राजस्थान लोक सेवा आयोग

राजस्थान लोक सेवा आयोग

"राजस्थान की राजव्यवस्था (Rajasthan Polity) के अंतर्गत 'राजस्थान लोक सेवा आयोग' (RPSC) एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। इस विस्तृत लेख में हमने RPSC के संवैधानिक आधार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 (1) से 323 (ख) तक के प्रावधानों और आयोग की ऐतिहासिक यात्रा (1949 से वर्तमान तक) का गहन विश्लेषण किया है।
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संवैधानिक प्रावधान
  • अनुच्छेद 315 (1) : संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
  • अनुच्छेद 315 (2) : दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक संयुक्त लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान।
  • अनुच्छेद 316 (1) : लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति व कार्यकाल।
  • अनुच्छेद 316 (2) : संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य पद ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्ष की अवधि तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक पद पर बना रहेगा और राज्य लोक सेवा या संयुक्त लोक सेवा आयोग की दशा में 6 वर्ष या 62 वर्ष तक पद पर बने रहेंगे।
  • अनुच्छेद 317 : लोक सेवा आयोग के सदस्यों का हटाया जाना और निलंबित किया जाना।
  • अनुच्छेद 318 : आयोग के कर्मचारियों व सदस्यों की सेवा शर्तों के विनियम की शक्ति।
  • अनुच्छेद 319 : आयोग के किसी सदस्य द्वारा सदस्य न रहने पर उस सदस्य पर प्रतिबन्ध।
  • अनुच्छेद 320 : लोक सेवा आयोग के कर्त्तव्य।
  • अनुच्छेद 321 : लोक सेवा आयोग के कर्त्तव्यों का विस्तार करने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 322 : लोक सेवा आयोग के व्यय।
  • अनुच्छेद 323 : लोक सेवा आयोग की रिपोर्ट या प्रतिवेदन।
  • अनुच्छेद 323 (क) : प्रशासनिक अधिकरण
  • अनुच्छेद 323(ख) : अन्य विषयों के लिए अधिकरण।

राज्य सेवाओं में उन समस्त सेवाओं की गणना की जाती है जिन्हें राज्य सरकार सरकारी गजट में प्रकाशित सूचना द्वारा इस वर्ग में रखती है। इन सेवाओं की संख्या अलग-अलग है। साधारणतया प्रत्येक राज्य में सिविल सेवा, चिकित्सा सेवा, पुलिस सेवा, न्यायिक सेवा, सहकारिता सेवा, इंजीनियरिंग सेवा, लेखा सेवा इत्यादि होती है। राज्य सेवाओं को मुख्यत चार वर्गों: प्रथम वर्ग, द्वितीय वर्ग, तृतीय वर्ग और चतुर्थ वर्ग में वर्गीकृत किया जाता है। प्रथम एवं द्वितीय वर्गों में अधिकारी वर्ग आते है। तृतीय वर्ग में लिपिकीय कर्मचारी आते है जबकि चतुर्थ वर्ग में अकुशल कर्मचारी आते हैं। संविधान के भाग 14 में अनुच्छेद 315 से 323 में राज्य लोक सेवा आयोग की स्वतंत्रता, शक्तियों के अतिरिक्त गठन तथा सदस्यों की नियुक्ति व पदमुक्ति इत्यादि का प्रावधान किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 315 (1) के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग होगा अनु. 315 (2) व्यवस्था करता है कि दो या दो से अधिक राज्यों के लिए 'संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग' की स्थापना संसद द्वारा की जा सकती है। यदि राज्यों के विधानमण्डल द्वारा इस आशय का प्रस्ताव पारित किया गया हो।

