राज्य मानवाधिकार आयोग
मानवाधिकार व्यक्ति को प्रकृति द्वारा प्रदत्त मूलभूत अधिकार हैं, जिनमें जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा मानवीय गरिमा शामिल है। इन अधिकारों के संरक्षण हेतु विश्व स्तर पर निरंतर प्रयास किए जाते रहे हैं। सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा जारी की गई। इसके पश्चात वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण एवं प्रवर्तन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई।
भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए वर्ष 1993 में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 पारित किया गया। यह अधिनियम 28 सितम्बर 1993 से प्रभावी हुआ तथा 8 जनवरी 1994 को इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई। मानवाधिकारों के संरक्षण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका के कारण इसे मानवाधिकारों का रक्षक अधिनियम भी कहा जाता है। इसी अधिनियम के आधार पर 12 अक्टूबर 1993 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई।
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत न केवल केंद्र स्तर पर, बल्कि राज्यों में भी मानवाधिकार आयोगों के गठन का प्रावधान किया गया है। इसी अधिनियम के तहत राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन 18 जनवरी 1999 को किया गया। यह आयोग मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत स्थापित एक स्वायत्त एवं उच्चाधिकार प्राप्त संस्था है, जो राज्य में मानवाधिकारों की निगरानी एवं संरक्षण का कार्य करती है।
देश में वर्ष 2019 तक 26 राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोग गठित किए जा चुके थे। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड एवं मिजोरम में अगस्त 2018 तक राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन नहीं हुआ था। वहीं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए एक संयुक्त राज्य मानवाधिकार आयोग तेलंगाना में कार्यरत है।
गठन (Composition)
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा-21 में 'राज्य मानवाधिकार आयोग के गठन का प्रावधान' किया गया है। इस धारा के अनुसार राजस्थान में 'राजस्थान मानवाधिकार' आयोग का गठन 18 जनवरी, 1999 की एक अधिसूचना द्वारा किया गया है। इस प्रकार राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग, जयपुर में मार्च, 2000 में क्रियाशील हुआ है। यह 23 मार्च, 2000 से विधिवत् रूप से कार्य करने लगा। अधिनियम की धारा 21(2) के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होंगे। प्रारम्भ में आयोग में एक अध्यक्ष व चार सदस्यों की व्यवस्था की थी। बाद में 'मानवाधिकार संरक्षण संशोधन अधिनियम, 2006' के द्वारा एक अध्यक्ष व दो अन्य सदस्यों की व्यवस्था की गई है। मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 के द्वारा सदस्यों की संख्या 2 से बढ़ाकर 3 कर दी गई है। आयोग का अधिकार क्षेत्र राजस्थान राज्य है। आयोग के प्रथम अध्यक्ष न्यायमूर्ति कांता कुमारी भटनागर। आयोग के वर्तमान अध्यक्ष - न्यायमूर्ति गंगाराम मूलचंदानी हैं।
राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग
अधिनियम की धाराएँ
- धारा -21 -राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन।
- धारा -22 - राज्य आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति।
- धारा - 23 - राज्य आयोग के सदस्य का हटाया जाना।
- धारा - 24 - राज्य आयोग के सदस्यों की पदावधि।
- धारा - 25 - कुछ परिस्थितियों में सदस्य द्वारा अध्यक्ष के रूप में कार्य करना या उसके कार्यों का निर्वहन।
