्रमादित्य के समय ही 1533 ई. में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। कर्मावती ने सहायता के लिए हुमायूँ के पास राखी भेजी परन्तु मदद नहीं मिलने के कारण राणा को बहादुरशाह की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
बहादुरशाह ने 1534 ई. में चित्तौड़गढ़ पर पुनः आक्रमण कर दिया। विक्रमादित्य और उदयसिंह को बूँदी भेजकर देवलिया के रावत बाघसिंह के नेतृत्व में राजपूतों ने गुजरात की सेना का मुकाबला किया। राजपूत योद्वा
लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तथा महिलाओं ने रानी कर्णावती के नेतृत्व में जौहर कर लिया। यह चित्तौड़गढ़ का दूसरा साका माना जाता है।

पन्नाधाय

जन्म - 1490 ई. पांडोली (चित्तौड़गढ़)
विवाह - कमेरी गाँव
पन्नाधाय राणा सांगा के छोटे पुत्र उदयसिंह की धाय माँ थी। 1536 ई. में राणा रायमल के पराक्रमी पुत्र पृथ्वीराज का अनौरस पुत्र बनवीर विक्रमादित्य की हत्या कर मेवाड़ का शासक बन गया। बनवीर विक्रमादित्य के छोटे भाई उदयसिंह की भी हत्या करना चाहता था, परन्तु पन्नाधाय ने अपने पुत्र चन्दन की कुर्बानी देकर उदयसिंह को कुम्भलगढ़ भेज दिया।
उदयसिंह का लालन-पालन कुम्भलगढ़ में ही हुआ तथा 1540 ई. में बनवीर को पराजित कर उदयसिंह ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।

जयवन्ताबाई

जयवन्ताबाई पाली के सोनगरा चौहान अखैराज की पुत्री थी जिसका विवाह मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के साथ हुआ था।
जयवन्ताबाई से ही 9 मई, 1540 ई. को प्रताप का जन्म हुआ था।

धीरबाई

महाराणा उदयसिंह की पत्नी धीरबाई को भटियाणी रानी भी कहा जाता है। उदयसिंह के द्वितीय पुत्र जगमाल का जन्म धीरबाई से ही हुआ था।
उदयसिंह ने भटियाणी रानी के प्रभाव में आकर जगमाल को उत्तराधिकारी घोषित किया, जबकि ज्येष्ठता के आधार पर यह प्रताप का अधिकार था।

फूलकँवर

जयमल राठौड़ की बहन फूलकँवर मेवाड़ में आमेठ के ठिकानेदार फतेहसिंह (फत्ता) की पत्नी थी।
चित्तौड़ पर अकबर के आक्रमण के समय 23 फरवरी, 1568 ई. को राजपूत महिलाओं ने फूलकँवर के नेतृत्व में जौहर किया था।

अजबदे पँवार

अजबदे पँवार वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की पत्नी थी।
इन्होंने कष्ट और निर्वासन के दिनों में राणा प्रताप के साथ रहकर उनकी सेवा की थी।
अमरसिंह का जन्म अजबादे पँवार से ही हुआ था।

रूठी रानी

जैसलमेर के भाटी शासक राव लूणकरण की पुत्री उमादे का विवाह 1536 ई. में मारवाड़ के शासक राव मालदेव के साथ हुआ, परन्तु विवाह के बाद ही वह मालदेव से रूठकर अजमेर के तारागढ़ में रहने लगी।
अजमेर पर शेरशाह सूरी के अधिकार से पूर्व वह कोसाने (जोधपुर) और गूँदोज (पाली) में रहने के बाद अन्ततः केलवा (राजसमन्द्) चली गयी।
मालदेव की मृत्यु के समय वह भी सती हो गयी।
रानी उमादे राजस्थान के इतिहास में 'रूठीरानी' के नाम से प्रसिद्ध है।

चारुमति

किशनगढ़ की राठौड़ राजकुमारी चारुमति का विवाह 1660 ई. में मेवाड़ के राणा राजसिंह के साथ सम्पन्न हुआ, पहले यह विवाह मुगल बादशाह औरंगजेब के साथ तय हुआ था।
इस विवाह ने औरंगजेब के साथ राजसिंह के सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न कर दी थी।