राज्य लोक सेवा आयोग

राज्य की सेवाओं में नियुक्ति, पदोन्नति एवं अनुशासन स्थापित रखने के लिए राज्य सरकार के द्वारा एक राज्य लोक सेवा आयोग की स्थापना अनुच्छेद-315 (1) के द्वारा करना आवश्यक है। संविधान में आयोग के सदस्यों की कोई संख्या निर्धारित नहीं की गई है। यह कार्य राज्यपाल पर छोड़ दिया गया है। संविधान में दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक संयुक्त लोक सेवा आयोग अनुच्छेद-315(2) के गठन की व्यवस्था भी है। अगर इस प्रकार का एक प्रस्ताव विधायिका द्वारा पारित किया जाए, तो संसद ऐसे संयुक्त लोक सेवा आयोग का गठन विधि द्वारा कर सकती है।
राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करता है, संयुक्त लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। संविधान में व्यवस्था है कि यथासंभव आयोग के आधे सदस्य ऐसे होने चाहिए जिन्होंने कम से कम 10 वर्षों तक भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन कोई पद धारण किया हो। जब कभी लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष का पद किसी भी कारण से रिक्त हो जाए तो राष्ट्रपति तथा राज्यपाल को यह अधिकार प्राप्त है कि वह आयोग के अन्य सदस्यों में से किसी एक को उस समय तक अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण करने के लिए नियुक्त कर दे जब तक कोई स्थायी नियुक्ति न हो जाए। संयुक्त लोक सेवा आयोग अथवा राज्य लोक सेवा का प्रत्येक सदस्य, जिस दिन से वह पद ग्रहण करता है उस दिन से, 6 वर्षों तक अथवा 62 वर्ष की आयु प्राप्ति तक, जो भी पहले हो, अपने पद पर बना रह सकता है। संयुक्त लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित कर तथा राज्य लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य राज्यपाल को संबोधित कर, अपने पद से त्यागपत्र दे सकता है।
आयोग के अध्यक्ष अथवा सदस्यों को राष्ट्रपति कदाचार के आधार पर पदमुक्त कर सकता है। राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष अथवा अन्य सदस्यों को निम्नलिखित किसी कारण के आधार पर भी अपदस्थ कर सकता है-
  1. यदि वह दिवालिया हो गया हो।
  2. अपने कार्यकाल में कोई अन्य वैतनिक कार्य स्वीकार कर लेता है।
  3. राष्ट्रपति की सम्मति में वह मानसिक या शारीरिक दुर्बलता के कारण अपने पद पर कार्य करने में असमर्थ हो गया हो।
राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष अपने पद से मुक्त होने के उपरांत संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा अन्य सदस्य के रूप में अथवा किसी अन्य राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। वह भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन कोई भी अन्य पद ग्रहण नहीं कर सकता।

आयोग के कार्य

आयोग का यह कर्त्तव्य होगा कि राज्य सरकार की सेवाओं में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का आयोजन करे। जब कभी असैनिक सेवाओं में कोई नियुक्ति करनी हो तो नियुक्ति की प्रक्रिया से संबद्ध समस्त विषयों में, पदोन्नति में तथा एक से दूसरी सेवा में स्थानांतरण के संबंध में तथा ऐसी नियुक्तियों, पदोन्नतियों अथवा स्थानांतरणों के लिए अभ्यर्थियों की योग्यता संबंधी सभी विषयों में लोक सेवा आयोग से परामर्श लिया जाएगा। आयोग से उस समय भी परामर्श लिया जाएगा जब किसी व्यक्ति को भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन कार्य करते समय कोई चोट लगी हो तथा वह व्यक्ति क्षतिपूर्ति का दावा करे। क्षतिपूर्ति की रकम निर्धारित करते समय भी आयोग से परामर्श लिया जाएगा। भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन कार्यरत व्यक्तियों के अनुशासन से संबंध विषयों में भी आयोग से परामर्श लिया जाएगा।
आयोग का वह कर्त्तव्य है कि यह अपने कार्यों के संबंध में राज्यपाल के सम्मुख वार्षिक प्रतिवेदन रखे। राज्यपाल के लिए यह आवश्यक है कि वह उस प्रतिवेदन को विधान मण्डल के सम्मुख, अपने स्मरण पत्र के साथ, जिसमें उन प्रकरणों का उल्लेख हो जिनमें आयोग की संस्तुति न स्वीकार की गई हो तथा उन कारणों का भी उल्लेख हो जिनके आधार पर संस्तुति को अस्वीकार किया गया हो, रखें।

सदस्यों की कार्य स्वतंत्रताएँ

आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल निश्चित होता है।
एक बार नियुक्ति उपरान्त उनकी सेवा में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
कार्यकाल पूर्ण होने पर पुनर्नियुक्ति का प्रावधान नहीं है।
सेवानिवृत्ति के बाद अध्यक्ष या सदस्य केन्द्र या राज्य सरकार में लाभ का पद नहीं स्वीकार कर सकते।