- धारा - 26 - राज्य आयोग के सदस्यों की सेवा शर्तें।
- धारा - 27 - राज्य आयोग के अधिकारी एवं अन्य कर्मचारी।
- धारा - 28 - राज्य आयोग के वार्षिक एवं विशेष प्रतिवेदन।
- धारा - 29 व धारा 10(2) के अन्तर्गत राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग (प्रक्रिया), विनियम, 2001 निर्मित किए।
- धारा - 33 आयोग की वित्तीय स्वायत्तता का वर्णन।
आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए, परन्तु मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 के द्वारा जुलाई, 2019 में यह प्रावधान किया गया है। राज्य आयोग की ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा और ऐसे कार्यों का निर्वहन करेगा जो उसे प्रत्यायोजित किये गये हों। आयोग की अपनी एक जाँच एजेंसी है, जिसका नेतृत्व ऐसे पुलिस अधिकारी जो महानिरीक्षक पुलिस पद से कम स्तर का नहीं हों, द्वारा किया जाता है। राज्य मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार एक अधिसूचना जारी करके विनिर्दिष्ट करेगी। राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय जयपुर में है।
धारा 21(5) के तहत आयोग केवल ‘राज्यसूची एवं समवर्ती सूची’ (संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-2 व सूची 3) के संबंध में मानवाधिकार हनन के मामलों की जाँच कर सकता है। परन्तु यदि ऐसे मामलों की जाँच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या कोई अन्य सांविधिक संस्था कर रही हो तो राज्य मानवाधिकार आयोग जाँच नहीं करेगा। धारा 21(4) के अनुसार आयोग का मुख्यालय उस स्थान पर होगा जहाँ राज्य सरकार निर्धारित करेगी।
नियुक्ति (Appointment)
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 22(1) में राज्य आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा अपने हस्ताक्षर एवं मुद्रा सहित वारंट या (अधिपत्र) के द्वारा की जायेगी। सदस्यों की नियुक्ति एक समिति की सिफारिश के आधार पर की जाती है। धारा 22(2) के अनुसार यदि ऐसे समय में कोई पद रिक्त है तो नियुक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
समिति के सदस्य
- मुख्यमंत्री - अध्यक्ष
- विधानसभा अध्यक्ष - सदस्य
- विधानसभा में विपक्ष का नेता - सदस्य
- राज्य का गृहमंत्री - सदस्य यदि राज्य में विधान परिषद भी है तो
- विधान परिषद का सभापति (अध्यक्ष) - सदस्य
- विधान परिषद में विपक्ष का नेता - सदस्य
वेतन एवं भत्ते
राज्य आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन-भत्तों एवं अन्य सेवा-शर्तों का निर्धारण राज्य सरकार द्वारा किया जायेगा। परन्तु उनके कार्यकाल के दौरान वेतन-भत्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
कार्यकाल या पदावधि (Term)
अधिनियम की धारा 24 के अनुसार सदस्यों का कार्यकाल पदग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक होता है इनमें जो भी पहले हो होता था। मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक, 2019 के द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष होगा और अधिकतम आयु 70 वर्ष तक होगी। आयोग में वह पुनर्नियुक्ति का भी पात्र होगा। जब ये सदस्य पद पर नहीं रहते तो अध्यक्ष या सदस्य राज्य सरकार या भारत सरकार के अधीन किसी भी नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगें।
त्यागपत्र
अध्यक्ष व सदस्य अपना त्यागपत्र राज्यपाल को देते हैं।
हटाना