रामरसदे

राणा राजसिंह की पत्नी रामरसदे अजमेर के परमार पृथ्वीसिंह की पुत्री थी। रामरसदे ने देबारी (उदयपुर) में 1675 ई. में 'जया बावड़ी' का निर्माण करवाया था जिसे 'त्रिमुखी बावड़ी' कहा जाता है।
इस बावड़ी पर रणछोड़ भट्ट द्वारा रचित प्रशस्ति उत्कीर्ण है।

हाड़ी रानी

बूंदी के जागीरदार संग्रामसिंह की पुत्री, जिसका विवाह सलूम्बर के रावत, रतनसिंह चूँडावत के साथ हुआ था।
सलहकँवर राजस्थान के इतिहास में 'हाड़ी रानी' के नाम से प्रसिद्ध है। मेवाड़ के राणा राजसिंह के समय मेवाड़-मुगल संघर्ष के दौरान राणा के आदेश पर रावत रतनसिंह को मुगलों के विरुद्ध युद्ध के लिये जाना पड़ा। रतनसिंह द्वारा निशानी माँगे जाने पर हाड़ी रानी ने अपना सिर काटकर निशानी के रूप में भिजवा दिया।

महारानी जसवन्तदे

जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह की पत्नी जसवन्तदे बूँदी के शासक राव शत्रुशाल हाड़ा की पुत्री थी।
धरमत के युद्ध में औरंगजेब से पराजित होने के बाद जब महाराजा जसवन्तसिंह जोधपुर पहुँचे तो रानी जसवन्तदे ने किले के द्वार बन्द करवा दिये, क्योंकि राजपूत परम्परा के अनुसार युद्ध से या तो विजयी होकर लौटते हैं या वीरगति को प्राप्त होते हैं।
जसवन्तसिंह द्वारा यह आश्वासन देने पर कि वे शक्ति संगठित कर पुनः युद्ध करेंगे तथा पराजय का बदला लेंगे, रानी ने किले के द्वार खुलवाये।

चन्द्रकुँवरी बाई

मेवाड़ के राणा अमरसिंह द्वितीय की पुत्री चन्द्रकुँवरी का विवाह देबारी समझौते (1707 ई.) के तहत जयपुर के सवाई जयसिंह से हुआ, शर्त यह थी कि चन्द्रकुँवरी से उत्पन्न पुत्र ही जयपुर का शासक बनेगा।
1722 ई. में जयसिंह की खींची रानी ने ईश्वरीसिंह को जन्म दिया तथा 1728 ई. में चन्द्रकुँवरी ने माधोसिंह को जन्म दिया, परिणाम-स्वरूप जयपुर राज्य में उत्तराधिकार संघर्ष प्रारम्भ हो गया।

इन्द्रकुँवरी बाई

जोधपुर (मारवाड़) के महाराजा अजीतसिंह ने मुगल बादशाह फर्रुखसियर से 1715 ई. में अपनी पुत्री इन्द्रकुँवरी का विवाह किया था।
माना जाता है कि 1719 ई. में सैय्यद बन्धुओं द्वारा फर्रुखसियर की हत्या के बाद इन्द्रकुँवरी ने पुनः हिन्दू धर्म अपना लिया था।

गुलाब राय

ये जोधपुर के महाराजा विजयसिंह की पासवान थी।
वीर विनोद में कविराजा श्यामलदास ने गुलाबराय को 'जोधपुर की नूरजहाँ' की संज्ञा दी है।

अमृता देवी

महाराजा अभयसिंह के समय जोधपुर में भवन निर्माण हेतु कामदार गिरधारीदास ने खेजड़ली गाँव (जोधपुर) में वृक्ष काटने का आदेश दे दिया।
इन वृक्षों को बचाने के लिये विश्नोई सम्प्रदाय के 363 अनुयायियों ने अमृता देवी के नेतृत्व में अपना बलिदान कर दिया, जिनमें 69 स्त्रियाँ भी शामिल थीं।
इस त्याग की स्मृति में खेजड़ली गाँव में विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला आयोजित किया जाता है।