राजस्थान लोक सेवा आयोग

राजस्थान लोक सेवा आयोग राजस्थान सरकार का आयोग है। जो राज्य प्रशासनिक सेवा (RAS), राजस्थान पुलिस सेवा (RPS) एवं अन्य राज्य स्तरीय व अधीनस्थ सेवाओं में भर्ती के लिए परीक्षाएं आयोजित करवाता है। राज्य में योग्य लोक सेवकों की भर्ती के लिए संविधान के अनुच्छेद 315 के तहत राजस्थान राज्य लोक सेवा आयोग की स्थापना 20 अगस्त, 1949 को जयपुर में की गई। राजस्थान के गठन के समय राज्य में कुल 22 प्रान्तों में से मात्र 3 प्रान्तों में जयपुर, जोधपुर एवं बीकानेर में लोक सेवा आयोग कार्यरत थे। रियासतों के एकीकरण के बाद गठित राजस्थान के तत्कालिक प्रबंधकों ने 16 अगस्त, 1949 28वें अध्यादेश के अधीन राजस्थान लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रस्ताव रखा था यह राजस्थान के गजट में 20 अगस्त, 1949 को पारित हुआ। वास्तव में आयोग 22 दिसम्बर, 1949 की अधिसूचना के द्वारा प्रभाव में आया। राज्य पुनर्गठन के बाद 1 नवम्बर, 1956 को सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर स्थानान्तरित कर दिया गया। आयोग के कार्य संचालन के लिए एक सचिव व चार उपसचिव तथा एक परीक्षा नियंत्रक होता है। आयोग का सचिव भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है। वर्तमान में श्री रामनिवास मेहता आयोग के सचिव है।
स्वतंत्रता से पहले राजस्थान अनेक देशी रियासतों में बँटा हुआ था स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान में 19 देशी रियासतें और 3 ठिकानें मौजूद थे। रियासतों की अपनी अलग प्रशासनिक व्यवस्था थी। अतः सम्पूर्ण राजपूताना में लोकसेवकों की भर्ती के लिए प्रांतीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई। सबसे पहले 1939 में जोधपुर राज्य में राज्य लोक सेवा आयोग स्थापित किया गया। 1940 में जयपुर में और 1946 में बीकानेर में राज्य लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई। रियासतों के ये लोक सेवा आयोग सेवा संबंधी नियमों का निर्माण करते थे और उन्हीं नियमों के अंतर्गत लोक सेवाओं में भर्ती की जाती थी। स्वतंत्रता के पश्चात् तत्कालीन राजप्रमुख द्वारा 16 अगस्त, 1949 को वर्ष 1949 का 23वाँ अध्यादेश जारी करते हुए आयोग की स्थापना की पहल की। इसी अध्यादेश के माध्यम से रजवाड़ों के लोक सेवा आयोग या अन्य भर्ती अधिकरण समाप्त कर दिये गये। एकीकरण के पश्चात् राजस्थान के लिए एक लोक सेवा आयोग के गठन का कार्य किया गया। इसके पश्चात् 20 अगस्त, 1949 को राजस्थान लोक सेवा आयोग की स्थापना हुई।

संगठन

अनुच्छेद 318 के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या व उनकी सेवा शर्तों का निर्धारण राज्यपाल द्वारा किया जाता है। परन्तु नियुक्ति के पश्चात् सदस्यों की सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता। प्रारम्भ में आयोग में एक अध्यक्ष व दो अन्य सदस्य थे। 28 जुलाई 1950 को राज्य के लोक सेवा आयोग के प्रथम अध्यक्ष एम.सी. त्रिपाठी और सदस्यों में देवीशंकर तिवाड़ी व एन. आर. चण्डोरकर शामिल किये गये। हालांकि इससे पूर्व अस्थायी व्यवस्था के अंतर्गत प्रथम अध्यक्ष 01 अप्रैल, 1949 को एस.के. घोष को बनाया गया।
1973 में सदस्यों की संख्या 4 और 1981 में सदस्यों की संख्या 5 कर दी गई। वर्तमान में आयोग में अध्यक्ष एवं 7 अन्य सदस्य निर्धारित किए गए हैं। अर्थात् कुल सदस्यों की संख्या वर्तमान में 8 है।

नियुक्ति

आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति (अनु. 316) मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है। प्रारम्भ में आयोग के वरिष्ठ सदस्य को अध्यक्ष नियुक्त किया जाता था परन्तु वर्ष 2009 में पहली बार महेन्द्रलाल कुमावत को सीधे ही अध्यक्ष पद पर नियुक्ति दी गई। राज्यपाल द्वारा आयोग का अध्यक्ष किसी को भी नियुक्त किया जा सकता है।

