राजस्थान राज्य निर्वाचन आयोग
स्थानीय स्तर पर लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं नियमित चुनाव आवश्यक होते हैं। भारतीय संविधान में स्थानीय निकायों के लिए ऐसे चुनाव कराने का प्रावधान किया गया है तथा इन चुनावों के आयोजन की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोग को सौंपी गई है।
इसी उद्देश्य से 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अंतर्गत प्रत्येक राज्य में राज्य निर्वाचन आयोग के गठन का प्रावधान किया गया। राज्य निर्वाचन आयोग को पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों की चुनावी प्रक्रिया की तैयारी, चुनावों का निर्देशन, नियंत्रण और देखरेख करने की शक्ति प्राप्त है। इसके अतिरिक्त मतदाता सूचियाँ तैयार करना तथा पंचायत एवं स्थानीय निकायों के चुनाव सम्पन्न कराना भी इसके अधिकार क्षेत्र में आता है।
राज्य निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था के रूप में कार्य करता है तथा इसे भारत के निर्वाचन आयोग के समान शक्तियाँ और कर्तव्य प्रदान किए गए हैं।
राज्यों में राज्य निर्वाचन आयोग को बहुसदस्यीय न बनाकर एक सदस्यीय बनाया गया है यद्यपि कुछ राज्यों में उप आयुक्त की व्यवस्था भी की गयी है। राज्य निर्वाचन आयुक्त, राज्य निर्वाचन आयोग का सर्वेसर्वा होता है। आयोग का मुख्य कार्य पंचायतीराज संस्थाओं एवं शहरी संस्थाओं (नगरपालिकाओं) के चुनाव के लिए निर्वाचक नामावली तैयार करना, चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन तथा संचालन करना है।
73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के द्वारा संविधान में एक नया भाग- 9 'पंचायत' नाम से जोड़ा गया और अनुच्छेद 243 A से 243 O तक जोड़ें गए तथा अनुच्छेद 243 K/ट के द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव सम्पन्न कराने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की व्यवस्था की गई। इसी प्रकार 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के द्वारा संविधान में एक नया भाग- 9 क या 9 A जोड़ा गया और इसी के अन्तर्गत अनुच्छेद 243 ZA य क के द्वारा नगरपालिकाओं के चुनाव सम्पन्न कराने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की व्यवस्था की गई।
अनुच्छेद 243K/ट और 243 ZA/यक में राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान करते हुए कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्य निर्वाचन आयोग का गठन करें। भारत के चुनाव आयोग की तरह राज्य का चुनाव आयुक्त भी स्वायत्त होगा। इस आधार पर राजस्थान के राज्यपाल ने 17 जून, 1994 को आदेश जारी कर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243K/ट एवं 243 ZA/यक के द्वारा राज्य में राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना की। सर्वप्रथम अमर सिंह राठौड़ को राज्य का निर्वाचन आयुक्त बनाया गया। राजस्थान में एक सदस्यीय राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है।
राजस्थान पंचायतीराज अधिनियम 1994 की धारा 120 के अनुसार निर्वाचन आयोग के कर्त्तव्यों का पालन किसी उप निर्वाचन आयुक्त या राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव द्वारा भी किया जा सकेगा। निर्वाचन आयुक्त राज्य निर्वाचन आयोग का सर्वोच्च पद होता है।
राजस्थान में गठन से लेकर वर्तमान तक के आयुक्त
| आयुक्त का नाम | कार्यकाल |
|---|---|
| अमरसिंह राठौड़ | 01/07/1994 से 01/07/2000 |
| एन आर. भसीन | 02/07/2000 से 02/07/2002 |
| इन्द्रजीत खन्ना | 26/12/2002 से 26/12/2007 |
| अशोक कुमार पाण्डे | 01/10/2008 से 30/09/2013 |
| राम लुभाया | 01/10/2013 से 2/04/2017 |
| प्रेमसिंह मेहरा | 03 जुलाई, 2017 |
| मधुकर गुप्ता | 14 अगस्त, 2022 |
राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवीन महाजन हैं।
संगठन