कृष्णाकुमारी

ये मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री थी, जिसका विवाह जोधपुर के महाराजा भीमसिंह के साथ तय हुआ था परन्तु महाराजा भीमसिंह की मृत्यु के कारण यह विवाह जयपुर के शासक जगतसिंह के साथ निश्चित कर दिया गया।
जोधपुर के महाराजा मानसिंह ने कृष्णाकुमारी का विवाह जोधपुर में ही करने पर जोर दिया, परिणाम-स्वरूप जोधपुर और जयपुर राज्यों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी।
इस क्रम में जयपुर के जगतसिंह ने अमीर खाँ पिण्डारी की सहायता से 1807 ई. में गिंगोली के युद्ध में जोधपुर के महाराजा मानसिंह को पराजित किया।
अन्ततः अमीरखाँ पिण्डारी के दबाव के कारण महाराणा भीमसिंह ने 21 जुलाई, 1810 ई. को कृष्णाकुमारी को जहर देकर मरवा दिया।

रसकपूर

रसकपूर नामक वेश्या के प्रति विशेष लगाव के कारण जयपुर के महाराजा जगतसिंह को 'जयपुर का बदनाम शासक' माना जाता है।
महाराजा जगतसिंह ने सिक्कों पर रसकपूर का नाम अंकित करवाया था। माना जाता है कि रसकपूर को नाहरगढ़ के किले में कैद कर दिया गया था।

कालीबाई

डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गाँव निवासी भील कन्या कालीबाई अपने शिक्षक सेंगाभाई को बचाने के प्रयास के कारण 19 जून, 1947 ई. को पुलिस द्वारा गोलियों से छलनी कर दी गई।

रतन शास्त्री

पं. हीरालाल शास्त्री की पत्नी रतन शास्त्री ने वनस्थली में 'जीवन कुटीर' संस्था की सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया।
इन्होंने जयपुर प्रजामण्डल द्वारा 1939 ई. को किये गये सत्याग्रह में भाग लिया। भारत छोड़ो आन्दोलन 1942 ई. के दौरान इन्होंने विद्यापीठ की छात्राओं को आन्दोलन में भाग लेने की छूट दी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन्हें महिला शिक्षा के विकास के लिए पद्मश्री व जमनालाल बजाज पुरस्कार तथा 1975 ई. में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

जानकी देवी बजाज

सेठ जमनालाल बजाज की पत्नी जानकी देवी ने 1933 ई. में कोलकाता में आयोजित अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन की अध्यक्षता की। 1942 ई. में इन्हें गौ सेवा संघ का अध्यक्ष बनाया गया।
भू-दान आन्दोलन में जानकी देवी ने सक्रिय भाग लिया। भारत सरकार ने 1956 ई. में इन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। पद्म विभूषण से सम्मानित होने वाली वे राज्य की प्रथम महिला और प्रथम व्यक्तित्व थीं। जानकी देवी ने अपनी आत्मकथा 'मेरी जीवन यात्रा' नाम से लिखी।

सत्यभामा

बूँदी के स्वतंत्रता सेनानी नित्यानन्द नागर की पुत्रवधू सत्यभामा ने ब्यावर-अजमेर आन्दोलन (1932 ई.) का नेतृत्व किया था।
सत्यभामा को महात्मा गाँधी की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है।

नारायणी देवी वर्मा

जन्म - सिंगोली (म.प्र.)
मेवाड़ के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी ने माणिक्य लाल वर्मा द्वारा स्थापित खाँडलाई आश्रम (1934 ई.) द्वारा भीलों में शिक्षा-प्रसार का कार्य किया।
प्रजामण्डल की गतिविधियों में भाग लेने के कारण 1939 ई. में उन्हें राज्य से निर्वासित कर दिया गया। नारायणी देवी ने 14 नवम्बर, 1944 ई. को भीलवाड़ा में महिला आश्रम की स्थापना की।