योग्यताएँ

आयोग के आधे सदस्य केन्द्र या राज्य सरकार के प्रशासनिक सेवाओं या लोक सेवाओं के सदस्य होते हैं जिनको 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। अन्य सदस्यों की योग्यताओं के संबंध में कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं की गई है। शेष सदस्य राज्य सरकार की इच्छा से गैर प्रशासनिक सदस्य हो सकते हैं। जिनमें राजनीतिक, शिक्षा, कानून या समाज सेवा के क्षेत्र में से हो सकते हैं। अनु. 316 (1) के अनुसार राज्य आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जायेगी। जिसमें यह अनिवार्य होगा कि आधे सदस्य कम से कम दस वर्ष भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन कार्य कर चुके कार्मिक होंगे।

शपथ

अध्यक्ष व सदस्य राज्य के राज्यपाल के समक्ष शपथ ग्रहण करते हैं।

कार्यकाल

इसके अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक होता है। जो राज्य की संचित निधि पर भारित है। अनु. 316(2) के अनुसार राज्य लोक सेवा आयोग व संयुक्त लोक सेवा आयोग के सदस्य 6 वर्ष की सेवा या 62 वर्ष की उम्र (41वें संविधान संशोधन द्वारा अधिनियम 1976 के आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई) तक ही पद धारण कर सकते हैं। अनुच्छेद 316 (3) के अनुसार लोक सेवा आयोग के सदस्य अपनी पदावधि की समाप्ति पर उस पद पर पुनर्नियुक्त नहीं किये जा सकेंगे। वेतन, भत्ते एवं अन्य खर्चे राज्य की संचित निधि पर भारित होते हैं।

वेतन

आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के वेतन व भत्तों एवं व्यय का प्रावधान अनुच्छेद 322 में किया गया है। अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्तों का निर्धारण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। सदस्यों के वेतन भत्तों के अतिरिक्त चिकित्सा एवं आवासीय सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। सेवानिवृत्ति के पश्चात् उन्हें आवश्यक पेंशन भी दी जाती है।

त्याग पत्र

अनुच्छेद 316 के अनुसार लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष व सदस्य राज्यपाल को अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा त्याग पत्र भी दे सकते हैं।

हटाना

अनु. 317 के अन्तर्गत लोक सेवा आयोग के सदस्य को निलम्बित करने की प्रक्रिया उल्लेखित है, जिसके अनुसार संयुक्त लोक सेवा आयोग में राष्ट्रपति व राज्य लोक सेवा आयोग में राज्यपाल, अध्यक्ष या सदस्यों को निलंबित कर सकता है। यदि वह - न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित किया जाए या पदावधि में पद के कर्तव्यों के बाहर सवेतन नियोजन कार्य करे। परन्तु राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को हटाने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व किसी अन्य सदस्य को केवल 'कदाचार' के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 145 में निहित प्रक्रिया द्वारा, उच्चतम न्यायालय द्वारा दोष सिद्ध होने पर ही हटाया जा सकता है। जाँच प्रक्रिया के अधीन राज्यपाल आरोपी अध्यक्ष या सदस्य को निलंबित कर सकता है। अनु. 318 प्रावधान करता है कि आयोग के सदस्यों से सम्बन्धित सेवा शर्तें लागू करने की शक्ति संयुक्त लोक सेवा आयोग में राष्ट्रपति व राज्य लोक सेवा आयोग में राज्यपाल की होगी। अनु. 319 के अनुसार एक बार पद पर न रहने की स्थिति में वह किसी राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में अथवा किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा।

कार्यवाहक अध्यक्ष

यदि किसी कारण से आयोग के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है तो ऐसी परिस्थितियों में राज्यपाल, आयोग के अन्य सदस्यों में से कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त कर सकता है।

वार्षिक प्रतिवेदन

अनु. 323 के अन्तर्गत राज्य लोक सेवा आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राज्यपाल को देता है।