राज्य निर्वाचन आयोग एक सदस्यीय संवैधानिक आयोग है। जिसका मुखिया राज्य निर्वाचन आयुक्त कहलाता है। इसकी सहायता के लिए एक सदस्य सचिव भी होता है। राज्य में पंचायतों व नगरपालिकाओं के चुनाव सम्पन्न कराने के लिए अन्य अधिकारी भी होते हैं जिनमें- जिला निर्वाचन अधिकारी, पंजीयन अधिकारी, उपखण्ड निर्वाचन अधिकारी, मतदान अधिकारी, बूथ स्तर के अधिकारी शामिल होते हैं।
नियुक्ति
सेवा की अवधि और कार्यकाल की शर्तें भी राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाती है। राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। सेवा की अवधि और कार्यकाल की शर्तें भी राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाती है। साधारणतः इस पद पर ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जो राज्य सरकार या भारत सरकार के अधीन प्रधान सचिव या इसके समान वेतन वाले पद पर कम से कम पाँच वर्ष तक कार्य कर चुका हो। राज्यपाल द्वारा यह नियुक्ति योग्यता के आधार पर बिना पक्षपात के और पारदर्शी तरीके से की जाती है।
कार्यकाल
राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो, होता है।
त्यागपत्र
राज्य निर्वाचन आयुक्त अपना त्यागपत्र राज्यपाल को संबोधित कर पेश करता है।
वेतन एवं भत्ते
राज्य निर्वाचन आयुक्त का दर्जा, वेतन एवं भत्ते उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान होते हैं।
हटाना
राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसी विधि से हटाया जा सकता है जिस विधि के द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को संसद द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पारित करने पर राष्ट्रपति पद से हटाते हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने की कार्यावधि निश्चित करने का अधिकार विधानसभा को प्राप्त है। कार्यवाही चाहे जो भी हो, लेकिन विधानसभा के दोनों सदनों को अलग-अलग अपने कुल सदस्यों की संख्या के बहुमत और उपस्थित तथा मतदान देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करना होता है। यह प्रस्ताव राज्यपाल को भेजा जायेगा। राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने का अंतिम रूप से आदेश राज्यपाल जारी करते हैं।
सेवा शर्तें
निर्वाचन आयुक्त की सेवा शर्तें और पदावधियाँ ऐसी होती हैं जो कि राज्यपाल नियम द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
राज्य निर्वाचन आयोग के कार्य-
- राज्य निर्वाचन आयोग पंचायतों व नगरपालिकों के लिए निर्वाचित नामावली तैयार करता है और उसी के निर्देशन में चुनाव सम्पन्न कराये जाते हैं।
- पंचायतों के लिए अनुच्छेद 243K के द्वारा और नगरपालिकाओं के लिए यह व्यवस्था 243ZA के द्वारा की गई है।
राज्य चुनाव आयोग की स्वतंत्रता एवं चुनाव आयुक्त
उच्चतम न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 12 मार्च, 2021 को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में निर्णय देते हुए कहा कि राज्य या केन्द्र सरकार की सेवा के अधीन कार्य करने वाले सरकारी अधिकारियों को राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह फैसला गोवा सरकार के उस निर्णय के विरुद्ध दिया जिसमें गोवा सरकार के सचिव को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि जो व्यक्ति सरकार में कोई पद संभाल रहा हो उसे राज्य के चुनाव आयुक्त का पद कैसे दिया जा सकता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सत्ता में बैठे एक सरकारी अधिकारी को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार सौंपना संविधान का मखौल उड़ाना है। इसलिए चुनाव आयोगों की स्वतंत्रता से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस संबंध में निर्णय देते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 व 144 के तहत भारत के सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित क्षेत्रों को निर्देश दिया कि उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक राज्य में एक स्वतंत्र राज्य निर्वाचन आयुक्त हो।

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