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा-23 में राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को धारा 23(1) व सदस्यों को धारा 23(2) में हटाने संबंधी प्रावधान है। धारा-23 की उपधारा (2) के अनुसार अध्यक्ष व सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति के आदेश द्वारा उच्चतम न्यायालय को निर्देश दिये जाने पर, उच्चतम न्यायालय के द्वारा इस संबंध में निहित प्रक्रिया के अनुसार की गई जाँच पर रिपोर्ट लेने के बाद हटाया जा सकता है। सदस्यों को सिद्ध कदाचार व अक्षमता के आधार पर हटाया जायेगा। इसके अतिरिक्त सदस्यों को निम्न परिस्थितियों में भी हटाया जा सकता है-
यदि अध्यक्ष या अन्य सदस्य दिवालिया घोषित (न्यायनिर्णित) कर दिया गया है।
मानसिक रूप या शारीरिक दुर्बलता के कारण पद पर रहने योग्य नहीं है।
किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है और राष्ट्रपति की राय में नैतिक पतन वाला है दोषसिद्धि पर उसको कारागार (जेल) की सजा दे दी गई है।
अध्यक्ष या सदस्य अपने पद के कर्त्तव्यों के बाहर किसी वैतनिक रोजगार में लग गये है अर्थात उन्होंने लाभ का पद प्राप्त कर लिया है।
यदि वह अस्वस्थ मस्तिष्क का है और सक्षम न्यायालय ने घोषणा की है।
आयोग के कार्य
आयोग निम्नलिखित कर्त्तव्यों का निष्पादन करेगा
स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा उसे प्रस्तुत याचिका पर।
मानवाधिकार के उल्लंघन या उसके उपशमन की, या किसी लोकसेवक द्वारा उस उल्लंघन को रोकने में उपेक्षा की शिकायत की जाँच करेगा,
किसी न्यायालय के समक्ष लम्बित मानव अधिकारों के उल्लंघन के किसी अभिकथन वाली किसी कार्यवाही में उस न्यायालय की अनुमति से हस्तक्षेप करेगा,
राज्य सरकार को सूचना देने के अध्ययधीन, राज्य सरकार के नियन्त्रणाधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का, जहाँ पर उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनार्थ व्यक्तियों को निरूद्ध किया जाता है या रखा जाता है निवास करने वालों की जीवन दशाओं का अध्ययन करने एवं उस पर सिफारिश करने के लिए निरीक्षण करेगा।
मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी कानून द्वारा या उसके अधीन प्रवाहित सुरक्षाओं का पुनरावलोकन करेगा तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करेगा।
उन कारकों का, जिसमें उग्रवाद के कृत्य भी है, मानव अधिकारों के उपयोग में बाधा डालते हैं, पुनरावलोकन करेगा एवं उपयुक्त उपचार करने की सिफारिश करेगा।
मानवाधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहित करेगा और साथ ही साथ मानवाधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को प्रोत्साहित करेगा।
नोट :- राज्य मानवाधिकार को सजा देने का अधिकार नहीं है।
आयोग की कार्यप्रणाली
राज्य मानवाधिकार आयोग को एक सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त हैं और इसके अनुरूप ही यह कार्यवाही सम्पन्न करता है। आयोग कार्य प्रणाली का निर्धारण स्वयं करता है। इस हेतु आयोग द्वारा राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग प्रक्रिया विनियम, 2001 बनाए हैं। इसके अलावा आयोग स्वयं मौके पर जाकर विभिन्न प्रकरणों की सुनवाई कर मामलों का निस्तारण करता है। आयोग में शिकायत किसी भी माध्यम से दर्ज करवायी जा सकती है। जैसे स्वयं उपस्थित होकर, पत्र के माध्यम से, समाचार पत्रों के माध्यम से, फैक्स, ई-मेल आदि के द्वारा। आयोग किसी मामले की सुनवाई के लिए राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी को निर्देशित कर सकता है। आयोग स्वयं न तो मानवाधिकार के उल्लंघन संबंधी मामलों की और न ही एक वर्ष से अधिक अवधि के मामलों की सुनवाई कर सकता है। क्योंकि आयोग की सिफारिशें सलाहकारी हैं। यह निम्नलिखित सिफारिशें कर सकता है-