आयोग के कार्य

अनु. 320 में लोक सेवा आयोग के कार्य वर्णित हैं-
  • यह राज्य लोक सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाओं का संचालन करता है।
  • राज्य सिविल सेवाओं में भर्ती, नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानान्तरण की उपयुक्तता।
  • राज्य सरकार के कार्मिकों पर प्रभाव डालने वाले आनुशासनिक विषय।
  • किसी कार्मिक के विरुद्ध विधिक कार्यवाहियों की प्रतिरक्षा में उसके द्वारा किए गए खर्च राशि के दावे के संबंध में।

आयोग की कार्यप्रणाली

राजस्थान राज्य लोक सेवा आयोग की कार्यप्रणाली राजस्थान लोक सेवा आयोग नियम एवं शर्तें 1963 एवं राजस्थान लोक सेवा आयोग शर्तें एवं प्रक्रिया मान्याकरण अध्यादेश 1975 एवं नियम 1976 के द्वारा की जाती है।

आयोग के कार्य (अनुच्छेद- 320)
  • भर्ती संबंधी कार्य करना - आयोग राज्य प्रशासनिक सेवाओं व अधीनस्थ सेवाओं में भर्ती के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं का आयोजन करेगा। इसके माध्यम से योग्यतम प्रत्याशियों को भर्ती के लिए आकर्षित करेगा।
  • परीक्षाओं का आयोजन करना - राज्य सरकार की अनुशंसा पर असैनिक सेवाओं तथा पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी करके परीक्षाएँ करवायेगा।
  • साक्षात्कार करना - विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल उम्मीदवारों का साक्षात्कार करवाने का कार्य करेगा। साधारणतः साक्षात्कार के लिए रिक्त पदों के 3 गुणा प्रत्याशियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है और साक्षात्कार के पश्चात् अंतिम योग्यता सूची तैयार की जाती है।
  • पदोन्नति संबंधी कार्य - आयोग पदोन्नति के संबंध में परीक्षाएँ आयोजित कर सकता है और विभागीय पदोन्नति (डी.पी.सी.) की सिफारिश भी करता है।
  • अनुशंसा करना - राज्य लोक सेवा आयोग अंतिम चयन सूची बनाने के बाद उस सूची में वरीयताक्रम में आने वाले प्रत्याशियों की संबंधित सेवा के पदों पर नियुक्ति के लिए राज्य सरकार को सिफारिश करता है। साधारणतया सरकार आयोग की सिफारिशें मान लेती है परन्तु मानने के लिए बाध्य नहीं है।
  • अनुशासनात्मक कार्यवाही - सरकार किसी कार्मिक के विरुद्ध भ्रष्टाचार या असंवैधानिक गतिविधियों में शामिल होने की यदि शिकायत प्राप्त करती है तो यह लोक सेवा आयोग से उचित अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के लिए परामर्श ले सकती है।
  • परामर्श संबंधी कार्य - राज्य सरकार लोक सेवकों के स्थानांतरण, पदोन्नति और किसी प्रकार के न्यायिक मामले में आयोग से परामर्श ले सकती है।

आयोग का सचिवालय

प्रशासनिक व वित्तीय कार्यों के निष्पादन हेतु आयोग का अपना सचिवालय है जो आयोग के मुख्यालय अजमेर में स्थित है। आयोग सचिवालय का प्रमुख सचिव कहलाता है, जो साधारणतः भारतीय प्रशासनिक सेवा (I.A.S.) का सदस्य होता है। 1969 से पूर्व लोक सेवा आयोग के सचिव पद पर राजस्थान प्रशासनिक सेवा या राजस्थान न्यायिक सेवा के अधिकारी को नियुक्त किया जाता था। आयोग के प्रशासनिक कार्यों को करने के लिए आयोग में एक सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है जिसे आयोग का सचिव कहते हैं। वह भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है जिसकी नियुक्ति राज्यपाल की अनुशंसा से की जाती है। सचिव का कार्यकाल साधारणतया 5 वर्ष निर्धारित किया गया है। सचिव के वेतन एवं भत्तों का निर्धारण राज्यपाल द्वारा किया जाता है। सचिव के अधीन एक सदस्य सचिव, चार उपसचिव, सहायक सचिव, एक अनुसंधान अधिकारी, एक विधि परामर्शी, 18 अनुभाग अधिकारी होते हैं। एक परीक्षा नियंत्रक (उपसचिव) पद का होता है। 6 निजी सचिव एक सहायक लेखाधिकारी, एक वरिष्ठ निजी सहायक, एक पुस्तकालय अध्यक्ष सहित कुल 44 राजपत्रित अधिकारी आयोग सचिवालय में कार्यरत है। इसके अतिरिक्त अराजपत्रित अधिकारी व अन्य कार्मिक भी होते हैं। आयोग का वर्तमान ढांचा निम्न प्रकार से है।