कमला देवी

इनको राजस्थान की प्रथम महिला पत्रकार के रूप में जाना जाता है। इन्होंने अजमेर से प्रकाशित होने वाले 'प्रकाश' पत्र से लेखन कार्य किया।

शान्ता त्रिवेदी

महिला जागरण की दिशा में काम करते हुए शान्ता त्रिवेदी ने उदयपुर प्रजामण्डल के आन्दोलनों में स्वयंसेविका के रूप में भाग लिया।
महिलाओं के समुचित विकास के लिए इन्होंने 1947 में उदयपुर में 'राजस्थान महिला परिषद्' की स्थापना की।

किशोरी देवी

शेखावाटी के स्वतंत्रता सेनानी सरदार हरलाल सिंह की पत्नी किशोरी देवी ने सीहोट के ठाकुर द्वारा महिलाओं के साथ किए गए दुर्व्यवहार का विरोध करने के लिए 25 अप्रैल, 1934 ई. को कटराथल में आयोजित दस हजार महिलाओं के सम्मेलन का नेतृत्व किया था।

दुर्गादेवी शर्मा

शेखावाटी के ताड़केश्वर शर्मा की पत्नी दुर्गादेवी ने झुंझुनूँ की महिला सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया। इन महिला सत्याग्रहियों ने 18 मार्च, 1939 ई. को जयपुर पहुँचकर गिरफ्तारियाँ दीं।

विजयाभवन भावसर

बाँसवाड़ा की ब्राह्मण विधवा विजयाभवन ने 1936 ई. में बाँसवाड़ा के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी धूलजी भाई भावसर से विवाह कर विधवा विवाह का आदर्श प्रस्तुत किया।
बाँसवाड़ा प्रजामण्डल की सहयोगी संस्था 'महिला मण्डल' का गठन विजयाभवन भावसर के नेतृत्व में हुआ था।

मणिबहन पाण्ड्या

'वागड़ के गाँधी' भोगीलाल पंड्या की पत्नी मणिबहन को 'वागड़ की बा' भी कहा जाता है। इन्होंने भोगीलाल पाण्ड्या के साथ विभिन्न आन्दोलनों में सक्रियता से भाग लिया।

खेतुबाई

बीकानेर के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी मघाराम वैद्य की बहन खेतुबाई ने दुधवाखारा किसान आन्दोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया था।

सत्यवती शर्मा

इनके नेतृत्व में महिलाओं का प्रथम जत्था मथुरा से भरतपुर में सत्याग्रह करने पहुँचा। इन्हें गिरफ्तार कर इनकी दो पुत्रियों को अनाथ आश्रम में भेज दिया गया।
1939 से 1947 ई. तक ये भरतपुर के प्रजामण्डल आन्दोलन में भाग लेती रही।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • राजस्थान की सुपरिचित महिला शान्ति त्रिवेदी ने कहा है कि "बिना आर्थिक मजबूती के राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं"।
  • विख्यात महिला समाज सुधारक छगनबेन राजस्थान के जोधपुर क्षेत्र से सम्बन्धित थी।
  • कमला स्वाधीन भूतपूर्व कोटा राज्य की स्वतंत्रता सेनानी थी।
  • कालीबाई जिसने डूंगरपुर पुलिस के हाथों अपने अध्यापक को बचाने में अपनी जिंदगी दे दी वह रास्तापाल की रहने वाली थी।
  • भील महिला कालीबाई राजस्थान की स्वतंत्रता सेनानी थी।
  • केन्द्रीय मंत्रीमंडल में शामिल की गई राजस्थान की प्रथम महिला सांसद डॉ. गिरिजा व्यास थी।
  • राजस्थान से राज्यसभा के लिये चुनी गई प्रथम महिला सदस्य श्रीमती शारदा भार्गव थी।
  • वनस्थली विद्यापीठ से रतनं शास्त्री सम्बन्धित थी।
  • बीकानेर की राजकुमारी राज्यश्री कुमारी को निशानेबाजी के लिए 1968 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • जयपुर की महारानी गायत्री देवी, वर्ष 1962 में पहली बार लोकसभा की सदस्य बनीं।

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