- यह किसी पीड़ित व्यक्ति को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति भुगतान की सिफारिश संबंधित सरकार या प्राधिकारी को कर सकता है।
- यह किसी दोषी लोक सेवक के विरुद्ध बंदीकरण कार्यवाही हेतु सिफारिश कर सकता है।
- यह पीड़ित पक्ष को तत्काल सहायता के लिए सरकार या प्राधिकरण को सिफारिश कर सकता है।
- आयोग इस संबंध में आवश्यक निर्देश, आदेश तथा रिट के लिए उच्चतम अथवा उच्च न्यायालय में जा सकता है।
- गवाहों को सम्मन जारी करके बुलाने तथा उन्हें हाजरी हेतु बाध्य करने एवं उन्हें शपथ दिलाकर परखने के लिए।
- यह किसी गवाह को या संबंधित पक्ष को शपथ-पत्र देने के लिए बोल सकता है।
- किसी सरकारी अभिलेख की प्रति माँग सकता है।
वार्षिक प्रतिवेदन और विशेष रिपोर्ट ( धारा-28 )
राज्य मानवाधिकार आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राज्य सरकार को प्रस्तुत करता है। राज्य सरकार ऐसे वार्षिक या विशेष प्रतिवेदन पर जो भी कार्यवाही करती है उसकी जानकारी आयोग को दी जाती है।
प्रकाशन
राजस्थान मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोग के महत्वपूर्ण निर्णयों, निर्देशों को अपने त्रैमासिक न्यूज़लैटर 'मानवाधिकार संदेश' में प्रकाशित करता है।
| राजस्थान राज्य मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष और सदस्य | |||
|---|---|---|---|
| नाम | पदनाम | पदधारण की तिथि | पद छोड़ने की तिथि |
| जस्टिस सुश्री कान्ता भटनागर | अध्यक्ष | 23.03.2000 | 11.08.2000 |
| जस्टिस एस. सगीर अहमद | अध्यक्ष | 16.02.2001 | 03.06.2004 |
| न्यायमूर्ति अमर सिंह गोदारा (कार्यवाहक) | अध्यक्ष | 04.06.2004 | 06.07.2005 |
| जस्टिस एन.के. जैन | अध्यक्ष | 16.07.2005 | 15.07.2010 |
| न्यायमूर्ति जगतसिंह (कार्यवाहक) | अध्यक्ष | 19.07.2010 | 09.10.2010 |
| श्री पुखराज सिरवी (कार्यवाहक) | अध्यक्ष | 26.10.2010 | 13.04.2011 |
| श्री एच.आर. कुड़ी (कार्यवाहक) | सदस्य | 01.09.2011 | 14.06.2012 |
| न्यायमूर्ति प्रकाश चन्द्र टाटिया | अध्यक्ष | 11.03.2016 | 25.11.2019 |
| श्री महेश चन्द्र शर्मा (कार्यवाहक) | अध्यक्ष | 05.12.2019 | — |
| न्यायमूर्ति गोपाल कृष्ण व्यास | अध्यक्ष | 22.01.2021 | जनवरी, 2024 |
| न्यायमूर्ति गंगाराम मूलचंदानी | अध्यक्ष | 27.06.2024 | लगातार |
मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक, 2019
केन्द्र व राज्य मानवाधिकार आयोगों के कार्य में तेजी लाने के लिए और उन्हें व्यापक बनाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा जुलाई, 2019 में संशोधन किया गया है। संशोधन में राज्य मानवाधिकार आयोग के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं।
- राज्य स्तरीय मानवाधिकार आयोग में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भी आयोग का अध्यक्ष बनाया जा सकता है जबकि मौजूदा व्यवस्था में यह प्रावधान था कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश को ही राज्य स्तरीय आयोग का अध्यक्ष बनाया जा सकता था।
- आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु जो भी पहले हो किया गया है।
- राज्य मानवाधिकार आयोग के सचिव अध्यक्ष के नियंत्रणाधीन, सभी प्रशासनिक एवं वित्तीय शक्तियों का उपयोग करेंगे।
- इस संशोधन अधिनियम द्वारा व्यवस्था की गई है कि केन्द्र सरकार, (दिल्ली को छोड़कर) मानवाधिकार संबंधी कार्य राज्य मानवाधिकारों को सौंप सकती है।
वर्तमान में आयोग- राजस्थान मानवाधिकार आयोग (2025)
- अध्यक्ष - न्यायमूर्ति गंगाराम मूलचंदानी
- सदस्य - श्री राम चन्द्र सिंह झाला
- सदस्य - श्री अशोक कुमार गुप्ता

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