आयोग की शाखाएँ/प्रभाग-
  • प्रशासनिक प्रभाग
  • परीक्षा प्रभाग
  • भर्ती प्रभाग
  • सामान्य प्रभाग
  • अनुसंधान तथा कम्प्यूटर प्रभाग
  • लेखा प्रभाग
  • गोपनीय प्रभाग
  • विधि प्रभाग,
  • पुस्तकालय प्रभाग
  • सेट / स्लेट परीक्षण प्रभाग
  • पत्र प्राप्ति एवं प्रेषण प्रभाग
  • अराजपत्रित कार्मिक प्रभाग
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संविधान के अनुच्छेद 323 क के द्वारा सिविल सेवा प्राधिकरण के गठन की व्यवस्था है। राजस्थान में 1 जुलाई, 1976 को राजस्थान सिविल सेवा अपील अधिकरण का गठन जयपुर में किया गया।

राज्य प्रशिक्षण संस्थान
राजस्थान में प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को प्रशिक्षण हरिश्चन्द्र माथुर राजस्थान लोक प्रशासन संस्थान जयपुर में दिया जाता है। प्रारम्भ में अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए 14 नवम्बर, 1957 को जोधपुर में अधिकारी प्रशिक्षण स्कूल (OTS) की स्थापना की। इस संस्थान को 1963 में जयपुर स्थानान्तरित किया गया। 1969 में इसका नाम हरिश्चन्द्र माथुर राजस्थान लोक प्रशासन संस्थान (RIPA) रखा गया।

राजस्थान लोक सेवा आयोग को प्राप्त पुरस्कार/सम्मान

वर्ष: 2006
  • अवार्ड विवरण: नैतिक सम्मान
  • उद्देश्य: अखंडता एवं निष्पक्षतावाद हेतु
  • द्वारा प्रदत्त: गुलजारी लाल नंदा फाउंडेशन

वर्ष: 2010
  • अवार्ड विवरण: ISO 9001:2008
  • उद्देश्य: दक्षता हेतु
  • द्वारा प्रदत्त: क्वेस्ट सर्टिफिकेशन (प्रा.) लि.

वर्ष: 2011
  • अवार्ड विवरण: राजस्थान ई-गवर्नेन्स चैम्पियन अवार्ड विभाग, राजस्थान सरकार
  • उद्देश्य: ऑनलाइन आवेदन एवं शुल्क हेतु
  • द्वारा प्रदत्त: सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार

वर्ष: 2012 (15.11.2012)
  • अवार्ड विवरण: ई-इण्डिया पब्लिक चॉइस अवार्ड
  • उद्देश्य: ऑनलाइन आवेदन हेतु (शासन से नागरिक वर्ग के अन्तर्गत)
  • द्वारा प्रदत्त: ई-लेट्स इण्डिया

वर्ष: 2013 (11.02.2013)
  • अवार्ड विवरण: नेशनल ई-गवर्नेन्स गोल्ड अवार्ड
  • उद्देश्य: भारत की श्रेष्ठ सरकारी पोर्टल हेतु
  • द्वारा प्रदत्त: प्रशासनिक सुधार विभाग, भारत सरकार

वर्ष: 2013
  • अवार्ड विवरण: वित्तीय समावेश एवं भुगतान प्रणाली (एफ.आई.पी.एस.) अवार्ड
  • उद्देश्य: अभ्यर्थियों को वैकल्पिक भुगतान प्रणाली हेतु
  • द्वारा प्रदत्त: ई-लेट्स इण्डिया

वर्ष: 2014 (14.03.2014)
  • अवार्ड विवरण: सिक्योर आई.टी. अवार्ड
  • उद्देश्य: अभ्यर्थियों से ऑनलाइन सुरक्षित भुगतान प्रणाली हेतु

वर्ष: 2014 (10.06.2014)
  • अवार्ड विवरण: क्लाउड गवर्नेंस, 2014
  • उद्देश्य: बेस्ट इन हाउस नवोन्मेष के अंतर्गत परीक्षा केन्द्र रिपोर्टिंग ऐप हेतु

वर्ष: 2014 (07.08.2014)
  • अवार्ड विवरण: मंथन अवार्ड, 2014 में फाईनलिस्ट
  • उद्देश्य: पुणे में ई-गवर्नेन्स पहल के अन्तर्गत ऑनलाइन परियोजना हेतु

वर्ष: 2015 (13.03.2015)
  • अवार्ड विवरण: सिक्योर आई.टी. अवार्ड
  • उद्देश्य: नई दिल्ली में ई-गवर्नेन्स के अंतर्गत ऑनलाइन आपत्ति हेतु श्रेष्ठ पोर्टल

वर्ष: 2015
  • अवार्ड विवरण: मेमोरी के लिए दिया गया पुरस्कार (मेरी परीक्षा मेरे ऑनलाईन रिव्यूसेंस) नई दिल्ली में आवेदन
  • उद्देश्य: सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के अभिनव उपयोग हेतु (आई.सी.टी.)
  • द्वारा प्रदत्त: ई-लेट्स इंडिया

वर्ष: 2015
  • अवार्ड विवरण: नई दिल्ली में मेमोरी आवेदन के लिए स्कॉच द्वारा मेरिट अवार्ड का ऑर्डर दिया गया
  • उद्देश्य: स्मार्ट प्रशासन में 2015 के लिए भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रोजेक्ट हेतु
  • द्वारा प्रदत्त: स्कॉच

वर्ष: 2016
  • अवार्ड विवरण: नई दिल्ली में ऑन स्क्रीन मार्किंग आवेदन के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग को स्मार्ट प्रशासन पहल (SGI) अवॉर्ड, 2016
  • उद्देश्य: ऑन स्क्रीन मार्किंग आवेदन के लिए स्मार्ट प्रशासन पहल
  • द्वारा प्रदत्त: ई-लेट्स इण्डिया

वर्ष: 2017
  • अवार्ड विवरण: फरीदाबाद, हरियाणा में मंथन अवॉर्ड 2016-17 में फाइनलिस्ट
  • उद्देश्य: सरकार एवं नागरिकों के गठजोड़ के लिए प्रौद्योगिकी का सर्वोत्तम उपयोग
  • द्वारा प्रदत्त: मंथन

वर्ष: 2018
  • अवार्ड विवरण: अजमेर में दिनांक 13.04.2018 को स्मार्ट सिटी अजमेर अवॉर्ड, 2018
  • उद्देश्य: राजस्थान में ई-गवर्नेन्स के बेहतरीन उपयोग के लिए
 
वर्ष: 2018
  • अवार्ड विवरण: विजाग, आंध्र प्रदेश में दिनांक 11.08.2018 को टेक्नोलॉजी सभा अवॉर्ड, 2018
  • उद्देश्य: दस्तावेज श्रेणी के अंतर्गत ऑन स्क्रीन मार्किंग में ई-गवर्नेन्स के उपयोग के सन्दर्भ में

राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष
अध्यक्ष पद ग्रहण पद त्याग
डॉ. एस.के. घोष 01.04.1949 27.07.1550
एस.सी. त्रिपाठी 28.07.1950 07.08.1951
डी.एस. तिवारी (सबसे लम्बा कार्यकाल) 08.08.1951 20.01.1958
एम.एम. वर्मा 20.01.1958 03.12.1958
एल.एल. जोशी 04.12.1958 31.07.1960
वी.वी. नार्लीकर 01.08.1960 31.07.1966
आर.सी. चौधरी 08.02.1967 09.10.1972
बी.डी. माथुर 09.10.1972 23.06.1973
आर.एस. कपूर 24.06.1973 10.06.1975
मोहम्मद याकूब 27.06.1975 30.06.1979
आर.एस. चौहान 30.06.1979 10.06.1980
एच.डी. गुप्ता 10.09.1980 09.06.1983
एस. अद्वीयप्पा 10.06.1983 26.03.1985
दीनदयाल 26.03.1985 07.11.1985
जे.एम. खान 08.11.1985 27.11.1989
एस.सी. सिंघारिया (कार्यवाहक) 27.11.1989 05.09.1990
यतेन्द्र सिंह 05.09.1990 06.10.1995
हनुमान प्रसाद 06.10.1995 30.09.1997
पी.एस. यादव 01.10.1997 06.11.1997
देवेन्द्र सिंह 06.11.1997 30.12.2000
एन.के. बैरवा 31.12.2000 22.03.2004
जी.एस. टांक 15.07.2004 04.07.2006
एच.एन. मीणा (कार्यवाहक) 04.07.2006 19.09.2006
सी.आर. चौधरी 23.02.2008 28.02.2010
एम.एल. कुमावत (पूर्व डीजीपी) 28.02.2010 01.07.2011
बी.एम. शर्मा 01.07.2011 31.08.2012
हबीब खां गौरान 31.08.2012 (A/N) 22.09.2014
आर.डी. सैनी (कार्यवाहक) 24.09.2014 10.08.2015 (F/N)
ललित के. पंवार 10.08.2015 10.07.2017
श्याम सुंदर शर्मा 11.07.2017 28.09.2017
डॉ. राधेश्याम गर्ग 18.12.2017 01.04.2018
दीपक उप्रेती 23.07.2018 14.10.2020
डॉ. भूपेन्द्र सिंह यादव (पूर्व डीजीपी) 14.10.2020 29.01.2022
संजय कुमार श्रोत्रिय 15.02.2022 01.08.2024
कैलाश मीणा (कार्यवाहक) 05.08.2024 लगातार

  • राजस्थान राज्य लोक आयोग के प्रथम अध्यक्ष - एस. के. घोष
  • सर्वाधिक अवधि तक आर.पी.एस.सी. के अध्यक्ष रहे- देवी शंकर तिवाड़ी (1951-58)
  • न्यूनतम अवधि तक आर.पी.एस.सी. के अध्यक्ष रहे- पी.एस. यादव- 1.10.1997 से 6.11.1997 तक, 37 दिन मात्र
  • राज. लोक सेवा आयोग के वर्तमान कार्यवाहक अध्यक्ष- कैलाश मीणा

राजस्थान में प्रशासनिक सुधार

राज्य में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन 1963 में हरीशचन्द्र माथुर की अध्यक्षता में तथा दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन 11 मई,1999 को श्री शिवचरण माथुर की अध्यक्षता में किया गया। जिसने अपनी रिपोर्ट 28 अगस्त, 2000 को प्रस्तुत की। आयोग ने प्रशासन में कार्य कुशलता, ईमानदारी, प्रशासनिक अपव्यय को रोकने, प्रशासन को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने के सुझाव दिये। इसे पूर्व विभागीय प्रक्रिया समिति 1954, प्रशासनिक जाँच समिति 1956, राज्य मितव्ययता समिति, 1956 तथा राजस्व कानून आयोग 1962 द्वारा प्रशासनिक सुधार हेतु सुझाव दिये।

प्रशासनिक सुधार आयोग

प्रशासनिक सुधार से तात्पर्य है कि प्रशासन में इस प्रकार सुनियोजित परिवर्तन किये जाए जिससे प्रशासन की कार्य कुशलता एवं गुणवत्ता में वृद्धि हो। यह निरन्तर प्रक्रिया है, जो अत्यधिक व्यापक एवं गंभीर प्रकृति की होती है। भारत में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन 5 जनवरी, 1966 को श्री मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में किया गया। प्रशासन को चुस्त दुरूस्त करने के उद्देश्य से 3 अगस्त 2005 को केन्द्र सरकार ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री श्री वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरे प्रशासनिक आयोग का गठन किया। इस आयोग का मुख्य कार्य मंत्रालयों व विभागों का पुनर्गठन और उनकी भूमिका को वैश्वीकरण के दौर के अनुरूप बनाना है दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग में पाँच सदस्य है।
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग के कार्यों के संबंध में निम्नलिखित सुझाव दिये-
राज्य सरकार के अधीन उच्च स्तरीय पदों (श्रेणी- I एवं श्रेणी- II के विभिन्न राज्य के केडर के पदों) के लिए उम्मीदवारों की भर्ती।
विभागीय पदोन्नति समिति द्वारा वरिष्ठ स्तरीय पदोन्नति के लिए सरकार को सलाह या परामर्श दिया जाये।
सरकारी महाविद्यालयों एवं पूर्णतः राजकोषीय पोषित विश्वविद्यालय की इकाइयों में शैक्षणिक पदों पर भर्ती व पदोन्नति।

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Kartik Budholiya

Kartik Budholiya

Education, GK & Spiritual Content Creator

Kartik Budholiya is an education content creator with a background in Biological Sciences (B.Sc. & M.Sc.), a former UPSC aspirant, and a learner of the Bhagavad Gita. He creates educational content that blends spiritual understanding, general knowledge, and clear explanations for students and self-learners across different platforms.